संगत का असर
सुबह की शीतल हवा,
सूरज का साथ पा,
लू बन, सताती है
संगत के असर से,
आदमी की फितरत भी,
कितनी बदल जाती है
अलग अलग बादल की,
अलग अलग बूँदें भी,
मिल कर धरती पर से
साथ साथ रहती है,
नदिया बन बहती है,
मिलने समंदर से
खेल है किस्मत का,
मगर असर संगत का,
बड़े रंग दिखता है
शादी हो जाने पर,
आदमी के जीवन का,
रुख ही बदल जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अस्तित्त्व और हम
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अस्तित्त्व और हम जब सौंप दिया है स्वयं को अस्तित्त्व के हाथों में तब भय
कैसा ?जब चल पड़े हैं कदम उस पथ परउस तक जाता है जो तो संशय कैसा ?जब बो दिया
है बीज ...
1 घंटे पहले
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