1465- अन्तरराष्ट्रीय चाय-दिवस 21 मई पर दो कविताएँ
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*1-**चाय चढ़ा**/ **शशि पाधा*
*घटा घनेरी घिर-घिर आई*
*मुझे न ठंडी धूप सुहाई*
*नरम-गरम दोहर ओढ़ा*
*अरी बहुरिया! चाय चढ़ा*
*घिस लेना अदरक की फाँकें*
*द...
3 घंटे पहले
सार्थक कविता ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ..
देवराज दिनेश की पंक्तियाँ याद आ गईं ,में मजदुर मुझे देवों की बस्ती से क्या|अच्छा लिखा है आपने बधाई|
जवाब देंहटाएंसार्थक, सामयिक, सुन्दर, बधाई
जवाब देंहटाएंसच में, बहुत ही सार्थक और सुन्दर रचना हरि जी की |
जवाब देंहटाएंawesome! loving your blog, so keep it up and i'll be back!
जवाब देंहटाएंFrom Creativity has no limit