तू इतनी मै मै करता था और डींगें मारा करता था
निज वर्चस्व दिखाने खातिर ,ये नाटक सारे करता था
महल दुमहले बना रखे थे ,सुख के साधन जुटा रखे थे
जमा करी अपनी दौलत पर ,सौ सौ पहरे बिठा रखे थे
छप्पनभोग लगी थाली में ,नित होता तेरा भोजन था
खूब मनाता था रंगरलियां ,भोग विलास भरा जीवन था
बहुत दम्भ में डूबा रहता ,मै ऐसा हूँ , मै हूँ वैसा
इतनी बड़ी सम्पदा मेरी ,कोई नहीं होगा मुझ जैसा
झुकते थे सब तेरे आगे ,बड़ी शान शौकत थी तेरी
इस माया के खातिर तूने ,करी उमर भर ,हेरा फेरी
दान धरम भी कभी किया तो,होता था वो मात्र दिखावा
श्रदधा नहीं ,अहम होता था , ईश्वर के भी साथ छलावा
आज देख ले ,क्या परिणीति है ,तेरे कर्मों की और तेरी
बचा अंत में अब तू क्या है ,केवल एक राख की ढेरी
घर की केवल एक दीवार पर ,तेरी फोटो टंगी हुई है
सूखे मुरझाये फूलों की,उस पर माला , चढ़ी हुई है
इस जीवन का अंत यही है ,तो बसन्त में क्या इतराना
सच्ची एक कमाई होती ,सतकर्मों से नाम कमाना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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