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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

चाय हो तुम

काला तन ,रस रंग गुलाबी ,
घूँट घूँट तुम स्वाद  भरी
प्रातः मिलो ,लगता अम्बर से ,
आयी नाचती कोई परी
जब भी मिलती अच्छी लगती ,
थकन दूर और मिले तरी
चाय नहीं तुम ,चाह हृदय की ,
मेरे मन मंदिर उतरी
तुम्हारा चुंबन रसभीना ,
आग लगा देता मन में
स्वाद निराला ,रूप तुम्हारा ,
फुर्ती भर देता तन में

घोटू 

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