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सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

वो बात अब न रही

             वो बात अब न रही

जी तो करता है मेरा ,ये भी करू,वो भी करू,
         मगर मैं क्या करूं ,ये उम्र साथ अब न रही
न तो हम में ही रहा जोश वो जवानी का,
           तुम्हारे जलवों में वैसी बात अब न रही 
फ़ाख़्ता मारते थे जब मियां ,वो दिन न रहे,
           सितारे तोड़ के लाने की उमर बीत गयी,
अब तो अखरोट भी हम तोड़ नहीं पाते है,
          रंगीले दिन और सुहानी वो रात अब न रही
ज़माना वो भी था जब हम पतंग उड़ाते थे,
          माशुका  हाथ में चरखी ले ढील देती  थी,
 हम खुद ही हो गए है इस कदर ढीले ,
           वक़्त की डोर भी तो अपने हाथ अब न रही
बहुत ही चौके और छक्के जड़े  जवानी में ,
            समय के आगे मगर हुए 'कैच आउट'हम
अब तो हम 'पेवेलियन'छोड़ कर जाने वाले ,
           हमारे  बल्ले में वो करामात अब न  रही
कभी डंका हमारे नाम का भी बजता था,
         हमारी आरती भी लोग उतारा करते ,
ज़माना करता नमस्कार चमत्कारों को ,
        हमारे जादू में भी वैसी बात अब न रही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

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