उम्र की दस्तक गुनगुना रही है राग मालकोस...
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मैंने तकलीफों को रिश्वत नहीं दी
कोई न्यौता भी नहीं दिया
उनकी जी हजूरी भी नहीं की
फिर भी बैठ गयी हैं आसन जमाकर
जैसे अपने घर के आँगन में
धूप में बैठी स्त...
1 घंटे पहले
सार्थक पोस्ट है बधाई|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी |
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआभार ।।
आभार रविकर जी |
हटाएंउद्वेलित मन कि सुंदर अभिव्यक्ती ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ...
धन्यवाद आपका |
हटाएंआपका आभार शास्त्री जी |
जवाब देंहटाएंऐसा ही है ये मायावी संसार !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
anant ko bahut sundarta se paribhashit kiya hai apne...good
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