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शनिवार, 25 जून 2016

आंसू

            आंसू

 व्यथा और खुशियां सारी ,छलकाते आंसूं
दिल के जाने किस कोने से , आते  आंसूं
कहने को तो पानी की  बूँदें  कुछ होती 
आँखों से निकला करती है ,बन कर मोती 
ये कुछ बूँदें गालों पर जब करती ढलका
मन का सारा भारीपन ,हो जाता  हल्का
तो क्या ये अश्रुजल होता इतना भारी
पिघला देती ,जिसे व्यथा की एक चिंगारी
शायद दिल में कोई दर्द जमा रहता है
जो कि पिघलता ,और आंसूं बन कर बहता है
इसमें क्यों होता हल्का हल्का खारापन
क्यों इसके बह जाने से हल्का होता मन
अधिक ख़ुशी में भी ये आँखें भर देते है
प्रकट भावनाएं सब दिल की ,कर देते है
भावों की गंगा जमुना बन बहते आंसूं
दो बूँदों में ,जाने क्या क्या  कहते आंसूं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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