आ गए गर आँखों में आंसूं पश्चाताप के,
धुल गए वो बेरंग से गलतियों के जो छाप थे;
भूल तो हर इंसानों से ही हो जाता है "दीप",
धो देते हैं आंसूं ये हर दाग को उस पाप के |
आत्म-ग्लानि स्वयं में ही एक बड़ा दण्ड है,
गलतियों से सीख लेना पश्चाताप का खण्ड है,
अंतर्मन स्वीकार ले गलती बात बने तब "दीप",
पश्चाताप पे क्षमा है मिलती गलती चाहे प्रचन्ड है |
बिल्कुल सही कहा है आपने ... बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👌👌