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बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

खेल जिंदगी का

         खेल जिंदगी का

ये दुनिया है मैदान एक खेल का ,
            खेलते खेल अपना ,खिलाड़ी कई
कोई फुटबाल,टेनिस ,क्रिकेट खेलता ,
             रेस में कोई पीछे,अगाडी   कई
कोई के मन लगन कि करे गोल वो,
             दौड़ता रहता पीछे है वो बाल के
जीतना चाहता है कोई गेम को,
              गेंद दूजे के पाले में बस डाल के
कोई बॉलिंग करे, कोई बेटिंग करे ,
              कोई चौका तो छक्का लगाए कोई
कोई हो 'हिट विकेट ''एल बी डब्ल्यू 'कोई ,
              तो कभी 'कैच आउट'हो जाए कोई
हाथ में ,पैर में ,गार्ड कितने ही हो,
               कोई बचता नहीं ,गेंद की मार से 
अंपायर खुदा की जब ऊँगली उठे ,
             आदमी होता आउट है संसार से    

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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