परिवर्तन
तब घूंघट पट,लेते थे ढक,उनके सब घट
अब कपडे घट,करे उजागर,उनके घट घट
तब झुक कर,लेते थे मन हर,नयना चंचल
अब तकते है,इधर उधर वो हो उच्श्रंखल
मर्यादित थे,रहते बंध कर,उनके कुंतल
उड़ते रहते,आवारा से ,अब गालों पर
बाट जोहती थी तब आँखें,पिया मिलन की
मोबाईल पर,रखे खबर पति के क्षण क्षण की
पति पत्नी तब,मुख दिखलाते,प्रथम रात में
अब शादी के,पूर्व घूमते,साथ साथ में
पहले रिश्ता,पक्का करते,ब्राह्मण , नाई
अब तो इंटरनेट,चेट,फिर है शहनाई
पति कमाते थे,पत्नी,घरबार संभाले
अब पति पत्नी,दोनों बने,केरियर वाले
यह समता अच्छी ,पर इससे आई विषमता
बच्चे तरसे,पाने को ,माता की ममता
माता पिता ,रहे बच्चों संग,छुट्टी के दिन
प्रगति की गति,लायी है ,कितने परिवर्तन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दीप जलता रहे
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हमारे चारों ओर केइस घने अंधेरे में समय थोड़ा ही हो भले उजेला होने
में विश्वास आत्म का आत्म पर यूं ही बना रहेसाकार हर स्वप्न सदा होता रहेअपने
हर सरल - कठिन र...
2 दिन पहले
नव वर्ष की मंगल कामनाओं सहित आभार ||
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