एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

सोमवार, 12 मार्च 2012

सुनो भागवत है क्या कहती

(पत्नी जी  जब सोने के गहने की जिद करे,ये कविता आपका

संबल बन सकती है- शुभकामनाओं  सहित-'घोटू')
मुझे दिला दो,स्वर्णाभूषण,तुम हरदम जिद करती रहती
                                       सुनो ,भागवत है क्या कहती
कलयुग आया था धरती  पर,बैठ परीक्षित स्वर्ण मुकुट पर
उसको ये वरदान प्राप्त है, उसका वास,  स्वर्ण के अन्दर
और तुम पीछे पड़ी हुई हो, तुमको स्वर्णाभूषण लादूं
पागल हूँ क्या,जो कलयुग को,गले तुम्हारे से लिपटा दूं
और यूं भी सोना मंहगा है,दाम चढ़ें है आसमान पर
गहनों की क्या जरुरत तुमको,तुम खुद ही हो इतनी सुन्दर
सोने का ही चाव अगर है,हम तुम साथ साथ  सो लेगे
स्वर्ण हार ना,बाहुपाश का,हार तुम्हे हम पहना देंगे
पर मै इतना  मूर्ख नहीं  जो ,घर में कलयुग आने दूंगा
स्वर्ण तुम्हे ना दिलवाऊंगा,ना ही तुमको लाने दूंगा
प्यार तुम्हारा,सच्चा गहना, तुम हो मेरे  दिल में रहती
                                      सुनो भागवत है क्या कहती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


3 टिप्‍पणियां:

  1. इस सुन्दर प्रविष्टि के लिए बधाई स्वीकार करें.
    मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर आपका हार्दिक स्वागत है, कृपया पधारें.

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-