विसंगति
एक बच्ची के कन्धों पर,
स्कूल के कंधे का बोझ है
एक बच्ची घर के लिए,
पानी भर कर लाती रोज है
एक को ब्रेड,बटर,जाम,
खाने में भी है नखरे
एक को मुश्किल से मिलते है,
बासी रोटी के टुकड़े
एक को गरम कोट पहन कर
भी सर्दी लगती है
एक अपनी फटी हुई फ्राक में
भी ठिठुरती है
एक के बाल सजे,संवरे,
चमकीले चिकने है
एक के केश सूखे,बिखरे,
घोंसले से बने है
एक के चेहरे पर गरूर है,
एक में भोलापन है
इसका भी बचपन है,
उसका भी बचपन है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सिर्फ आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र विवाह का वैध सबूत नहीं : हाईकोर्ट
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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच की एकल पीठ ने महिला के अनुकंपा नियुक्ति के
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*" सिर्फ आर्य समाज मंदिर का प्...
4 घंटे पहले
बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंविसुअल बेसिक पाठ नंबर - 8 अब हिंदी में
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंthanks for liking my poem
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