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रविवार, 4 जुलाई 2021

बुढ़ापा अब इस तरह से कट रहा है

 एक जगह पर ध्यान केंद्रित नहीं रहता 
 बादलों सा भटक ,मन, दिन-रात रहता 
 नाचती यादें पुरानी ,नयन आगे 
 प्यार को रहते तरसते, हम अभागे
 मोह का अंधकार सारा छट रहा है 
 बुढापा अब इस तरह से कट रहा है 
 
सोते-सोते , जाग कर उठ बैठते हैं 
न जाने क्या सोचते, फिर लेटते हैं 
उचटी उचटी नींद भी है,नहीं आती 
सवेरे की प्रतीक्षा, लंबी सताती 
प्रभु सिमरन, ध्यान थोड़ा बंट रहा है 
बुढ़ापा अब इस तरह से कट रहा है 

कोड़ी कोड़ी माया जोड़ी आना पाई 
उम्र भर की बचाई, सारी कमाई 
बाद में बंटवारे को सब ही लड़ेंगे 
अभी दोगे बांट,तो सेवा करेंगे 
सोच यह मन करता बस खटपट रहा है 
बुढापा अब इस तरह से  कट रहा है 

बची तन में नहीं फुर्ती, जोश बाकी
मगर जीते ,सांस लेते, होश बाकी
भेषजों के भरोसे चलता गुजारा 
रुग्ण है मन और तन कमजोर सारा 
उम्र का दिन ,रोज ही तो घट रहा है 
बुढ़ापा अब इस तरह से कट रहा है 

उपेक्षा में अपेक्षा में तब्दील अब है
बोझ सा हमको  समझते लोग सब हैं
 प्यार की दो बात कोई भी न करता 
 यह तो वो ही जानता, जिस पर गुजरता 
 राम का ही नाम अब मन रट रहा है 
 बुढ़ापा अब इस तरह से कट रहा है

मदन मोहन बाहेती घोटू
चलो डायवोर्स ले ले 

इतने दिन तक साथ रहे हम, खुशियों के संग खेले लेकिन नखरे नहीं तुम्हारे, अब जाते हैं झेले 
जी करता है बाकी दिन में खुल कर रहे हैं अकेले 
हम पत्नी से बोले ,हम भी चलो डाइवोर्स ले ले 

आमिर खान अमृता ने भी तोड़ी अपनी शादी खुशी-खुशी अपने तलाक की कर दी आज मुनादी 
पंद्रह वर्ष पुराने रिश्ते,टूट गए पल भर में 
तू जा खुश रहअपने घर में ,मैं खुश अपने घर में 
एक दूजे पर कंट्रोल के ,होंगे दूर झमेले 
हम पत्नी से बोले ,हम भी चलो डायवर्स लेलें

पत्नी बोली,आमिर फिल्मी , छूटेगा झंझट से 
मौका मिलते ही डायवर्सिफाय करेगा ,झट से
 जल्दी और किसी के संग वो कर निकाह उलझेगा
 तुम बुढ़ऊ को ,फोकट में भी ,कोई नहीं पूछेगा 
 अपने मन में मत देखो तुम ,यूं ही ख्वाब अलबेले 
 हम पत्नी से बोले, हम भी चलो डाइवोर्स ले ले 
 
पत्नी बोली बिना विचारे करे जो वह पछताए 
आधी भी ना रहे हाथ में ,पूरी भी ना पावे 
यूं ही फिल्मी समाचार पर,ध्यान नअपना बांटे
जो भी थोड़ी उम्र बची है मिलजुल कर हम काटे 
सबकी अलग अलग परिस्थितियां अपने अपने खेले
हम पत्नी से बोले ,हम भी चलो डाइवोर्स ले ले

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

भाई साहब आपकी याद आ रही है

 आज सुबह छोटे भाई का फोन आया, 
 बोला भाई साहब हम अल्फांजो आम खा रहे हैं 
 आप बहुत ज्यादा रहे हैं 
 कल जीजाजी का फोन आया था ,
आपकी बहन जी गरम गरम जलेबी बना रही है 
आपकी बहुत याद आ रही है
दो दिन पहले बहन जी का फोन आया था,
 आज शादी में दाल बाफले की रसोई थी खाई 
 आपकी बहुत याद आई 
 हद तो तब हो गई जब मायके गई बीबी का फोन आया उससे बताया 
 आज कल काले काले जामुन की बहार है 
 जब भी हम खाते हैं 
 आप बहुत याद आते हैं 
 जब इस तरह के फोन आते हैं 
 कि कुछ खाद्यपदार्थ, लोगों को मेरी याद दिलाते हैं
 तो मेरे मन में होती है एक चुभन 
 क्या इसीलिए याद किए जाते हैं हम 
 कोई मेरे प्यार को
 मेरे दुलार को 
 मेरी आत्मीयता के बंधन को
  मेरे अपनेपन को 
  मेरी अच्छाइयों बुराइयों को लेकर 
  मुझे क्यों नहीं करता है कोई याद 
  तेरी मन में भर जाता है अवसाद 
  क्या मेरी यादों के लिए खाली नहीं उनके दिल का कोइ कोना है 
  मैं सिर्फ़ खाने पीने की चीजों को देखकर याद किया जाता हूं 
  क्या मेरा मेरा व्यक्तित्व इतना बौना है?

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

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डॉक्टर दिवस पर धन्यवादज्ञापन 

 दर्द देकर जरा सा, जो दर्द का करता निवारण
  डॉक्टर है 
  व्याधियों से दूर बच कर ,रह रहे हम जिसके कारण 
  डॉक्टर है 
  खिला कर कड़वी दवा जो ,नींद मीठी सुलाता है 
  डॉक्टर है 
  चुभा कर के सुई ,तन के ताप को जो भगाता है 
  डॉक्टर है 
  स्वस्थ और तंदुरुस्त रहने के बताता हमें नुस्खे ,
  डॉक्टर है 
  दीर्घ जीवन पा रहे  हम, है बदौलत आज उसके 
  डॉक्टर है 
 करोना की विभीषिका में,जान अपनी डाल जोखिम डॉक्टर ने 
 जान कितनों की बचाई, करी सेवा रात और दिन 
 डॉक्टर ने 
 खाने पीने में हमारे ले के आये अनुशासन
 डॉक्टर जी 
 आज डाक्टर दिवस पर है आपका धन्यवादज्ञापन  डॉक्टर जी

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 30 जून 2021


एक बेटी की फ़रियाद -माँ से

तेरी कोख में माँ ,पली और बढ़ी मैं
पकड़ तेरी ऊँगली,चली, हो खड़ी मैं
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ ,मैं तेरी जायी
 नहीं होती बेटी ,कभी भी  परायी

तूने माँ मुझको ,पढ़ाया लिखाया  
सहीऔर गलत का है अंतर सिखाया  
नसीहत ने तेरी बनाया है  लायक
रही तू हमेशा ,मेरी मार्ग दर्शक
तूने संवारा है व्यक्तित्व मेरा    
तेरे ही कारण है अस्तित्व मेरा
तेरा रूप, तेरी छवि, प्यार हूँ मैं
जीवन सफ़र को अब तैयार हूँ मैं
मिले सुख हमेशा,यही करके आशा
मेरे लिए ,हमसफ़र है तलाशा
बड़े चाव से बाँध कर उससे बंधन
किया आज तूने ,विवाह का प्रयोजन
ख़ुशी से  करेगी ,तू मेरी बिदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी

सभी रस्म मानूंगी ,जो है जरूरी
मगर दान कन्या की ,ना है मंजूरी
न सोना न चांदी ,इंसान मैं हूँ
नहीं चीज दी जाये ,जो दान में हूँ
मुझे दान दे तू ,नहीं मैं सहूंगी
तुम्हारी हूँ बेटी ,तुम्हारी रहूंगी
दे आशीष मुझको,सफल जिंदगी हो
किसी चीज की भी,कभी ना कमी हो
फलें और फूलें ,सदा खुश रहें हम
रहे मुस्कराते ,नहीं आये कोई ग़म
कटे जिंदगी का ,सफर ये सुहाना
मगर भूल कर भी ,मुझे ना भुलाना
रहे संग पति के ,हो माँ से जुदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी पराई

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 29 जून 2021

आम आदमी

 मैं आदमी आम हूं  अनमना हू
 बजाते हैं सब ही मैं वो झुनझुना हूं 
 आश्वासनो के लिए ही बना हूं 
 बहुत ही परेशां, दुखों से सना हूं
 
मैं वक्ता नहीं हूं पर बकता नहीं हूं
 कमजोरियों को ,मैं ढकता नहीं हूं 
 बिना पेंदी जैसा लुढ़कता नहीं हूं 
 बुरों के करीब में भटकता नहीं हूं
 
 सही जो लगे मुझको, लिखता वही हूं
 सच्चाई के रास्ते से डिगता नहीं  हूं
 बिकाऊ नहीं हूं ,मैं बिकता नहीं हूं 
 जो भीतर हूं बाहर से दिखता वही हूं 
 
धनी हूं मगर मैं धुरंधर नहीं हूं 
हमेशा जो जीते ,सिकंदर नहीं हूं 
हिलोरे है मन में, समंदर नहीं हूं
कला मेरे अंदर ,कलंदर नहीं हूं

प्रणेता हूं लेकिन मैं नेता नहीं हूं 
खुशी बांटता, कुछ भी लेता नहीं हूं 
हारा नहीं पर विजेता नहीं हूं 
चमचों का बिल्कुल चहेता नहीं हूं

 जब आता इलेक्शन सभी खोजते हैं
  मिलता जो मौका, सभी नोचते हैं 
  मेरे हित की बातें नहीं सोचते हैं 
  मेरे नाम पर सब उठाते मजे हैं 
  
ये शोषण दिनोदिन ,मुझे खल रहा है 
बहुत ही दुखी ,मेरा दिल जल रहा है 
जिसे मिलता मौका ,मुझे छल रहा है 
नहीं अब चलेगा, जो यह चल रहा है 

मेरे दिल में लावा, उबल अब रहा है 
ये ज्वालामुखी बस ,धधक अब रहा है
बहुत सह लिया, अब न जाता सहा है
नई क्रांति को यह ,लपक कब रहा है 

मदन मोहन बाहेती घोटू
एक फूल की जीवन यात्रा 

केश की शोभा बन, रूपसी बाला के ,
सुंदर से बालों पर सजता सजाता हूं 
केशव की मूरत को, फूलों की माला में,
गुंथ कर मैं पूजन में, पहनाया जाता हूं 
या अंतिम यात्रा में ,मानव के जीवन की,
 शव पर में श्रद्धा से ,किया जाता अर्पित हूं
 केश से केशव तक ,जीवन से ले शव तक 
 मानव की सेवा में , सर्वदा समर्पित हूं

घोटू
बादल बरसे  यह मन तरसे 

काले काले मेघ घिरें है, रिमझिम पानी बरस रहा 
गरम चाय के साथ पकोड़े ,खाने को मन तरस रहा 

 बारिश की बूंदों से भीगी, धरती आज महकती है 
 सोंधी सोंधी इसकी खुशबू, कितनी प्यारी लगती है 
 कहीं तले जा रहे समोसे , जिव्हा उधर लपकती है 
 बाहर पानी टपक रहा है, मुंह से लार टपकती है 
 गरम जलेबी,रस से भीनी,मन पर कोई बस न रहा  काले कले मेघ घिरें है, रिमझिम पानी बरस रहा
 
भीगा भीगा, गीला गीला, प्यारा प्यारा यह मौसम 
पानी की बौछारें ठंडी,हुआ तर बतर तन और मन 
घर में ऑफिस खोले बैठे ,पिया करोना के कारण मानसून पर सून न माने,सुने नहीं मेरी साजन 
पास पास हम ,आपस में पर ,सन्नाटा सा पसर रहा 
काले काले मेघ घिरें है,रिमझिम पानी बरस रहा

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 26 जून 2021


शुक्रिया जिंदगी 

मुझे जिंदगी से अपनी है, ना शिकवा ना कोई गिला 
संतुष्टि है मुझको उससे ,जो कुछ भी है मुझे मिला 

एक प्यारी सुंदर पत्नी है, प्यार लुटाने वाली जो 
मेरे जीवन में लाई है, खुशहाली, हरियाली जो 
मेरे हर एक ,सुख और दुख में, साथ निभाती आई है 
बढ़ती  हुई उमर में उसका साथ बड़ा सुखदाई है
एक प्यारी सी बिटिया है जो हर दम रखती ख्याल मेरा
 सदा पूछती रहती है जो ,मेरे सुख-दुख ,हाल मेरा 
समझदार एक बेटा ,जिसमें भरा हुआ है अपनापन
चढा प्रगति की सीढ़ी पर वह ,मेरा नाम करे रोशन 
भाई बहन सब के सब ही तो प्यार लुटाते हैं जी भर 
जब भी मिलते अपनेपन से, दिल से मेरी इज्जत कर 
यार दोस्त जितने भी मेरे, वे सब के सब अच्छे हैं 
मददगार हैं साथ निभाते और ह्रदय के सच्चे हैं 
और सभी रिश्तेदारों संग , बना प्रेम का भाव वहीं
 ना कोई से झगड़ा टंटा, मन में कोई मुटाव नहीं 
 बढ़ती उमर ,क्षरण काया का कुछ ना कुछ तो होना है 
फिर भी तन मन से दुरुस्त मैं,ना दुख है ना रोना है 
यही तमन्ना है कि कायम रहे उम्र भर यही सिला   
मुझे जिंदगी से अपनी है ,ना शिकवा ना कोई गिला 
संतुष्टि है मुझको उससे ,जो कुछ भी है मुझे मिला

मदन मोहन बाहेती घोटू




दिति और अविनाश के रोके पर

आज हृदय है प्रफुल्लित ,मन में है आनंद
अदिति और अविनाश का ,बंधता है संबंध
बंधता है संबंध  ख़ुशी  है सबके मन में
बधने ये जा रहे ,परिणय के बंधन में
 कह घोटू कविराय प्रार्थना  यह इश्वर  से
सावन की रिमझिम सा प्यार हमेशा बरसे

आनंदित अरविन्द जी ,और आलोक मुस्काय
अति हुलसित है वंदना ,बहू अदिति सी पाय
बहू अदिति सी पाय ,बहुत ही खुश है श्वेता
पाकर के अविनाश ,प्रिय दामाद चहेता
कह घोटू कविराय ,बहुत खुश नाना नानी
टावर टू को छोड़ अदिति टावर वन आनी

नाजुक सी है आदिति ,कोमल सा अविनाश
इसीलिये है जुड़ गयी ,इनकी जोड़ी ख़ास
इनकी जोड़ी खास ,बना कर भेजी रब ने
जुग जुग  जियें  साथ ,दुआ ये दी है सबने
कह घोटू खुश रहें सदा ,दोनों जीवन भर
इन दोनों में बना रहे   अति  प्रेम परस्पर

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '

अदिति अविनाश विवाह

 कोमल कमल सा अविनाश दूल्हा
  दुल्हन अदिति है नाजुक सी प्यारी
  बड़े भोले भाले हैं समधी हमारे ,
  बड़ी प्यारी प्यारी है समधन हमारी 
  खुशकिस्मती से ही मिलती है ऐसी, 
   मुबारक हो सबको नई रिश्तेदारी 
   बन्ना और बन्नी में बनी दोस्ती ये,
    रहे बन हमेशा, दुआ यह हमारी

घोटू

बुधवार, 23 जून 2021

शुक्रिया जिंदगी 

मुझे जिंदगी से अपनी है, ना शिकवा ना कोई गिला संतुष्टि है मुझको उससे ,जो कुछ भी है मुझे मिला 

एक प्यारी सुंदर पत्नी है, प्यार लुटाने वाली जो 
मेरे जीवन में लाई है, खुशहाली, हरियाली जो 
मेरे हर एक ,सुख और दुख में, साथ निभाती आई है 
बढ़ती  हुई उमर में उसका साथ बड़ा सुखदाई है
एक प्यारी सी बिटिया है जो हर दम रखती ख्याल मेरा सदा पूछती रहती है जो ,मेरे सुख-दुख ,हाल मेरा समझदार एक बेटा ,जिसमें भरा हुआ है अपनापन
चढा प्रगति की सीढ़ी पर वह ,मेरा नाम करे रोशन 
भाई बहन सब के सब ही तो प्यार लुटाते हैं जी भर 
जब भी मिलते अपनेपन से, दिल से मेरी इज्जत कर 
यार दोस्त जितने भी मेरे, वे सब के सब अच्छे हैं 
मददगार हैं साथ निभाते और ह्रदय के सच्चे हैं 
और सभी रिश्तेदारों संग , बना प्रेम का भाव वहीं
 ना कोई से झगड़ा टंटा, मन में कोई मुटाव नहीं 
 बढ़ती उमर ,क्षरण काया का कुछ ना कुछ तो होना है 
फिर भी तन मन से दुरुस्त मैं,ना दुख है ना रोना है 
यही तमन्ना है कि कायम रहे उम्र भर यही सिला   
मुझे जिंदगी से अपनी है ,ना शिकवा ना कोई गिला 
संतुष्टि है मुझको उससे ,जो कुछ भी है मुझे मिला

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 22 जून 2021

आओ मेरे संग टहलो

आओ तुम मेरे संग  टहलो 
तुम्हारे मन में दिन भर का ,जो भी गुस्से का गुबार है, 
उसकी,इसकी जाने किसकी,शिकायतों का जो अंबार है 
मन हल्का होगा तुम्हारा,सब तुम मुझसे कह लो 
आओ तुम मेरे संग टहलो
यूं ही रहती परेशान तुम ,मन की सारी घुटन हटा दो 
लगा उदासी का चंदा से, मुख पर है जो ग्रहण हटादो 
थोड़ा हंस गा लो मुस्कुरा लो और प्रसन्न खुश रह लो आओ तुम मेरे संग टहलो
 इतनी उम्र हुई तुम्हारी ,परिपक्वता लाना सीखो 
 नई उमर की नई फसल से ,सामंजस्य बनाना सीखो 
 बात किसी की बुरी लगे तो, तुम थोड़ा सा सह लो 
 आओ तुम मेरे संग  टहलो
अपने सभी गिले-शिकवे तुम जो भी है मुझसे कह डालो 
थोड़ा शरमा कर मतवाली,अपनी चितवन मुझ पर डालो 
पेशानी से परेशानियां ,परे करो ,खुश रह लो
आओ तुम मेरे संग टहलो

मदन मोहन बाहेती घोटू
छोड़ो चिंता प्यार लुटाओ

 यूं ही दिन भर तुम , गृहस्थी के चक्कर में 
 उलझी रह करती हो ,घर का सब काम धंधा 
 और रात जब मुझसे, तन्हाई के क्षणों में ,
 मिलती तो पेश करती, शिकायतों का पुलिंदा 
 अरे परेशानियां तो ,हमेशा ही जिंदगी के ,
 संग लगी रहती है और आनी जानी है 
 गृहस्थी की ओखली में ,अगर सर जो डाला है,
  मार फिर मूसल की ,खानी ही खानी है 
  एक दूसरे के लिए ,मिलते कुछ पल सुख के, 
  गिले और शिकवों पर ध्यान ना दिया करें 
  छोड़े चिंतायें और प्यार बस लुटाएँ हम,
  मिलजुल कर भरपूर जिंदगी जिया करें

मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 21 जून 2021

क्योंकि मैंने प्यार किया है 

कई बार 
जैसे रिमझिम की बरसती हुई सावन की फुहार 
जब बरसती है बनकर मूसलाधार 
या मंद मंद महती हुई बयार
 बन जाती है तूफान 
 या कलकलाती हुई नदियों में आ जाता है उफान 
 जो बन जाती है भयंकर बाढ़ 
 और सब कुछ देती है उजाड़ 
 या जब कभी कभी उष्णता देने वाली अगन 
 जो भोजन को पकाकर स्वाद भर देती है 
 जब कुपित होती है तो सब कुछ स्वाह कर देती है 
 या जब आसमान में अठखेलियां करते हुए  नन्हें बादल अपना रूप बदल 
 बन जाते हैं घटा घनघोर 
 गरज गरज कर मचाते हैं शोर 
 वैसे ही मेरी प्रेमिका प्यारी 
 मंद मंद मुस्कान वाली 
 जब से बनी है मेरी घरवाली 
 कभी-कभी बादल सी गरजती है 
 बिजली सी कड़कती है 
 मचा देती है तूफान 
 कर देती है बहुत परेशान 
 धर लेती है चंडी का रूप विकराल 
 बुरा हो जाता है मेरा हाल 
 पर मैं शांति से सब कुछ सहता हूं 
 कुछ नहीं कहता हूं 
 क्योंकि मैं जानता हूं की अन्य प्राकृतिक आपदाओं की यह संकट 
 यूं तो होता है बड़ा विकट 
 पर कुछ ना बोलो ,तो जल्दी जाता है टल
 फिर वही नदियों सी मस्त कल कल 
 फिर वही बरसती हुई प्यार की फुहार 
 क्योंकि ऐसा होता आया है कई बार 
 ऐसी आपदाओं के लिए मैं हमेशा रहता हूं तैयार क्योंकि मैंने किया है प्यार

मदन मोहन बाहेती घोटू
क्योंकि मैंने प्यार किया है 

कई बार 
जैसे रिमझिम की बरसती हुई सावन की फुहार 
जब बरसती है बनकर मूसलाधार 
या मंद मंद महती हुई बयार
 बन जाती है तूफान 
 या कलकलाती हुई नदियों में आ जाता है उफान 
 जो बन जाती है भयंकर बाढ़ 
 और सब कुछ देती है उजाड़ 
 या जब कभी कभी उष्णता देने वाली अगन 
 जो भोजन को पकाकर स्वाद भर देती है 
 जब कुपित होती है तो सब कुछ स्वाह कर देती है 
 या जब आसमान में अठखेलियां करते हुए  नन्हें बादल अपना रूप बदल 
 बन जाते हैं घटा घनघोर 
 गरज गरज कर मचाते हैं शोर 
 वैसे ही मेरी प्रेमिका प्यारी 
 मंद मंद मुस्कान वाली 
 जब से बनी है मेरी घरवाली 
 कभी-कभी बादल सी गरजती है 
 बिजली सी कड़कती है 
 मचा देती है तूफान 
 कर देती है बहुत परेशान 
 धर लेती है चंडी का रूप विकराल 
 बुरा हो जाता है मेरा हाल 
 पर मैं शांति से सब कुछ सहता हूं 
 कुछ नहीं कहता हूं 
 क्योंकि मैं जानता हूं की अन्य प्राकृतिक आपदाओं की यह संकट 
 यूं तो होता है बड़ा विकट 
 पर कुछ तो बोलो तो जल्दी जाता है टल
 फिर वही नदियों की मस्त कल कल 
 फिर वही बरसती हुई प्यार की फुहार 
 क्योंकि ऐसा होता आया है कई बार 
 ऐसी आपदाओं के लिए मैं हमेशा रहता हूं तैयार क्योंकि मैंने किया है प्यार

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 19 जून 2021

अभी बहुत कुछ करना आगे 

अभी बहुत कुछ करना आगे 
क्यों मुश्किल से डर, हम भागे 

सुख-दुख चिंता परेशानियां, 
जीवन संग बनी रहती है 
फिर भी अच्छे दिन आएंगे ,
मन में आस जगी रहती है 
अगर निराशा के जालों में ,
फसे रहेंगे ,पछताएंगे 
आशावादी दृष्टिकोण से ,
अगर जिएंगे, सुख पाएंगे 
परमेश्वर से अपना, सबका, 
सुख स्वास्थ्य और वैभव मांगे 
क्यों मुश्किल से डर  हम भागे 
अभी बहुत कुछ करना आगे

 यह सच है जो लिखा नियति ने,
 उसको कोई बदल ना पाया 
 लाख कमा ले कोई माया 
 साथ न कोई ले जा पाया 
 कितनी भी को विकट परिस्थिति 
 नहीं जरा भी घबराना है 
 हर मुश्किल से उबर जाएंगे 
 हिम्मत से ,बढ़ते जाना है 
 हंसते-हंसते जिएंगे हम ,
 सुबह तभी है, जब हम जागे 
 क्यों मुश्किल से डर,हम भागें
 अभी बहुत कुछ करना आगे
 
 चार दिनों का यह जीवन है,
 उसका मजा उठाएं पूरा 
 खाए पिए नाचे गाए 
 रहे न कोई शौकअधूरा  
 जब तक जियें, मस्त रहें हम,
 मन में खुशियां और चाव हो 
 जब भी जायें प्यास ना रहे ,
 मन में केवल तृप्ति भाव हो 
 रहे संतुलित जीवनचर्या ,
 अपनी मर्यादा ना लांघे
 क्यों मुश्किल से डर हम भागें
 अभी बहुत कुछ करना आगे

मदन मोहन बाहेती घोटू
छेड़छाड़ 

थोड़ी सी शरारत,
 थोड़ी सी तकरार 
 थोड़ी सी दोस्ती 
 थोड़ी सी रार
 थोड़ा सा गुस्सा 
 थोड़ा सा प्यार 
 लड़की पटाने की ,
 छोटी सी जुगाड़ 
 जी हां जनाब इसे कहते हैं छेड़छाड़
 छेड़छाड़ की कहानी 
 है कई युगों पुरानी 
 भगवान श्री कृष्ण इस आनंददाई प्रथा के संस्थापक थे उनकी गोपियों के संग छेड़छाड़ के किस्से बड़े रोचक थे कभी किसी गोपी की दूध भरी हांडी को फोड़ देना 
 कभी राधा की नाजुक कलाई मरोड़ देना 
 कभी यमुना में नहाती हुई बालाओं के वस्त्र चुरा लेना कभी माखन भरी हंडिया से माखन  खा लेना 
 उनके यह छेड़छाड़ के प्रसंग आज भी उनके भक्तों को बहुत भातें हैं 
 पर यह छेड़छाड़ नहीं ,उनकी बाल लीला कहाते हैं 
 फिर उसी युग में ,एक भयंकर छेड़छाड़ द्रोपदी ने दुर्योधन से की थी 
अंधों के बेटे तो अंधे होते हैं कह कर आग लगा दी थी इस छेड़छाड़ से दुर्योधन हो गया बड़ा क्रुद्ध था 
और इसका परिणाम महाभारत का महायुद्ध था 
पर यह सब तो पुरानी बातें हैं 
हम आपको आज के हाल-चाल बताते हैं 
हमारा पड़ोसी बॉर्डर पर जबतब छेड़छाड़ करता रहता है 
बार-बार कश्मीर का लाभ छेड़ता रहता है 
आतंकवादी  गतिविधियों से बाज नहीं आता है 
हालांकि हर बार मुंह की खाता है 
अमेरिका की रशिया से छेड़छाड़ चलती ही रहती है कभी चाइना से तकरार चलती ही रहती है 
कभी इजराइल ,कभी गाजी पट्टी 
कभी सीरिया, कभी ईरान
 एक दूसरे को छेड़छाड़ करके करते हैं परेशान 
 हमेशा यह डर रहता है कि यह छेड़छाड़ इतनी ना बढ़ जाए 
 कि कहीं तीसरा महायुद्ध ही  न छिड़ जाए 
 खैर,यह तो विश्व स्तर की बात हुई, आगे बढ़ते हैं अपनी रोजमर्रा की छेड़छाड़ की बात करते हैं 
 कुछ शरारती किस्म की लडके, जवान होती हुई लड़कियों के पीछे पड़ते हैं 
 और उनके साथ छेड़छाड़ करते हैं 
 कोई तानाकशी करता है ,कोई सीटी बजाता है 
 कोई सिरफिरा तो शरीर को छूकर बदतमीजी पर उतर आता है 
 ऑफिस में काम करने वाली महिलाओं के साथ सहकर्मियों की छेड़छाड़ आम बात है 
 चलती रहती कुछ न कुछ खुराफात है 
 कॉलेज के दिनों में लड़कियों को छेड़ने का मजा ही कुछ और था 
 वह तो हमने अब छोड़ छोड़ दिया वरना वह जवानी का बड़ा मजेदार दौर था 
भीड़भाड़ की छेड़छाड़ में खतरे का चांस हो सकता है 
सूनेपन की छेड़छाड़ में लड़की से रोमांस हो सकता है कुछ छेड़छाड़ यूं ही टाइम पास के लिए की जाती है और कुछ छेड़छाड़ किसी खास के लिए की जाती है 
एक शादी समारोह में एक लड़की मन को भा गई हमने उसे छेड़ दिया 
और बस ऐसे ही बात फिर आगे बढी ओर उसके मां-बाप ने उसे उम्र भर के लिए हमारे साथ भेड दिया 
वह आजकल हमारी पत्नी है पर उससे छेड़छाड़ करने में हमें डर लगता है 
क्योंकि मख्खी के छत्ते को छेड़ने का अंजाम सबको पता है 
आजकल बुढ़ापे में भी हम छेड़छाड़ का मजा उठाते हैं 
अपनी बुढ़ियाती पत्नी को, जवानी की छेड़छाड़ के किस्से सुनाते हैं 
और जब कुछ दोहराते हैं 
तो बड़ी लताड़ पाते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 16 जून 2021


यह क्या हो गया देखते देखते

 भरतिये में आदन  रखकर उबलने वाली दाल को ,कब सीटी बजाने वाले कुकर से प्यार हो गया 
 पता ही न चला
 लकड़ी से जलने वाले चूल्हेऔर कोयले की अंगीठी का कब स्टोवऔर गैस के चूल्हे में अवतार हो गया
 पता ही न चला
  मिट्टी के मटके में भरा हुआ पीने का पानी कब प्लास्टिक की बोतलों में समाने लगा 
  पता ही नहीं चला
  हाथों से डुलने वाला पंखा कब छत पर चढ़ कर फरफराने  लगा 
  पता ही नहीं चला
  सुबह-सुबह अपनी चहचहाट से जगाने वाली गौरैया कहां गुम हो गई 
  पता ही न चला
  दालान में बिछी कच्ची ईंटे ,लोगों का चरण स्पर्श करते करते कब  टाइलें बन गई
  पता ही न लगा
 झुनझुना बजा कर खुश होने वाले बच्चों के हाथ में कब मोबाइल आ गया 
 पता ही न चला
 अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए लिफ्ट ने सीढ़िया चढ़ने की जरूरत को हटा गया
 पता ही न चला
 अमराई के फल और हवा देने वाले पेड़ ,कब कट कर बन गए चौखट और दरवाजे 
 पता ही न चला
  कलकलाती नदियां , लहराते सरोवर और पनघट वाले मीठे पानी के कुवों से कब रूठ गए पानी के श्रोत ताज़े
  पता ही न चला
  चिल्लर के खनखनाते हुए सिक्कों ने कब चलना छोड़ दिया 
  पता ही न चला
 प्रदूषण का रावण कब प्राणदायिनी हवा का अपहरण करके उसे ले गया 
 पता ही न चला
 अपनो का साथ छोड़ किसी अनजाने से आत्मिक रिश्ते कैसे जुड़ गए 
 पता ही न चला
 लहराते घने केश , चिंताओ के बोझ से कब उड़ गए,
 पता ही न चला 
 देखते ही देखते जवानी कब रेत की तरह मुट्ठी से फिसल गई
 पता ही न चला
 बचपन की किलकारियां कब बुढ़ापे की सिसकारियों में बदल गई
 पता ही  न चला
हमने माया को ठगा या माया ने हमें ठग कर हमारी ये गति बना दी
पता ही न चला
 तीव्र गति से आई प्रगति ने हमारी क्या दुर्गती बना दी
 पता ही न चला

मदन मोहन बाहेती घोटू


बारिश के मौसम में

सावन की रिमझिम में चाय की चुस्की हो ,
गरम पकोड़े के संग, सांझ वह सुहानी हो 
चाट के ठेले पर आलू की टिक्की हो ,
और गोलगप्पे संग,खटमिठ्ठा पानी हो
भुना हुआ भुट्टा हो, ताज़ा और गरम गरम,
सोंधी सी खुशबू का, मज़ा और ही आता
गरम गरम हलवा हो और साथ में पापड़,
काबू फिर जिव्हा पर,कोई ना रख पाता
मिले समोसे के संग, जलेबियां गरम गरम,
हर लम्हा रोमांटिक, प्यारा हो फुरसत का
सुन्दर सी रसवंती, प्रेमप्रिया हो संग में
तो फिर इस दुनिया में,सुख आए जन्नत का

मदन मोहन बाहेती घोटू
यह क्या हो गया देखते देखते

 भरतिये में आदन  रखकर उबलने वाली दाल को ,कब सीटी बजाने वाले कुकर से प्यार हो गया 
 पता ही न चला
 लकड़ी से जलने वाले चूल्हेऔर कोयले की अंगीठी कब स्टोवऔर गैस के चूल्हे में बदल गई 
 पता ही न चला
  मिट्टी के मटके में भरा हुआ पीने का पानी कब प्लास्टिक की बोतलों में समाने लगा 
  पता ही नहीं चला
  हाथों से डुलने वाला पंखा कब छत पर चढ़ कर फरफराने  लगा 
  पता ही नहीं चला
  सुबह-सुबह अपनी चहचहाट से जगाने वाली गौरैया कहां गुम हो गई 
  पता ही न चला
  दालान में बिछी कच्ची ईंटे ,लोगों का चरण स्पर्श करते करते कब की टाइलें बन गई
  पता ही न लगा
 झुनझुना बजा कर खुश होने वाले बच्चों के हाथ में कब मोबाइल आ गया 
 पता ही न चला
 अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए लिफ्ट ने सीढ़िया चढ़ने की जरूरत ही हटा दी,
 पता ही न चला
 अमराई के फल और हवा देने वाले पेड़ ,कब चौखट और दरवाजे बन गए 
 पता ही न चला
  कलकलाती नदियां , लहराते सरोवर और पनघट वाले मीठे पानी के कुवों से कब पानी रूठ गया
  पता ही न चला
  चिल्लर के खनखनाते सिक्कों ने कब चलना छोड़ दिया 
  पता ही न चला
 प्रदूषण का रावण कब प्राणदायिनी हवा का अपहरण करके उसे ले गया 
 पता ही न चला
 गिल्ली डंडा खेलने वाले हाथों में कब क्रिकेट का बल्ला आ गया,
 पता ही न चला
 अपनो का साथ छोड़ किसी अनजाने से आत्मिक रिश्ते कैसे जुड़ गए 
 पता ही न चला
 लहराते घने केश , चिंताओ के बोझ से कब उड़ गए,
 पता ही न चला 
 देखते ही देखते जवानी कब रेत की तरह मुट्ठी से फिसल गई
 पता ही न चला
 बचपन की किलकारियां कब बुढ़ापे की सिसकारियों में बदल गई
 पता ही  न चला
 तीव्र गति से आई प्रगति ने हमारी क्या दुर्गती बना दी
 पता ही न चला

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 12 जून 2021

लातों के भूत

 हम लातों के भूत, बात से नहीं मानते 
 कोई सुने ना सुने, हमेशा डींग हांकते 
 
बचपन में जब छड़ी गुरुजी की थी पड़ती 
तभी हमारे सर पर, विद्या देवी चढ़ती 
ऐंठे जाते कान ,बनाते मुर्गे जैसा 
या कि बेंच पर रहना पड़ता खड़ा हमेशा
करती बुद्धि काम, समझ में सब कुछ आता 
लंगड़ी भिन्न सवाल ,तभी सुलझाया जाता  
अपना पाठ ठीक से करना, तभी जानते 
हम लातों के भूत, बात से नहीं मानते 

फिर इतने दिन अंग्रेजों की गुलामी 
वह तो गए, न हमने छोड़ी पूछ हिलानी 
चाटुकारिता करते रहना , भूल न पाये
कहां आत्मसम्मान खो गया समझ नआये
कब तक सोये यूं ही रहेंगे ,कब जागेंगे 
कब उबलेगा खून, हक अपना मांगेंगे 
क्यों ना रुद्र रूप दिखला ,हम  भृकुटी तानते
हम लातों के भूत ,बात से नहीं मानते 

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 10 जून 2021

क्या यह भी जीना है 

अपनी इच्छाओं पर बस कर 
यूं ही जीना तरस तरस कर 
क्या हम को हक नहीं बुढ़ापा,
अपना कांटे ,हम हंस-हंसकर 

बाकी सब तो ठीक-ठाक है 
लेकिन तन तंदुरुस्त नहीं है 
ना है पहले सा फुर्तीला ,
सुस्त पड़ा है , चुस्त नहीं है 

ये मत खाओ वो मत पियो 
लगी हुई हम पर पाबंदी 
तन के द्वारों पर रोगों ने 
लगा रखी है नाकाबंदी 

आंखों में जाला छाया है 
श्रवण शक्ति भी हुई मंद है 
चलते हैं तो सांस फूलती,
और दर्द दे रहे दंत हैं 

किडनी लीवर आमाशय के 
कारण पीड़ित अन्य द्वार हैं 
कमजोरी ने घेर रखा है 
तन और मन दोनों बीमार हैं  

ऐसी कठिन परिस्थितियों में 
जीना होता कितना दुष्कर
फिर भी बच्चे कहते पापा ,
जिओ खुशी से तुम हंस-हंसकर 

सुबह शाम दोपहर दवाई,
आधा पेट इन्ही से भरता 
फिर भी झेल रहे हैं यह सब 
मरता क्या न भला है करता 

भुगत रहे जो लिखा भाग्य में
 यूं ही किसी को हम क्यों कोसें
 छोड़ दिया है हमने अब तो ,
 सब कुछ ही भगवान भरोसे 
 
उबला खाना, बिना मसाला 
दूध चाय फीका पीना है 
इसको ही जीना कहते हैं 
तो फिर ऐसे ही जीना है

मदन मोहन बाहेती घोटू
गर्मी की छुट्टी और रस की घुट्टी 

जब भी याद आता है बचपन,दिन गर्मी की छुट्टी वाले 
आंखों आगे नाचा करते, मीठे आम चूसने वाले 
इंतजार हमको रहता था, कब आए गर्मी की छुट्टी 
कब आमों का मजा उठाएं हम भर मुंह में रस की घुट्टी  
रोज टोकरी भर भर कर के आया करते आम गांव से
 पहले खट्टे हैं या मीठे ,सब चखते थे बड़े चाव से 
भावताव कर फिर फुर्ती से आम छांटने हम जुट जाते 
मोटे-मोटे आमों को चुन ,बड़े शान से हम इतराते 
नहीं वजन से किंतु सेंकडे, से थे आम बिका करते तब 
नए स्वाद वाले आमों का हर दिन पाल खुला करता जब 
कम से कम दो-तीन किसम के आम रोज घर में आते थे 
कुछ का अमरस बनता बाकी,चूस चूस हम सब खाते थे 
शाम बाल्टी में पानी की, करते ठंडा आमो को भर 
जब पूरा परिवार बैठता ,था गर्मी में खुल्ली छत पर 
सभी उठाते आम, पिलपिला करते, पीते रस की घूंटे  
और चूसते गुठली इतना ,एक बूंद भी रस ना छूटे 
किसने कितने आम हैं चूसे, गुठली से होती थी गिनती
 खट्टे आम अगर होते तो सुबह फजीता सब्जी बनती 
चाकू से कटने वालों को, कलमी आम कहा जाता था
 कभीकभी जब मिल जाते तो थोड़ा स्वाद बदल जाताथा  
ना जाने क्यों अब रसवाले, आम हो गए हैं अब गायब 
तोतापुरी सफेदा लंगड़ा और दशहरी आते हैं अब 
सबको काट, चुभा कर कांटा, बड़े चाव से खाया जाता किंतु रोज नित नए स्वाद के आम चूसना याद है आता
 कटे आम के पेड़ बन गए, घर के चौखट और दरवाजे 
इसीलिए मुश्किल से मिलते ,आम रसीले ताजे ताजे 
रोजरोज ही नए किसम का स्वाद रसीला अब है दुर्लभ 
नहीं रहे वो खाने वाले और ना ही वो आम रहे अब

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 9 जून 2021

Eco friendly Jute/canvas cooler bags in various style from yiwu zhijian bags co.,ltd

Dear bahetimmtara1:

  Good morning,

   I'm writing to let you know that the shipping cost by Sea/Air/DDP/DDU are set of soar, as well as the price adjusting again on the raw materials,  and please be assured that we have made every effort to keep this increase to a miminum and will continue to honor current price structures up to  the end of June.2021.

   As always ,we are committed to providing quality products and services to you and appreciate you business and continued support.

   With the new bag /available bags/various printing desig(free printing moulds) in an E- catalouges ,welcome to download them from our site at:  https://www.zj-bags.net/en/download.html



Sincerely yours.
Bruce
Director
Expt Dept
YIWU ZHIJIAN BAGS CO.,LTD
p: 0086-579-86680309  m: 0086-18057970309
f: 0086-579-85135034  skype: bruceliuqing
w: www.zj-bags.net​  e: zjbags1@zj-bags.net
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मंगलवार, 8 जून 2021

गदहा चाहे बनना घोड़ा

 गदहा यह कोशिश कर रहा कोई उसे बना दे घोड़ा 
 ऐसे वैसे, जैसे तैसे, बुद्धिमान बन जाए थोड़ा 
 
उत्तरदक्षिण पूरबपश्चिम,फिरा सब तरफ दौड़ा दौड़ा चादर कभी मजार चढ़ाई, पहना कभी जनेऊ जोड़ा 
एड़ी चोटी जोर लगाया ,साथ न देता भाग्य निगोड़ा
रहा फिसड्डी ही वो हरदम, कितनी बार रेस में दौड़ा 
यूं ही फुस्स हो शांत गया ,कितनी बार फटाखा फोड़ा 
ना तो कुर्सी मिली और ना पहन सका शादी का जोड़ा चमचों ने सर पर बैठाया ,समझदार मित्रों ने छोड़ा 
लेकिन ऐसी फूटी क़िस्मत, पप्पू मुझे बना कर छोड़ा
,गदहा ये कोशिश कर रहा कोई उसे बनादे घोड़ा 

घोटू
गदहा चाहे बनना घोड़ा

 गदहा यह कोशिश कर रहा कोई उसे बना दे घोड़ा 
 ऐसे वैसे, जैसे तैसे, बुद्धिमान बन जाए थोड़ा 
 
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम ,फिरा सब तरफ दौड़ा दौड़ा चादर कभी मजार चढ़ाई, पहना कभी जनेऊ जोड़ा 
एड़ी चोटी जोर लगाया ,साथ न देता भाग्य निगोड़ा
रहा फिसड्डी ही वो हरदम, कितनी बार रेस में दौड़ा 
यूं ही फुस्स हो शांत गया ,कितनी बार फटाखा फोड़ा 
ना तो कुर्सी मिली और ना पहन सका शादी का जोड़ा
 चमचों ने सर पर बैठाया ,समझदार मित्रों ने छोड़ा 
लेकिन ऐसी फूटी क़िस्मत, पप्पू मुझे बना कर छोड़ा
गदहा ये कोशिश कर रहा कोई उसे बनादे घोड़ा 

घोटू
धूम्रकेतु 

दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो ,आ मंडराते बार-बार हैं 
एक अल्पबुद्धि,गंवार है, दूजा ज्यादा समझदार है

 एक अंट शंट बातें करके ,चर्चा में रहना चाहता है उसको खुद मालूम नहीं है कि वह क्या कहना चाहता है 
पुश्तैनी जागीरदार पर, हुआ आजकल सत्ताच्युत है
फिर भी सत्ता हथियायेगा,मन में ये लालच में अद्भुत है 
इतने दिनों देश को लूटा, धन दौलत विदेश पहुंचा दी 
घोषित और अघोषित कितने, स्केमो का यहअपराधी
बुद्धू ,किंतु समझता खुद को सबसे ज्यादा समझदार है 
दिल्ली ऊपर धूमकेतु दो , आ मंडराते बार-बार है 
एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है 

 दूजा लुभा रहा लोगों को ,दे दे करके खूब प्रलोभन  आदत डाल मुफ्तखोरी की, खूब कर रहा उनका शोषण 
मूर्ख बनाता है जनता को, हाथ जोड़ ,बन भोला-भाला 
कहता मैं हूं दास आपका, लेकिन उसका दिल है काला 
जनता की गाढ़ी कमाई से, विज्ञापन दे, छवि चमकाता 
अपनी सारी नाकामी का ,दोषी औरों को बतलाता दिल्ली पर ये दोनों चेहरे ,भार बन रहे बार बार हैं 
 इनसे जल्दी छुट्टी पाओ, आज वक्त की यह पुकार है
 
 दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो आ मंडराते बार-बार हैं 
 एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है

मदन मोहन बाहेती घोटू
धूम्रकेतु 

दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो ,आ मंडराते बार-बार हैं 
एक अल्पबुद्धि,गंवार है, दूजा ज्यादा समझदार है

 एक अंट शंट बातें करके ,चर्चा में रहना चाहता है उसको खुद मालूम नहीं है कि वह क्या कहना चाहता है
 पुश्तैनी जागीरदार पर, हुआ आजकल सत्ताच्युत है
फिरभी सत्ता हथियायेगा,मन में ये लालच अद्भुत है 
इतने दिनों देश को लूटा, धन दौलत विदेश पहुंचादी घोषित और अघोषित कितने, स्केमो का यह अपराधी 
बुद्धू ,किंतु समझता खुद को सबसे ज्यादा समझदार है
 दिल्ली ऊपर धूमकेतु दो , आ मंडराते बार-बार है 
एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है 

दूजा लुभा रहा लोगों को ,दे दे करके खूब प्रलोभन  आदत डाल मुफ्तखोरी की, खूब कर रहा उनका शोषण
 मूर्ख बनाता है जनता को, हाथ जोड़ ,बन भोला-भाला 
कहता मैं हूं दास आपका, लेकिन उसका दिल है काला 
जनता की गाढ़ी कमाई से, विज्ञापन दे, छवि चमकाता 
अपनी सारी नाकामी का ,दोषी औरों को बतलाता दिल्ली पर ये दोनों चेहरे ,भार बन रहे बार बार हैं 
 इनसे जल्दी छुट्टी पाओ, आज वक्त की यह पुकार है
 
 दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो आ मंडराते बार-बार हैं 
 एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 6 जून 2021

जीवन यात्रा 

कठिन समय से जब गुजरोगे 
तो कुंदन बनकर निखरोगे 
थोड़ा समय लगेगा लेकिन, 
जब विकसोगे,खुशबू दोगे 

थोड़ा नाप तोल कर बोलो ,
जो भी बोलो सोच समझकर
तुम गाली दो,अगला ना ले ,
वही लगेगी, तुम्हें पलट कर 
मुंह तुम्हारा गंदा होगा, 
अगर किसी को गाली दोगे 
कठिन समय से जब गुजारोगे 
तो कुंदन बनकर निखरोगे 

लोगों की मत सुनो ,लोग तो ,
कहते रहते गलत सही है 
किंतु तुम्हारा दिल दिमाग जो 
माने ,करना उचित वही है 
सही राह यदि अपनाओगे 
झट से मंजिल पर पहुंचोगे
कठिन समय से जब गुजरोगे 
तो कुंदन बनकर निखरोगे

मदन मोहन बाहेती घोटू
हम जी रहे हैं 

हवा खा रहे , पानी और पी रहे हैं 
बन पड़ता जैसे भी, हम जी रहे हैं 
बहुत सह लिया अब सहा नहीं जाता, 
जख्म दिल के गहरे, वही सी रहे हैं 

 भला कोई कहता,बुरा कोई कहता,
 सारी उमर सुनते सबकी रहे हैं 
 सावन में सूखे न  भादौ हरे हैं,
 रहे झेलते, सरदी, गरमी,रहे हैं 

  कभी चैन से ना दिया हमको जीने
  निगाहों के कांटे ,कई की रहे हैं 
नहीं भाव देते हमें आज वह भी,
 कभी भावनाओं में जिनकी रहे है

 अलग बात ये कि हुऐ ना वो पूरे,
  मगर देखते सपने हम भी रहे हैं 
  हवा खा रहे पानी और पी रहे हैं 
  बन पड़ता जैसे भी हम जी रहे हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू
मास्टर जी की छड़ी 

मास्टर जी की लपलपाती बांस की छड़ी 
जिससे स्कूल के सब बच्चे, डरते थे हर घड़ी
जिसकी मार यदि हम कभी खाते थे 
हथेली पर निशान पड़ जाते थे 
 जिसके डर ने हमें पढ़ना लिखना सिखाया
 बुद्धू से बुद्धिमान बनाया 
 पता ही नहीं चल पाया, कब वह बड़ी हो गई
 लाठी बन कर, लठैतों के हाथ लग गई 
 सब को धमकाती  है 
 अपना रौब जमाती है 
 अगर ध्यान देते तो वह बन सकती थी बांसुरी 
मधुर स्वरों से भरी 
 या फिर निसरनी बनकर 
 लोगों को पहुंचा सकती थी ऊंचाई पर 
 यह नहीं तो कम से कम 
 किसी बूढ़े का सहारा सकती थी बन
 मगर जो था किस्मत में ,वही वह बनी है 
 लठैतो के हाथ में आकर तनी है 
 गनीमत है अर्थी बनने मे काम नहीं आई
 वरना किस्मत होती बड़ी दुखदाई
 इसलिए संतोष से है पड़ी
 मास्टरजी की लपलपाती बांस की छड़ी

मदन मोहन बाहेती घोटू
 
 
वैक्सीन अवतार

अबकी बार बहुत दिनों के बाद
 इंद्र ने सभी देवताओं को किया याद  
 इंद्रसभा का सेशन बुलवाया 
पर  माहौल बड़ा बदला बदला नजर आया 
पवन देवता ,मुंह पर पट्टी बांध खड़े थे 
चेहरा कमजोर दिखता था, पीले पड़े थे 
इंद्र बोले यह क्या बना रखा है हाल 
पवन बोले क्या बतलाऊं सरकार 
पृथ्वी पर कोरोना राक्षस का हमला अब हो गया है 
लोगों का सांस लेना भी दुर्लभ हो गया है 
लोगों ने करके मेरा विच्छेदन 
निचोड़ लिए मेरी सारी ऑक्सीजन 
हो गया मेरा तन ऑक्सीजन से कंगाल है 
इसीलिए पीला पड़ गया हूं, मेरा बुरा हाल है 
इंद्र ने अग्निदेव से पूछा आप क्यों निस्तेज पड़े हैं 
बड़े घबराए घबराए से खड़े हैं 
अग्निदेव बोले करोना से इतने लोग गए हैं मर
 कि मैं थक गया हूं उन की चिताओं को  जला कर
और मुझ में भी नजर आ रहे हैं बीमारी के लक्षण
 कहीं हो ना गया हो मुझको भी कोरोना का संक्रमण इसीलिए मुंह पर पट्टी बांध रखी है 
 और आप से दो गज की दूरी बनाए रखी है 
 इंद्र ने वरुणदेव से पूछा आपकी क्या समस्या है आपकी हालत का कारण क्या है 
 वरुणदेव बोले कि अग्नीदेव की नाकामी के कारण लोगों ने कोरोना पीड़ित शवों का किया जलविसर्जन और नदियों में बहा दिया है 
 मुझको भी संक्रमित किया है 
 मैं इस आफ़त से कैसे बचूं,समझ न पा रहा हूं 
 इसलिए इतना घबरा रहा हूं 
 इन्द्र बोले इतना कुछ हुआ किसीने नहीं दी मुझे खबर 
 सब बोले हम ने ट्विटर पर पोस्ट कर दिया था सर 
 आप व्यस्त होंगे इसलिए आपकी पड़ी नहीं नजर 
 इंद्र बोले अगर ये मुसीबत यहां भी आजाएगी
 तो फिर अप्सराएं भी पास आने से कतराएंगी
 अब चलो सब मिलकर विष्णुदेव से गुहार लगाते हैं क्योंकि ऐसे संकट में हमेशा वही काम आते हैं 
 और सब ने मिलकर लेकर ऐसा ही किया 
 और विष्णु देव ने इस संकट से पृथ्वी को उबारने,   वैक्सीन के रूप में अवतार लिया

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 5 जून 2021

मजबूरी में नहीं रहेंगे

 लंबे जीवन की चाहत में ,ढंग से जीना छोड़ दिया है अपनी मनभाती चीजों से, अब हमने मुख मोड़ लिया है
 
 ना तो जोश बचा है तन में, और ना हिम्मत बची शेष है 
शिथिल हो रहे अंग अंग है, बदला बदला परिवेश है
 कई व्याधियों ने मिलकर के, घेर रखा है जाल बनाकर 
सुबह दोपहर और रात को, तंग हो गए भेषज खाकर 
पाबंदियां लगी इतनी पर, हम उनके पाबंद नहीं हैं 
वह सब खाने को मिलता जो ,हमको जरा पसंद नहीं है
 ना मनचाहा खाना पीना ,ना मनचाहे ढंग से जीना 
हे भगवान किसी को भी तू, ऐसे दिन दिखलाए कभी ना 
जीभ विचारी आफत मारी ,स्वाद से रिश्ता तोड़ लिया है 
लंबे जीने की चाहत में, ढंग से जीना छोड़ दिया है 

दिनदिन तन का क्षरण हो रहा बढ़ती जातीरोजमुसीबत 
फिर भी लंबा जीवन चाहे अजब आदमी की है फितरत 
आती जाती सांस रहे बस, क्या ये ही जीवन होता है
क्या मिलजाता क्यों येमानव इतनी सब मुश्किल ढोता है 
खुद को तड़पा तड़पा कर के, लंबी उम्र अगर पा जाते
 जीवित भले  कहो लेकिन वह, मरने के पहले मर जाते
 इसीलिए कर लिया है यह तय, मस्ती का जीवन जीना है 
जी भर कर के मौज मनाना ,मनचाहा खाना पीना है 
हमने जीवन नैया को अब  भगवान भरोसे छोड़ दिया है 
लंबे जीने की चाहत में, ढंग से जीना छोड़ दिया है

मदन मोहन बाहेती घोटू
अपनी-अपनी किस्मत 

हरएक कपड़े के टुकड़े की होती किस्मत जुदा-जुदा है 
जो भी लिखा भाग्य में होता, वो ही मिलता उसे सदा है

एक वस्त्र की चाहत थी यह,कि बनकर एक सुंदर चादर  
नयेविवाहित जोड़े की वो,बिछे मिलन की शयनसेज पर 
पर बदकिस्मत था ,अर्थी में, मुर्दे के संग आज बंधा है 
हरएक कपड़े के टुकड़े की होती किस्मत जुदा-जुदा है

 एक चाहता था साड़ी बन, लिपटे किसी षोडशी तन पर
 किंतु रह गया वह बेचारा ,एक रुमाल छोटा सा बनकर 
 जिससे कोई सुंदरी पोंछे,अपना पसीना यदा-कदा है
 हर एक कपड़े के टुकड़े की, होती किस्मत जुदा-जुदा है
 
 एक चाहे था बने कंचुकी ,लिपट रहे यौवन धन  के संग 
बना पोतडा एक बच्चे का,सिसक रहा,बदला उसका रंग
कोई खुश है किसी घाव पर ,पट्टी बंद कर आज बंधा है 
हर एक कपड़े के टुकड़े की होती किस्मत जुदा-जुदा है

मदन मोहन बाहेती घोटू

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शुक्रवार, 4 जून 2021

तुम जो भी हो जैसे भी हो मेरे लिए बहुत अच्छे हो 
तुम में नहीं बुराई कोई,तुम दिल के एकदम सच्चे हो 

 खुशनसीब मैं,क्योंकि पाया ,मैंने तुमसा जीवनसाथी
 मेरा और साथ तुम्हारा, जैसे हो हम दीया बाती 
 यही चाहती हूं मैं  हम तुम मिलकर के उजियारा लाएं जो भी अपना संगी साथी, उसका जीवन सुखी बनाएं यह है सच दुनियादारी में , वैसे तुम थोड़े कच्चे हो
 लेकिन तुम जो भी जैसे हो, मेरे लिए बहुत अच्छे हो 
 
 प्रभु ने अपना मेल कराया ,मुझे मिलाया, तुम्हें मिलाया यही प्रार्थना है अब प्रभु से, रहे प्रेम का हरदम साया 
 हम खुश रहे ,हमारे बच्चे,सुखी ओर खुशहाल रहे सब
जितने भी परिवारिक जन है सब में अच्छा प्यार रहे बस  तुम निर्मल निश्चल हो मन से, भोले से छोटे बच्चे हो
 तुम जो भी हो जैसे भी हो ,मेरे लिए बहुत अच्छे हो

तारा मदन मोहन बाहेती
आत्म निरीक्षण 

तुमने खुद कुछ गलती की है 
ठोकर तुमको तभी लगी है 
सड़क न देखी, दोष दूसरों ,
पर कि किसी ने गाली दी है 

 लोग न खुद की कमियां देखें 
 औरों पर आरोप लगाते 
  खुद को नहीं नाचना आता
  आंगन को टेढ़ा बतलाते 
   
यह मत समझो सभी गलत है,
 और तुम करते वही सही है 
 दोष कई हम में तुम में हैं ,
 धुला दूध का कोई नहीं है 
 
 ढूंढो मत बुराई औरों में ,
 कभी झांक देखो निज अंदर 
 तुम पाओगे कि बुराई का ,
 भरा हुआ है एक समंदर 
 
कभी कसौटी पर कर्मों की, 
परखो,खुद को, देखो घिस कर 
 जान पाओगे, खोट, खरापन
 अपना, नहीं लगेगा पल भर
  
क्योंकि गलती नहीं मानना ,
और सच को झुठला कर रखना 
कोशिश रहती कैसे भी बस,
अपनी खाल बचा कर रखना 
 
शुतुरमुर्ग से मुंह न छुपाओ ,
दुनिया है तुमको देख रही है
चिंतन करो ,मान लो गलती ,
मत बोलो, जो सही नहीं है

निकल जाएगा सर्प, लकीरें ,
सिर्फ पीटते रह जाओगे 
खुद को नहीं सुधारोगे तो ,
तुम जीवन भर पछताओगे

घोटू
पप्पू जी ने क्या-क्या सीखा 

जब से सत्ता ने मुख मोड़ा हम घर पर टिकना सीख गए पहले हम फाड़ते थे चिट्ठी ,अब चिट्ठी लिखना सीख गए दुनिया कहती हम पप्पू हैं, और बात बेतुकी करते हैं, 
अब ऊल जुलूल हरकतों से, टीवी पर दिखना सीख गए कोई कितना भी कुछ बोले,हम पर कुछ असरनहींहोता , कुछ भी डालो सब फिसल जाए, हम बनना चिकना सीख गए 
जो भी कुर्सी है हाथों में, हम कभी ना उसको छोड़ेंगे कोई ना हमें उखाड़ सके ,कुर्सी से चिपकना सीख गए क्या-क्या सपने हमने देखे, कुर्सी पर चढ़ेंऔर दूल्हा बने, ये भी न मिला,वो भी न मिला, हाथों को मलना सीखगए 
इस तरह फकीरी वाले दिन,प्रभु नहीं किसी कोदिखलाएं
 पहले मंहगे बिकते थे हम, अब सस्ते बिकना सीख गए

घोटू
टीका टिप्पणी 

हर एक बात पर करना टीका टिप्पणी यह हमारी आदत है पुरानी 
क्योंकि कहते हैं इसे विद्वत्ता की  निशानी 
तो चलो आज भी ऐसा ही कुछ किया जाए 
टीके पर ही टिप्पणी की जाए
 बचपन से साथ रहा है ,टीके का और हमारा
 हमारी मां हमें हमे लगाती थी काजल का टीका,
  ताकि बुरी नजर से बच कर रहे उनका दुलारा
 पैदा होते ही नर्स ने हमें कई तरह के टीके लगवाये ताकि हम कई बीमारियों से बच पाए  
 बाद में बहन, भाई दूज, रक्षाबंधन पर हमारे मस्तक पर कंकू का टीका लगाती थी 
 बदले में उपहार पाती थी 
 फिर हम जब मंदिर में जाते थे 
 पंडित जी हमारे मस्तक पर चंदन का टीका लगाते थे बदले में दक्षिणा पाते थे 
 घर पर जब भी कोई पूजा हवन यह त्यौहार मनता था
  हमारे मस्तक पर टीका लगता था 
  फिर जब हमारी हुई सगाई 
  तो सबसे पहले टीके की रस्म गई थी निभाई 
  और जब हम घोड़ी पर चढ़कर 
  ससुराल गए थे दूल्हा बनकर 
  हमारी सास ने हमारे मस्तक पर टीका लगाकर अपना मतलब था साधा 
 और अपनी जिम्मेदारी का हाथ पकड़ा कर ,
 हमारे पल्ले था बांधा 
 और शादी के बाद पत्नी की फरमाईशों के आगे
 आज तक कोई  क्या कभी है टिका
 उसको चाहिए कभी सोने का नेकलेस ,
 कभी चाहिए मांग का टीका 
अलग-अलग पंथ के गुरु साधु और संत
अपने मस्तक पर अलग-अलग ढंग से टीका लगाते हैं और टीके से ही पहचाने जाते हैं
 हमारे बड़े बड़े ग्रंथ जैसे रामायण भागवत और गीता इनकी कितने ही साहित्यकारों रहे हैं लिखी है टीका टीका लगवा कर , अक्सर हमने कुछ तो कुछ दिया है या कुछ न कुछ पाया है 
 मगर एक टीका है ,जो हमको कोरोना से बचाने के लिए आया है
 और वह भी एक नहीं दो-दो टीके कुछ अंतर से लगवाने पड़ते हैं 
 जो कोरोना के वायरस से लड़ते हैं
  सच तो यह है कि टीके के बल पर 
  आज टिका इंसान है
  टीके की महिमा सचमुच महान है

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 3 जून 2021

घोटू के पद

 घोटू ,दुनिया बड़ी सयानी 
 सभी बात पर केवल देखें अपनी लाभ और हानी
 हमें खिलाये खिचड़ी ,हमसे, पर चाहे बिरयानी
 छोटा-मोटा काम बता दो, मांगे खर्चा पानी 
कर्जा ले, बातें कर चिकनी, चुपड़ी और सुहानी 
वक्त चुकाने का जब आये, तो फिर आनाकानी 
छुरी बगल में छुपी, मुंह पर कोरी प्रीत दिखानी 
नहीं काठ की हांडी चूल्हे,बार-बार चढ़ जानी  
ये मरजानी समझ न आनी, हाथी दांत दिखानी 
घोटू सारी उम्र काट दी, अब तक ना पहचानी


घोटू के पद

 घोटू ,दुनिया बड़ी सयानी 
 सभी बात पर केवल देखें अपनी लाभ और हानी
 हमें खिलाये खिचड़ी ,हमसे, पर चाहे बिरयानी छोटा-मोटा काम बता दो, मांगे खर्चा पानी 
कर्जा ले, बातें कर चिकनी, चुपड़ी और सुहानी 
वक्त चुकाने का जब आये, तो फिर आनाकानी 
छुरी बगल में छुपी, मुंह पर कोरी प्रीत दिखानी 
नहीं काठ की हांडी चूल्हे,बार-बार चढ़ जानी  
ये मरजानी समझ न आनी, हाथी दांत दिखानी 
घोटू सारी उम्र काट दी, अब तक ना पहचानी

मंगलवार, 1 जून 2021

 भैया हम जो भी जैसे हैं, वही रहेंगे ना बदलेंगे 
 तुम हमको चाहो ना चाहो लेकिन प्यार तुम्हें हम देंगे
 
 देख हमारे रूप रंग को, तुम भ्रम में पड़ जाते भारी
 हम कौवा हैं या कोकिल हैं काम न करती अक्ल तुम्हारी
जरा हमारे बोल सुनो तुम, कूहू कूहू या कांव कांव है
 ठौर हमारा नीम डाल है या अंबुवा की घनी छांव है
 तुम झटसे पहचान जाओगे,जब कोकिल से हम कूकेंगे
   भैया हम जो भी जैसे हैं ,वही रहेंगे ना बदलेंगे 
   
चिंताओं के फंसे जाल में ,नींद नहीं आती डनलप पर
मेरी मानो कभी खरहरी, खटिया पर भी देखो सोकर 
ऊपर हवा, हवा नीचे भी, गहरी नींद करेगी पुलकित सुबह उठोगे, भरे ताजगी , अंगअंग होगा आनंदित
झोंके पीपल नीम हवा के ,नवजीवन तुममें भर देंगे 
भैया हम जो भी जैसे हैं, वहीं रहेंगे ना बदलेंगे

कच्ची केरी हमें समझ कर ,काट नहीं यूं अचार बनाओ 
करो प्रतीक्षा और पकने दो, मीठा स्वाद आम का पाओ
 जल्दबाजियों में अक्सर ही ,पड़ता है नुकसान उठाना 
अपनी खुद की करनी का ही, पड़ता है भरना जुर्माना 
नहीं सामने कुछ बोलेंगे ,पीठ के पीछे लोग हसेंगे 
भैया हम जो हैं जैसे भी वही रहेंगे, ना बदलेंगे 

ना तो पोत सफेदी तन पर, कोशिश करी हंस बन जाए 
 नौ सौ चूहे मार नहीं हम ,बिल्ली जैसे हज को जाएं 
 ना बगुले सी हममें भगती है और ना हम रंगे सियार हैं 
जो बाहर,वो ही हैं अंदर, हम मतलब के नहीं यार है लोगों का तो काम है कहना ,कुछ ना कुछ तो लोग कहेंगे 
भैया हम जो भी जैसे हैं ,वही रहेंगे, ना बदलेंगे

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं बिकाऊ हूं 
जो भी लगाता ऊंची बोली 
बनता में उसका हमजोली 
समय संग ,रुख बदला करता 
यह न समझना में टिकाऊ हूं
मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं

 मेरी निष्ठा उसके प्रति है ,
 जो है ऊंचे भाव लगाता 
 जिसकी गुड्डी ऊंची उड़ती 
 मैं उस पर ही दांव लगाता
 सोच समझ मौका पाते ही,
 मैं बदला करता हूं पाली
 तारीफ़ जिसकी आज कर रहा 
 कल उसको दे सकता गाली 
 अंदर से मेरा मन काला,
 बाहर से उजला दिखाऊं हूं
 मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं
 
 सही चुका दो मेरी कीमत ,
 दूंगा तुमको चढ़ा अर्श पर 
 थोड़ी सी भी मक्कारी की 
 तुमको दूंगा पटक फर्श पर 
 कहने को सिपाही कलम का,
  पर मैं हूं सत्ता का दल्ला 
  अच्छे अच्छों को उखाड़ मैं 
   सकता हूं ,कर कर के हल्ला
   और कभी नारद बनकर के ,
   आपस में सब को लड़ाऊं हूं
   मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं
   
   जो दिखता है वह बिकता है,
    दांत मेरे हाथी से सुंदर 
    खाने वाले दांत मेरे पर,
    छुपे हुऐ है मुंह के अंदर 
   न तो पराये, ना अपनो का,
   हुआ नहीं में कभी किसी का
   स्वार्थ सिद्धि करना पहले है,
   वफा निभाना मैं ना सीखा 
   मंदिर में पूजा मजार पर,
    मखमल की चादर चढ़ाऊं हूं
    मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 29 मई 2021

चार यार 

चार यार मिल बता रहे थे हाल-चाल अपना अपना उनकी परम प्यारी पत्नी उनका ख्याल रखे कितना

 पहला बोला मैं बेसब्रा हर एक काम की जल्दी थी
 मैं जो चाहू, झट हो जाए ,पर यह मेरी गलती थी 
 समझाया पत्नी ने,धीरे-धीरे, अच्छा होता सब 
 सींचो लाख,मगर फल देता तरु भी सही समय हो जब 
मैं उसकी हर बात मान कर अब रहता अनुशासन में  
यारों मैं खुश रहता हरदम, बंध कर उसके बंधन में
 
दूजा बोला कच्चा पक्का ,जो भी देता उसे पका
 बिना शिकायत, बड़े प्यार से ,वह सब कुछ लेती गटका
 मेरी बीवी है संतोषी ,जो मिलता उससे ही खुश है 
 मेरे क्रियाकलापों पर वह ,नहीं लगातीअंकुश है    
 वह कितनी भी शॉपिंग कर ले मैंने उससे कुछ ना कहा 
इतने बरस हुये पर कायम ,प्यार हमारा सदा रहा 
 
 तीजा बोला, मेरी बीवी, मेरी हेल्थ का ख्याल रखें
 पांच मील चलवा लेती है, बिना रुके और बिना थके 
 रोज दंडवत ,उठक बैठक ,प्यार प्रदर्शन करवाती
 सांस फूलती, नये ढंग से, प्राणायाम जब करवाती
 वह फिट मैं फिट, आपस में, हम दोनो ही रहते फिट है 
मैं वह करता ,जो वह कहती तो ना होती किटकिट है
 
चौथा बोला ,मेरी बीवी तो साक्षात लक्ष्मी है 
मुझे मानती वह परमेश्वर मेरे खातिर ,जन्मी है 
आधा किलो मिठाई लाकर, वह प्रसाद चढ़ाती है
एक बर्फी मुझको अर्पित कर ,सारी खुद खा जातीहै 
कहती डायबिटीज है तुमको ,मीठे की पाबंदी है
मैं जीवूं, वह रहे सुहागन, मेरे प्यार में  अंधी है 

सब बोले घर घर मिट्टी के चूल्हे , यही हकीकत है 
जैसे चलता वैसे जीने की पड़ जाती आदत है 
संतोषी बन, रहना हमको ,खुशी खुशी यूं ही जीकर
आओ, अपना गलत करे गम,थोड़ी सी दारू पीकर

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 28 मई 2021

तब और अब

जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे अब तो मतलब से होते हैं ,पहले बेमतलब होते थे 
 
एक जमाना था तू और मैं ,मिल करके हम होते थे 
सर्दी गर्मी हो या बारिश, रंगीले मौसम होते थे 
 तेरी छुअन सिहरन देती ,तेरी सांसे देती धड़कन 
 तेरी बातें मीठा अमृत ,तेरी खुशबू चंदन चंदन 
 बादल से लहराते गेसू, तेरे बड़े गजब होते थे
जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे
 
भले जवान हो गई थी तू,मगर बचपना नहीं गया था पियामिलन चाव और वह आकर्षणभी नयानया था
बात बात पर तू तू मैं मैं ,हां थी कभी तो कभी ना थी नखरेनाज दिखाती रहती,मुझे सताती तू कितना थी
 तू बारिश में भीग नाचती, तेरे शोक अजब होते थे जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे
 
 धीरे-धीरे समझदार तू और थोड़ा परिपक्व हो गई 
 बच्चों और घर की चिंता ही तेरे लिए महत्व हो गई तेरा प्यार ध्यान पाने में ,पहले होता मैं नंबर वन 
 अब मेरा चौथा नंबर है, सूखे सूखे ,भादौ, सावन 
 याद आते चुंबन बरसाते, तेरे प्यार लब होतेथे
जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होतेथे 

मदन मोहन बाहेती घोटू


जाने कहां गए वो दिन 

जब भी मुझे याद है आते 
वह भी क्या दिन थे मदमाते 
जिसे जवानी हम कहते थे
 नहीं किसी का डर चिंता थी 
 एक दूजे के साथ प्यार में 
 बस हम तुम डूबे रहते थे 
 
 इतना बेसुध मेरे प्यार में 
 रहती कई बार सब्जी में 
 नमक नहीं या मिर्ची ज्यादा 
 फिर भी खाता बड़े चाव से
  उंगली चाट तारीफें करता 
  मैं दीवाना ,सीधा-सादा
  
  देख तुम्हारी सुंदरता को 
 सिकती हुई तवे की रोटी 
 भी ईर्षा से थी जल जाती 
 तुमसे पल भर की जुदाई भी
  मुझको सहन नहीं होती थी
  इतना तुम मुझको तड़फाती
  
  जब तुम्हारे एक इशारे 
  पर मैं काम छोड़कर सारे
   पागल सा नाचा करता था 
   तुम्हारे मद भरे नैन के 
   ऊपर की भृकुटि न जाए तन
   मैं तुमसे इतना डरता था 
   
   जब तुम्हारे लगे लिपस्टिक 
   होठों का चुंबन मिलता था 
   मेरे होठ नहीं  फटते थे 
   ना रिमोट टीवी का बल्कि
    तुमको  हाथों में लेकर के
    तब दिन रात मेरे कटते थे 
    
    जब मैं सिर्फ तुम्हारी नाजुक 
     उंगली को था अगर पकड़ता 
    पोंची तुम देती थी पकड़ा 
    आते जाते जानबूझकर
     मुझे सताने या तड़पाने 
     तुम मुझसे जाती थी टकरा 
     
      मैं था एक गोलगप्पा खाली
      तुमने खट्टा मीठा पानी 
      बनकर मुंह का स्वाद बढ़ाया 
      बना जलेबी गरम प्यार की 
      डुबा चाशनी सी बातों में 
      तुमने मुझे बहुत ललचाया 
      
      कला जलेबी की तुम सीखी 
      बना जलेबी मेरी जब तब,
      आज हो गई हो पारंगत 
      लच्छेदार हुई रबड़ी सी 
      मूंग दाल के हलवे जैसी 
      बदल गई तुम्हारी रंगत 
      
      खरबूजे पर गिरे छुरी या
      गिरे छुरी ऊपर खरबूजा 
      कटता तो खरबूजा ही था 
      साथ उम्र के बदली दुनिया 
      किंतु सिलसिला यह कटने का 
      कायम अब भी,पहले भी था 

      मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 27 मई 2021

जाने कहां गए वो दिन 

जब भी मुझे याद है आते 
वह भी क्या दिन थे मदमाते 
जिसे जवानी हम कहते थे
 नहीं किसी का डर चिंता थी 
 एक दूजे के साथ प्यार में 
 बस हम तुम डूबे रहते थे 
 
 इतना बेसुध मेरे प्यार में 
 रहती कई बार सब्जी में 
 नमक नहीं या मिर्ची ज्यादा 
 फिर भी खाता बड़े चाव से
  उंगली चाट तारीफें करता 
  मैं दीवाना सीधा-सादा
  
  देख तुम्हारी सुंदरता को 
 सिकती हुई तवे की रोटी 
 ईर्षा से थी तुमसे जलती 
 तुमसे पल भर की जुदाई भी
  मुझको सहन नहीं होती थी
  इतना तुम तड़पा या करती 
  
  जब तुम्हारे एक इशारे 
  पर मैं काम छोड़कर सारे
   पागल सा नाचा करता था 
   तुम्हारे मद भरे नैन के 
   ऊपर भृकुटि नहीं जाए तन
   मैं तुमसे इतना डरता था 
   
   जब तुम्हारे लगे लिपस्टिक 
   होठों का चुंबन मिलता था 
   मेरे होठ नहीं  फटते थे 
   ना रिमोट टीवी का बल्कि
    तुमको  हाथों में लेकर के
    तब दिन रात मेरे कटते थे 
    
    जब मैं सिर्फ तुम्हारी नाजुक 
     उंगली को था अगर पकड़ता 
    पोंची तुम देती थी पकड़ा 
    आते जाते जानबूझकर
     मुझे सताने या तड़पाने 
     तुम मुझसे जाती थी टकरा 
     
      मैं था एक गोलगप्पा खाली
      तुमने खट्टा मीठा पानी 
      बनकर मुंह का स्वाद बढ़ाया 
      बना जलेबी गरम प्यार की 
      डुबा चाशनी सी बातों में 
      तुमने मुझे बहुत ललचाया 
      
      कला जलेबी कि तुम सीखी 
      बना जलेबी मेरी जब तब,
      आज हो गई हो पारंगत 
      लच्छेदार हुई रबड़ी सी 
      मूंग दाल के हलवे जैसी 
      बदल गई तुम्हारी रंगत 
      
      खरबूजे पर गिरे छुरी या
      गिरे छुरी ऊपर खरबूजा 
      कटता तो खरबूजा ही था 
      साथ उम्र के बदली दुनिया 
      किंतु सिलसिला यह कटने का 
      कायम अब भी,पहले भी था 

      मदन मोहन बाहेती घोटू

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