मजबूरी में नहीं रहेंगे
लंबे जीवन की चाहत में ,ढंग से जीना छोड़ दिया है अपनी मनभाती चीजों से, अब हमने मुख मोड़ लिया है
ना तो जोश बचा है तन में, और ना हिम्मत बची शेष है
शिथिल हो रहे अंग अंग है, बदला बदला परिवेश है
कई व्याधियों ने मिलकर के, घेर रखा है जाल बनाकर
सुबह दोपहर और रात को, तंग हो गए भेषज खाकर
पाबंदियां लगी इतनी पर, हम उनके पाबंद नहीं हैं
वह सब खाने को मिलता जो ,हमको जरा पसंद नहीं है
ना मनचाहा खाना पीना ,ना मनचाहे ढंग से जीना
हे भगवान किसी को भी तू, ऐसे दिन दिखलाए कभी ना
जीभ विचारी आफत मारी ,स्वाद से रिश्ता तोड़ लिया है
लंबे जीने की चाहत में, ढंग से जीना छोड़ दिया है
दिनदिन तन का क्षरण हो रहा बढ़ती जातीरोजमुसीबत
फिर भी लंबा जीवन चाहे अजब आदमी की है फितरत
आती जाती सांस रहे बस, क्या ये ही जीवन होता है
क्या मिलजाता क्यों येमानव इतनी सब मुश्किल ढोता है
खुद को तड़पा तड़पा कर के, लंबी उम्र अगर पा जाते
जीवित भले कहो लेकिन वह, मरने के पहले मर जाते
इसीलिए कर लिया है यह तय, मस्ती का जीवन जीना है
जी भर कर के मौज मनाना ,मनचाहा खाना पीना है
हमने जीवन नैया को अब भगवान भरोसे छोड़ दिया है
लंबे जीने की चाहत में, ढंग से जीना छोड़ दिया है
मदन मोहन बाहेती घोटू
सुंदर रचना
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