मातृ ऋण
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
माता की सेवा कर,थोडा सा मातृऋण चुका रहा हूँ
माँ,जो बुढ़ापे के कारण,बीमार और मुरझाई है
उनके चेहरे पर संतुष्टि,मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है
मुझको तो बस अशक्त माँ को देवदर्शन करवाना है
न श्रवणकुमार बनना है,न दशरथ के बाण खाना है
और मै अपनी झोली ,माँ के आशीर्वादों से भरता जा रहा हूँ
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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*( Shalini Kaushik Law Classes-2.0)*
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12 घंटे पहले
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबढ़िया...
जवाब देंहटाएंसुख का अंतिम स्वरूप सुख की पराकाष्ठा इससे आगे क्या होगी ,तेरी झोली में आशीषों की बरसात होगी .
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