चिक
मेरे शयनकक्ष में,रोज धूप आती थी
सर्दी में सुहाती थी
गर्मी में सताती थी
अब मैंने एक चिक लगवाली है
और धूप से मनचाही निज़ात पा ली है
समय के अनुरूप
वासना की धूप
जब मेरे संयम की चिक की दीवार से टकराती है
कभी हार जाती है
कभी जीत जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
राज्य बार काउंसिल को मौजूदा कानून के तहत राज्य के बार एसोसिएशनों को
उपर्युक्त अवधि के लिए अपने चुनाव स्थगित करने का निर्देश देने का कोई अधिकार
नहीं था -इलाहाबाद हाईकोर्ट -
-
इलाहाबाद हाई कोर्ट की माननीय जस्टिस अतुल श्रीधरण और माननीय जस्टिस अनीश
गुप्ता जी की खंडपीठ ने मो आरिफ सिद्दीकी बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश एवं अन्य
में...
5 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।