बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती
प्यार मिले परिवार का, पुत्र-पिता पति साथ ।
देवी मुझको मत बना, झुका नहीं नित माथ ।
झुका नहीं नित माथ, झूठ आडम्बर छाये ।
कन्या-देवी पूज, जुल्म उनपर ही ढाये ।
दुग्ध-रक्त तन प्राण, निछावर सब कुछ करती ।
बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती ।।
बहुत सही लिखा है आपने ...
जवाब देंहटाएंsarthak post hae.
जवाब देंहटाएंsach likha hai .aapko saparivar holi parv ki shubhkamnayen .YE HAI MISSION LONDON OLYMPICplease spread this .
जवाब देंहटाएंइतने समय से तो हम सुनते रहे कि औरत अब पहले वाली नहीं रही?
जवाब देंहटाएंमूल रचना का लिंक दिया हुआ है |
जवाब देंहटाएंजरुर पढ़ें ||
आहुति की अंतरात्मा की भी यही आवाज है ||
सादर ||