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मंगलवार, 1 जनवरी 2013

अमर बेल

       अमर बेल

तरु के तने से  लिपटी कुछ लताएँ
पल्लवित पुष्पित हो ,जीवन महकाए
और कुछ जड़ हीन बेलें ,
तने का सहारा ले,
वृक्ष पर चढ़ जाती
डाल डाल ,पात पात ,जाल सा फैलाती
वृक्ष का जीवन रस ,सब पी जाती है
हरी भरी खुद रहती ,वृक्ष को सुखाती है
उस पर ये अचरज वो ,अमर बेल कहलाती है
जो तुम्हे सहारा दे,उसका कर शोषण
हरा भरा रख्खो तुम ,बस  खुद का जीवन
जिस डाली पर बैठो,उसी को सुखाने का
क्या यही तरीका है ,अमरता पाने का ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

6 टिप्‍पणियां:

  1. डालि डालि पातहिं पात..,
    जाल सरूप बिथुराए..,
    तरुवर रसमस जीव पयस..,
    बस लस लस पी जाए.....

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  2. अमर हो पाती है तभी तो अमरबेल है वह । ययाति की कथा तो याद होगी ही ।

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  3. आपकी प्रस्तुति निश्चय ही अत्यधिक प्रभावशाली और ह्रदय स्पर्शी लगी ....इसके लिए सादर आभार ......फुरसत के पलों में निगाहों को इधर भी करें शायद पसंद आ जाये
    नववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?

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  4. बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको

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