बुढ़ापे की ग़जल
तंग मुझको लगा करने ,है बुढ़ापा आजकल
रह गया हूँ बन के मैं ,खाली लिफाफा आजकल
बाल उजले ,गाल पिचके और बदन पर झुर्रियां ,
बदला बदला ,लगा लगने ,तन का ख़ाका आजकल
रोज़मर्रा जिंदगी में ,नित नयी तकलीफ है ,
मुश्किलों में हो रहा हर दिन इजाफ़ा आजकल
चिड़चिड़ापन इस तरह से मुझपे हावी हो गया ,
छोटी छोटी बातों में ,मैं खोता आपा आजकल
अपने अपने काम में ,मशग़ूल बच्चे हो गए ,
ख्याल कोई भी नहीं ,रखता जरासा आजकल
यूं तो मुझको भूलने की बिमारी है होगयी ,
बहुत पर बीता जमाना ,याद आता आजकल
क्या पता किस रोज पक कर डाल से गिर जाऊँगा ,
डर ये मन में बना रहता,अच्छा ख़ासा ,आजकल
स्वर्ग में जा अप्सराओं संग करेंगे ऐश हम ,
देता रहता,अपने दिल को ,यह दिलासा आजकल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तंग मुझको लगा करने ,है बुढ़ापा आजकल
रह गया हूँ बन के मैं ,खाली लिफाफा आजकल
बाल उजले ,गाल पिचके और बदन पर झुर्रियां ,
बदला बदला ,लगा लगने ,तन का ख़ाका आजकल
रोज़मर्रा जिंदगी में ,नित नयी तकलीफ है ,
मुश्किलों में हो रहा हर दिन इजाफ़ा आजकल
चिड़चिड़ापन इस तरह से मुझपे हावी हो गया ,
छोटी छोटी बातों में ,मैं खोता आपा आजकल
अपने अपने काम में ,मशग़ूल बच्चे हो गए ,
ख्याल कोई भी नहीं ,रखता जरासा आजकल
यूं तो मुझको भूलने की बिमारी है होगयी ,
बहुत पर बीता जमाना ,याद आता आजकल
क्या पता किस रोज पक कर डाल से गिर जाऊँगा ,
डर ये मन में बना रहता,अच्छा ख़ासा ,आजकल
स्वर्ग में जा अप्सराओं संग करेंगे ऐश हम ,
देता रहता,अपने दिल को ,यह दिलासा आजकल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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