गर्मी की छुट्टी और रस की घुट्टी
जब भी याद आता है बचपन,दिन गर्मी की छुट्टी वाले
आंखों आगे नाचा करते, मीठे आम चूसने वाले
इंतजार हमको रहता था, कब आए गर्मी की छुट्टी
कब आमों का मजा उठाएं हम भर मुंह में रस की घुट्टी
रोज टोकरी भर भर कर के आया करते आम गांव से
पहले खट्टे हैं या मीठे ,सब चखते थे बड़े चाव से
भावताव कर फिर फुर्ती से आम छांटने हम जुट जाते
मोटे-मोटे आमों को चुन ,बड़े शान से हम इतराते
नहीं वजन से किंतु सेंकडे, से थे आम बिका करते तब
नए स्वाद वाले आमों का हर दिन पाल खुला करता जब
कम से कम दो-तीन किसम के आम रोज घर में आते थे
कुछ का अमरस बनता बाकी,चूस चूस हम सब खाते थे
शाम बाल्टी में पानी की, करते ठंडा आमो को भर
जब पूरा परिवार बैठता ,था गर्मी में खुल्ली छत पर
सभी उठाते आम, पिलपिला करते, पीते रस की घूंटे
और चूसते गुठली इतना ,एक बूंद भी रस ना छूटे
किसने कितने आम हैं चूसे, गुठली से होती थी गिनती
खट्टे आम अगर होते तो सुबह फजीता सब्जी बनती
चाकू से कटने वालों को, कलमी आम कहा जाता था
कभीकभी जब मिल जाते तो थोड़ा स्वाद बदल जाताथा
ना जाने क्यों अब रसवाले, आम हो गए हैं अब गायब
तोतापुरी सफेदा लंगड़ा और दशहरी आते हैं अब
सबको काट, चुभा कर कांटा, बड़े चाव से खाया जाता किंतु रोज नित नए स्वाद के आम चूसना याद है आता
कटे आम के पेड़ बन गए, घर के चौखट और दरवाजे
इसीलिए मुश्किल से मिलते ,आम रसीले ताजे ताजे
रोजरोज ही नए किसम का स्वाद रसीला अब है दुर्लभ
नहीं रहे वो खाने वाले और ना ही वो आम रहे अब
मदन मोहन बाहेती घोटू
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