चाय हो तुम
काला तन ,रस रंग गुलाबी ,
घूँट घूँट तुम स्वाद भरी
प्रातः मिलो ,लगता अम्बर से ,
आयी नाचती कोई परी
जब भी मिलती अच्छी लगती ,
थकन दूर और मिले तरी
चाय नहीं तुम ,चाह हृदय की ,
मेरे मन मंदिर उतरी
तुम्हारा चुंबन रसभीना ,
आग लगा देता मन में
स्वाद निराला ,रूप तुम्हारा ,
फुर्ती भर देता तन में
घोटू
काला तन ,रस रंग गुलाबी ,
घूँट घूँट तुम स्वाद भरी
प्रातः मिलो ,लगता अम्बर से ,
आयी नाचती कोई परी
जब भी मिलती अच्छी लगती ,
थकन दूर और मिले तरी
चाय नहीं तुम ,चाह हृदय की ,
मेरे मन मंदिर उतरी
तुम्हारा चुंबन रसभीना ,
आग लगा देता मन में
स्वाद निराला ,रूप तुम्हारा ,
फुर्ती भर देता तन में
घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।