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सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

फूटे हुए पटाखे हम है

                  फूटे हुए पटाखे हम है

सूखी  लकड़ी मात्र नहीं हैं,हम खुशबू वाले चन्दन है
जहाँ  रासलीला होती थी,वही पुराना  वृन्दावन है
कभी कृष्ण ने जिसे उठाया था अपनी चिट्टी ऊँगली पे,
नहीं रहे हम अब वो पर्वत,अब गोबर  के गोवर्धन है
हरे भरे और खट्टे मीठे , अनुभव वाली कई सब्जियां ,
मिला जुला कर गया पकाया ,अन्नकूट वाला भोजन है
बुझते हुए दीयों के जैसी ,अब आँखों में चमक बची है,
जब तक थोड़ा तेल बचा है,बस तब तक ही हम रोशन है
ना तो मन में जोश बचा है,ना बारूद  भरा है तन में,
जली हुई हम फूलझड़ी है,फूटे हुए पटाखे,बम  है

घोटू

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