अमर बेल
तरु के तने से लिपटी कुछ लताएँ
पल्लवित पुष्पित हो ,जीवन महकाए
और कुछ जड़ हीन बेलें ,
तने का सहारा ले,
वृक्ष पर चढ़ जाती
डाल डाल ,पात पात ,जाल सा फैलाती
वृक्ष का जीवन रस ,सब पी जाती है
हरी भरी खुद रहती ,वृक्ष को सुखाती है
उस पर ये अचरज वो ,अमर बेल कहलाती है
जो तुम्हे सहारा दे,उसका कर शोषण
हरा भरा रख्खो तुम ,बस खुद का जीवन
जिस डाली पर बैठो,उसी को सुखाने का
क्या यही तरीका है ,अमरता पाने का ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अप्राकृतिक यौन संबंध बलात्कार नहीं - इलाहाबाद हाई कोर्ट
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*( Shalini Kaushik Law Classes-2.0)*
*(Shalini Kaushik Law Classes) *
एक महत्वपूर्ण निर्णय में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति
द्वारा अ...
22 घंटे पहले
डालि डालि पातहिं पात..,
जवाब देंहटाएंजाल सरूप बिथुराए..,
तरुवर रसमस जीव पयस..,
बस लस लस पी जाए.....
अमर हो पाती है तभी तो अमरबेल है वह । ययाति की कथा तो याद होगी ही ।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति निश्चय ही अत्यधिक प्रभावशाली और ह्रदय स्पर्शी लगी ....इसके लिए सादर आभार ......फुरसत के पलों में निगाहों को इधर भी करें शायद पसंद आ जाये
जवाब देंहटाएंनववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?
बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको
जवाब देंहटाएंaap sab ka aabhar-aapko rachna ruchee
जवाब देंहटाएंnicely said
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