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गुरुवार, 4 मार्च 2021

पक ही जाती है इश्किया खिचड़ी...


चूल्हा यहाँ पर
पतीला वहाँ पर,
फिर भी पक ही
जाती है
'इश्किया खिचड़ी',
जिससे आ जाता है
जायका ज़िन्दगी में,
और लगती है चलने
जैसे कि फिसली...

एक का चावल
दूसरे की दाल,
मुलाक़ात हो तो
तड़का कमाल...

कभी आ ही जाती है
बातों में मिर्ची,
कभी हो ही जाती हैं
नज़रें भी तिरछी...

कुछ खोजते हैं तब
तोहफ़े की लस्सी,
तो कुछ ढूंढते
आत्महत्या की रस्सी...

- विशाल चर्चित

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