बड़े रौब से हमने काटी जवानी ,
बड़ी शान से तब ,अकड़ कर के चलते ,
जो बच्चे हमारे ,इशारों पर चलते
बड़े हो अकड़ते ,यूं नज़रें बदलते
अकड़ रौब सारा ,हुआ अब नदारद ,
अकड़ का बुढ़ापे में ,ऐसा चलन है
जरा देर बैठो ,अकड़ती कमर है ,
थकावट के मारे ,अकड़ता बदन है
जरा लम्बे चल लो, अकड़ती है टांगें ,
अगर देखो टीवी ,अकड़ती है गरदन
अकड़ती कभी उँगलियाँ या कलाई,
अकड़ की पकड़ में ,फंसा सारा है तन
घोटू
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