एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

सोमवार, 22 मार्च 2021

चलो एक बार फिर से

हमारी और तुम्हारी अब ,निभे ना संग रह रह कर
परेशां हो गए हम रोज के झगड़ों को सह सह कर
बन गयी जिंदगी जिल्लत है ,इससे होगा ये बेहतर
अहम की तुष्टि करने ,यूं नहीं टकराये हम दोनों
चलो एक बार फिरसे अजनबी बन जाए हम दोनों

भुलादें ये कभी बेइंतहां  हम प्यार करते थे      
दीवाने और पागल थे,एक दूजे पे मरते थे
सात जन्मो के साथी हम ,हमेशा दम ये भरते थे
पुराने कसमें और वादे ,सभी बिसरायें हम दोनों
चलो एक बार फिर से अजनबी ,बन जाएँ हम दोनों

जमाना था ,हमारी और तुम्हारी ,एक थी चाहें
नहीं रखता था कोई भी ,किसी से कुछ अपेक्षाएं
मगर लगने लगा ऐसा ,जुदा  अपनी है अब राहें
उलझ रिश्ते गए उनको , मिलें , सुलझायें हम दोनों
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों

चलोअनजान बन कर फिर लड़ाये ,प्यार से नज़रें
सिलसिला प्यार का चालू ,नया करदें हो बेसबरे
दिवाना बन उठाऊं मैं ,तुम्हारे नाज़ और नखरे
पुराने प्यार में फिर ताज़गी भर लाएं हम दोनों
चलो एक बार फिरसे अजनबी बन जाएँ हम दोनों

प्यार की भड़के चिंगारी ,जगे दिल में ,मोहब्बत फिर
उजड़ते प्यार के गुलशन में आये प्यारी रंगत फ
महक जाए पुरानी  जिंदगी ,बन जाए जन्नत फिर
जवानी की हसीं यादें ,फिर से दोहराएं हम दोनों
चलो एक बार फिर से अजनबी ,बन जाएँ हम दोनों

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-