चार दिन की जिंदगी
जन्म ले रोते हैं पहले,बाद में मुस्काते हैं,
और फिर किलकारियों से,हम लुटाते प्यार हैं
फिर पढाई,लिखाई और खेलना मस्ती भरा,
ये किशोरावस्था भी,होती गज़ब की यार है
प्यार,जलवा,नाज़,अदाएं,मौज,मस्ती रात दिन,
ये जवानी,चार दिन का ,मद भरा त्योंहार है
और फिर लाचार करता है बुढ़ापा सभी को,
कुछ नहीं उपचार इसका,जिंदगी दिन चार है
मदन मोहन बहेती'घोटू'
राज्य बार काउंसिल को मौजूदा कानून के तहत राज्य के बार एसोसिएशनों को
उपर्युक्त अवधि के लिए अपने चुनाव स्थगित करने का निर्देश देने का कोई अधिकार
नहीं था -इलाहाबाद हाईकोर्ट -
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इलाहाबाद हाई कोर्ट की माननीय जस्टिस अतुल श्रीधरण और माननीय जस्टिस अनीश
गुप्ता जी की खंडपीठ ने मो आरिफ सिद्दीकी बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश एवं अन्य
में...
4 घंटे पहले
चार लाइन में चार दिन की जिंदगी का वर्णन अच्छा लगा :'मेरी नई रचना "स्मृति के पन्नों से " पर नजर डालें ,अपनी राय दें.
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