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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

बुढ़ापे की उमर

दौड़ने की ना रही ,अब टहलने की उमर है
जरा सा बाजा बजा कर बहलने की उमर है

अच्छे अच्छे सूरमा को मात करते थे कभी
चाँद तारे ,तोड़ने की बात करते थे कभी
थे कभी वो हौंसले पर हो गए अब पस्त है
नहीं खुद पे खुद का अब ,औरों का बंदोबस्त है
अब तो पग पग ,संभल आगे चलने की ये उमर है  
दौड़ने की ना रही ,अब टहलने की उमर है

अपने बल और बाजुओं पर नाज़ था हमको बड़ा
अब तो थोड़ी दूर चल कर ,कदम जाते लड़खड़ा
उम्र के जिस दौर में हम ,आ गए है आजकल
कल खिले से फूल थे ,मुरझा गए है आजकल
याद कर बातें पुरानी ,मचलने की उमर है
दौड़ने की ना रही अब टहलने की उमर है

बुढ़ापे का स्वाद चखने लग गए है इन दिनों
प्यार से परहेज रखने लग गए है इन दिनों
दे रहे ढाढ़स है अपने मन को हम समझा रहे
नौ सौ चूहे मार बिल्ली की तरह हज़  जा रहे
कुछ न मिलता ,हाथ केवल मलने की ये उमर है
दौड़ने की ना रही अब टहलने की उमर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जिंदगी

हमने  जैसे तैसे कर के ,बस गुजारी जिंदगी
दूसरों खातिर  लुटा दी अपनीसारी  जिंदगी
भाव में  बहते रहे और पीड़ाएँ  सहते रहे ,,
उलझनों में रही उलझी सीधीसादी जिंदगी
सबको खुश करने के चक्कर में न कोई खुश रहा ,
और हमने व्यर्थ ही अपनी गमा दी जिंदगी
भूल कर भी आजकल वो ,पूछते ना हाल है ,,
जिनके खातिर दाव  पर ,हमने लगा दी जिंदगी
किसीकी भी जिंदगी में ,दखल देना है गलत ,
हमने जी ली अपनी ,तुम जी लो तुम्हारी जिंदगी  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुंजाइश


मुफ्त की दावत में उनने देखे इतने आइटम ,
भर लिया उनने लबालब  खाना इतना प्लेट में
और जब खाने लगे तो इतना ज्यादा खा लिया
पानी पीने की भी गुंजाइश बची  ना पेट  में  

इतनी पतली मोहरी की जीन्स टाइट का चलन ,
बैठे ,उठते जोर लगता ,घुटनो से जाती है फट
इसलिए ही फटी जीने आ गयी फैशन में है ,
पहनने और चलने उठने में है मिलती सहूलियत

सिलवाती जब कुशल गृहणी ब्लाउज या कुर्तियां ,
नाप में वो रखवाती है ,थोड़ी गुंजाइश सदा
जिससे यदि जो बदन फूले ,थोड़े टाँके हटा कर ,
काम में आ सके कपडा ,हो के फिट ,बाकायदा

जहाँ नाडा या इलास्टिक लाया जाता काम में ,
रहती उन कपड़ों में गुंजाईश की गुंजाईश सदा
कभी भी जिद ठान  करके ,अकड़ना अच्छा नहीं ,
समझौते की मन में रखना चाहिए ख्वाइश सदा  
५  
रेल का डिब्बा खचाखच ,है मुसाफिर से भरा ,
भीड़ इतनी कि नहीं है ,तिल भी रखने की जगह
स्टेशन पर चार चढ़ते ,हो जाते  एडजस्ट  है ,
थोड़ी गुंजाईश हमेशा रखो दिल में इस तरह

किसी से भी दुश्मनी यदि हो गयी कोई वजह ,
नहीं सख्ती ,लचीलापन हो सदा व्यवहार में
दोस्ती की फिर से गुंजाईश भी रखना चाहिए ,
क्या पता कब दुश्मनी जाए बदल फिर प्यार में

मारती थी डींग कॉलेज की वो लड़की गर्व से ,
सात उसके फ्रेंड है और सारा कॉलेज है फ़िदा
हमने बोला  द्रोपदी से आगे हो तुम दो कदम ,,
और भी क्या एक की ,गुंजाईश है हमको बता

मदन मोहन बहती 'घोटू '
 
गुंजाइश


गए लेने सौदा जब हम तो ,हमने लाला से कहा ,
और कुछ हो अगर गुंजाईश बतादो रेट में
मुफ्त की दावत में उनने इतना जम कर खा लिया ,
पानी पीने की भी गुंजाइश बची  ना पेट   में

इतनी पतली मोहरी की जीन्स टाइट का चलन ,
बैठे ,उठते जोर लगता ,घुटनो से जाती है फट
इसलिए ही फटी जीने आ गयी फैशन में है ,
पहनने और चलने उठने में है मिलती सहूलियत

सिलवाती जब कुशल गृहणी ब्लाउज या कुर्तियां ,
नाप में वो रखवाती है ,थोड़ी गुंजाइश सदा
जिससे यदि जो बदन फूले ,थोड़े टाँके हटा कर ,
काम में आ सके कपडा ,हो के फिट ,बाकायदा

जहाँ नाडा या इलास्टिक लाया जाता काम में ,
रहती उन कपड़ों में गुंजाईश की गुंजाईश सदा
कभी भी जिद ठान  करके ,अकड़ना अच्छा नहीं ,
समझौते की मन में रखना चाहिए ख्वाइश सदा  
५  
रेल का डिब्बा खचाखच ,है मुसाफिर से भरा ,
भीड़ इतनी कि नहीं है ,तिल भी रखने की जगह
स्टेशन पर चार चढ़ते ,हो जाते  एडजस्ट  है ,
थोड़ी गुंजाईश हमेशा रखो दिल में इस तरह

किसी से भी दुश्मनी यदि हो गयी कोई वजह ,
नहीं सख्ती ,लचीलापन हो सदा व्यवहार में
दोस्ती की फिर से गुंजाईश भी रखना चाहिए ,
क्या पता कब दुश्मनी जाए बदल फिर प्यार में

मारती थी डींग कॉलेज की वो लड़की गर्व से ,
सात उसके फ्रेंड है और सारा कॉलेज है फ़िदा
हमने बोला  द्रोपदी से आगे हो तुम दो कदम ,,
और भी क्या एक की ,गुंजाईश है हमको बता

मदन मोहन बहती 'घोटू '
 
हुस्न और इश्क

मूड का इन हुस्न वालों का भरोसा कुछ नहीं ,
मेहरबां हो जाए कब और कब खफा हो जाए ये
आप करते ही रहो ,इनसे गुजारिश प्यार की ,
और तुमको भाव ना दें ,बेवफ़ा हो जाएँ ये
आप उनको पटाने की लाख कोशिश कीजिये ,
फेर लेंगे मुंह कभी और कभी झट पट जायेंगे
तीखे तेवर दिखाएंगे ,कभी होकर के ख़फ़ा ,
और कभी मासूम बन के ,भोलापन दिखलायेंगे
पेशकश तुम ये करो ,आ जाओ उनके काम में ,
वो कहें घर पड़ा गंदा ,झाड़ू पोंछा मार दो
सिंक में कुछ जूठे बर्तन ,पड़े उनको मांज कर ,
कमरा गंदा पड़ा उसकी हुलिया  सुधार दो
सोचा था दिल लगाएंगे ,लग गए पर काम में ,
नालायक और  लालची ये मन नहीं पर मानता
बाँध कर के कितनी ही उम्मीद तुम उनसे रखो ,
ऊँट किस करवट पे बैठेगा न कोई  जानता
घास डालो गाय को तुम दूहने की चाह में ,
क्या पता जाए बिगड़ और सींग तुमको मार दे
दूल्हा बन कर चाव से ,घोड़ी पे तुम चढ़ने लगो ,,
बिदके घोड़ी ,गिरा तुमको ,हुलिया बिगाड़ दे
इसलिए बेहतर है सर से भूत उतरे इश्क़ का ,
आरजू पूरी न होती ,दुखता है ये जी बहुत
ना भरोसा मिले मंजिल ,डूबे या मंझधार में ,
हसीनो की सोहबत ,पड़ सकती है मंहंगी बहुत
प्यार जो करते है उनको झेलना पड़ता है सब ,
शादी के पहले भी या फिर शादी के पश्चात भी
ये है ऐसा चक्र जिसमे फंस कर खुशियां भी मिले ,
और दुखी हो ,पड़े करना ,तुमको पश्चाताप भी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चाय हो तुम

काला तन ,रस रंग गुलाबी ,
घूँट घूँट तुम स्वाद  भरी
प्रातः मिलो ,लगता अम्बर से ,
आयी नाचती कोई परी
जब भी मिलती अच्छी लगती ,
थकन दूर और मिले तरी
चाय नहीं तुम ,चाह हृदय की ,
मेरे मन मंदिर उतरी
तुम्हारा चुंबन रसभीना ,
आग लगा देता मन में
स्वाद निराला ,रूप तुम्हारा ,
फुर्ती भर देता तन में

घोटू 

मंगलवार, 30 मार्च 2021

घटती आत्मियता

जैसे ही मतलब निकलता ,बता देते है धता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

पारिवारिक मूल्यों को ,लोग अब खोने लगे
सेंटीमेंटल ना रहे है ,प्रेक्टिकल  होने लगे
रिश्ते अब रिसने लगे है ,मोहब्बत है घट गयी
मैं और मुनिया में ,दुनिया सिमट कर रह गयी
हुआ विगठन ,संगठन में ,डर रहा हमको सता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

पारिवारिक बंधनो को ,तोड़ सब हमने दिया
होड़ पश्चिम से लगी और छोड़ सब हमने दिया
संस्कृति को भुलाया ,संस्कार सारे खो गये
कौन हम थे हुआ करते ,और अब क्या हो गये
आगे आगे और क्या होगा नहीं सकते बता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

दिवाली की जगमगाहट ,फीकी पड़ने लग गयी
होली के रंगों की अब ,रंगत उजड़ने लग गयी
बुजुर्गों प्रति  घट रही है श्रद्धा और  सदभावना
लॉकडाउन लग गया ,अब गुम हुआ अपनपना
लोग पढ़ लिख तो गए पर  बढ़ी ना बुद्धिमता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

हो रहे परिवर्तनों का ,यदि करें हम आकलन
बढ़ रहा है फोन पर ही ,'हाय 'हैल्लो ' का चलन
तार थे जो प्यार के अब हो रहे बेतार है
मिलना जुलना कम ,बदलता जा रहा व्यवहार है
रिश्ते नाते ,डगमगाते ,होगा क्या ,किसको पता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हैप्पी होली

होली आई और गयी ,अपने रंग बिखराय
हमने ,तुमने सभी ने ,किया खूब एन्जॉय
किया खूब एन्जॉय ,रंग जितने बिखराये
उनकी रंगत सबके मन में खुशियां लाये
होली के पकवान ख़ास गुझिये का कहना
जितने मीठे बाहर हो ,अंदर  भी रहना

घोटू

सोमवार, 29 मार्च 2021

Re:

बढ़िया

On Sat, Mar 27, 2021, 10:32 AM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:

कोरोना ने करा दिया

इस कोरोना की दहशत ने ,सबको इतना डरा दिया
जो कोई करवा ना पाया , इसने वो सब करा दिया

बात कड़क से कड़क सास की ,बहू नहीं जो सुनती थी
दिन भर बक बक करती रहती ,और न घूंघट रखती थी
अब ये हालत ,कोरोना डर ,दिन भर पट्टी है मुंह पर
वाक युद्ध अब बंद हो गया ,बंद हो गयी चपर चपर
कैंची सी चलती जुबान पर, इसने ताला लगा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

माँ बेटी को समझाती थी , भाव वेग में नहीं बहो
अपने यार दोस्तों के तुम पास न जाओ ,दूर रहो
कोशिश लाख करी थी माँ ने ,पर बेटी ने सुना नहीं
अब कोरोना से बचने वो ,सबसे दूरी बना रही
अच्छे अच्छे जिद्दी को भी ,कोरोना ने हरा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

शादी हो कि सगाई ,मुंडन बड़ी बड़ी दावत होती
लाखों का खर्चा ,खाना बरबाद ,फ़जीयत थी होती
लेकिन ऐसी बंदिश बाँधी ,कोरोना के चक्कर में
कितने बड़े बड़े आयोजन ,निपट गये ,सिमटे घर में
व्यर्थ दिखावा ,शो बाजी बंद,अनुशासन है कड़ा किया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

कॉन्फ्रेन्स ,मीटिंग ऑफिस की ,सभी वर्चुअल ,हुई बचत
घर से काम ,न ऑफिस जाना ,टली रोज की ये किल्लत
नामी और गिरामी सारे ,स्वामी बाबा,पूजास्थल
सारे अंतर ध्यान हो गए ,बंद हुए कोरोना डर
इनके सारे चमत्कार को ,कोरोना ने हरा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

मेडम ने चूल्हे चौके का ,सीखा काम ,पकाना भी
बंद हो गये पिक्चर शॉपिंग ,और होटल का खाना भी
साहब झाड़ू ,पोंछा बर्तन और सफाई सीख गए
बच्चे घर में डिसिप्लीन में ,बैठ पढाई सीख गए
परिवार की महिमा समझा ,आत्मनिर्भर है बना दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 27 मार्च 2021

हक़ीक़त

बात लो अब मान यह तुम
मत करो अभिमान यह तुम
सफलता का श्रेय सारा
फल है मेहनत का तुम्हारा
भले ये सच ,भ्रम  नहीं है
मगर दुनिया कम नहीं है
तुम्हे आगे बढ़ा कर के
और चने पर चढ़ा कर के
काम लेंगे तुमसे कस कर
लूटेंगे खुद ,सारा यश पर
तेल में तुम जाओ छोंके
लुटा सब गुण खुशबुओं के
ख़ुशी होंगे ,चाव से तुम
महकते पुलाव से तुम
खाने वाला ,देख तुमको
झट से देगा ,फेंक तुमको
 लगोगे तुम ,बेवजह से
तेज पत्ते की तरह से
स्वाद खुशबू लुटा दोगे
और तिरस्कृत बस रहोगे
कोई को परवाह नहीं है
रीत जीवन की यही है

घोटू     

कोरोना ने करा दिया

इस कोरोना की दहशत ने ,सबको इतना डरा दिया
जो कोई करवा ना पाया , इसने वो सब करा दिया

बात कड़क से कड़क सास की ,बहू नहीं जो सुनती थी
दिन भर बक बक करती रहती ,और न घूंघट रखती थी
अब ये हालत ,कोरोना डर ,दिन भर पट्टी है मुंह पर
वाक युद्ध अब बंद हो गया ,बंद हो गयी चपर चपर
कैंची सी चलती जुबान पर, इसने ताला लगा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

माँ बेटी को समझाती थी , भाव वेग में नहीं बहो
अपने यार दोस्तों के तुम पास न जाओ ,दूर रहो
कोशिश लाख करी थी माँ ने ,पर बेटी ने सुना नहीं
अब कोरोना से बचने वो ,सबसे दूरी बना रही
अच्छे अच्छे जिद्दी को भी ,कोरोना ने हरा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

शादी हो कि सगाई ,मुंडन बड़ी बड़ी दावत होती
लाखों का खर्चा ,खाना बरबाद ,फ़जीयत थी होती
लेकिन ऐसी बंदिश बाँधी ,कोरोना के चक्कर में
कितने बड़े बड़े आयोजन ,निपट गये ,सिमटे घर में
व्यर्थ दिखावा ,शो बाजी बंद,अनुशासन है कड़ा किया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

कॉन्फ्रेन्स ,मीटिंग ऑफिस की ,सभी वर्चुअल ,हुई बचत
घर से काम ,न ऑफिस जाना ,टली रोज की ये किल्लत
नामी और गिरामी सारे ,स्वामी बाबा,पूजास्थल
सारे अंतर ध्यान हो गए ,बंद हुए कोरोना डर
इनके सारे चमत्कार को ,कोरोना ने हरा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

मेडम ने चूल्हे चौके का ,सीखा काम ,पकाना भी
बंद हो गये पिक्चर शॉपिंग ,और होटल का खाना भी
साहब झाड़ू ,पोंछा बर्तन और सफाई सीख गए
बच्चे घर में डिसिप्लीन में ,बैठ पढाई सीख गए
परिवार की महिमा समझा ,आत्मनिर्भर है बना दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बचत मोहब्बत की

खुदा की दी ,मोहब्बत सब की सब ,ना है उड़ाने को
बचाकर रखलो  ,थोड़ी सी , वक़्त पर  काम आने को

सुना है दो जनम के दरमियां ,होता बहुत कुछ है ,
नहीं सच जानता कोई ,मगर ये लोग कहते है
हमारे कर्म के अनुसार हमको जगह मिलती है ,
स्वर्ग में या नरक में कुछ दिनों हम लोग रहते है
अगर तक़दीर ने अच्छा लिखा और स्वर्ग जो पाया ,
सुना है कि वहां पर अप्सरायें ,दिल लगाएगी
बचाकर तुम रखोगे जो ,मोहब्बत पास थोड़ी सी ,
बहुत ज्यादा तुम्हारे स्वर्ग में वो काम आएगी
नरक की पीड़ में भी मोहब्बत से काम निकलेगा ,
बड़ी अनमोल दौलत ये ,तुम्हे राहत दिलाने को
खुदा की दी मोहब्बत ,सब की सब ना है उड़ाने को
बचाकर रख लो थोड़ी सी ,वक़्त पर  काम आने को

समझलो माशूका कोई पूरानी जिस पे दिल आया ,
मगर कुछ कारणों वश ,वो नहीं मिल पाई धरती पर
किसी दिन जो अचानक ही ,वो टकराये और मिल जाए ,
तुम्हे हसरत पुरानी  ,पूरी करने का मिले अवसर
उस समय ये बचाकर के ,रखी थोड़ी मोहब्बत ही ,
तमन्नाओं का तुम्हारी ,करेगी पार बेड़ा फिर  
मज़ा आ जायेगा दूना ,ख़ुशी होगी ,उसे पाकर ,
प्यार से उसके संग कुछ दिन वहीँ करना बसेरा फिर
ये सुनते है ,मनोहारी ,वहां का प्यारा नन्दन वन,
जगह माकूल है ,माशूक संग ,मौजें मनाने को
खुदा की दी मोहब्बत सब की सब ,ना है उड़ाने को
बचा कर रखलो थोड़ी सी , वक़्त पर  काम आने को

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बचत मोहब्बत की

खुदा की दी ,मोहब्बत सब की सब ,ना है उड़ाने को
बचालो ,थोड़ी सी ,अगले जनम में काम आने को

सुना है दो जनम के दरमियां ,होता बहुत कुछ है ,
नहीं सच जानता कोई ,मगर ये लोग कहते है
हमारे कर्म के अनुसार हमको जगह मिलती है ,
स्वर्ग में या नरक में कुछ दिनों हम लोग रहते है
अगर तक़दीर ने अच्छा लिखा और स्वर्ग जो पाया ,
सुना है कि वहां पर अप्सरायें ,दिल लगाएगी
बचाकर तुम रखोगे जो ,मोहब्बत पास थोड़ी सी ,
बहुत ज्यादा तुम्हारे स्वर्ग में वो काम आएगी
नरक की पीड़ में भी मोहब्बत से काम निकलेगा ,
बड़ी अनमोल दौलत ये ,तुम्हे राहत दिलाने को
खुदा की दी मोहब्बत ,सब की सब ना है उड़ाने को
बचालो थोड़ी सी अगले जनम में काम आने को

समझलो माशूका कोई पूरानी जिस पे दिल आया ,
मगर कुछ कारणों वश ,वो नहीं मिल पाई धरती पर
किसी दिन जो अचानक ही ,वो टकराये और मिल जाए ,
तुम्हे हसरत पुरानी  ,पूरी करने का मिले अवसर
उस समय ये बचाकर के ,रखी थोड़ी मोहब्बत ही ,
तमन्नाओं का तुम्हारी ,करेगी पार बेड़ा फिर  
मज़ा आ जायेगा दूना ,ख़ुशी होगी ,उसे पाकर ,
प्यार से उसके संग कुछ दिन वहीँ करना बसेरा फिर
ये सुनते है ,मनोहारी ,वहां का प्यारा नन्दन वन,
जगह माकूल है ,माशूक संग ,मौजें मनाने को
खुदा की दी मोहब्बत सब की सब ,ना है उड़ाने को
बचालो थोड़ी सी ,अगले जनम में काम आने को

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

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अब ये हालत ,कोरोना डर ,दिन भर पट्टी है मुंह पर
वाक युद्ध अब बंद हो गया ,बंद हो गयी चपर चपर
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जो कोई  करवा ना पाया ,कोरोना ने करा  दिया
 
माँ बेटी को समझाती थी , भाव  वेग में नहीं बहो
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 कोशिश लाख करी थी माँ ने ,पर बेटी ने सुना नहीं
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शादी हो कि सगाई ,मुंडन बड़ी बड़ी दावत होती
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घर से काम ,न ऑफिस जाना ,टली रोज की ये किल्लत
नामी और गिरामी सारे ,स्वामी बाबा,पूजास्थल
सारे  अंतर ध्यान हो गए ,बंद हुए  कोरोना डर
इनके सारे चमत्कार को ,कोरोना ने हरा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

मेडम ने चूल्हे चौके का ,सीखा काम ,पकाना भी
बंद हो गये पिक्चर शॉपिंग ,और होटल का खाना भी
साहब झाड़ू ,पोंछा बर्तन  और सफाई सीख गए
बच्चे घर में डिसिप्लीन में ,बैठ पढाई  सीख गए
परिवार की महिमा समझा ,आत्मनिर्भर है बना दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 25 मार्च 2021

मेरा यार -चाट का भंडार

सोंधी सोंधी आलू की टिक्की करारी ,
दही भल्ले की सुहानी चाट हो तुम
खट्टा मीठा ,भरा पानी गोलगप्पा ,
भेलपूरी का पुराना  ठाठ हो तुम
ताजे मख्खन में बनी  तुम पाव भाजी ,
या बड़ा और पाव सी मन को लुभाती
कभी छोले भठूरे सी टेस्टी तुम ,
समोसे की तरह ,सबको ही सुहाती
या मसाला प्याज की तुम हो कचौड़ी
सवेरे के नाश्ते का गरम पोहा
या हो साउथ इंडियन डोसा मसाला ,
मुलायम इडली सभी केदिल को मोहा
सेव रतलामी या बीकानेरी भुजिया ,
या कि हो दालमोठ प्यारा आगरा का
ढोकला और खांडवी गुजरात की तुम ,
स्वाद तुममे  समाया है फांफड़ा का
प्याज की प्यारी पकोड़ी ,मूंग भजिया ,
गर्म मिलती ,सदा लगती स्वाद हो तुम
आजकल तुम चाइना की चाउमीन हो ,
पास्ता और ,पीज़ा बन ,आबाद हो तुम  
ग़र्ज ये है मिलती जिस भी रूप में  ,
मुंह में मेरे टपका देती लार हो तुम
चटपटापन तुम्हारा देता है न्योता ,
यार मेरे चाट का भण्डार हो तुम  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापे  की ग़जल

तंग मुझको लगा करने ,है  बुढ़ापा  आजकल
रह गया हूँ बन के मैं ,खाली लिफाफा आजकल  
बाल उजले ,गाल पिचके और बदन पर झुर्रियां ,
बदला बदला ,लगा लगने ,तन का ख़ाका आजकल
रोज़मर्रा जिंदगी में  ,नित नयी  तकलीफ  है ,
मुश्किलों में हो रहा हर दिन इजाफ़ा  आजकल
चिड़चिड़ापन इस तरह से मुझपे हावी हो गया ,
छोटी छोटी बातों में ,मैं खोता आपा आजकल
अपने अपने काम में ,मशग़ूल बच्चे हो गए ,
ख्याल कोई भी नहीं ,रखता जरासा  आजकल
यूं तो मुझको भूलने  की  बिमारी  है  होगयी ,
बहुत पर बीता जमाना ,याद आता आजकल
क्या पता किस रोज पक कर डाल से गिर जाऊँगा ,
डर ये मन में बना रहता,अच्छा ख़ासा ,आजकल
स्वर्ग में जा अप्सराओं  संग करेंगे ऐश हम ,
देता रहता,अपने दिल को ,यह दिलासा आजकल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मंगलवार, 23 मार्च 2021

हेमोग्लोबिन

ये सच है कि उमर सारी ,रहा बीबी से मैं डर कर
कहा उसने वो सच माना, उठाया ना कभी भी सर
दबा मैं रौब में इतना ,करी बस उसकी हाँ में हाँ
नहीं मुझमे थी ये हिम्मत ,कभी उससे मैं लूँ लोहा
हुआ कमजोर इतना कि ,परीक्षण खूं का करवाया
रपट आयी तो ये पाया ,लोह का तत्व ,कम आया
इसलिए दोस्तों मेरे ,मुझे तुमसे ये कहना  है
रहो मत डर के बीबी से ,अगर जो स्वस्थ रहना है
जो लोहा लेने बीबी से ,की तुममे आ गयी हिम्मत
बढ़ेगा खून में लोहा ,रहेगी ठीक फिर  सेहत

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 22 मार्च 2021

स्वाद का असर

एम डी एच के महाशयजी ,जबसे पहुंचे स्वर्ग है ,
बुरी हालत स्वर्ग की ,सुनते निगोड़ी हो गयी
स्वाद उनके मसालों का ,सबको भाया इस कदर ,
स्वर्ग में भी कद्र उनकी ,लम्बी चौड़ी हो गयी
चाट का चंकी मसाला ,यूं जुबान पर चढ़ गया ,
स्वर्ग की सब अप्सराएं ,अब चटोरी हो गयी
बहुत कम अब हुई उनकी ,कमर की कमनीयता ,
आजकल वो सबकी सब है मोटी  थोड़ी हो गयी
नृत्य में उनके नहीं अब वो रह गयी पहली लचक ,
इसलिए आता नहीं अब पहले सा आल्हाद है
देवता भी बिचारे अब शंशोपज में है फंसे ,
एक तरफ है मनोरंजन ,दूजा मुंह का स्वाद है

घोटू


स्वाद का असर

एम डी एच के महाशयजी ,जबसे पहुंचे स्वर्ग है ,
बुरी हालत स्वर्ग की ,सुनते निगोड़ी हो गयी
स्वाद उनके मसालों का ,सबको भाया इस कदर ,
स्वर्ग में भी कद्र उनकी ,लम्बी चौड़ी हो गयी
चाट का चंकी मसाला ,चढ़ा यूं जुबान पर
स्वर्ग की सब अप्सराएं ,अब चटोरी हो गयी
बहुत कम अब हुई उनकी ,कमर की कमनीयता ,
आजकल वो सबकी सब है मोटी  थोड़ी हो गयी

घोटू 
रिटायर्ड जिंदगी

जब आप केरियर की पीक पर होते है
ऑफिस की पॉवरफुल सीट पर होते है
सारी व्यवस्थायें आपके पीछे डोलती है  
हर तरफ आपकी ही तूती  बोलती है
आपका एक रुदबा और शान होती है
जिंदगी हर तरफ से मेहरबान होती है
आप पर तारीफों के ,पुष्प बरसतें है
लोग आपका फेवर पाने को तरसते है
और फिर आप जब ,हो जाते है रिटायर
अर्श से फर्श पर ,जैसे है जाते गिर
लोगबाग आपसे नज़रे चुराते है
चापलूस चमचे ,नज़र नहीं आते है
कोई भी आपको ,घास नहीं डालता
और यह व्यवहार ,आपको है सालता
भाई साहब जिंदगी के साथ भी यही होता है
जवानी में बॉस रहा जिस्म ,बुढ़ापे में रोता है
जवानी में शरीर का ,हर अंग होता फुर्तीला
पर बुढ़ापा आते ही ,पड़ने लगता ढीला
हाथ काम कम करते ,पैर चल न पाते है
ज़रा सी मेहनत पर ,फूलती साँसें है
खाने को मन करता पर भूख नहीं लगती है
शरीर साथ नहीं देता ,इच्छाएं तो जगती है
मस्तिष्क की तीक्ष्णता ,थोड़ी घट जाती है
भूल जाते चीजे है ,याद डगमगाती है
नज़र से उदर तक,कमजोरी ही कमजोरी
कोई भी नहीं सुनता ,बात आपकी थोड़ी
शरीर का हाल ,रिटायर्ड बॉस सा हो जाता है
दम खो जाता तो रौब भी खो जाता है
हर कोई आपसे ,नज़र बचा निकलता है
ये हमें खलता है और दिल जलता है
जब तक आप पावर में है आपकी इज्जत है
जिंदगी की ये ही ,सबसे बड़ी हक़ीक़त है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
आओ ,तुरपाई करें

जाने अनजाने  हुई गलतियों की ,
आओ भरपाई करें
उधड़ते हुये रिश्तों को ,फिर से मजबूत करने ,
थोड़ी सिलाई करें
आओ तुरपाई करें

आपकी कोई बात ,अगर चोंट पहुंचाती ,
किसी के दिल को गड़ती है
तो माफ़ी मांग लेने से आप छोटे नहीं होते ,
आपकी गरिमा बढ़ती है
बेहतर है हम अपनी जुबान पर काबू रखें ,
किसी का दिल न दुखाएं
और ये कोशिश करें ,अगर आ सकते है ,
किसी के काम आयें
किसी के  घावों पर ,प्यार का मलहम लगा ,
रिसते हुए जख्मों को भरें
आओ हम तुरपाई करें
 
नेकी कर भूल जायें ,किसी को दिखलाने ,
नहीं उसका शोर करें
दूसरों की अच्छाइयों और अपनी बुराइयों पर,
अच्छी तरह गौर करें
सबके प्रति अपने मन में ,दया की भावना  ,
और प्यार भरपूर रखें
और हमेशा खुद को ,घमंड की आहट से  
भी बहुत दूर रखें
भूल कर भी ,किसी के सामने ,किसी की ना ,
कोई भी बुराई करें
आओ तुरपाई करें

मदन मोहन बाहेती'घोटू '


आज के हालात -पांच चौके

कुछ तो'कोविड' ने बना दी दूरियां
और कुछ है उम्र की मजबूरियां
वो पुराना प्यार है खो सा गया ,
ऐसा क्या हो गया अपने दरमियां

बेवजह ही रोज होता क्लेश है
प्रेम का बाकी न वो  उन्मेष है
छुवन में होती नहीं वो सुरसुरी ,
बदन में गर्मी बची ना  शेष है

रूठने और मनाने के चोंचले
भूल जाओ ,अब हम बूढ़े हो चले
सहे सब संतोष से ,जो हो रहा ,
ना अपेक्षाएं रखें ना दिल जले

अब तो जैसी कट रही है,काट लो
अपने सुख दुःख ,तुम परस्पर बाँट लो
प्यार अब संभाल बन कर रह गया ,
समझौते से दूरियों को पाट  लो

क्या पता है कब बिछड़ अब जायें हम
झेलना किसको  ,अकेलेपन का  गम
स्वर्ग में मिल जायें जो इत्तेफ़ाक़ से ,
हमको तुम पहचान लेना कम से कम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
आज मैं असिया गया हूँ

बीस वर्षों पूर्व मेरी ,उमर  थी जब साठ  ऊपर
कर दिया मुझको गया था ,नौकरी से भी रिटायर
ये कहा हालत तुम्हारी ,ना रही अब काम लायक
बुढ़ापा आने लगा है और अब तुम गए हो थक
आदमी थे कभी बढ़िया ,हो मगर घटिया गए हो
ना रही बुद्धि नियंत्रित और तुम सठिया गए हो
किन्तु उसके बाद भी तेंतीस प्रतिशत वर्ष काटे
बीस वर्षों रहा मिलजुल,और सुख दुःख,सभी बांटे
बुढ़ापे की बेबसी से ,किन्तु बेबसिया गया हूँ
साठ  में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ

जिंदगी के इस सफर में ,सैंकड़ों तूफ़ान देखे
कईअपनों ने भुलाया ,मीत कुछ अनजान देखे
गिरा ,सम्भला ,चोंट खाई ,करी मेहनत ,कुछ बना मैं
किसी को सीढ़ी बनाया ,किसी की सीढ़ी बना मैं
सोचता हूँ कभी मैंने ,क्या गमाया ,क्या कमाया
प्यार जी भर कर लुटाया ,तभी सबका प्यार पाया
किसी से कुछ नहीं माँगा ,बन सका उतना दिया हूँ
अब तलक जैसे जिया हूँ ,शान से लेकिन जिया हूँ
देख अपने हाल खस्ता ,मगर अब खिसिया गया हूँ
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ

खेल जो भी नियति ने ,लिखे थे ,सब खेल खेले
कभी पहनी पुष्पमाला ,और पत्थर कभी झेले
मुश्किलों के पहाड़ आये ,बीच ,पर ना डगमगाया
स्वाभिमानी शान से ,मस्तक हमेशा ही उठाया
भाग्य ने छीना अगर कुछ ,तो बहुत कुछ दिया भी है
दोस्तों ,शुभचिंतकों ने ,प्यार इतना किया भी है
जिंदगी कट गयी इतनी ,बिना चिंता ,ये क्या कम है
जी रहा अब भी ख़ुशी से ,नहीं मन में कोई ग़म है
चाहने वालों का अब भी ,हो मैं मन बसिया गया हूँ
साठ  में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ

भूलने की बिमारी पर ,प्यार अपनों का न भूला
सीख ली आलोचकों से ,प्रशंसा  पा  नहीं फूला
लाख कोशिश करी ,मन से पर न छूटी मोह माया
भेद अपने पराये का ,भूल कर ना भूल पाया
नहीं कोई को दिखाया  ,घाव जो दिल पर लगा है
कितनो ने ही ,मीठी मीठी ,बातें कर मुझको ठगा है
कोई ने यदि आस मुझसे ,कभी की ,मैंने न तोड़ी
हँसते गाते गुजर जाए ,बची अब जो उम्र थोड़ी
चाहूँ तोडूं ,सभी बंधन ,जिनमे मैं फँसिया गया हो
साठ  में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
चलो एक बार फिर से

हमारी और तुम्हारी अब ,निभे ना संग रह रह कर
परेशां हो गए हम रोज के झगड़ों को सह सह कर
बन गयी जिंदगी जिल्लत है ,इससे होगा ये बेहतर
अहम की तुष्टि करने ,यूं नहीं टकराये हम दोनों
चलो एक बार फिरसे अजनबी बन जाए हम दोनों

भुलादें ये कभी बेइंतहां  हम प्यार करते थे      
दीवाने और पागल थे,एक दूजे पे मरते थे
सात जन्मो के साथी हम ,हमेशा दम ये भरते थे
पुराने कसमें और वादे ,सभी बिसरायें हम दोनों
चलो एक बार फिर से अजनबी ,बन जाएँ हम दोनों

जमाना था ,हमारी और तुम्हारी ,एक थी चाहें
नहीं रखता था कोई भी ,किसी से कुछ अपेक्षाएं
मगर लगने लगा ऐसा ,जुदा  अपनी है अब राहें
उलझ रिश्ते गए उनको , मिलें , सुलझायें हम दोनों
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों

चलोअनजान बन कर फिर लड़ाये ,प्यार से नज़रें
सिलसिला प्यार का चालू ,नया करदें हो बेसबरे
दिवाना बन उठाऊं मैं ,तुम्हारे नाज़ और नखरे
पुराने प्यार में फिर ताज़गी भर लाएं हम दोनों
चलो एक बार फिरसे अजनबी बन जाएँ हम दोनों

प्यार की भड़के चिंगारी ,जगे दिल में ,मोहब्बत फिर
उजड़ते प्यार के गुलशन में आये प्यारी रंगत फ
महक जाए पुरानी  जिंदगी ,बन जाए जन्नत फिर
जवानी की हसीं यादें ,फिर से दोहराएं हम दोनों
चलो एक बार फिर से अजनबी ,बन जाएँ हम दोनों

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक लड़की सांवली सी

भोलीभाली और भली सी
एक सांचे में ढली सी
मुझे केरल में मिली थी ,
एक लड़की सांवली सी

उम्र के तूफ़ान में  थी
जवानी परवान पर थी
रूप था निशदिन निखरता
आ रही तन में सुगढ़ता
देख निज यौवन उभरता ,
हो रही कुछ बावली सी
एक लड़की सांवली सी

सोचती कुछ ,मुस्कराती
बिना मतलब खिलखिलाती
गाल पर गुलमोहर खिलते
पंखुड़ियों से होठ हिलते
मन तरंगित ,तन तरंगित ,
अधखिली कोई कली सी
एक लड़की सांवली सी

नयन सुन्दर ,चपल,चंचल
बदन पर टिकता न आँचल
अमलताशी हाथ पीले
हाव भाव  सब नशीले
प्यास तन मन की बुझाने ,
हो रही उतावली सी
एक लड़की सांवली सी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 15 मार्च 2021

New various bags from SMETA audited bags factory !

Dear bahetimmtara1:

  Good afternoon,how are you doing!

  This is bruce from Yiwu zhijian bags Co.,LTD which has passed SMETA(SEDEX 4 pillar) by BV, glad to meet you by this manner.

  Along with the new style bag as we developed,maybe you will interested in.here we attach their details to you as reference as following, any interested items,welcome to contact us any time.

  If you have any demands on the bags(handbag,tote bag, sling bag, backpack,cooler bag(thermo bags),travel bag,sport bag,foldable bag,etc),welcome to contact us any time. or visit our site and download the catalogue at: https://www.zj-bags.net/en/download.html




 


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मंगलवार, 9 मार्च 2021

एक लड़की सांवली सी

भोली भाली और भली सी
एक लड़की सांवली सी

उम्र के तूफ़ान में  थी
जवानी परवान पर थी
रूप था निशदिन निखरता
आ रही तन में सुगढ़ता
देख निज यौवन उभरता ,
हो रही कुछ बावली सी
एक लड़की सांवली सी

सोचती कुछ ,मुस्कराती
बिना मतलब खिलखिलाती
गाल पर गुलमोहर खिलते
पंखुड़ियों से होठ हिलते
मन तरंगित ,तन तरंगित ,
अधखिली कोई कली सी
एक लड़की सांवली सी

नयन सुन्दर ,चपल,चंचल
बदन पर टिकता न आँचल
अमलताशी हाथ पीले
हाव भाव  सब नशीले
प्यास तन मन की बुझाने ,
हो रही उतावली सी
एक लड़की सांवली सी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं  बहुत पिटा हूँ

बहुत खायी है मार वक़्त की , फिर भी हंसकर जीता हूँ  
मैं घिसा पिटा हूँ ,मैं बहुत पिटा हूँ

पाठ नहीं पढता स्कूल में ,करता था  अति  शैतानी
मास्टर साहब,पीटते छड़ीसे ,पड़ती मार मुझे खानी
घर में छोटे भाई बहन संग ,छेड़छाड़ करता झगड़ा
हुई शिकायत बाबूजी का ,पड़ता था झापट  तगड़ा
यार दोस्तों संग झगड़ों में ,बहुत गया मारा पीटा हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ ,मैं बहुत पिटा हूँ

उमर बड़ी  ,कॉलेज गया मैं ,रंग जवानी का छाया
लड़की के संग ,छेड़छाड़ की ,बहुत उन्होंने पिटवाया  
सुन्दर ,कोमल कामनियाँ ,मैं जिन्हे चाहता था दिल से
मेरा मजनू पना उतारा ,उनने चप्पल  सेंडिल से
फिर भी उन  हसीन  चेहरों पर ,मरा मिटा हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ मैं बहुत  पिटा हूँ
,
फंसा गृहस्थी चक्कर में फिर ,मैं कोल्हू का बैल बना
पिटना और पटाते रहना ,मेरा हर दिन खेल बना
रोज रोज बच्चों की मांगे पत्नीजी की फरमाइश
तो फिर मेरे ना  पिटने की ,कैसे रहती गुंजाइश
मैं शतरंजी ,पिटा पियादा ,खाली  जेबें , रीता हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ मैं बहुत पिटा हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


हम तुम्हारा क्या लेते है

हम थोड़ा हंस गा लेते है
तो तुम्हारा क्या  लेते  है
बूढ़े होते ,टूटे दिल को,
बस थोड़ा समझा लेते है

शिकवे गिले भुला कर सारे
मिलते है जब बांह पसारे
हमसे विमुख हो गए थे जो ,
फिर से दोस्त बना लेते है
हम तुम्हारा क्या लेते है

घुट घुट कर कैसा जीना रे
ग़म के आंसूं क्यों पीना रे
 चार दिनों के इस जीवन में ,
कुछ खुशियां बरसा लेते है
हम तुम्हारा क्या लेते है

नींद आती है टुकड़े टुकड़े
सपने आते बिखरे ,बिखरे
अश्रु सींच ,बीती यादों को ,
कुछ हरियाली पा लेते है
हम तुम्हारा क्या लेते है

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '
कोविड १९ का वेक्सीन लेने पर
   सुई के प्रति तीन चतुष्पदी

सुई छोटी है ,तीखी है ,अगर चुभती,दरद देती
मगर ये जिंदगी में आपको हरदम  मदद  देती
बटन टूटे को फिर से सी ,बनाती पहनने लायक ,
फटा कपड़ा रफू करती ,जो उदड़ा तो तुरुप देती  

जखम में जो फटी चमड़ी ,सुई से ही सिली जाती
कोई भी ऑपरेशन हो , काम में   सुई ही आती
ये चुभती है जो फूलों में ,बना देती है वरमाला ,
जब लगती बनके इंजेक्शन ,बिमारी दूर भग जाती

अगर काँटा चुभे पावों में ,सुई से निकलता है
जो बनके वेक्सीन लगती ,कोरोना इससे डरता है
पेन्ट हो शर्ट हो या कोट ,ब्लाउज हो या हो चोली ,
सुई से सिल के हर कपड़ा ,बना फैशन संवरता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 4 मार्च 2021

पक ही जाती है इश्किया खिचड़ी...


चूल्हा यहाँ पर
पतीला वहाँ पर,
फिर भी पक ही
जाती है
'इश्किया खिचड़ी',
जिससे आ जाता है
जायका ज़िन्दगी में,
और लगती है चलने
जैसे कि फिसली...

एक का चावल
दूसरे की दाल,
मुलाक़ात हो तो
तड़का कमाल...

कभी आ ही जाती है
बातों में मिर्ची,
कभी हो ही जाती हैं
नज़रें भी तिरछी...

कुछ खोजते हैं तब
तोहफ़े की लस्सी,
तो कुछ ढूंढते
आत्महत्या की रस्सी...

- विशाल चर्चित

बुधवार, 3 मार्च 2021

Were you still importing the bags from CHINA ?

Dear Manager:

   Good afternoon,how are you doing?

   We have finished our holiday, and back to working , were you still deal with the bags importing from CHINA?

   If you have any demands on the bags(backpack/travel bag/cooler bag/shopping bag/tote bag/canvas bag/handbag etc), welcome to contact us any time,and hope that we can be one of your trusted suppliers in CHINA. (For the catalouge of bags in various styles, welcome to download them from our site at: https://www.zj-bags.net/en/download.html , any interested items,welcome to send their item number along with the quantity to us by return.we will send our competitive price to you for the first cooperation )
   


Sincerely yours.




Bruce
Director
Expt Dept
YIWU ZHIJIAN BAGS CO.,LTD
p: 0086-579-86680309  m: 0086-18057970309
f: 0086-579-85135034  skype: bruceliuqing
w: www.zj-bags.net  e: zjbags1@zj-bags.net
  

SMETA (SEDEX 4 pillar) audited by BV (SEDEXcode:ZC410512140)

 


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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

बचना ऐ हसीनो -इन बूढ़ों से

साठ के पार होते है ,मगर स्मार्ट होते है
पेंशन इनको मिलती है ,बड़े ही ठाठ होते है
तुम इनकी सादगी और मीठी बातों में न आना
 संभल के रहना ये बुड्ढे ,बड़े खुर्राट होते है

बड़ी मासूमियत से आपके ये दिल को हर लेंगे
अगर देखोगी मुस्काकर,मोहब्बत तुमसे कर लेंगे
पकड़ ऊँगली पहुंची तक ,पहुंचने में ये माहिर है ,
जरा सी घास डालोगी ,ये पूरा खेत चर  लेंगे

बड़ी मंहंगी पुरानी चीज है 'एंटीक 'कहलाती
पुराने चावलों से खुशबुएँ आती है मनभाती
भले ही कितना भी बूढा अगर हो जाए बंदर पर,
गुलाटी मारने की आदतें उसकी नहीं जाती

नज़र कमजोर ,आदत छूटती ना ताका झांकी की
न हिम्मत जाम पीने की ,मगर तलाश साकी की
राम का नाम लेने की ,उमर में रासलीला का ,
मज़ा मिल जाय कैसे भी ,है हसरत उम्र बाकी की

न फल है ना ही पत्ते है ,ये लगते पेड़ सूखे है
बहुत खेले खिलाये है ,मगर ये अब भी भूखे है
कभी भी भूल कर इनसे ,दया से प्यार मत करना
मिला जब भी इन्हे मौका ,कभी भी ये न चूके है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
ऐसा क्यों ?

लड़की अगर हो सीधी ,तो गाय कहाती है ,
लड़का अगर हो सीधा ,तो गधा क्यों कहाता
पत्नी की बात माने ,तो इसमें हर्ज क्या है ,
गुलाम जोरू का पर क्यों पति कहा जाता
विज्ञापनों में देखा ,औरत के वास्ते तो ,
होते है क्रीम,लोशन और लिपस्टिक के सारे ,
मर्दों के लिए खुजली और दाद की दवा का
या बवासीर ,कब्जी का विज्ञापन क्यों आता

घोटू  

रविवार, 31 जनवरी 2021

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कैसे जाता वक़्त गुजर है

मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
सोना,जगना ,खाना,पीना ,क्या जीवन बस इतना भर है

कम्बल कभी रजाई चादर ,या फिर पंखा ,कूलर,ए सी
ठिठुरन ,सिहरन,तपन,बारिशें ,मौसम की गति बस है ऐसी
अलसाया तन ,मुरझाया मन ,बढ़ी उमर का हुआ असर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

सूरज उगता ,दिन भर तपता ,फिर ढल जाता अस्ताचल में
लेकिन वो बेबस होता जब ,बादल  ढक  लेते है पल में
कब ढक ले आ बादल कोई, पल पल लगता रहता डर है
मुझको खुद मालूम  नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

बीते दिन की यादों में मन, बस खोया ही रहता अक्सर
आते याद ख़यालों में वो,रख्खा जिनका ख्याल उमर भर  
नहीं मगर उनको अब रहता ,ख्याल हमारा ,रत्ती भर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

मनौती

मन की कोई कामना पूरी होने पर ,
कुछ करने का संकल्प ,
होता है मनौती
पर गौर से देखा जाए  तो  ,
यह एक तरह की रिश्वत है होती
जो हम भगवान को देते है
और ये कहते है
कि प्रभु ,अगर आप
मेरा फलां फलां काम  दोगे साध
तो मैं आपको चढ़ाऊंगा इतना परशाद
या मैं आपको सोने या चांदी का छत्र चढ़ाऊंगा
आपके दर्शन के लिए ,परिवार संग आऊंगा
पर जब आप करते है कोई भी कामना
उसके पूरा होने की ,होती है ५०%सम्भावना
और इस तरह आधी मनोतियां पूर्ण हो जाती है
और उस देवता में ,आपकी श्रद्धा बढ़ जाती है
बचपन से ही हमारे संस्कार
ढल जाते है इस प्रकार
कि भगवान अगर परीक्षा में पास हो जाऊँगा
तो इतने रूपये का परशाद चढ़ाऊंगा
और पास होने पर आप प्रशाद चढ़ाएंगे
हालांकि आधी मिठाई खुद खाएंगे
ऐसे में माँ बाप भी मना नहीं करते
क्योंकि वो भी बचपन से ,
सत्यनारायण की कथा आये है सुनते  
और घबराते है कि मनौती पूरी नहीं करने पर
लीलावती कलावती का हश्र ,उन पर न जाए गुजर
हमारी ये ही अंध आस्था
खोल देती है रास्ता
कुछ ख़ास मंदिरों में भीड़ बढ़ाने का
मान्यता पूरी होने पर परशाद चढाने का
इस तरह फलां फलां मंदिर के चमत्कार
का करके प्रचार
हम भेड़धसान की तरह मंदिरो में भीड़ बढ़ा रहे है
परशाद चढ़ा रहे है
आप कितने भी बड़े बुद्धिजीवी हो या अज्ञानी
पर काम बन जाता है तो हो जाते दानी
क्योंकि अगर ५०%लोगों की ५०%मनोकामनाएं
अगर प्रोबेबिलिटी के सिंद्धांत से पूर्ण हो जाए
तो इसका श्रेय मिलता है उस भगवान को ,
और कहा जाता है मनौती का असर दिखा है
और अगर कामना पूरी नहीं होती ,
तो सोचते है भाग्य में नहीं  लिखा है
ये हमारी आस्था ही है ,जिस पर संसार टिका है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इन्तजार

हर घड़ी  मैं घड़ी देखता ही रहा ,
तेरा दीदार हो ,आयी ना वो घड़ी
बेकरारी बढ़ी ,तू है प्यारी बड़ी ,
तेरी तस्वीर मैंने है दिल में मढ़ी
सपने बुनता रहा ,सर मैं धुनता रहा ,
थी निगाहें मेरी ,द्वार पर ही अड़ी
तू नहीं बेवफ़ा ,ना तू मुझसे खफ़ा ,
कौनसी बेबसी ,विपदा आ के पड़ी
मुश्किलें थी बड़ी ,सर उठाये खड़ी ,
कब कहाँ हो गयी है कोई गड़बड़ी
अश्क बहते रहे ,पीर सहते रहे ,
हर घडी लगता था ,सामने तू खड़ी

घोटू 
एक बेटी की फ़रियाद -माँ से

तेरी कोख में माँ ,पली और बढ़ी मैं
पकड़ तेरी ऊँगली,चली, हो खड़ी मैं
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ ,मैं तेरी जायी
 नहीं होती बेटी ,कभी भी  परायी

तूने माँ मुझको ,पढ़ाया लिखाया  
सहीऔर गलत का है अंतर सिखाया  
नसीहत ने तेरी बनाया है  लायक
रही तू हमेशा ,मेरी मार्ग दर्शक
तूने संवारा है व्यक्तित्व मेरा    
तेरे ही कारण है अस्तित्व मेरा
तेरा रूप, तेरी छवि, प्यार हूँ मैं
जीवन सफ़र को अब तैयार हूँ मैं
मिले सुख हमेशा,यही करके आशा
मेरे लिए ,हमसफ़र है तलाशा
बड़े चाव से बाँध कर उससे बंधन
किया आज तूने ,विवाह का प्रयोजन
ख़ुशी से  करेगी ,तू मेरी बिदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी

सभी रस्म मानूंगी ,जो है जरूरी
मगर दान कन्या की ,ना है मंजूरी
न सोना न चांदी ,इंसान मैं हूँ
नहीं चीज दी जाये ,जो दान में हूँ
मुझे दान दे तू ,नहीं मैं सहूंगी
तुम्हारी हूँ बेटी ,तुम्हारी रहूंगी
दे आशीष मुझको,सफल जिंदगी हो
किसी चीज की भी,कभी ना कमी हो
फलें और फूलें ,सदा खुश रहें हम
रहे मुस्कराते ,नहीं आये कोई ग़म
कटे जिंदगी का ,सफर ये सुहाना
मगर भूल कर भी ,मुझे ना भुलाना
रहे संग पति के ,हो माँ से जुदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी पराई

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
भूलने की बिमारी

बुढ़ापे में मुश्किल ये भारी हुई है
 मुझे भूलने की , बिमारी  हुई  है

रखूँ कुछ कहीं पर ,नहीं याद रहता
परेशां हो ढूँढूं ,किसी से न कहता
चश्मा कहीं पर भी रख भूल जाता
दवाई की गोली ,न टाइम से खाता
नहीं नाम लोगों के ,अब याद रहते
बिगड़े बहुत ही , है हालात रहते
बड़ी ही फ़जीयत  हमारी हुई है
मुझे भूलने की,  बिमारी हुई है  

नहीं याद रहती ,मुझे बात कल की
मगर याद ताज़ा ,कई बीते पल की
बचपन के दिन ,वो शरारत की बातें
जवानी के किस्से ,वो मस्ती की  रातें
वो भाई बहन संग ,लड़ना ,झगड़ना
वो माता की ममता ,पिताजी से डरना
वो जीवन्त ,सारी की सारी हुई है
मुझे भूलने की ,बिमारी  हुई   है  

अब जब सफ़र कट गया जिंदगी का  
संग याद आता है ,बिछड़े सभी का
हरेक दोस्त मुश्किल में जो काम आया  
 उन्हें  भूल कर भी ,भुला  मैं  न पाया  
नाम अब प्रभु का ,सुमरने  लगा हूँ
मोह माया से  अब  ,उबरने लगा  हूँ  
अंतिम सफर की ,तैयारी  हुई है
 मुझे भूलने की, बिमारी हुई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 20 जनवरी 2021

पहले तो तुम ऐसी ना थी

अब तुमको क्या क्या बतलाऊँ ,अब तुम क्या हो ,पहले क्या थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

जब आयी थी दुल्हन बन कर ,तब तुम्हारा ,रूप ख़ास था
आँखों में लज्जा का पहरा ,अपनापन था और मिठास था
भोलीभाली सी सूरत से ,तुमने सबका मन लूटा था
तुमको पाकर ,मेरे मन में ,एक प्यार झरना फूटा था
आता याद ,मुझे वो कल जब ,तुम कल कल करती सरिता थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

तब तुम्हारे ,काले कुंतल , काँधे  पर झूमा करते थे
फूलों से कोमल गालों को ,भ्र्मरों  से चूमा करते थे
रक्तिम अधरों पर चुंबन था ,यौवन से थी ,तुम मदमाती
खिल जाते थे फूल हज़ारों ,जब तुम मस्ती में मुस्काती
यौवन से परिपूर्ण ,सुहानी ,सुंदरता की तुम प्रतिमा थी  
पहले तो तुम ऐसी ना थी

मेरे बिन बोले ही मेरे ,मन के भाव जान जाती थी
मेरे सारे प्रस्तावों  को ,नज़रें झुका ,मान जाती थी
ना तो करती ,कोई प्रश्न थी ,ना  गुंजाईश थी विवाद की
ना मन में मलाल रहता था ,अच्छी लगती ,सभी बात थी
निश्च्ल,चंचल,प्यारी प्यारी ,मुस्काती नन्ही गुड़िया थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

पहले कभी हुआ करती थी ,तुम सीधी सादी और भोली
अब सीधे मुंह बात न करती ,बहुत हो गयी हो बड़बोली
पहले प्यार लुटाती थी अब ,मुझे सताती ,बेदरदी  हो
पहले बासन्ती बहार थी ,अब तुम दिल्ली की सरदी हो
आपस में विचार मिलते थे ,मेरी हाँ तुम्हारी हाँ  थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

पहले पायल की रुनझुन थी ,अब तुम बादल की गर्जन हो
पहले नरम गर्म फुल्का थी ,हुई डबलरोटी अब तुम हो
अब ना तीर चलाते नयना ,अब न रहा वो रूप सलोना
हुई द्विगुणित काया अब तो ,फूला तन का कोना कोना
पहले तुम मेरी सुनती थी ,अब रहती हो मुझे सुनाती
पहले तो तुम ऐसी ना थी
पहले थी तुम कली महकती ,अब कुम्हलाया हुआ फूल हो
पहले कोमल ,कमल फूल सी ,अब चुभने वाला त्रिशूल हो
पहले शर्म हया की पुतली ,बहुत लजीली  और शरमीली
अब तेवर तीखे दिखलाती ,बहुत हो गयी हो रोबीली
 पहले सेवाभाव भरा था ,तुममे प्रेम भरी गरिमा थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

शांत और शीतल स्वभाव था ,सबके प्रति मन में दुलार था
एक पालतू गैया सी तुम ,देती थी बस दूध प्यार का
अब तो कितना ही पुचकारो ,बात बात पर बिगड़ झगड़ती
मन माफिक यदि कुछ न होता ,झट से सींग मारने लगती
कभी शरम से जो झुकती थी ,वो आँखें रहती ,दिखलाती
पहले तो तुम ऐसी ना थी

अब तो यही प्रार्थना प्रभु से ,कि तुम पहले सी हो जाओ
पहले सी ही प्रीत दिखाओ ,पहले जैसी ही मुस्काओ
बचे खुचे जीवन के कुछ दिन ,हम तुम ,ख़ुशी ख़ुशी मिल काटें
मेलजोल रख ,रहे प्यार से ,सबके संग में ,खुशियां बांटे
हो प्रयाग फिर से जब मिलती ,प्यार भरी गंगा यमुना थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 देवता और आदमी  

नहीं एक उसमे ,हजारों कमी है
नहीं देवता  वो  ,तभी आदमी है

फंसा मोह माया में ,होकर के अँधा
कई गलतियों का ,जो होता पुलंदा
करम से कमीना ,विचारों से गंदा
सदा भूल जाता ,जो अपनी जमीं है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है

समझ जो न पाता ,औरों की पीड़ा
करने की सेवा ,उठाता न  बीड़ा
भोगों में डूबा हुआ है जो कीड़ा
लालच और लिप्सा में काया रमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है

बसेगा ह्रदय में जब सत्य उसमे
छलकेगा जब प्यारअपनत्व उसमे
आयेगा तब ही तो देवत्व उसमे
अहम् से रहे दूर ,ये लाजमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं तुमसे गुस्सा हूँ

हम है जनम जनम के साथी ,दिया बाती साथ हमारा
एक दूसरे के सुख दुःख में ,बन कर रहते ,सदा सहारा
पर तुम मन की बात छुपाते ,अपनी पीड़ा नहीं बताते
उसे बांटती ख़ुशी ख़ुशी मैं ,यदि कुछ अपनापन दिखलाते
एक जान जब कि हम तुम है ,मैं तुम्हारा ही हूँ हिस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते ,जाओ,मैं तुमसे हूँ गुस्सा  

तुम करते सागर का मंथन ,मेरु जैसी मथनी बन कर
मिलते रतन ,बाँट सब देते ,खुद विष पीते ,बन शिवशंकर
सुखी और खुशहाल रहे हम ,तुम दुःख सहते ,इसीलिये हो
हमें नहीं अपराध बोध हो ,कुछ ना कहते ,इसीलिये हो
खुद पर करते सभी कटौती ,रोज रोज का है ये किस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते , जाओ मैं हूँ तुम पर गुस्सा

तुम पैदल दफ्तर जाते हो ,ताकि कुछ पैसे बच जाये
फटे वस्त्र भी पहनो ताकि ,मेरी नव साड़ी आ जाए
तुमको शौक मिठाई का पर ,ना खाते कह,डाइबिटीज है
अपनी इच्छा दबा दबा कर ,ना खरीदते कोई चीज  है
तुमने ये किफायती फंदा ,खुद के ऊपर ही है कस्सा
तुम अपना गम नहीं बताते ,जाओ ,मैं तुम पर हूँ गुस्सा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
रजनीचर्या

दिनभर काम में रह कर व्यस्त
थका हुआ मैं ,थकी हुई तुम ,
दोनों पस्त
अक्सर
जब हम लेटते है बिस्तर पर
तेरी बांह मुझको लपेट लेती है
अपने  पास समेट  लेती है
मैं तेरे सीने पर
सर रख कर
सो जाता हूँ
बड़ा सुकून पाता हूँ
जब तुम मेरे सर को थपथपाती हो
बालों में उँगलियाँ डाल ,सहलाती हो
मेरे दिल की धड़कन
हर क्षण
सुनाई देती है मधुर संगीत बन
और तुम्हारी साँसों के स्वर
मेरी साँसों से टकरा कर
देते है इतना नशा भर
कि मैं सो जाता हूँ ,
तेरी उँगलियों में ,अपनी उँगलियाँ फंसा कर
रोज रोज चलता है यही क्रम
तुम और हम
प्यार का बंधन
यही है जीवन

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
बुढ्ढों  का दम

सभी सीनियर के लिये ,बड़े गर्व की बात
राष्ट्रपति 'वाइडन 'बने ,मिली 'ट्रम्प 'को मात
मिली 'ट्रम्प' को मात ,उमर जिसकी अठहत्तर
चार साल तक राज्य करेगा ,अमेरिका पर
कह घोटू कविराय , नहीं क्या  ऐसा  लगता
बूढा हो इंसान ,बहुत कुछ पर कर सकता

पत्नी ताने मारती ,थी हम पर हर बार
 कि हम अब बूढ़े हुये ,नाकामा ,लाचार
नाकामा ,लाचार ,बचा ना अब हममें दम
अमेरिका की राष्ट्रपति ,जब बने 'वाइडन '
 अठहत्तर का बूढा अब सब  पर है हावी
समझो मैडम , बुढ्ढों में दम रहता काफी

घोटू 

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