द्रौपदी
पत्नी जी,दिन भर,घर के काम काज करती
एक रात ,बोली,डरती डरती
मै सोचती हूँ जब तब
एक पति में ही जब हो जाती ऐसी हालत
पांच पति के बीच द्रौपदी एक बिचारी
होगी किस आफत की मारी
जाने क्या क्या सहती होगी
कितनी मुश्किल रहती होगी
एक पति का 'इगो'झेलना कितना मुश्किल,
पांच पति का 'इगो ' झेलती रहती होगी
उसके बारे में जितना भी सोचा जाए
सचमुच बड़ी दया है आये
उसकी जगह आज की कोई,
जागृत नारी,यदि जो होती
ऐसे में चुप नहीं बैठती
पांच मिनिट में पाँचों को तलाक दे देती
या फिर आत्मघात कर लेती
किन्तु द्रौपदी हाय बिचारी
कितनी ज्यादा सहनशील थी,
पांच पुरुष के बीच बंटी एक अबला नारी
सच बतलाना,
क्या तुमको नहीं चुभती है ये बात
कि द्रौपदी के साथ
उसकी सास का ये व्यवहार
नहीं था अत्याचार?
सुन पत्नी कि बात,जरा सा हम मुस्काये
बोले अगर दुसरे ढंग से सोचा जाए
दया द्रौपदी से भी ज्यादा,
हमें पांडवों पर आती है,जो बेचारे
शादीशुदा सभी कहलाते,फिर भी रहते,
एक बरस में साड़े नौ महीने तक क्वांरे
वो कितना दुःख सहते होंगे
रातों जगते रहते होंगे
तारे चाहे गिने ना गिने,
दिन गिनते ही रहते होंगे
कब आएगी अपनी बारी
जब कि द्रौपदी बने हमारी
और उनकी बारी आने पर ढाई महीने,
ढाई महीने क्यों,दो महीने और तेरह दिन,
मिनिटों में कट जाते होंगे
पंख लगा उड़ जाते होंगे
और एक दिन सुबह,
द्वार खटकाता होगा कोई पांडव ,
भैया अब है मेरी बारी
आज द्रौपदी हुई हमारी
और शुरू होता होगा फिर,वही सिलसिला,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार का
और द्रौपदी चालू करती,
एक दूसरे पांडव के संग,
वही सिलसिला नए प्यार का
तुम्ही बताओ
पत्नी जब महीने भर मैके रह कर आती,
तो उसके वापस आने पर,
पति कितना प्रमुदित होता है
उसके नाज़ और नखरे सहता
लल्लू चप्पू करता रहता
तो उस पांडव पति की सोचो,
जिसकी पत्नी,उसको मिलती,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार में
पागल सा हो जाता होगा
उस पर बलि बलि जाता होगा
जब तक उसका प्यार जरा सा बासी होता,
तब तक एक दूसरे पांडव ,
का नंबर आ जाता होगा
निश्चित ही ये पांच पांच पतियों का चक्कर,
स्वयं द्रोपदी को भी लगता होगा सुख कर,
वर्ना वह भी त्रिया चरित्र दिखला सकती थी
आपस में पांडव को लड़ा भिड़ा सकती थी
यदि उसको ये नहीं सुहाता,
तो वह रख सकती थी केवल,
अर्जुन से ही अपना नाता
लेकिन उसने,हर पांडव का साथ निभाया
जब भी जिसका नंबर आया
पति प्यार में रह कर डूबी
निज पतियों से कभी न ऊबी
उसका जीवन रहा प्यार से सदा लबालब
जब कि विरह वेदना में तडफा हर पांडव
तुम्ही सोचो,
तुम्हारी पत्नी तुम्हारे ही घर में हो,
पर महीनो तक तुम उसको छू भी ना पाओ
इस हालत में,
क्या गुजरा करती होगी पांडव के दिल पर,
तुम्ही बताओ?
पात्र दया का कौन?
एक बरस में ,
साड़े साड़े नौ नौ महीने,
विरह वेदना सहने वाले 'पूअर'पांडव
या फिर हर ढाई महीने में,
नए प्यार से भरा लबालब,
पति का प्यार पगाती पत्नी,
सबल द्रौपदी!
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
राज्य बार काउंसिल को मौजूदा कानून के तहत राज्य के बार एसोसिएशनों को
उपर्युक्त अवधि के लिए अपने चुनाव स्थगित करने का निर्देश देने का कोई अधिकार
नहीं था -इलाहाबाद हाईकोर्ट -
-
HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD
WRIT-C No.40685 of 2025
Mohd. Arif Siddiqui (Petitioner(s)
Vers
State Of Uttar Pradesh And 5 Others
.....Resp...
28 मिनट पहले
अच्छी रचना है
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