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सोमवार, 18 जून 2012

दस्तक मॉनसून की


पड़ चुकी है दस्तक
मॉनसून की यारों;
घटायें हर तरफ अब
घिरने लगी हैं |

हर वर्ग हर शख्स
था इंतज़ार में इसके;
मौसम के कोप से
निजात था पाना |

अमीर थे सोचते 
कि मौसम होगा ठंढा;
ए.सी. नहीं चलेगा
तो बिजली बिल बचेगा |

गरीब था सोचता
कि बारिश जो होगी;
बाल-बच्चे परिवार
कुछ चैन से रहेंगे |

किसान का सर्वस्व तो 
मॉनसून पे ही निर्भर;
जो बारिश न हुई तो
सब कुछ लूट जायेगा |

जो लूटने में लगे हैं
हर माह उनका मॉनसून है;
इन्तजार तो हिस्सा है
बस आम जनता का ही |

बारिश की बूंदें अब
भिगोने है लगी;
प्यास हर किसी की 
है मिटाने में लगी |

झर-झर करती बूंदें
खुशहाल करती जिंदगी;
हर दिल को हर्षाती
दस्तक ये मॉनसून की |

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