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रविवार, 17 अप्रैल 2016

जीवन का स्वाद

जीवन का स्वाद

ना करी छेड़खानी कोई
ना हरकत तूफानी कोई
ना अपनी कुछ मनमानी की
और ना कोई नादानी की
ना इधर उधर ताका,झाँका
ना भिड़ा ,कहीं कोई टाँका
ना करी शरारत कोई से
ना करी मोहब्ब्त कोई से
कोई  पीछे ना भागे  तुम
सचमुच ही रहे अभागे तुम
तुममे उन्माद नहीं आया
जीवन का स्वाद नहीं आया
बस रहे यूं ही फीके फीके
दुनियादारी कुछ ना सीखे
तुमने है जीवन व्यर्थ जिया
बस अपना ही नुक्सान किया
तुमने निज काट दिया यौवन
बस रहे किताबी कीड़े बन
क्योंकि वो ही थी एक उमर
 'एन्जॉय'जिसे करते जी भर
पर तुमने व्यर्थ गंवा डाली
और पैरों में बेड़ी डाली
शादी करके परतंत्र हुए
पत्नीजी से आक्रांत हुए
जिंदगी अब यूं ही बितानी है
अब करना सदा गुलामी है
तिल तिल कर यूं ही घिसना है
दिन रात कामकर पिसना है
जो उमर थी मौज बहारों की
उच्श्रृंखलता की,यारों की
वैसे ही बीत जायेगी अब
चिड़िया चुग खेत जायेगी सब
क्या होगा अब पछताने से
बीते दिन ,लौट न आने के
जीवन का अब यूं कटे सफर
चूं चरर मरर ,चूं चरर मरर  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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