मैं बहुत पिटा हूँ
बहुत खायी है मार वक़्त की , फिर भी हंसकर जीता हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ ,मैं बहुत पिटा हूँ
पाठ नहीं पढता स्कूल में ,करता था अति शैतानी
मास्टर साहब,पीटते छड़ीसे ,पड़ती मार मुझे खानी
घर में छोटे भाई बहन संग ,छेड़छाड़ करता झगड़ा
हुई शिकायत बाबूजी का ,पड़ता था झापट तगड़ा
यार दोस्तों संग झगड़ों में ,बहुत गया मारा पीटा हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ ,मैं बहुत पिटा हूँ
उमर बड़ी ,कॉलेज गया मैं ,रंग जवानी का छाया
लड़की के संग ,छेड़छाड़ की ,बहुत उन्होंने पिटवाया
सुन्दर ,कोमल कामनियाँ ,मैं जिन्हे चाहता था दिल से
मेरा मजनू पना उतारा ,उनने चप्पल सेंडिल से
फिर भी उन हसीन चेहरों पर ,मरा मिटा हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ मैं बहुत पिटा हूँ
,
फंसा गृहस्थी चक्कर में फिर ,मैं कोल्हू का बैल बना
पिटना और पटाते रहना ,मेरा हर दिन खेल बना
रोज रोज बच्चों की मांगे पत्नीजी की फरमाइश
तो फिर मेरे ना पिटने की ,कैसे रहती गुंजाइश
मैं शतरंजी ,पिटा पियादा ,खाली जेबें , रीता हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ मैं बहुत पिटा हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बहुत खायी है मार वक़्त की , फिर भी हंसकर जीता हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ ,मैं बहुत पिटा हूँ
पाठ नहीं पढता स्कूल में ,करता था अति शैतानी
मास्टर साहब,पीटते छड़ीसे ,पड़ती मार मुझे खानी
घर में छोटे भाई बहन संग ,छेड़छाड़ करता झगड़ा
हुई शिकायत बाबूजी का ,पड़ता था झापट तगड़ा
यार दोस्तों संग झगड़ों में ,बहुत गया मारा पीटा हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ ,मैं बहुत पिटा हूँ
उमर बड़ी ,कॉलेज गया मैं ,रंग जवानी का छाया
लड़की के संग ,छेड़छाड़ की ,बहुत उन्होंने पिटवाया
सुन्दर ,कोमल कामनियाँ ,मैं जिन्हे चाहता था दिल से
मेरा मजनू पना उतारा ,उनने चप्पल सेंडिल से
फिर भी उन हसीन चेहरों पर ,मरा मिटा हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ मैं बहुत पिटा हूँ
,
फंसा गृहस्थी चक्कर में फिर ,मैं कोल्हू का बैल बना
पिटना और पटाते रहना ,मेरा हर दिन खेल बना
रोज रोज बच्चों की मांगे पत्नीजी की फरमाइश
तो फिर मेरे ना पिटने की ,कैसे रहती गुंजाइश
मैं शतरंजी ,पिटा पियादा ,खाली जेबें , रीता हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ मैं बहुत पिटा हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।