एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 22 जून 2016

शौक़ीन बुढ्ढे

       शौक़ीन बुढ्ढे  

ये बुढ्ढे बड़े शौक़ीन होते है
मीठी मीठी बातें करते है मगर नमकीन होते है
ये बुढ्ढे  बड़े शौक़ीन होते है
यूं तो सदाचार के लेक्चर झाड़ते है
पर  मौक़ा मिलते ही ,
आती जाती लड़कियों को  ताड़ते है
देख कर  मचलती जवानी
इनके मुंह में भर आता है पानीे 
और फिर जाने क्या क्या ख्वाब  बुनते   है
फिर अपनी मजबूरी को देख ,अपना सर धुनते है
पतझड़ के पीले पड़े पत्ते है ,जाने कब झड़ जाएंगे
पर हवा को देखेंगे,तो हाथ हिलाएंगे
जीवन की आधी अधूरी तमन्नाये,
उमर के इस मोड़ पर आकर, कसमसाने   लगती है
जी  चाहता है ,बचीखुची सारी हसरतें पूरी कर लें,
पर उमर आड़े  आने लगती है
समंदर की लहरों की तरह ,कामनाएं,
किनारे पर थपेड़े खाकर ,
फिर  समंदर में विलीन हो जाती है
क्योंकि काया इतनी क्षीण हो जाती है
जब गुजरे जमाने की यादें आती  है
बड़ा तडफाती है
कभी कभी जब बासी कढ़ी में उबाल आता है
मन में बड़ा मलाल आता है
देख कर के मॉडर्न लिविंग स्टाइल
तड़फ उठता  होगा उनका दिल
क्योंकि उनके जमाने में ,
 न टीवी होता था ,ना ही मोबाइल 
न फेसबुक थी न इंटरनेट पर चेटिंग
न लड़कियों संग घूमना फिरना ,न डेटिंग
माँ बाप जिसके पल्ले बाँध देते थे
उसी के साथ जिंदगी गुजार देते थे
पर देख कर के आज के हालात
क्या भगवान उन्हें साठ साल बाद ,
पैदा नहीं कर सकता था ,ऐसा सोचते होंगे
और अपनी बदकिस्मती पर ,
अपना सर नोचते होंगे
उनके जमाने में
मिलती थी खाने में
वो ही दाल और रोटी अक्सर
उन दिनों ,कहाँ होता था,
पीज़ा,नूडल और बर्गर
आज के युग की लोगों की तो चांदी है
उन्हें दुनिया भर के व्यंजन  खाने की आजादी है
आज का रहन सहन ,
ये वस्त्रों का खुलापन
और उस पर लड़कियों का ,
ये बिंदास आचरण
उनके मुंह में पानी ला देता होगा
बुझती हुई आँखों को चमका देता होगा
ख्यालों से मन  बहला देता होगा
जब भी किसी हसीना के दीदार होते है
ये फूंके हुए कारतूस ,
फिर से चलने को तैयार होते है
अपने आप को जवान  समझ कर ,
बुने गए इनके सपने ,बड़े रंगीन होते है
ये बुढ्ढे ,बड़े शौक़ीन होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



 
  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-