एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 13 जून 2012

सास का अहसास

 सास का अहसास

मर्दों  के लिए सास का अहसास

होता है बड़ा खास
सास की बोली का मिठास
और उमड़ता प्यार और विश्वास
अपने दामाद
को सास सदा देती है आशीर्वाद
मन में रख कर ये आस
वो जितना सुखी रहेगा
उसकी बेटी को भी उतना ही सुख देगा
और लड़कियों के लिए वो ही सास
बन जाती है गले की फांस
वो कहते है ना,
सास शक्कर की
तो भी टक्कर की
ये कैसा चलन  है
औरत को औरत से ही होती जलन है
और जाने अनजाने
वो बहू को सुनती रहती है ताने
बहू का जादू उसके बेटे पर चल गया है
और उसका बेटा,
उसके हाथ से निकल गया है
एक मुहावरा है,
सास नहीं ना ननदी
बहू फिरे  आनंदी
क्या ये एकल परिवार का चलन
का कारण है,सास बहू की आपसी जलन
माइके का और  ससुराल का ,
अपना अपना ,अलग अलग कल्चर होता है
आपस में एडजस्ट करने पर ,
परिवार सुखी रहता है,वरना रोता है
इसमें क्या शक है
अपने अपने ढंग से जीने का,
हर एक को हक है
सबको थोडा थोडा  एडजस्टमेंट जरूरी है
तभी मिटती दूरी है
माइके और ससुराल की संस्कृतियों में,
होना चाहिए मेल
तभी हंसी ख़ुशी चलती है,
गृहस्थी की  रेल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-