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सोमवार, 27 जून 2016

अकड़

            

बड़े  रौब  से  हमने  काटी  जवानी ,
बड़ी शान से तब ,अकड़ कर के चलते ,
जो बच्चे हमारे  ,इशारों पर  चलते 
बड़े हो अकड़ते ,यूं नज़रें बदलते   
अकड़ रौब  सारा ,हुआ अब नदारद ,
अकड़ का बुढ़ापे में ,ऐसा चलन है 
जरा देर बैठो ,अकड़ती  कमर है ,
थकावट के मारे ,अकड़ता बदन है 
जरा लम्बे चल लो, अकड़ती है टांगें ,
अगर देखो टीवी ,अकड़ती है गरदन 
अकड़ती कभी उँगलियाँ या  कलाई,
अकड़ की पकड़ में  ,फंसा सारा है तन 

घोटू 

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