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बुधवार, 20 अप्रैल 2016

शादी के बाद-चार चित्र

  शादी के बाद-चार चित्र 

शादी के बाद ,
प्यार का आहार  पाकर
जब काया छरहरी
होती है हरी भरी
फूलती फलती है
तो ,तब बड़ी अखरती है
जब सगाई की अंगूठी ,
ऊँगली में आने से ,इंकार करती है

शादी के पहले ,
स्वच्छ्न्द उड़ने वाले पंछी,
शादी के बाद ,जब बनाते है घोंसले
तो जिम्मेदारी के बोझ से ,
पस्त  हो जाते है  उनके होंसले
वो भूल जाते है सारे चोंचले

एक नाजुक सी दुल्हन
जब अपने फूलों से कोमल हाथों से ,
 सानती  है आटा ,
या मांजती है बरतन
अपना सारा हुस्न और नज़ाकत भूल ,
बन जाती है पूरी गृहस्थन

गरम गरम तवे पर  ,
 रोटी सेकते सेकते,
जब गलती से ,नाजुक उँगलियाँ,
तवे से चिपक जाती है
तो मम्मीजी की ,बड़ी याद आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 17 अप्रैल 2016

पकोड़ी पुराण

                      पकोड़ी पुराण               

सीधासादा बेसन घोलो ,डाल मसाला,झट से तल लो
बारिश के भीगे मौसम में ,इसका स्वाद,आप जी भर लो
दादी,नानी पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी युग था  
गरम गरम सबके मनभाती ,खाने का अपना ही सुख था
कालांतर में वही पकोड़ी ,पकी कढ़ी संग,स्वाद बढ़ाया
और दही में ,जब वो डूबी ,दहीबड़ा बन कर  ललचाया
पालक,गोभी ,आलू ,बेंगन ,सब संग मिलजुल स्वाद निखारा
हुआ समय संग,युग परिवर्तन,अब बर्गर का युग है प्यारा 
वडापाव बन यही पकोड़ी ,बड़ी हुई,पहुंची घर घर में
मेदुवडा रूप धारण कर ,डूबी रही ,स्वाद सांभर में
भजिया कहीं,बड़ा या पेटिस ,नाम अलग पर स्वाद प्रमुख था
दादी,नानी,पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी  युग था
युग बदला तो नव पीढ़ी ने इसको नए रूप में ढाला
दिया तिकोना रूप ,मसाला भर कर,बना समोसा प्यारा
चली पश्चिमी हवा ,पकोड़ी ,बन 'कटलेट'बड़ी इतराई
  दुनिया भर में ,नए रूप धर ,इसने थी पहचान बनाई
दिल्ली में थी आलू टिक्की ,अमेरिका में बन कर 'बर्गर'
'स्प्रिंगरोल' चीन में है तो,अरब देश में बनी 'फलाफल'   
जिसने देखा,वो ललचाया ,खाने इसे हुआ उन्मुख था
दादी,नानी,पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी युग था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वरदान

वरदान

एक आधुनिका कन्या ने ,
किताबों में ये पढ़ पढ़ कर
सच्चे मन से आराधना करने पर
भगवान दे देतें है अच्छा वर
तो दूर करने अच्छा पति पाने की समस्या
वह सच्चे मन से करने लगी ,
भगवान  की तपस्या
और एक दिन ,तपस्या से होकर प्रसन्न
अचानक प्रकट हो गए भगवन
और बोले 'वत्से ,वर मांग
किस से भरवाना चाहेगी ,
तू अपनी सूनी मांग
बोल,क्या तुझे राम सा पति चाहिए
कन्या बोली 'प्रभु,थोड़ा रुक जाइये
एक आदमी जो पिता का हो इतना आज्ञाकारी
कि त्याग दे ,हाथ में आया राजपाट ,
और दौलत सारी
और चौदह वर्षों तक जंगलों में रहे भटकता
आज के जमाने में ,
बिलकुल भी प्रेक्टिकल नहीं लगता
लोगों की बातों में आकर ,
अपनी 'इमेज'बनाने के लिए ,
'प्रेग्नेंट'बीबी का करदे त्याग
मै ,कदाचित भी नहीं भरवाना चाहूंगी,
ऐसे पति से अपनी मांग
और फिर आज के जमाने में,
तीन तीन सासों को झेलना ,
नहीं है मेरे बस की बात
प्रभु ,ये वरदान नहीं ,ये तो होगा श्राप
भगवान बोले ठीक है ,
चल तुझे दे देता हूँ कृष्ण सा जीवन साथी
कन्या बोली  घबराती
बोली नहीं नहीं प्रभू,ये भी 'टू मच' है
कृष्ण ,अच्छी 'पर्सनलिटी 'के,
 स्वामी है ,ये सच है
सोलह कलाओं के थे अवतार
पर ऐसा पति भी नहीं है मुझको स्वीकार
युद्ध मे जहां भी जाए ,जीत  कर आये
पर एक नयी पत्नी भी ,साथ में ले आये
मै ,ऐसे व्यक्ति को ,
नहीं बनाना चाहती अपना पिया
जिसकी हो सोलह हजार एक सौ आठ रानियां
मुझे अपने पति पर एकाधिकार चाहिए
खुद के लिए ,ढेर सारा प्यार चाहिए
'प्लेबॉय'वाली इमेज वाला वर
मुझे बिलकुल भी न चाहिए ईश्वर
भगवान बोले चल तुझे ,
विष्णु जैसा पति दिलवा दूँ
कन्या बोली 'नहीं नहीं नहीं प्रभु
मैं नहीं चाहती ,मेरा पति हमेशा ,
शेषशैया पर सोता नज़र आये
और हरदम मुझसे अपने पैर दबवाए
और अचानक बिना कहे सुने ,
अपने किसी भगत गज को ,
ग्राह् से बचाने निकल जाए ,
या दो दलों की लड़ाई में ,
अपने दल को अमृत बांटने ,
औरत का रूप बनाए
वो 'पुरुष पुरातन 'है ,
याने मेरे लिए 'टू ओल्ड' है
प्रभु भी समझ गए ,
ये कन्या बड़ी 'बोल्ड' है
बोले चल तुझे दे देता हूँ ,
ऐसा पति ,जो भोला भंडारी हो ,
जैसे शिव शंकर
नृत्य करने में नटवर
नाचेगा तेरे इशारों पर
तुम दोनों रहना अकेले ,
कैलाश पर्वत के 'हिलस्टेशन'पर
कन्या बोली 'प्रभु ,पर सुना है ,
उनका बड़ा हॉट है टेम्परामेंट'
मुझे नहीं चाहए ऐसा हसबैंड
उनका  'ड्रेस सेन्स ',
मुझे बिलकुल नहीं सुहाता है
जो अपने गले में सांप लटकाता है
ऐसा पति मै कभी भी न चाहूँ
जिसे मै बाहुपाश लेने में भी घबराऊँ 
भगवान ,कन्या के तर्कों से हो गए परेशान
बोले चल तू ही बता ,
कैसे वर का करूँ ,तेरे लिए इंतजाम
कन्या ने कहा प्रभु मुझे देवता नहीं,
आम आदमी से शादी करनी है
जिसके साथ ये पूरी जिंदगी गुजरनी है
ऐसा पति जो सीधासादा पर 'स्मार्ट'हो
जिसे  पत्नी को खुश रखने का आता आर्ट हो
इतना पैसा हो कि मौके बेमौके पत्नी को ,
गोल्ड या डायमंड का सेट दिलवाता रहे
हफ्ते में दो तीन बार ,होटल में खिलवाता रहे
हंसमुख हो ,चंचल हो
'प्लेबॉय'नहींहो ,पर सोशल हो
साल में एक दो बार ,
करवा दे मुझे फॉरेन टूर
कभी  एक दो पेग ले ले ,चलेगा,
पर हो व्यसन से दूर
तबियत का रंगीन हो
म्यूजिक और सिनेमा का शौक़ीन हो
कुकिंग जिसकी हॉबी हो
मुझ पर ना हाबी हो
मेरे इशारों पर चले ,मेरी हर बात माने
पत्नी की पूजा करे ,उसे परमेश्वर माने
कन्या कर  रही थी ,अपने होने वाले ,
पति में पाये जानेवाले गुणों का बखान
भगवान बोले रुक रुक ,बड़ा मुश्किल है ,
तेरे ' रिक्वायरमेंट ' का बन्दा ढूंढ पाना
आजकल बंद है ऐसा प्रोडक्ट बनाना
फिर भी कोशिश करता हूँ ,
अगर हो जाए इंतजाम
और फिर झट से प्रभुजी हो गए अंतर्ध्यान

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन का स्वाद

जीवन का स्वाद

ना करी छेड़खानी कोई
ना हरकत तूफानी कोई
ना अपनी कुछ मनमानी की
और ना कोई नादानी की
ना इधर उधर ताका,झाँका
ना भिड़ा ,कहीं कोई टाँका
ना करी शरारत कोई से
ना करी मोहब्ब्त कोई से
कोई  पीछे ना भागे  तुम
सचमुच ही रहे अभागे तुम
तुममे उन्माद नहीं आया
जीवन का स्वाद नहीं आया
बस रहे यूं ही फीके फीके
दुनियादारी कुछ ना सीखे
तुमने है जीवन व्यर्थ जिया
बस अपना ही नुक्सान किया
तुमने निज काट दिया यौवन
बस रहे किताबी कीड़े बन
क्योंकि वो ही थी एक उमर
 'एन्जॉय'जिसे करते जी भर
पर तुमने व्यर्थ गंवा डाली
और पैरों में बेड़ी डाली
शादी करके परतंत्र हुए
पत्नीजी से आक्रांत हुए
जिंदगी अब यूं ही बितानी है
अब करना सदा गुलामी है
तिल तिल कर यूं ही घिसना है
दिन रात कामकर पिसना है
जो उमर थी मौज बहारों की
उच्श्रृंखलता की,यारों की
वैसे ही बीत जायेगी अब
चिड़िया चुग खेत जायेगी सब
क्या होगा अब पछताने से
बीते दिन ,लौट न आने के
जीवन का अब यूं कटे सफर
चूं चरर मरर ,चूं चरर मरर  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उनकी ख़ुशी-मेरा सुख

  उनकी ख़ुशी-मेरा सुख

कई बार ,
अपनी पत्नी के साथ ,
जब मै ,ताश खेलता हूँ ,
या कोई शर्त लगाता हूँ
तो जीती हुई बाजी भी,
जानबूझ कर हार जाता हूँ
क्योंकि जीतने पर मुझे ,
वो सुख नहीं मिलता है
जो  कि  मुझे तब मिलता है ,
जब  मुझे हरा कर ,
उनका चेहरा ख़ुशी से खिलता है
कई बार ,
मै जानबूझ कर गलतियां करता हूँ ,
क्योंकि उन्हें सुधार कर ,
उनके चेहरे पर ,
जो प्रसन्नता के भाव आते है
मुझे बहुत लुभाते है
कोई काम के लिए ,
जब वह मेरे  पीछे पड़ती है,
मनुहार करती  है
तो थोड़ी देर ना ना करने के बाद ,
जब मै हामी भरता हूँ
तो उनके चेहरे पर जो आती है ,
जीत भरी मुस्कान
जी चाहता है हो जाऊं कुर्बान
कई छोटी छोटी बातों के लिए ,
भले ही सिर्फ दिखाने के लिए ,
मै जब सहायता का हाथ बढ़ाता हूँ ,
उनके चेहरे की ख़ुशी देख,
अत्यन्त सुख पाता हूँ
ये छोटी छोटी बातें ,
जीवन के आनन्द को,
 चौगुना कर  देती है
रोजमर्रा की जिंदगी को,
खुशियों से भर देती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


बुधवार, 13 अप्रैल 2016

कोई मेरी बीबी से सीखे

कोई मेरी बीबी से सीखे

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बचे साबुन को नए से चिपका कर,

दो साबुनों की खुशबुओं का मजा उठाना

टूटी हुई झाड़ू की सूखी डंडियों से

घर के फ्लावर पोट को सजाना

रात की बची हुई खिचड़ी से

सुबह स्वादिष्ट कटलेट बनाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

घर और कपड़ो की सफाई के साथ

मेरे पर्स की भी सफाई करना

मुझ जैसे शेर पति को डरा कर

खुद एक काक्रोच से डरना

रोंग नंबर के फोन काल पर भी

घंटों तक लम्बी बातचीत करना

कोई मेरी बीबी से सीखे

पुरानी साडी को काट कर

पर्दा या पेटीकोट बनाना

सेल के चक्कर में,जरुरत से चौगुना

सामान खरीद कर के ले आना

मीठी मीठी बातें बना कर के

मेरी पॉकेट को ढीली करवाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

टीवी पर सीरियल के साथ साथ

क्रिकेट की कमेंट्री सुनना

पुराने स्वेटर को उधेड़ कर

नए डिजाईन में बुनना

मेरे पड़ोसिन की तारीफ करने पर

इर्षा से जलना ,भुनना

कोई मेरी बीबी से सीखे

रात को दूध का गिलास पिला कर

मेरी भूख को बढ़ाना

ठंडी ठंडी सी साँसे भर कर

मेरे दिल को जलाना

व्रत और पूजा आराधन करके

मेरे जैसा पति पाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

घोटूजी के भी अच्छे दिन आने वाले है

     घोटूजी के भी अच्छे दिन आने वाले है

कल हमसे हमारे एक दोस्त मिले
और बोले 'घोटूजी,आप दिख रहे हो कुछ पिलपिले
आपका तो टावर वन है
वो तो रेस्टोरेंट वालों का 'जंकशन'है
'सिनेमन किचन' है 
चल रहा नंबर वन है
'मिस्ट्री ऑफ़ फ़ूड' है
खाना भी 'टू गुड'है
'येलो चिलीज ' है
गजब की चीज है
सुना है'वी ,दी फूडिज 'भी आरहा है
अभी से ललचा रहा है
और खुलनेवाला 'पंजाबी तड़का'है
अभी से रहा भूख भड़का है
टावर टू वालों का 'देशी वाइब्स 'भी मजेदार है
कहते है खाना और सजावट दोनों जोरदार है
इसके बावजूद भी आपका ये हाल है
हो रही पतली दाल है
घोटू बोले यार ये सब तो बड़े बड़े नाम है
ऊंची दूकान है और मंहंगे दाम है
कोई भूले से भी 'इनवाइट ' नहीं करता है
घर की रोटी से ही पेट भरना पड़ता है
मोदीजी कहते है अच्छे दिन आएंगे
देखते है ये कब खाने पर बुलाएंगे
और अगर किस्मत ज्यादा ही जोर मारे
हो सकता है ये हमे ,
अपना 'ब्रांड अम्बेसेडर' ही बनाले

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

ढलती उमर -पत्नीजी की दो सलाहें

ढलती उमर -पत्नीजी की दो सलाहें 

साजन
सूरज जब ढलने वाला होता है ,
आशिक़ मिजाज हो जाता है
अपनी माशूकाएं बदलियों पर ,
अपनी दरियादिली दिखलाता है
किसी को सुनहरी चूनर से सजाता है
किसी को स्वर्णिम 'नेकलेस' पहनाता है
प्रियतम ,
अब तुम्हारी भी उमर ढल रही है
तुम भी ढलते सूरज की तरह ,
आशिकमिजाज बन जाओ
अपनी दरियादिली दिखलाओ
मै ,तुम्हारी बदली ,
अब तक ना बदली ,
अब तो तुम भी मुझे ,
स्वर्णखचित वस्त्रों से सजाओ
मेरे लिए एक अच्छा सा ,
सोने का 'नेकलेस 'ले आओ 

प्रियतम ,
क्यों परेशान हो रहे हो तुम
अगर तुम्हारे तन में ,
बढ़ रही है 'शुगर'
तो ये क्यों भूलजाते हो ,
कि तुम्हारी बढ़ रही है उमर
अब तुम पक रहे हो
और जिस तरह पके हुए फलों में ,
आ जाता है मिठास
उसी तरह तुम्हारे जीवन में भी ,
मधुरता आ रही है ख़ास
और तुम व्यर्थ ही हो रहे हो उदास
जीवन में भर कर उल्लास
सब में बाटों अपनी मिठास
सबसे लगा लो नेह
अपने आप भाग जाएगा आपका मधुमेह


मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

रविवार, 10 अप्रैल 2016

जमना जमाना

    जमना जमाना

जमना,जम जाना या फिर जमा कराना
या मौका  पड़ने  पर कोई को अजमाना
 कई तरह  का ,हमने देखा यहाँ  जमाना
सभी चाहते ,अपना अपना रंग जमाना
 कोई जमाता है पानी को बर्फ    बनाता
कोई दूध को जावन देकर ,दही  जमाता
कोई दूध जमा कर  आइसक्रीम  बनाते
ले लेकर के मज़ा,प्यार से उसको खाते
पैसे कमा ,जमा कुछ मालामाल हो गए
पूँजी ,जमा लुटा दी ,कुछ कंगाल हो गए
सर्दी में लोगों की कुल्फी जम जाती है
सच्ची बातें होती,मन को जम जाती है
वो जब सजती धजती है ,काफी जमती है
उनकी और हमारी जोड़ी भी जमती है
वो जब महफ़िल में आये,तो  रंग  जमाया
पहले जम कर जाम पिए फिर जम कर खाया 
उनने  जम कर रिश्व्त खाई,बन कर नेता
आज जमाना ,उनको जमकर गाली देता
जमा करोड़ों,स्विस बैंकों में ,उनके खाते
बाहुबली  है ,सब पर अपनी धौंस जमाते
पाली पोसी ,सुंदर बेटी ,जमी जमाई
जिनके साथ ,ब्याहते  हम ,वो बने जमाई
और दहेज में संग देते है ,जमा किया धन
 जम कर उनकी ,आवाभगत करे हम हरदम
दुनिया भर के टैक्स जमा पड़ते है  करना
चूक हुई  ,तो पड़ता है  अंजाम  भुगतना
पीना जाम ,जीमना,जम कर मौज मनाना
क्या बतलाएं ,कैसा आया ,आज  जमाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सांसें बहुएं एक सरीखी

            सांसें बहुएं एक सरीखी

औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी  सासें    एक सरीखी, सारी  बहुएं   एक  सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर  मिरची  होती है तीखी
सारी सांसें  एक सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
माँ  सोचे  बेटा बेगाना  हुआ , हुई  शादी  उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के   आंचल  से
 ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
 सारी  सांसें एक सरीखी,सारी   बहुएं  एक सरीखी
चाहे सास ,इजाजत के बिन,उसकी हिले न कोई पत्ता
बहू चाहे ,हो जाए रिटायर ,सास ,सौंप कर घर की सत्ता
बंद हो जाए टोका टाकी , ताने देना ,  बातें  तीखी
सारी  सांसें  एक सरीखी , सारी बहुएं एक सरीखी
उसको,खुद को,नहीं बहू की ,जो जो बातें कभी सुहाती
उल्टा सीधा पाठ पढ़ा कर ,बेटी को  वो ही सिखलाती 
इस चक्कर में ,दोनों रहती,इक दूजे से कटी कटी सी
सारी  सांसें एक सरीखी  ,सारी  बहुएँ   एक  सरीखी
 वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
'स्पिन'और' फास्ट' थी बॉलिंग,फिर भी है मैदान पर टिकी
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
बहू दूध है  ताज़ा ताज़ा ,सास  पुराना  जमा  दही  है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे  पति की
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक सरीखी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

लेन देन

लेन देन

मैंने उनसे माँगा कुछ दो
वो बोली,मै क्या,तुम कुछ दो
मैंने कुछ ऐसा दे डाला
उनको लगा बहुत जो प्यारा
वो भी देती ,वैसा होता
बिलकुल मेरे जैसा होता
हुआ प्रफुल्लित दोनों का मन
मैंने उन्हें दिया था ...... ?

घोटू

तो कहो क्या बात है

             तो कहो क्या बात है

चाय तक की भी कभी ना ,पूछता कंजूस जो,
        घर बुला,बोतल भी  ही खोले ,तो कहो  क्या बात है 
कोई महिला रूपसी ,मुस्काये,तुमको लिफ्ट दे,
           और अंकल भी न बोले , तो  कहो क्या बात  है
करने को भगवान का दर्शन जो मंदिर जाओ तुम,
            खाने  भंडारा मिले जो , तो कहो  क्या बात है
भाग्य से बिल्ली के इसको कहते छींका टूटना,
            रहे चलते सिलसिले जो, तो कहो क्या बात है
पहने वो मलमल का कुरता ,और वो भी हो सफेद ,
            पानी में हो तरबतर जो ,तो कहो क्या बात है
इसको कहते, देता देने वाला छप्पर फाड़ के
       मुंह में फिर तो घी और शक्कर ,तो कहो क्या बात है  

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'
         

 

यही अंजाम होता है

     यही अंजाम होता है

अगर शादी करो तुम तो ,यही अंजाम होता है
तुम्हारी बीबी के पीछे ,तुम्हारा  नाम होता है
प्रबल है बल नहीं होता,प्रबल स्थान होता है
गाँव की चीज ,मालों में ,चौगुना दाम होता है
सामने तारीफें करके ,किसीके चाटना तलवे,
बुराई पीठ  के पीछे , बुरा  ये  काम  होता  है
जहां पर आस्था होती,वहां शांति बरसती है ,
जहाँ पर राम ना होते, वहां कोहराम होता है
प्रेम से गाल तुम्हारे ,सिरफ सहलाती बीबी है ,
दूसरा जो ये कर सकता  ,वो हज्जाम होता है

घोटू 
 बदकिस्मती

मेरी बदकिस्मती की इंतहां अब और क्या होगी ,
       कि जब भी 'केच' लपका ,'बाल' वो 'नो बाल 'ही निकली
ख़रीदे टिकिट कितने ही ,बड़ी आशा लगा कर के,
          हमारी  लॉटरी  लेकिन ,नहीं  एक  बार ही  निकली
हमेशा जिंदगी में एक ऐसा दौर आता है ,
            हमे  मालूम  पड़ता जब कि क्या होती है बदहाली
सिखाता वो रहा हमको ,कि कैसे जीते मुश्किल में ,
               और हम व्यर्थ में  उसको ,यूं  ही  देते  रहे गाली
  
 घोटू
                      

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

गूगल पर सब कुछ मिल जाता

       गूगल पर सब कुछ मिल जाता

गूगल पर सब कुछ मिल जाता ,बस माँ बाप नहीं मिलते है
 आशीषों  की  वर्षा  करते  ,     बस वो हाथ नहीं   मिलते है
जानकारियां दुनिया भर की ,बटन दबाते, मिल जाती है
'गूगल अर्थ 'खोल कर देखो ,सारी  दुनिया  दिख जाती है
खोल 'फेसबुक',यार दोस्त से ,जितनी चाहो,बातें करलो
और 'ट्विटर' पर ,मन की बातें ,सारी कह,जी हल्का करलो
शादी का 'पोर्टल' खोलो तो ,ढूढ़ सकोगे  दूल्हा, दुल्हन
'स्काइप' पर ,साथ बात के ,कर सकते हो,उनका दर्शन
घर बैठे ही,दुनिया भर की ,शॉपिंग करना अब मुमकिन है
 जिसको चाहो,लाइन मारो ,सब कुछ यहाँ 'ऑन लाइन' है
पर दिल का अंदरूनी रिश्ता ,और जज्बात नहीं मिलते है
गूगल पर सब कुछ मिल जाता ,बस माँ बाप नहीं मिलते है
अब 'ई मेल' लिखी  जाती है ,प्रेम पत्र कर गए पलायन
दुनिया भर की ,हर घटना का ,होता है 'लाइव' प्रसारण
टिकिट सिनेमा,रेल,प्लेन के ,बुक हो जाते ,सभी यहाँ है
'जी पी एस' बता देता है ,मौजूद बन्दा ,कौन , कहाँ  है  
'व्हाट्स ऐप' पर,अपने ग्रुप की, सारी बातें ,करलो शेयर
अपने फोटो ,सेल्फी भेजो, बस लगता है ,केवल  पलभर
हर पेपर की,हर चैनल की,सारी  खबरें ,मिल जाती है
'लाइव क्रिकेट ''मैच देख कर,सबकी तबीयत खिल जाती है  
हो जाता  दीदार  आपका ,लेकिन  आप  नहीं  मिलते है
गूगल पर सबकुछ मिल जाता,बीएस माँ बाप ,नहीं मिलते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

सब नंगें है

      सब नंगें है

कपड़े उतारते है हम या तो  हमाम मे
खुद का जिसम निहारते ,शीशे के सामने
या फिर सताया करता जब गर्मी का मौसम
तब सुहाते है ,जिस्म पे ,कपड़े भी कम से कम
या मिलते है जब प्रेमी और होती मिलन की रात
कपड़े अगर हो दरमियाँ ,बनती नहीं है बात
लेकिन है अब माहौल कुछ  ऐसा बदल गया
कपड़े उतारने का एक फैशन सा चल गया
कुछ बाबाओं के गंदे जो धंधे थे ,खुल गए
कहते है लोग ,उनके सब कपड़े उतर गए
कुछ लोग नंगे हो रहे ,जात ओ धरम नाम
कुछ मिडिया भी कररहा है इस तरह का काम
फैशन के नए ट्रेंड ने भी कुछ कपड़े है  उतारे
कुछ कपड़े यूं ही उतरे , है  मंहगाई के मारे
नंगई  इस तरह से है सब और  बढ़ रही
सड़कों पे औरतों की है अस्मत उघड रही
आतंक ,लूट मार और  दंगे  है हो  रहे
दुनिया के इस हमाम मे ,सब नंगे हो रहे
 
घोटू

मेरी माँ

मेरी माँ

ये  मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
मुझ से प्यार करती है ,मुझ पे मेहरबाँ है
उमर नब्बे के पार है
थोड़ी कमजोर और लाचार है
फिर भी हर काम करने को  तैयार है
कृषकाय शरीर में नहीं दम है
मगर हौंसले कहीं से भी नहीं कम है
घर में जब भी हरी सब्जी जैसे ,
मैथी,पालक या बथुआ आता है
वो खुश हो जाती है क्योंकि ,
उसे करने को कुछ काम मिल जाता है
वो एक एक पत्ता छांट छांट कर सुधारती है
मटर की फलियों से दाने निकालती है
ये सब करके उसे मिलता है संतोष
उसमे आ जाता है वही पुराना जोश 
हर काम करने के लिए आगे बढ़ती है
मना करो तो लड़ती है
जब हम कहते है कि अब आप की ,
ये सब काम करने की उमर नहीं है माता
तो वो कहती है कि कहने में क्या है जाता
काम करने की जिद कर  ,करती परेशाँ है
        ये मेरी  माँ है ,प्यारी सी माँ है                 
जब भी कोई मेहमान आता है
उसे बहुत सुहाता है
उनकी बातों में पूरी दिलचस्पी लेती है
बीच बीच में अपनी राय भी देती है
बहन,बेटियां या बहुए जब सामने पड़ती है
ये उनका ऊपर से नीचे तक निरीक्षण करती है
और अगर उनके हाथों में नहीं होती चूड़ियां
या पावों में न हो बिछूडियां
या फिर नहीं हो बिंदिया माथे पर
तो फिर ये लेती है उनकी खबर
उसे शुरू से ही छुवाछूत ,
व जातपात का बड़ा ख्याल है
इसलिए आज के जमाने में ,
इस मामले में उसका बुरा हाल है 
हालांकि समय के साथ साथ ,
उसे थोड़ा कम्प्रोमाइज करना पड़ा है 
और  उसका परहेज कड़ा है
  फिर भी दुखी रहती ख्वामखां   है
        ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है                       
रह रह के नींद आती है
बार बार उचट जाती है
जग जाती तो गीता या रामायण पढ़ती है
और पढ़ते पढ़ते फिर सोने लगती है
 खुद ही करती है अपने सब काम
आत्मविश्वास और स्वाभिमान
ये है उसकी पहचान
कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया
सब के लिए ,सब कुछ ,
सच्चे दिल से लुटाया
न पक्षपात है न बैरभाव है
सबके लिए मन में समभाव है
त्योंहार मनाने का चाव है
कब क्या पूजा करना व चढ़ाना
किस दिन क्या खाना बनाना
विधिविधान सी मनाती है हर त्योंहार
रीतिरिवाजों का उसके पास है भण्डार
यूं तो बुढ़ापे में कमजोर हो गई है याददास्त
पर अब भी याद है पुरानी सब बात
सुबह सूर्य को अर्घ्य देना,
या तुलसी को पानी चढ़ाना
शाम  और सवेरे ,
मंदिर में दीपक जलाना
पूजाघर में  चढ़ाना प्रसाद
खाने के पहले निकालना गौग्रास
बुढ़ापे में यही उसकी पूजा है
ये मेरी माँ है,प्यारी सी माँ है  
भूख कम लगती है
फिर भी खाने की कोशिश करती है
थाली में सब चीजें पुरुसवाती है
मगर खा नहीं पाती है
दांत बहुत कम रह गए है
 इसलिए चबा नहीं पाती है 
बहुत  पीछे पड़ने पर ,
थोड़ा बहुत निगल लेती है
रोटी के टुकड़ों को,
 कटोरी के नीचे छुपा देती है
और एक मासूम सी ,
मजबूरी भरी मुस्कान लिए ,
सारा खाना जूठा छोड़ देती है
और फिर  रौब  से कहती है ,
जितनी भूख है उतना खा पी रही हूँ
नहीं तो बिना खाये पीये ,
क्या ऐसे ही जी रही हूँ
सुबह और शाम उसकी
 स्पेशियल चाय बनती है  
एक कप में तीन चीनी चम्मच डलती है
इतनी है स्वाद की मारी
जरासा नमक या मिर्च कम हो
तो रिजेक्ट है चीजें सारी
जब एकादशी का व्रत करती है
तो फिर उसे बिलकुल भी भूख ना लगती है
वो सब पर ममता बरसाती है
अपना प्यार लुटाती है
उसने भगवान से अपने लिए कुछ नहीं माँगा
जो भी माँगा ,परिवार की ख़ुशी के लिए माँगा
वो सब पर अपना प्यार बांटती है 
नाराज होती है तो डाटती है
खुश होकर जब मुस्काती है
अपने स्वर्णदंत चमकाती है
उसके सब बच्चे ,अपने अपने घर सुखी है ,
इसलिए हमेशा उसकी आँखों  में संतोष झलका है
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

अच्छे दिनों का संकेत

        अच्छे दिनों का संकेत

निकल कर के बिलों से सांप जो ये फनफनाते है
हमे बदलाव के लक्षण ,नज़र स्पष्ठ    आते  है

बिलों में छुपने वालों में ,संपोले ,नाग कितने है,
   बड़ा मुश्किल हुआ करता ,इन्हे पहचान यूं पाना
जरूरी इसलिए ये था ,निकाले जाय ये बिल से ,
    बिलों में जब भरा पानी ,पड़ा इनको निकल आना
निकल आये है ये विषधर ,बिलों से अपने जब बाहर ,
    कोई ना कोई लाठी तो ,कुचल  ही देगी ,इनका फन
हुई जमुना थी जहरीली ,जहाँ पर वास था इनका,
     कोई कान्हा फनों पर चढ़,करेगा कालिया मर्दन
जो तक्षक ,स्वांग रक्षक का ,धरे भक्षक बने सब थे ,
      परीक्षित को न डस पाएंगे ,ले कोशिश कितनी कर
बिलों में जो दबा कर के ,रखी थी नाग मणियां सब ,
      निकलते ही सब निकलेगी ,सबर रखना पड़ेगा पर
किसीने दक्षिणा इतनी ,दिला दी नारदो  को है  ,
       उन्ही का कर  रहे कीर्तन,उन्ही के गीत गाते है
उन्ही की शह पे फुँफकारा ,किया करते संपोले कुछ,
       है बूढ़े नाग चुप बैठे  ,समझ अपनी दिखाते है
तुम्हे क्या ये नहीं लगता ,बदलने वाला है मौसम ,
      घटाएं  आसमां में छा रही थी ,हट रही  सब है
उजाले की किरण ,रोशन हमारा नाम है करती,
       हमे विश्वास अच्छे दिन ,शीघ्र ही आ रहे  अब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
         

पत्नियां -पांच चतुष्पदियां

     पत्नियां -पांच चतुष्पदियां
                      १
नहीं समझो कभी इनको ,कि ये जंजाल जी का है
है इनका स्वाद मतवाला ,चटपटा और तीखा है
पचहत्तर वर्षों में मैंने , तजुर्बा  ये  ही  सीखा है
प्यार से ग़र जो खाओगे ,ये हलवा देशी घी का है
                     २
न सुनना बात   बीबी  की ,बड़ी  ये  भूल होती है
सिखाती तुमको अनुशासन ,ये वो स्कूल होती है  
कभी भी सोचना मत ये ,चरण की धूल  होती है
समझना डाट उसकी भी ,बरसता फूल होती है 
                         ३
 अगर तुमसे वो कुछ बोले ,उसे आदेश समझो तुम    
 हरेक उनके इशारे में , छुपा  संदेश  समझो  तुम
करो तारीफ़ तुम उनकी ,मिटेंगे   क्लेश,समझो तुम
करो ना काम ,पहुँचाये जो उनको  ठेस ,समझो तुम 
                         ४
 नहीं समझो ये आफत है,खुदा की ये नियामत है
 मुसीबत में  पड़ोगे  जो ,कहोगे  ये  मुसीबत  है
तुम्हारे घर की हर दौलत ,उसी की ही बदौलत है
है बीबी जो ,तो घर जन्नत ,यही सच है,हक़ीक़त है
                              ५
बतंगड़ बात का बनता ,राई का पहाड़ बन जाता
पकड़ती तूल जब बातें ,तो तिल का ताड़ बन जाता 
मान कर बात बीबी की ,जरा तारीफ़ तुम कर दो ,
उफनता उनका गुस्सा भी ,उमड़ता लाड़ बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                        
            

                    

पत्नी -सौ टंच खरा सोना

    पत्नी -सौ टंच खरा सोना

मैं पति हूँ,
दुनिया का सबसे निरीह प्राणी
जिसे जली कटी ,
सिर्फ सुननी ही नहीं पड़ती ,
जलीकटी पड़ती भी है खानी
और वो भी तारीफ़ कर कर  के
रहना पड़ता है डर डर के
ये पति शब्द ही एसा  है,
जो 'विपति ' से जुड़ा है
इसलिए उसका रंग ,
हमेशा रहता उड़ा है
पत्नियां पुचकार करके
थोड़ा सा प्यार कर के,
पति को पटाया करती है
बेवकूफ बनाया करती है
और वो भी ख़ुशी ख़ुशी ,
बेवकूफ बन जाता है
उसे ,इसमें भी मज़ा आता है
उनका कभी कभी प्यार से 'डियर' कहना ,
बड़ा 'डीयर',याने मँहगा पड़ने वाला है ,
ये सन्देशा है
और जिस दिन वो प्यार से कहे 'जानू',
समझ लो ,जान और माल ,
दोनो की हानि का अंदेशा है
और जब वो'जरा सुनिए'कह कर बुलाती है
तो समझलो ,कोई आदेश सुनाती है
अपनी सहेलियों के बीच ,जब यह कह कर ,
कि 'हमारे ये तो बड़े सीधे है '
आपका गुणगान करती है
तो वह अपने वर्चस्व का बयान करती है 
 उनके हाथों का बनाया हुआ कोई भी खाना,
आपको 'टेस्टी'पड़ता है बतलाना
और जब वो सजधज कर,तैयार हो कर,
आपसे पूछे कि 'मै लग रही हूँ कैसी'
आपको तारीफ़ करनी ही पड़ती है ,
वरना हो जाती है ऐसी  की तैसी
कभी आइना देखकर वो बोले
क़ि 'सुनोजी ,लगता है मैं हो रही हूँ मोटी'
मरा बजन बढ़ रहा है '
तो खैरियत इसी में है की आप कहें,
'अब तुम  कली से फूलबन कर खिल रही हो,
तुमपर यौवन चढ़ रहा है'
कभी भी आपकी चलने नहीं देती ,
घर का हर फ़ैसला लेनेवाली,वो सरपंच होती है
पर ये बात भी सही है
आपकी सबसे बड़ी हितेषी भी वही है ,
वो खरा सोना है ,सौ टंच होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

मै क्या पहनूं ?

       मै क्या पहनूं ?

अल्मारी में भरे हुए है,
कितने कपड़े ,कितने गहने
पर बाहर जाने के पहले ,
पत्नीजी ने हमसे पूछा ,
'हम क्या पहने ?
हम ने धीरे से कह डाला
'कुछ ना पहनो '
काहे को तुम करती हो,
 इतनी  माथापच्ची
बिन कुछ पहने भी तुम,
 मुझको लगती अच्छी
क्यों कपड़ों का बोझ,
 उठाती हो तुम तन  पर
वैसे ही साम्राज्य तुम्हारा,
 मेरे मन पर
लाख आवरण में ढक  लो ,
पर छुप ना पाती ,
तुम्हारे तन का ,
ये सौष्ठव और सुगढ़ता
सभी रूप मे तुम
 मुझको प्यारी लगती हो ,
कुछ भी पहनो ,
मुझको कोई फरक ना पड़ता

घोटू  
 

गुब्बारा

गुब्बारा

मै गुब्बारा ,हवा है तू ,
अगर मुझमे समाएगी
ख़ुशी से फूल ,हो पागल ,
हवाओं में उड़ेंगे हम
कोई नन्हा ,हमे बाहों में,
ले लेकर के चहकेगा ,
जरा सा जो चुभा काँटा ,
न तुम होगी,न होंगे हम

घोटू

वाह वाही

        वाह  वाही

कभी कभी ,ज्यादा वाहवाही
भी ला सकती है तबाही
गर्व के मारे आदमी ,
गुब्बारे सा फूल जाता है
अपने परायों का भेद भूल जाता है
पर जरा सा काँटा चुभने पर,
जब गुब्बारा फूटता है
तब भरम टूटता है
पर तब तक ,
बड़ी देर बड़ी हो चुकी होती है
पर क्या करें ,
वाहवाही आदमी की ,
सबसे बड़ी कमजोरी होती थी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

कोई छेड़े बुढ़ापे में

         कोई छेड़े बुढ़ापे में

बहुत सी आग होती है ,जवां सूरज के सीने में ,
मगर जब ढलने लगता तो नजारे और होते है
कली खिलती ,महकती है तो मंडराते कई भंवरें,
मगर मुरझाए फूलों के वो प्यारे और  होते है
बहारों में ,दरख्तों पर ,अलग ही नूर होता है ,
मज़ा तब है कि पतझड़ में भी ,वो हमको लगे प्यारे
सभी के मन लुभाती ,हर हसीना है जवानी में,
मज़ा आता बुढ़ापे में  ,कोई लाइन  जब मारे
चाहने वालों की जिनकी ,बड़ी फेहरिश्त होती थी ,
सुने फिकरे जवानी में ,न जाने कितने दिल तोड़े
बुढ़ापे में भी रह रह कर ,सताया करती  है उनको,
जवानी वाली वो यादें ,कभी पीछा  नहीं छोड़े
गयी रौनक ,गयी मस्ती ,उमर का मोड़ ये ऐसा ,
अगर इसमें भी दीवाना ,कोई  दिल को लुटाता है
तसल्ली मिलती है दिल को ,अभी भी बाकी हम में दम ,
शगल ये छेड़खानी का ,बड़ा दिल को सुहाता  है
किसी ने मुस्करा कर के ,अगर दो बात जो करली ,
न पड़ता फर्क मियां को ,न दुनिया को ही होता शक
भले तन में नहीं हिम्मत ,बदलना स्वाद पर चाहें ,
दबी दिल की तमन्नाएं ,भड़कती रहती है जब तब
पुराने राजमहलों की भी अपनी शान होती है ,
करे तारीफ़ कोई तो,दीवारें मुस्कराती है
हम हंस हंस कर उठाते है ,मज़ा ये छेड़खानी का ,
हमें बीती हुई अपनी  ,जवानी  याद आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

यूं ही तो बात ना बनती

      यूं ही तो बात ना बनती

कोई पत्ता ,कहीं एक डाल का ,पीला पड़ा होगा ,
समझ ये लोग बैठे कि ,आगई ऋतू है बासंती
                             यूं ही  तो बात ना बनती
 अगर फैला है अंधियारा तो सूरज ढल गया होगा,
दिखी है रौशनी थोड़ी , कहीं दीपक जला  होगा
उछलती कूदती गंगा ,जो उतरी है  पहाड़ों से ,
किसी हिमखंड का सीना,कहीं से तो गला होगा
निमंत्रण कुछ तो लहरों ने समंदर की दिया होगा ,
नहीं तो बावरी नदियां ,मिलन को यूं नहीं भगती
                                   यूं ही तो बात ना बनती
कोई चिंगारी उड़ कर के,कहीं से आई तो होगी ,
समझ कर आग लोगों ने ,यूं ही हलचल मचा डाली
और कुछ नारदो  की टोलियों ने लगा कर  तिकड़म ,
जरा सी बात जो भी थी ,बतंगड़ सी बना  डाली
बहुत कोशिश थी जल जाए लेकिन थोड़ा ही सुलगा ,
नहीं तो धुवाँ ना उठता   ,ये थोड़ी आग ना लगती
                                   यूं ही तो बात ना बनती
दबा था बीज छोटा सा ,पनपता देख कर उसको ,
पुराने बरगदों में चिंताएं अस्तित्व की छायी
आसुरी ताक़तों ने पनपता देवत्व जब देखा ,
बिलों से भीड़ साँपों की,तिलमिला कर निकल आई
किसी इन्दर ने छलबल से धरा था रूप गौतम का,
अहिल्या सी सती  नारी ,यूं ही पाषाण ना बनती
                                  यूं ही तो बात ना बनती  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                   

खस्ता

        खस्ता

खस्ता रोटी अच्छी लगती,स्वाद गजक खस्ता का बढ़िया
खस्ता सिकी मूंगफली अच्छी,भाती खस्ता  आलूटिकिया
मन आनन्दित होजाता यदि ,खस्ता मिले कचोडी  खाने
खस्ता भुजिया ,पापड़,मठरी  , खाने  के सब ही दीवाने
खस्ता  सभी चीज मनभावन ,उनका स्वाद जुबां पर बसता
तो क्यों जब हालत बिगड़ी हो ,हम कहते हालत है खस्ता

घोटू  

भड़ास

        भड़ास

यह एक कटु सत्य है ,
कि हर पति की तरह ,
मै भी अपनी पत्नी से डरता हूँ
और उनकी उँगलियों के ,
इशारों पर नाचा करता हूँ
चाहे किसी की भी हो गलती
डाट मुझ पर ही पड़ती
पत्नी के आगे मेरी एक नहीं चलती
रह जाता हूँ मन मसोस
और अपनी तक़दीर को कोस
सोचता हूँ कि मै अकेला ही नहीं हूँ,
जिसे झेलनी पड़ती ये मुसीबत है
हर पति की ये ही हालत है
फिर भी निकालने को मन के भड़ास
मै भिंडी की सब्जी बनाता हूँ ख़ास
लम्बी लम्बी भिंडियों को काट कर ,
फिर उनमे चीरा लगा कर
मिर्च और मसाला देता हूँ भर
फिर उन्हें गरम गरम तेल में पकाता हूँ
और दबा दबा कर खाता हूँ
क्योंकि भिंडियों को अंग्रेजी में ,
कहते है लेडी फिंगर
याने औरत की उँगलियाँ ,
और यही सोच कर
कि मेरे ऊपर  जो उंगलियों के
इशारों ने किया है अत्याचार
उसका मैं लेता हूँ  प्रतिकार
चाहे गलत है या सही है
मेरा भड़ास निकालने का तरीका यही है
और कुछ कर सकने की ,
मुझमे हिम्मत ही नहीं है
या फिर टी वी का रिमोट लेकर ,
बार बार चैनल हूँ बदलता
और दूर करता हूँ अपनी व्याकुलता
और यही सोच कर मन बहलाता हूँ ,
कि कोई तो है जो मेरे इशारों पर चलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सांसें बहुएं एक सरीखी

            सांसें बहुएं एक सरीखी

औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी  सासें    एक सरीखी, सारी  बहुएं   एक  सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर 
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर  मिरची  होती है तीखी
सारी सांसें  एक सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
माँ  सोचे  बेटा बेगाना  हुआ , हुई  शादी  उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के   आंचल  से
 ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
 सारी  सांसें एक सरीखी,सारी   बहुएं  एक सरीखी
वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
स्पिन और फास्ट थी बालिग़ ,फिर भी है मैदान पर टिकी
 सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
बहू दूध है  ताज़ा ताज़ा ,सास  पुराना  जमा  दही  है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे  पति की
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक सरीखी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 29 मार्च 2016

तू ही रहे साथ मेरे


















आह! दुनिया नहीं चाहती मैं, मैं बनकर रहूँ
वो जो चाहती है, कहती हैं, बन चुपचाप रहूँ
होठ भींच, रह ख़ामोश, ख़ुद से अनजान रहूँ
रहकर लाचार यूँ ही, मैं ख़ुद से पशेमान रहूँ

बनकर तमाशबीन मैं क्यों, ये असबाब सहूँ?
कहता हूँ ख़ुद से, जो हूँ जैसा हूँ वही ज़ात रहूँ
नहीं समझे हैं वो, कोशिशें उल्टी पड़ जाती हैं
मैं मजबूर नहीं, टूटना ऐसे मेरा मुमकिन नहीं

महसूस करता है हर लम्हा, दिल-ओ-दिमाग मेरा
ख़त्म हो रहा है मुझमें, धीमे-धीमे हर एहसास मेरा
दर्द से क्षत-विक्षत है, कहने को मज़बूत शरीर मेरा
चुका रहा है कीमत जुड़े रहने की, हर जज़्बात मेरा

दिल करता है कभी, लेट जाऊं और निकल जाऊं
ले आत्मा को साथ, ऊँचे नील-गगन में विचर जाऊं
पर समय अभी आया नहीं, तो जल्दी क्यों तर जाऊं
काज ज़िम्मे हैं कई जीवन में, छोड़ इन्हें किधर जाऊं

तो जब तक मुकम्मल ना हो जाएँ, सभी मस्लहत मेरे
तुम ही संभालो 'निर्जन', पल-पल उलझते लम्हात मेरे
उम्मीद छोटी सी, अमन पसंद ज़िन्दगी की है यारा मेरे
दूर रहे दुनिया मुझसे, फ़क़त एक तू ही रहे साथ मेरे

पशेमान - repentent, ashamed
तमाशबीन - spectator
असबाब - scene, stuff
मुकम्मल - complete
मस्लहत - policy
लम्हात -  moments


#तुषारराजरस्तोगी #दुनिया #बदलाव #अहसास #जज़्बात #निर्जन #मस्लहत #उम्मीद

रविवार, 27 मार्च 2016

होलिका दहन

  होलिका दहन

एक हसीना थी
बड़ी नाजनीना थी
जलवे दिखाती थी
सबको जलाती थी
करती थी ठिठोली
नाम था  होली
उसको था वरदान
कोई भी इंसान
उसका संग पायेगा
बेचारा जल जाएगा
और एक प्रह्लाद था
एकदम फौलाद था
ग्यानी और गुणी था
धुन का धुनी  था
होली के मन भाया
गोदी में बैठाया
उसको था जलाना
पर वो था दीवाना
नहीं किसी से कम था
फौलादी  जिसम था
बड़ा ही था बली
जलाने उसे चली
 कोशिश बेकार गई
बेचारी हार गयी   
मात यहाँ पर खायी
उसे जला ना पायी
खुद ही पिघल गयी
होलिका जल गई

मदन मोहन बाहेती'घोटू;'

भिक्षामदेही

       भिक्षामदेही

         तुम कोमलांगिनि ,मृदुदेही
         है हृदय रोग ,  मै  मधुमेही
          मै प्यार मांगता हूँ तुमसे ,
           भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही
दीवानों का दिल लूट लूट ,
तुमने अपने आकर्षण से
निज कंचन कोषों में बांधा  ,
तुमने कंचुकी के बंधन से
क्यों मुझको वंचित रखती हो ,
अपने  संचित यौवन धन से
           मै प्यार ढूढ़ता हूँ तुम में ,
           है नज़र तुम्हारी  सन्देही
          भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही
मै नहीं माँगता हूँ कंचन ,
मुझको बस,  दे दो आलिंगन
मधु भरे मधुर इन ओष्ठों से,
दे दो एक मीठा सा चुंबन
मेरी अवरुद्ध शिराओं में ,
हो पुनः रक्त का संचालन
          ना होगा पथ्य,अपथ्य ,तृप्त ,
          होगा पागल ,प्रेमी ,स्नेही
           भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 23 मार्च 2016

गोबर की अहमियत

        गोबर की अहमियत

हमारी जिंदगी में कदर कितनी गाय भेंसों की ,
एक छोटे से उदाहरण से ,समझ सब आप सकते है
करे इंसान विष्टा तो,बहा  दी जाती है फ्लश में,
करे गर गाय गोबर तो,हम उपले थाप रखते है
पवित्तर मानते इतना ,लगाते चौका गोबर का ,
हवन में काम में लाते ,जलाते आग चूल्हे की,
उन्ही के अंगारों पर रोटियां हम सेक खाते है ,
बचे जो राख ,उससे भी ,हम बरतन साफ़ करते है

घोटू

न रंग होली के फागुन में

       न रंग होली के फागुन में

लड़कियां देख कर 'घोटू' बहुत फिसले लड़कपन में
हुई शादी, हसरतें सब, रह गई ,मन की ही मन में
किसी को ताक ना सकते,कहीं हम झाँक ना सकते ,
बाँध कर रखती है बीबी, हमे अब  अपने   दामन में 
हमारी हरकतों पर अब,दफा एक सौ चुम्मालिस है,
न आँखे चार कर सकते किसी से ,हम है बंधन में
गर्म मिज़ाज़ है बीबी, हर एक मौसम में तपती लू,
न रिमझिम होती सावन में ,न रंग होली के फागुन में 
काटते रहते है चक्कर ,उन्ही के आगे पीछे  हम,
बन गए बैल कोल्हू के ,बचा ही क्या है  जीवन में

घोटू

आशिक़ी और होली

       आशिक़ी और होली

जलवा दिखा के हुस्न का ,हमको थी जलाती ,
   ये जान कर भी  रूप पर ,उनके हम  फ़िदा  है
हमको न घास डालती थी जानबूझ कर ,
      हम समझे हसीनो की ये भी कोई अदा  है
देखा जो किसी और को बाहों में हमारी ,
      मारे जलन के ,दिलरुबा ,वो खाक हो गयी
प्रहलाद सलामत रहा,होलिका जल गयी,
       ये तो पुरानी,  होली वाली ,बात हो गयी

घोटू  

होली की जलन

        होली की जलन
                  १
सुंदर कन्या कुंवारी ,जिसका रूप अनूप
ज्यों गुलाब का फूल हो,या सूरज की धूप
या सूरज की धूप ,हमारे  मन को  भायी 
लाख करी कोशिश,मगर वो हाथ  न आयी
हमे जलाती रोज ,दिखा कर नूतन जलवा
ललचाता था बहुत ,हुस्न का उनके हलवा
                   २
हमने कुछ ऐसा किया ,रहगयी मलती हाथ
देखा हमको दूसरी , हुस्न परी  के  साथ
हुस्न परी के साथ ,कुढ़ी कुछ ऐसी मन में
जल कर हो गई खाक ,आग यूं लगी बदन में
'घोटू'  ये तो वही  पुरानी बात  हो गयी
जला नहीं प्रहलाद ,होलिका ख़ाक हो गयी
                     ३
जानबूझ कर जो हमे ,न थी डालती घास
आगबबूला सी खिंची ,आई हमारे  पास
आई हमारे पास ,तमक से  लाल लाल थी
'घोटू'खुश थे  ,सफल हमारी  हुई चाल थी
लगा प्रेम से गले, प्यार कर  उन्हें मनाया
अंग  अंग  उनके ,होली का रंग   लगाया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शहीद दिवस पर नमन

भारत माता के लाल थे वे,
आजादी की थी चाह बड़ी,
भारत माता के शान में बस,
चल निकले मुश्किल राह बड़ी ।

स्वाधीनता के दीवाने थे,
गौरों का दम जो निकाला था,
नस नस में थी आग दौड़ती,
खुद को आँधी में पाला था ।

इंकलाब की आग देश में,
खुद जलकर भी लगाया था,
मूँद कर आँखें सोये थे जो,
फोड़ कर बम यूँ जगाया था ।

सच्चे सपूत थे माता के,
अपना सुख दुःख सब भूल गए,
माता की बेड़ी तोड़ने को,
हँसते फांसी में झूल गए ।

वे बड़े अमर बलिदानी थे,
फंदे को जिसने चूमा था,
मेरा रंग दे बसंती चोला पर,
मरते मरते भी झूमा था ।

आदर्श बने लाखों युवा के,
नाम है जब तक है गगन,
सिंह भगत, सुखदेव, गुरु,
है आपको शत-शत नमन ।

भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर शत-शत नमन । 

-प्रदीप कुमार साहनी

मंगलवार, 22 मार्च 2016

पांच तत्व की प्रतिमा -नारी

 पांच तत्व की प्रतिमा -नारी

हमार काया
को प्रभु ने पांच तत्वों से बनाया
हवा,पानी ,अग्नि ,धरती और आकाश
पर इनका आभास
नारी में होता है ख़ास
उनमे हवा तत्व है भरपूर मिलता
उनकी इजाजत के बिना ,
घर का एक पत्ता भी नहीं हिलता
अग्नि तत्व भी स्पष्ट नज़र आता है
इनके सानिध्य  से ,कोई भी ,
पत्थर से पत्थर दिलवाला इंसान पिघल जाता है
और जब ये अपने जल तत्व का जलवा दिखलाती है
तो पति की सारी कमाई ,पानी  की तरह बहाती है
जब कभी ये सजधज कर ,इतरा कर ,
आसमान में उड़ती है
तो अपने आकाश तत्व से जुड़ती है
और जो कोई इन्हे छेड़े और हरकतें करे ऊल जलूल
तो ये उसे चटा देती है ,धरा तत्व की धूल
इसीलिये मैं इस पांच तत्व की प्रतिमा से डरता हूँ
और रोज सुबह उठ कर ,
अपनी पत्नी को दंडवत प्रणाम करता हूँ
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 21 मार्च 2016

पांच तत्व की प्रतिमा -नारी

 पांच तत्व की प्रतिमा -नारी
 
हमार काया
को प्रभु ने पांच तत्वों से बनाया
हवा,पानी ,अग्नि ,धरती और आकाश
पर इनका आभास
नारी में होता है ख़ास
उनमे हवा तत्व है भरपूर मिलता
उनकी इजाजत के बिना ,
घर का एक पत्ता भी नहीं हिलता
अग्नि तत्व भी स्पष्ट नज़र आता है 
इनके सानिध्य  से ,कोई भी ,
पत्थर से पत्थर दिलवाला इंसान पिघल जाता है
और जब ये अपने जल तत्व का जलवा दिखलाती है
तो पति की सारी कमाई ,पानी  की तरह बहाती है
जब कभी ये सजधज कर ,इतरा कर ,
आसमान में उड़ती है
तो अपने आकाश तत्व से जुड़ती है
और जो कोई इन्हे छेड़े और हरकतें करे ऊल जलूल
तो ये उसे चटा देती है ,धरा तत्व की धूल
इसीलिये मैं इस पांच तत्व की प्रतिमा से डरता हूँ
और रोज सुबह उठ कर ,
अपनी पत्नी को दंडवत प्रणाम करता हूँ
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'



 

ढपोरशंख

 भाषणबाजी में अव्वल, करने धरने में शून्य अंक,
आज के नेता हो चले हैं, जैसे कि ढपोरशंख ।

रोज नए नए वादे होते, करने के न इरादे होते,
जनता को भी लिए लपेटे, इनके कई कई प्यादे होते ।

राजनीति एक दल दल जैसी, ये खुद ही बन गए पंक,
निरे निखट्टू आज के नेता, जैसे कि ढपोरशंख ।

बस चुनाव में इनका आना, जीत कर ठेंगा है दिखाना,
वादे इनको याद करा दो, पहले से तैयार बहाना ।

दल बदलू और स्वार्थ परक ये, अपनो को ही मारे डंक,
लाभ के लिए कुछ भी कर दें, हो गए ये ढपोरशंख ।

होली तो इनकी ही हो ली, इनकी ही होती है दीवाली,
असली पैसों से ये खेले, पर सारे हैं लोग ये जाली ।

मुँह बाये हम आम लोग हैं, माल खा रहे ये कलंक,
अव्वल अब मक्कारी में भी, ये नेता हैं ढपोरशंख ।

- प्रदीप कुमार साहनी

रविवार, 20 मार्च 2016

होली-रंगों का त्योंहार

 होली-रंगों का त्योंहार

        आज होली दिवस भी है,
         रंगों का  त्योंहार भी है
पर्व कल था जो दहन का
आस्थाओं के दमन का
कुटिलता के नाश का दिन
भक्ति के  विश्वास का दिन
         शक्ति के उस परिक्षण में
         जीत भी है ,हार भी है
         आज होली  दिवस भी है,
          रंगों का त्योंहार भी है
  आग  भी है, फाग भी है
जलन है  अनुराग भी है
दाह भी है,  डाह भी है
चाह भी है, आह भी है 
          अजब है संयोग देखो,
          प्यार है,प्रतिकार भी है
          आज होली  दिवस भी है,
           रंगों का  त्योंहार भी है
आज उत्सव है मदन का
पर्व है ये  मधु मिलन का
प्रीत का,मनमीत का दिन
मचलते  संगीत का दिन
         आज रंगों में बरसता,
          प्यार है,मनुहार भी है
         आज होली  दिवस भी है,
          रंगों का  त्योंहार भी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 19 मार्च 2016

बीबी का एडिक्शन

           बीबी का एडिक्शन

जिस दिन खाने को ना मिलती ,है बीबीजी  डाट हमे ,
     वो सारा का सारा  दिन ही, सूना सूना सा लगता  है
जिस सुबह नहीं हमको मिलती ,उनकी हाथों की बनी चाय ,
     उस दिन गायब रहती चुस्ती ,और मन सुस्ती से भरता है
जिस उनके हाथों छोंकी , है दाल न होती थाली में,
       उस दिन रोटी का टुकड़ा भी,मुश्किल से गले उतरता है
जिस दिन न मिले उनकी झिड़की,खुल ना पाती दिल की खिड़की
      जिस दिन तकरार नहीं होती ,उस दिन ना प्यार उमड़ता है
जिस दिन वो नहीं रूठती है,मिलता ना मज़ा मनाने का ,
      उनकी लुल्लू और चप्पू में  ,आता आनन्द निराला है
वो नाज़ ,अदायें नखरों से हर रोज लुभाती रहती है ,
    हो जाती  मेहरबान जिस दिन ,तो कर देती मतवाला है
जिस दिन ना देती है पप्पी ,वो ऑफिस जाने के पहले ,
   उस दिन जाने क्यों ऑफिस में ,दिन भर झुंझलाहट रहती है
इतना 'एडिक्ट'हो गया हूँ ,मैं इस 'लाइफ स्टाइल 'का ,
   ना चलता उन  बिन काम भले ,कितनी ही खटपट  रहती है

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'        
     

फिसलन

      फिसलन

फिसलता कोई कीचड़ में ,फिसलता कोई पत्थर पर
कोई चिकनाई में  फिसले ,कोई  बर्फीले  पर्वत  पर
कोई  फिसले है चढ़ने में,कोई फिसले उतरने  में
फिसलने कितनी ही आती ,सभी के आगे  बढ़ने में
जो पत्थर पर पड़ा पानी ,फिसलते लोग है अक्सर
बड़ा फिसलन भरा  होता ,है पानी में पड़ा पत्थर
फिसलना एक क्रिया जो,न की जाती पर हो जाती
उन्हें जब हम पकड़ते है,वो हाथों से फिसल  जाती
हसीं हो जिस्म और चेहरा ,फिसलती नज़रें है सबकी
बड़ी फिसलन भरी होती, है ये राहें महोब्बत  की
जुबां  गलती से जो फिसले ,बात में में फर्क हो जाता
हंसाई जग में होती है  और बेड़ा गर्क  हो   जाता
फंसा लालच के चक्कर में,फिसल इंसान जाता है
चंद  चांदी के सिक्कों पर ,फिसल  ईमान जाता है
फिसलती हाथ  से सत्ता और पत्ता कटता है जिनका
उन्हें रह रह सताता है ,जमाना बीते उन दिन का
जवानी जब फिसलती है ,बुढ़ापा  घेर लेता है
अर्श से फर्श पर आना ,जरा सी देर   लेता  है
बड़ी फिसलन है दुनिया में,संभल कर चाहिए चलना
 नहीं तो मुश्किलें  होगी ,पड़ेगा हाथ फिर  मलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बुधवार, 16 मार्च 2016

आओ बदल लें खुद को थोड़ा

बड़ी-बड़ी हम बातें करते,
पर कुछ करने से हैं डरते,
राह को थोड़ा कर दें चौड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

ख्वाब ये रखते देश बदल दें,
चाहत है परिवेश बदल दें,
पर औरों की बात से पहले,
क्यों न अपना भेष बदल दें ।

चोला झूठ का फेंक दे आओ,
सत्य की रोटी सेंक ले आओ,
दौड़ा दें हिम्मत का घोड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

एक बहाना है मजबूरी,
खुद से है बदलाव जरुरी,
औरों को समझा तब सकते,
खुद सब समझो बात को पूरी ।

भीड़ में खुद को जान सके हम,
स्वयं को ही पहचान सकें हम,
अहम को मारे एक हथौड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

दो चेहरे हैं आज सभी के,
बदल गए अंदाज सभी के,
अपनी दृष्टि सीध तो कर लें,
फिर खोलेंगे राज सभी के ।

पथ पर पग पल-पल ही धरे यूँ,
जब-जब जग की बात करे यूँ,
क्या कर जब तक दंभ न तोड़ा,
आओ बदल ले खुद को थोड़ा ।

-प्रदीप कुमार साहनी

मंगलवार, 15 मार्च 2016

दादा पोता संवाद

दादा पोता संवाद

दादा से पोते ने पूछा ,
जब आपका था जमाना
न बिजली थी ,न गैस ,
तो फिर कैसे पकता था खाना
दादा ने बतलाया
बेटे ,खाना उन दिनों ,
मिटटी के चूल्हे पर जाता था पकाया
आश्चर्य चकित होकर बोला पोता
ये मिट्टी का चूल्हा है क्या होता
दादा बोले ये चूल्हा ,
मिट्टी से बनी ,U शेप का ,
एक 'थ्री डाइमेंशनल ' बॉडी होती थी ,
जिसके U की इनर 'केविटी' में 'फ्यूल' ,
जो होती थी सूखी लकड़ी या
'काऊडंग' की 'केक '  जिन्हे उपले कहते थे ,
जलाये जाते थे और U के ' अपर सरफेस'पर
पतीली रख कर दाल उबालते थे
और तवा रख कर रोटी बनाई जाती थी ,
जो उपलों के अंगारों पर फुलाइ  जाती थी
पोता बोला 'काउ डंग 'पर रोटी बनाना
कितना 'अन हाइजीनिक 'होता होगा वो खाना
दादा बोले बेटे ,आग में वो ताक़त है
हर चीज को शुद्ध  कर देती है
एनर्जी भर देती है
और उस पर जो रोटी पकती है
तो सौंधी सौंधी खुशबू लिए ,
उसमे बड़ा स्वाद आता है
और साथ में सिलबट्टे पर पीसी चटनी हो
तो सोने में सुहागा है
पोते ने टोका
एक्सक्यूज मी दादा,
ये सिलबट्टा है क्या होता
दादा बोले ये सिलबट्टा ,
'स्टोन एज' का ,एक 'टू पीस'
'इक्विपमेंट 'है होता
जिसका लोअर पार्ट ,जिसे सिल कहते थे ,
होता है एक फ्लेट पत्थर
जिसके 'सरफेस' को ,
'रफ'किया गया होता है टाँच  कर 
और अपर 'पार्ट  भी होता था पत्थर का ,
उसका शेप ऐसा होता था कि,
 दोनों हाथों के पकड़ में आ जाता था
वो बट्टा कहलाता था
सिल और बट्टे के बीच में रख कर ,
धनिया,मिर्ची अदरक आदि मसालों को
क्रश किया जाता था
और बार बार 'फॉरवर्ड और बैकवर्ड ,
एक्शन ' करने पर ,
चटनी बन जाता था
पोते  ने हँस  कर कहा ,
 एक चटनी के लिए आप ,
इतना 'फॉरवर्ड एंड बैकवर्ड'मोशन करते थे 
क्या 'ओन लाइन 'नहीं खरीद सकते थे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये लललन टॉप होती है

     ये लललन टॉप होती है

नचाती मर्दों को रहती ,उँगलियों के इशारों पर ,
        इन्हे कमजोर मत समझो,ते सबकी बाप होती है
पति मुश्किल का मारा है ,बिना इनके अधूरा है ,
       बटर सी प्यारी लगती है ,ये 'बेटर हाफ ' होती  है
नहीं चुप बैठ सकती है ,बोलना इनकी फितरत है ,
        जलजला आने को होता ,जो ये चुपचाप  होती है
कोई कितना भी फन्ने खां,समझता खुद को हो लेकिन,
        झुका है इनके कदमों में ,ये लललन टॉप  होती है

घोटू 

बीबी की अहमियत

      बीबी की अहमियत

एक फिलम,
'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे 'थी आई
जो लोगों के मन इतनी भायी
कि एक सिनेमा हाल में ,
कितने ही वर्षों चल गई
उन्ही सितारों की ,
एक दूसरी फिल्म,'दिलवाले'भी बनी,
पर पता ही न चला ,
कब आई,और कब गई
इस उदाहरण का इतना सा सार है
बिना दुल्हनिया के ,दिलवाले बेकार है
हमे ये हक़ीक़त समझने की जरूरत है
जिंदगी में लम्बा चलने के लिए ,
दुल्हनिया की कितनी अहमियत है

घोटू

सबसे अच्छी हीरोइन

सबसे अच्छी हीरोइन

एक दिन ,पत्नीजी ने ,अपने ही अंदाज से ,
मेरी क्लास ले ली और बोली,
एक बात बताना सच्ची सच्ची
तुमको ,फिल्म की कौनसी हीरोइन
लगती है अच्छी
मुझे लगा कि ये गंगा उल्टी क्यों बह रही है
कहीं ये मेरे पत्नीव्रत धर्म का,
 इम्तहान  तो नहीं ले रही है
अब मैं क्या बताता
किस के गुण गाता
मेरी सांप छूछन्दर वाली गति थी ,
न निगलते बनता था न उगलते
फिर भी मैंने जबाब दिया ,
थोड़ा संभलते संभलते
मैंने कहा जानेमन
मेरी जिंदगी की फिलम
की सबसे खूबसूरत हीरोइन हो तुम
जब से मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ लिया है
इन फिलम वाली हीरोइनों का,
 ख्याल ही छोड़ दिया है
वो बोली बनो मत ,मुझे सब पता है
हीरोइनों को देख कर ,
तुम्हारे मन में क्या क्या पकता है
मैंने तो यूं ही पूछ लिया था,लगाने को पता
कि मेरी और तुम्हारी चॉइस में ,
कितनी है समानता
मैंने भी अपना दिल खोल दिया
और हिम्मत करके बोल दिया
एक दीपिका पदुकोने है ,कनक की छड़ी है
उसकी आँखे बड़ी बड़ी है
लम्बी , दुबली पतली और छरहरी है
पर उसका रूप हमको भाया नहीं है
क्योंकि उसका बदन ,तुमसा गदराया नहीं है
एक अनुष्का शर्मा है ,जिसकी तरफ ,
गलती से भी नहीं झाँका है
क्योंकि विराट कोहली से उसका टांका है
हाल ही आई ,आलिया भट्ट  अच्छी है
पर अभी छोटी नादान  बच्ची है
कटरीना,जबसे रणवीर कपूर के कटी है ,
रहती  परेशान है
उसे फिर से याद  या सलमान हैं
और प्रियंका,
जिसने बजा दिया अपना विदेशों में भी डंका
कभी 'मेरीकॉम 'बन बॉक्सिंग करती है
कभी पोलिस इन्स्पेटर बन अकड़ती है
उसे तो चाहते हुए भी लगता डर है
ये आजकल की हीरोइनें ,
हमारी पसंद के बाहर है
हमारे जमाने की हीरोइनें ,
बैजन्तीमाला की तरह इठलाती थी
मालासिंहा की तरह ,धूल के फूल खिलाती थी
मीनाकुमारी की तरह ,दारू पीकर ,पति को लुभाती थी
मंदाकिनी की तरह झरने में नहाती थी
श्रीदेवी या हेमा मालिनी होती थी
स्वच्छंद विहारिणी होती थी
रूप में परी होती थी
यौवन से भरी होती थी
आज की हीरोइनें उनके आगे
पानी तक भी नहीं मांगे
अब तो वो भूले बिसरे गीत बन गई है
जो जब भी याद आतें है
हम गुनगुनाते है
अब तुम पूछ रही तो बताना मेरा फर्ज है
और सच कहने में क्या हर्ज है
मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ हीरोइन ,/
मेरी सास की बेटी है
जो मेरे सामने ही बैठी है
जो कभी जूही चावला सी लगती है ,
कभी राखी है ,कभी रेखा है
मैंने जब भी उसे देखा है,
नए अंदाज में देखा है
मेरी बेगम ,एक लाजबाब हस्ती है
फूल खिलाती है,जब हंसती है
जिसके आगे छोटे नबाब सैफ अली खान की,
ज़ीरो फिगर वाली,बेगम,करीना भी पानी भरती है
आजकल तो रोज रोज ही,
नयी नयी हीरोइनों का दौर है
पर तुममेरी सदाबहार हीरोइन हो,
तुम्हारी बात ही और है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 12 मार्च 2016

हम अंग्रेजी छोड़ न पाये

          हम अंग्रेजी छोड़ न पाये

अंग्रेजों ने भारत छोड़ा,हम अंग्रेजी छोड़ न पाये
रहे गुलामी में ही बंध कर,वो जंजीरें तोड़ न पाये
केवल नहीं बोलते,पढ़ते,अंग्रेजी है ,पीते ,खाते
बच्चे जाते ,इंग्लिश स्कूल ,अपनी भाषा बोल न पाते
नहीं जलेबी,पोहा,इडली,उन्हें चाहिए पीज़ा,बरगर
करे नाश्ता,खाएं पास्ता। ऐसा भूत चढ़ा है सर पर
कहते है माता को मम्मी,'डेड'पिताजी को कहते है
बिन शादी के,लड़की लड़के ,पति पत्नी जैसे रहते है
धर्म कर्म और संस्कार को,इनने बिलकुल भुला दिया है
मातपिता को वृद्धाश्रम में ,भेज दिया और रुला दिया है
इंग्लिश में तारीफ़ करते है ,इंग्लिश में देते है गाली
इनके लिए ,महज छुट्टी ही ,होती होली और दिवाली
यूं त्योंहार मनाया जाता ,होटल जाते ,खाना खाने
जबसे 'योग 'बना है 'योगा',इसे लगे है ये अपनाने
भूल गए 'बसंत पंचमी' 'वेलेंटाइन'दिवस मनाते
दे कर कार्ड ,मदर फादर डे ,को है अपना फर्ज निभाते
राग रागिनी ,ना मन भाती, पाश्चात्य संगीत  लुभाता 
इंग्लिशदां लोगों से मिलना जुलना और रखते है नाता
भारतीय संस्कृति भुला कर ,पाश्चात्य में ऐसे भटके
न तो इधर के,नहीं उधर के ,बने त्रिशंकु से हम लटके
वेद,उपनिषद,गीता,गंगा, से हमख़ुद को जोड़ न पाये
अंग्रेजों ने भारत छोड़ा ,हम अंग्रेजी ,छोड़  न पाये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मारे गए गुलफाम

       मारे गए गुलफाम

मुझको उनने घास तक डाली नहीं ,
         खेत कोई और ही आ चर  गया
चवन्नी को मुझको तरसाते रहे ,
         और तिजोरी ,दूसरा ले भर गया
मुझको मीठी मीठी बातों से लुभा ,
मिठाई के लिए ,ललचाते  रहे ,
मिठाई का डिब्बा मेरे सामने ,
        दूसरा ही कोई आ ,चट  कर गया
या तो तुम चालू थी या वो तेज था ,
या मैं ही बुद्धू था,गफलत में रहा ,
नग जो जड़ना था अंगूठी में मेरी ,
           दूसरे की अंगूठी में जड़ गया
शराफत में अपनी फजीयत कराली,
मुफ्त में मारे  गए ,गुलफाम हम,
प्रेमपाती हमने थी तुमको  लिखी,
         दूसरा ही कोई आकर पढ़ गया
क्या बताएं आशिकी में आपकी,
किस कदर का ,जुलम है हम पर हुआ ,
हमको ऊँगली तलक भी छूने न दी,
         दूसरा ,पंहुची पकड़ कर,बढ़ गया
हमने सोचा था,हंसी तो फस गई ,
उल्टा मुश्किल में फंसा हम को दिया ,
चौबे जी ,दुबे जी  बन कर रह गए ,
         छब्बे जी बनने का चक्कर मर गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बेटियां

                        बेटियां

बेटी को तो 'बेटा' कह कर ,अक्सर लोग बुलाते है
पर भूले से, भी बेटे को  ,'बेटी'  कह  ना   पाते  है
बेटी होती भले परायी , अपनापन  ना  जाता  है 
बेटा ,अपना होकर ,अक्सर, बेगाना  हो जाता है
बेटी ,शादी होने पर भी ,गुण  पीहर के  गाती  है
बेटे के सुर बदला करते ,जब  शादी हो जाती है
बेटे ,उदगम भूल ,नदी का ,चौड़ा पाट  देखते  है
अपना पुश्तैनी सब ,वैभव  ,ठाठ और बाट देखते है 
आज ,बदौलत जिनकी उनने ,ये धन दौलत पायी है
तिरस्कार ,उनका करते है, जिनकी सभी कमाई है
हक़ रखते ,उनकी दौलत पर,उन्हें  समझते नाहक़ है
लायक उन्हें बनाया जिनने ,वो लगते नालायक  है
वृद्ध हुए माँ बाप , दुखी हो,घुटते  रहते  है मन में
बेटे ,उनको बोझ समझ कर ,छोड़ आते ,वृद्धाश्रम में
या फिर उनको  छोड़ अकेला,खुद विदेश बस जाते है
केवल उनका ,अस्थिविसर्जन ,करने भर को आते है
माता पिता , वृद्ध जब होते,रखती ख्याल बेटियां है
उनके ,सब सुख दुःख में करती ,साझसँभाल  बेटियां है
क्योंकि बेटियां ,नारी होती, उनमे ममता  होती है
दो परिवार ,निभाया करती,उनमे क्षमता  होती है
बेटी तो  अनमोल निधि है,और प्यार का सागर  है
खुशनसीब वो होते जिनको,  बेटी देता  ईश्वर  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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