आम -आदमी
बचपन हो या जवानी,
कच्चे आम की तरह होती है,
चटपटी,खट्टी मीठी,
चटकारे ले ले कर खालो
चटनी,अचार,मुरब्बा या पना,
जो चाहो,बना लो
पर जब अनुभवों की ऊष्मा से,
उनमे पकाव आता है
तो निराली सी स्वर्णिम आभा से,
उनका रूप महक जाता है
और वो बन जाते है आम,
स्वादिष्ट, सुगन्धित,रस भरे,
जिनकी हर घूँट में मिठास होता है
खाओ या चूंसो,
संतुष्टि का आभास होता है
जीवन के इस अंतिम चरण में भी,
गजब का स्वाद होता है
रस तो रस,गुठलियों का भी दाम होता है
हर आम आदमी का जीवन,
आम होता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
उम्र की दस्तक गुनगुना रही है राग मालकोस...
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मैंने तकलीफों को रिश्वत नहीं दी
कोई न्यौता भी नहीं दिया
उनकी जी हजूरी भी नहीं की
फिर भी बैठ गयी हैं आसन जमाकर
जैसे अपने घर के आँगन में
धूप में बैठी स्त...
7 घंटे पहले
वाह ..क्या उदाहरण देकर जीवन का सार समझाया हैं आपने ....आभार
जवाब देंहटाएंजीवन को नए नजरिये से देखने का अंदाज प्यारा है ,बधाई.
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