जब मुँह पर खिला बसन्त --
बुरा न मानो होली है --
मूँग दले होरा भुने, उरद उरसिला कूट ।
पापड बेले अनवरत, खाय दूसरा लूट ।।
मालपुआ गुझिया मिली, मजेदार मधु स्वादु ।
स्वादु-धन्वा मन विकल, गुझरौटी कर जादु ।।
मन के लड्डू मन रहे, लाल-पेर हो जाय ।
रंग बदलती आशिकी, झूठ सफ़ेद बनाय ।।
भाँग खाय बौराय के, खेलें सन्त-महन्त ।
नशा उतरते ही खिला, मुँह पर मियाँ बसन्त ।।
होरा = चना का झाड़
उरसिला = चौड़ी छाती
गुझिया = एक प्रकार की मिठाई
गुझरौटी= नाभि के पास का भाग
स्वादु-धन्वा = कामदेव
जब मुँह पर खिला बसन्त = डर जाना
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ताकें गोरी छोरियां--
दोहे
शिशिर जाय सिहराय के, आये कन्त बसन्त ।
अंग-अंग घूमे विकल, सेवक स्वामी सन्त ।
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