नहीं गलती कहीं भी दाल है बुढ़ापे में
वो भी क्या दिन थे मियां फाख्ता उड़ाते थे ,
जवानी ,आती बहुत याद है बुढ़ापे में
करने शैतानियाँ,मन मचले,भले ना हिम्मत,
फिर भी आते नहीं हम बाज है बुढ़ापे में
बड़े झर्राट ,तेज,तीखे,चटपटे थे हम,
गया कुछ ऐसा बदल स्वाद है,बुढ़ापे में
अब तो बातें ही नहीं,खून में भी शक्कर है,
आगया इस कदर मिठास है बुढ़ापे में
देख कर गर्म जलेबी,रसीले रसगुल्ले ,
टपकने लगती मुंह से लार है बुढ़ापे में
लगी पाबंदियां है मगर मीठा खाने पर ,
मन को ललचाना तो बेकार है बुढ़ापे में
देख कर ,हुस्न सजीला,जवान,रंगीला ,
बदन में जोश फिर से भरता है बुढ़ापे में
जब की मालूम है,हिम्मत नहीं तन में फिर भी,
कुछ न कुछ करने को मन करता है बुढ़ापे में
न तो खाने का,न पीने का ,नहीं जीने का,
कोई भी सुख नहीं ,फिलहाल है बुढ़ापे में
कभी अंकल ,कभी बाबा कहे हसीनायें ,
नहीं गलती कहीं भी दाल है ,बुढ़ापे में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
राज्य बार काउंसिल को मौजूदा कानून के तहत राज्य के बार एसोसिएशनों को
उपर्युक्त अवधि के लिए अपने चुनाव स्थगित करने का निर्देश देने का कोई अधिकार
नहीं था -इलाहाबाद हाईकोर्ट -
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HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD
WRIT-C No.40685 of 2025
Mohd. Arif Siddiqui (Petitioner(s)
Vers
State Of Uttar Pradesh And 5 Others
.....Resp...
1 घंटे पहले
सबसे बड़ा दुख -चंद्र बदनि मृगलोचनी बाबा कहि-कहि जायँ !
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