मैं तुमसे गुस्सा हूँ
हम है जनम जनम के साथी ,दिया बाती साथ हमारा
एक दूसरे के सुख दुःख में ,बन कर रहते ,सदा सहारा
पर तुम मन की बात छुपाते ,अपनी पीड़ा नहीं बताते
उसे बांटती ख़ुशी ख़ुशी मैं ,यदि कुछ अपनापन दिखलाते
एक जान जब कि हम तुम है ,मैं तुम्हारा ही हूँ हिस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते ,जाओ,मैं तुमसे हूँ गुस्सा
तुम करते सागर का मंथन ,मेरु जैसी मथनी बन कर
मिलते रतन ,बाँट सब देते ,खुद विष पीते ,बन शिवशंकर
सुखी और खुशहाल रहे हम ,तुम दुःख सहते ,इसीलिये हो
हमें नहीं अपराध बोध हो ,कुछ ना कहते ,इसीलिये हो
खुद पर करते सभी कटौती ,रोज रोज का है ये किस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते , जाओ मैं हूँ तुम पर गुस्सा
तुम पैदल दफ्तर जाते हो ,ताकि कुछ पैसे बच जाये
फटे वस्त्र भी पहनो ताकि ,मेरी नव साड़ी आ जाए
तुमको शौक मिठाई का पर ,ना खाते कह,डाइबिटीज है
अपनी इच्छा दबा दबा कर ,ना खरीदते कोई चीज है
तुमने ये किफायती फंदा ,खुद के ऊपर ही है कस्सा
तुम अपना गम नहीं बताते ,जाओ ,मैं तुम पर हूँ गुस्सा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हम है जनम जनम के साथी ,दिया बाती साथ हमारा
एक दूसरे के सुख दुःख में ,बन कर रहते ,सदा सहारा
पर तुम मन की बात छुपाते ,अपनी पीड़ा नहीं बताते
उसे बांटती ख़ुशी ख़ुशी मैं ,यदि कुछ अपनापन दिखलाते
एक जान जब कि हम तुम है ,मैं तुम्हारा ही हूँ हिस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते ,जाओ,मैं तुमसे हूँ गुस्सा
तुम करते सागर का मंथन ,मेरु जैसी मथनी बन कर
मिलते रतन ,बाँट सब देते ,खुद विष पीते ,बन शिवशंकर
सुखी और खुशहाल रहे हम ,तुम दुःख सहते ,इसीलिये हो
हमें नहीं अपराध बोध हो ,कुछ ना कहते ,इसीलिये हो
खुद पर करते सभी कटौती ,रोज रोज का है ये किस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते , जाओ मैं हूँ तुम पर गुस्सा
तुम पैदल दफ्तर जाते हो ,ताकि कुछ पैसे बच जाये
फटे वस्त्र भी पहनो ताकि ,मेरी नव साड़ी आ जाए
तुमको शौक मिठाई का पर ,ना खाते कह,डाइबिटीज है
अपनी इच्छा दबा दबा कर ,ना खरीदते कोई चीज है
तुमने ये किफायती फंदा ,खुद के ऊपर ही है कस्सा
तुम अपना गम नहीं बताते ,जाओ ,मैं तुम पर हूँ गुस्सा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।