चार पंक्तियाँ -१
होता है राहुकाल कभी या है दिशा शूल,
चक्कर ये शुभअशुभ का ऐसा सर पे चढ़ गया
पंडित से पूछ मुहूरत ,निकले थे काम पर ,
रस्ते में सामने था, काणा एक पड़ गया
बैठे हम थोड़ी देर, फिर निकले तो ये हुआ ,
रस्ता हमारा निगोड़ी बिल्ली से कट गया
फिर निकले ,छींक आ गयी ,अब कोई क्या करे ,
सब काम उहापोह में,यूं ही बिगड़ गया
घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।