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गुरुवार, 5 जून 2014

जिंदगी का सफर

        जिंदगी का सफर

टर्मिनस से टर्मिनस तक ,बिछी हुई,लोहे की रेलें
जिन पर चलती रेल गाड़ियां ,कोई पीछे, कोई पहले
कोई तेज और द्रुतगामी,कोई धीमे और रुक रुक कर
स्टेशन से स्टेशन तक ,बस काटा करती है चक्कर
कोई भीड़ भरी पैसेंजर ,तो कोई ऐ. सी. होती है
कोई मालगाड़ियों जैसी ,जो केवल बोझा  ढोती है  
यात्री चढ़ते और उतरते ,हर गाडी में बहुत भीड़ है
हर यात्री की अलग ख़ुशी है,हर यात्री की अलग पीड है
कोई लूटता ,मज़े सफर के,कोई रहता परेशान है
कोई हेंड बेग लटकाये ,कोई के संग ताम झाम  है
अपनी यात्रा कैसे काटें,यह सब तुम पर ही निर्भर है
प्लानिंग सही,रिज़र्वेशन हो ,तो होता आसान सफर है
इन्ही रेल की यात्रा जैसा,होता है अपना जीवन पथ
एक जन्म का टर्मिनस है ,एक मृत्यु का है टर्मिनस
कोई गाड़ी कैसी भी हो,लेकिन सबका पथ है निश्चित
दुर्घटना का ग्रास बनेगी ,अगर हुई जो पथ से विचलित
और हम बैठे हुए ट्रेन में,जीवन का कर रहे सफर है 
रेल गाड़ियां,आती ,जाती,हम तो केवल ,पैसेंजर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपना अपना स्वभाव

     अपना अपना स्वभाव

ऊपर के दांत,भले ही ,
नीचे के दांतों के साथ रहते है
मगर  आपस में किटकिटाते ,
और झगड़ते ही रहते है
सबके सब बड़े  सख्त मिजाज है
पर रहते नाजुक सी जिव्हा के साथ है
बिचारी जिव्हा को ,बड़ा ही ,
संभल संभल कर रहना पड़ता है
कभी कभी ,दांतों का,कोप भी सहना पड़ता है
फिर भी जीभ ,अपनी सज्जनता ,नहीं छोड़ती है
दांत के बीच ,यदि कुछ फंस जाता है,
तो उसे टटोल टटोल कर ,निकाल कर ही  छोड़ती है
सुई,तीखी और तेज होती है,चुभती है
मगर चुभे हुए कांटे निकाल देती है
और फटे हुए कपड़ों को टांक देती है
खजूर  का वृक्ष,इतना ऊंचा होते हुए भी ,'
छाया विहीन होता है
और आम ,भले ही छोटा है
पर देता फल और छाँव है
सबका अपना अपना स्वभाव है

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

लकीर के फ़कीर

            लकीर के फ़कीर

जो चलते है निश्चित पथ पर ,उनकी यात्रा होती सुखमय
ना तो  ऊबड़ खाबड़ रस्ता ,नहीं भटकने का कोई भय
लोह पटरियां, बिछी रेल की,पथ मजबूत ,बराबर,समतल
निश्चित पथ पर आती,जाती, ट्रेन चला करती है दिन भर
हम लकीर के यदि फ़कीर है ,सुगम जिंदगी का होता पथ
बिन बाधा के ,तीव्र गति से ,चलता रहता  है जीवन रथ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पिताजी याद आतें है

       पिताजी याद आतें है

हमारी जिंदगी में जब भी दुःख,अवसाद आते है
परेशाँ मुश्किलें करती ,पिताजी याद आते है
सिखाया जिनने चलना था,हमें पकड़ा के निज उंगली
कराया ज्ञान अक्षर का  ,पढ़ाया  लिखना अ ,आ, ई
भला क्या है,बुरा क्या है ,गलत क्या है ,सही क्या है
दिया ये ज्ञान उनने  था,बताया   कैसी दुनिया  है
कहा था ,हाथ मारोगे,  तभी तुम तैर पाओगे
हटा कर राह  के रोड़े ,राह  अपनी  बनाओगे
नज़र उनपे ही जाती थी, जब आती थी कोई मुश्किल
उन्ही के पथप्रदर्शन से ,हमें हासिल हुई मंज़िल
जरुरत जब भी पड़ती थी,सहारा उनका मिलता था
नसीहत उनकी ही पाकर,किनारा हमको मिलता था
ढंग रहने का सादा था ,उच्चता थी विचारों में
भव्य व्यक्तित्व उनका था ,नज़र आता हजारों में
अभी भी गूंजती है खलखिलाहट और हंसी उनकी
वो ही चेहरा चमकता सा और वो सादगी उनकी
भले ही सख्त दिखते थे  हमें करने को अनुशासित
मगर हर बात में उनकी ,छुपा रहता , हमारा हित
उन्ही की ज्ञान और शिक्षा ,हमारी सच्ची दौलत है
आज हम जो भी कुछ है सब,पिताजी की बदौलत है
आज भी मुश्किलों के घने बादल ,जब भी छाते है
उन्ही की शिक्षा से हम खुद को बारिश से बचाते है
उन्ही के बीज है हम ,आज जो ,विकसे,फले,फूले
हमें धिक्कार है ,उपकार उनका ,जो कभी  भूले
वो अब भी आशीर्वादों की ,सदा सौगात लातें है
भटकते जब भी हम पथ से, पिताजी याद आते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

चुनाव -२०१४ के बाद

              चुनाव -२०१४ के बाद
                    तीन चित्र
                         १
                 स्थान परिवर्तन 
   कोई कहता था इस करवट,कोई कहता था उस करवट
    सभी के मन  में शंका  थी,  ऊँट  बैठेगा  किस  करवट
   मगर  करवट बदल कर ऊँट है कुछ इस तरह बैठा
   खत्म ही हो गया  डर  खिचड़ी ,सरकार बनने  का 
   नहीं पी एम 'मौनी' और ना सरकार कठपुतली
   बने पी एम 'मोदी ',इस तरह सरकार है बदली
   नयी संसद की  अबके इस तरह बदली कहानी है
  जहाँ पर बैठती थी सोनिया जी, अब अडवाणी है
                              २
                      स्वप्न भंग 
 मुलायम सोचते थे बनेगी सरकार जो खिचड़ी
मिलेगी खाने को उनको,मलाई,मावा और रबड़ी
अगर जो उचट करके लग गयी और साथ दी  किस्मत
हमारे सांसदों से ही  मिलेगा,  किसी को  बहुमत
हाथ लग जाय मुर्गी ,रोज  दे जो , सोने का अंडा
किले पे दिल्ली के फहराएं अबकी बार हम झंडा
मगर टूटी कमर ऐसे गिरे हम ,औंधे मुंह के बल
सिमट कर रह गए परिवार के ही चार हम केवल
                             ३
                        गवर्नर  
पुराना राजवंशी हूँ,बहुत मुझमे था दम और ख़म
बड़ा कर्मठ खिलाड़ी हूँ ,रहा सत्ता में ,मैं  हरदम
टिकिट मुझ को मिला ना जब ,मुझे गुस्सा बड़ा आया
लड़ा चुनाव खुद के बल ,भले ही फिर मैं पछताया
ये है विनती ,पुरानी दोस्ती का,कुछ सिला देना 
किसी भी राज्य का मुझको ,गवर्नर तुम बना देना
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 3 जून 2014

प्राणायाम--एक शंका

प्राणायाम--एक शंका

ऐसा कहा जाता है
आदमी गिनती की सांस लेकर आता है
और जब वो गिनती पूरी हो जाती है
मौत आती है
जीवन जीने में हर रोज
देतें है महत्वपूर्ण सहयोग
भोग और योग
भोग की प्रक्रिया में ,साँसे गतिमान होती है
और आदमी जितना ज्यादा भोग में लिप्त होता है ,
उतनी साँसों की गिनती कम होती जाती है
और उम्र घट जाती   है 
इसीलिए ,ऐसा  कहा जाता है
 ब्रह्मचर्य , उम्र को बढाता  है
और योग की एक विधा ,
जिसे  हम प्राणायाम कहते है
जिसमे अलग अलग विधि से ,
जल्दी जल्दी सांस लेते है
ये भी कहा जाता है  कि ,
प्राणायाम करने  से , उम्र बढ़ जाती है
यह बात हमारी समझ में कम आती है
जब जिंदगी की साँसे ,गिनी चुनी होती है ,
तो क्यों हम प्राणायाम कर,
जल्दी जल्दी सांस लेकर ,
व्यर्थ ही अपनी साँसों की गिनती ,
 यूं ही कम कर दिया  करते है
और अपनी उम्र घटा दिया करते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पीड़ा-टूटे आईने की

              पीड़ा-टूटे आईने की

मुझे अब याद आते है ,वो दिन कितने सुहाने थे,
           मेरे ही सामने आकर ,संवरती थी, हसीनाएं
बड़ी नटखट निराली शोखियों से,कई कोणों से,
           गठीले जिस्म को अपने,निरख़ती  थी हसीनाएं
दिखाती थी कई नखरे,अदा से मुस्कराती थी ,
          कभी खुद पे फ़िदा ,खुद को चूमा करती थी,हसीनाएं        
कभी नयनों के खंजर पे,धार करती थी कजरे से,
           नज़र  तिरछी से  दिल पर  वार ,करती थी हसीनाएं
 लगा के लाली होठों पर ,सुलगती  आग भरती थी,
           जलाती सब के दिल को ,खुद भी जलती थी ,हसीनाएं
बसा करता था उनका अक्स ,मेरे जिस्म के अंदर ,
                  नहीं  मुझसे कभी भी  शर्म ,करती थी ,हसीनाएं     
मगर देखा उन्हें बेशर्मी से ,अठखेलियां करते ,
                  गैर के संग ,तो दिल टुकड़े टुकड़े  हो गया मेरा
 आज भी मेरे हर टुकड़े में जो वो झाँक कर देखें ,
                  बसा है अक्स उनका ही और वो,सुन्दर,हसीं चेहरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मैया,बहुत बुरे दिन आये

      घोटू के पद

मैया,बहुत बुरे दिन आये
ऐसे काटे पर जनता ने ,अब हम उड़ ना पायें
चौंवालीस पर सिमट गए हम,इतने नीचे आये
अपनी ही करनी का फल है ,क्या होगा पछताये 
कभी बोलती थी तूती  अब 'फुस'भी नहीं सुनाये
जो चमचे मुंह खोल न पाते ,अब खुल कर चिल्लाये
अपनी ही पार्टी वाले अब ,'जोकर'मुझे  बताये
बेटे फेर समय का है ये तू क्यों दिल पर लाये 
'जोकर'मतलब 'जो कर सकता'मम्मी जी'समझायें
फिर से अच्छे दिन आएंगे,जब तू ब्याह रचाये 

घोटू
 

शनिवार, 31 मई 2014

रस के तीन लोभी

   रस के तीन लोभी
            भ्रमर
गुंजन करता ,प्रेमगीत मैं  गाया करता 
खिलते पुष्पों ,आसपास ,मंडराया करता
गोपी है हर पुष्प,कृष्ण हूँ श्याम वर्ण मैं
सबके संग ,हिलमिल कर रास रचाया करता
मैं हूँ रस का लोभी,महक मुझे है प्यारी ,
मधुर मधु पीता  हूँ,मधुप कहाया  करता
               
                   तितली 
फूलों जैसी नाजुक,सुन्दर ,रंग भरी हूँ
बगिया में मंडराया करती,मैं पगली हूँ
रंगबिरंगी ,प्यारी,खुशबू मुझे सुहाती
ऐसा लगता ,मैं भी फूलों की  पंखुड़ी  हूँ
वो भी कोमल ,मैं भी कोमल ,एक वर्ण हम,
मैं पुष्पों की मित्र ,सखी हूँ,मैं तितली हूँ
              
             मधुमख्खी
भँवरे ,तितली सुना रहे थे ,अपनी अपनी
प्रीत पुष्प और कलियों से किसको है कितनी
पर मधुमख्खी ,बैठ पुष्प पर,मधु रस पीती ,
 मधुकोषों में भरती ,भर सकती वो जितनी
मुरझाएंगे पुष्प ,उड़ेंगे तितली ,भँवरे ,
संचित पुष्पों की यादें है मधु में कितनी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

देखो ये कैसा जीवन है

     देखो ये कैसा जीवन है

गरम तवे पर छींटा जल का
जैसे  उछला उछला  करता
फिर अस्तित्वहीन हो जाता,
बस  मेहमान चंद  ही पल का 
जाने कहाँ किधर खो जाता ,
सबका ही वैसा जीवन है
देखो ये कैसा जीवन है
मोटी सिल्ली ठोस बरफ की
लोहे के रन्दे  से घिसती
चूर चूर हो जाती लेकिन,
फिर बंध सकती है गोले सी
खट्टा  मीठा शरबत डालो,
चुस्की ले, खुश होता मन है
देखो ये कैसा जीवन  है
होती भोर निकलता सूरज
पंछी संग मिल करते कलरव
होती व्याप्त शांति डालों  पर,
नीड छोड़ पंछी उड़ते  जब
नीड देह का ,पिंजरा जैसा,
और कलरव ,दिल की धड़कन है
देखो ये कैसा जीवन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

हमारी दास्ताँ

            हमारी दास्ताँ

सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो ,
      लगा ये  दास्ताँ सबकी ,मुझी  से मिलती जुलती है
यूं ही बैठा रहा मै कोसता तक़दीर को अपनी ,
          खुदा  को बददुआ देता रहा ,ये  मेरी गलती है 
मुकद्दर लिखने वाले ने ,खुशी गम लिख्खे है सारे ,
           किसी को थोडे कम है तो किसी को थोडे ज्यादा है 
किसी को बचपने में दुःख,कोई हँसता जवानी में,
            और मुश्किल से कोई काटता ,अपना बुढ़ापा  है
रहे हर हाल में जो खुश ,जूझ सकता हो मुसीबत से ,
            नाव तूफ़ान में भी उसकी हरदम पार लगती है
सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो,
      लगा ये दास्ताँ सबकी ,मुझी से मिलती जुलती है            
 राह में जिंदगी की कितने ही पत्थर पड़े मिलते,
      करोगे साफ़ जब  रोड़े ,तभी बढ़ पाओगे   आगे
उठाओगे जो पत्थर ,कोई हीरा मिल भी सकता है,
      बिना कुछ भी किये क्या भाग्य कोई का कभी जागे  
जो पत्थर राह की अड़चन है उनमे है बड़ी ताक़त ,
      जब टकराते है आपस में ,तो चिंगारी  निकलती  है
सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो,
       लगा ये दास्ताँ सबकी,मुझी से मिलती जुलती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 30 मई 2014

मॉडर्न बीबियाँ

          मॉडर्न बीबियाँ

सुनती हैं इस कान से ,उस कान से देती निकाल ,
बात अपने पतियों की,भला सुनता  कौन है
आजकल इस बात की भी उनको है फुर्सत नहीं,
कान में अब लगा रहता ,उनके ईयर फोन है
हाथों में ले हाथ ,हमसे बात करते थे कभी,
दास्ताँ बन रह गए है ,वो पुराने दिन सभी ,
क्योंकि उनके हाथ में है रहता मोबाईल सदा ,
हो गया दिल उनका अब 'डू नाट डिटर्ब 'झोन 'है

घोटू  

बुधवार, 28 मई 2014

मज़ा -छतों का

   मज़ा  -छतों का

हमें है याद आती 'घोटू'रातें गर्मियों की वो,
छतों पर लोग सोते थे,छतें गुलजार रहती थी
चांदनी रात में हर छत पे जब चन्दा चमकता था,
थपकियाँ दे सुलाती थी,हवाएँ मस्त बहती थी
धूप में सर्दियों की ,छतों पर चौपाल जमती थी ,
कभी बड़ियाँ ,कभी पापड कभी आचार बनते थे
टूटते व्रत थे करके चन्द्र दर्शन ,छतों पर जाकर ,
जब करवा चौथ के और तीज के त्यौहार मनते थे
अकेले,चुपके चुपके ,छत पे जाकर ,मज़ा मिलने का,
याद अब  जब भी आता ,मुंह में मिश्री घोल देता है
पड़ोसी की छतों पर ताकने  का,झाँकने का  सुख,
राज़ कितने ही अनजाने ,अचानक खोल देता है
पड़ोसन अपनी गीली जुल्फों से ,मोती छिटकती थी,
सवेरे ही सवेरे ये बड़ा उपहार होती  था
हमें जब कनखियों से ,अपने छत से ,देखती थी वो,
हमारे तन और मन में   गुदगुदी हर बार होती थी
मगर अब फ्लेट है  कितने, इमारत कितने मंज़िल की,
अकेली रह गयी उन पर ,बिचारी छत ,तरक्की में
अब तो बस लोग अपने घरों में ही दुबके रहते है ,
लिया है छीन हमसे छतों का सुख,इस तरक्की ने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ग़ज़ल

            ग़ज़ल

जो कमीने है,कमीने ही रहेंगे
दूसरों का चैन ,छीने ही रहेंगे
कुढ़ते ,औरों की ख़ुशी जो देख उनको,
जलन से आते पसीने ही रहेंगे
कोई पत्थर समझ कर के फेंक भी दे,
पर नगीने तो नगीने ही रहेंगे
 आस्था है मन में तो ,काशी है काशी ,
और मदीने तो मदीने ही रहेंगे
उनमे जब तक ,कुछ कशिश,कुछ बात है ,
हुस्नवाले लगते सीने ही रहेंगे
 अब तो भँवरे ,तितलियों में ठन गयी है,
कौन रस फूलों का पीने ही रहेंगे
जितना भी ले सकते हो ले लो मज़ा ,
आम मीठे,थोड़े महीने ही रहेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 27 मई 2014

तूफ़ान के बाद

       तूफ़ान के बाद

जब कभी तूफ़ान आता है तो अक्सर ,
       होता मौसम दूसरे दिन खुशनुमा है
आग की जब भी तपिश में तपा करता ,
        रूप कुंदन का निखरता  दस गुना है
जिंदगी का फलसफा इतना है केवल
आज गम है तो खुशी फिर आएगी कल
आदमी फिर भी न जाने क्यों हमेशा
चिंताओं में डूब कर  , रहता  परेशां   
रात है तो कल सुबह भी आएगी ही
दुखी है जो जिंदगी ,मुस्काएगी ही
निराशा के, घिरे सब बादल छटेंगे
राह की बाधा ,सभी कांटे हटेंगे
लगन से जो चलोगे ,होगी न मुश्किल
मिलेगी निश्चित ,तुम्हारी तुम्हे मंजिल
हक़ीक़त बन सामने आ जाएगा  वो,
          कोई भी सपना अगर तुमने बुना है
जब कभी तूफ़ान आता है तो अक्सर ,
         होता मौसम ,दुसरे दिन खुशनुमा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कुर्सी

           कुर्सी

कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
                 कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
                 रिश्ते नाते ,सभी रखता  ताक पर 
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
                  बैठने देता न मख्खी   नाक पर
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
                  आ जाता है अपनी वोऔकात पर    

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मोदी आया

              मोदी आया

आ गया मोदी नरेंदर, बात ये सुन ,
                   लगा गिरने नीचे है  डॉलर बिचारा
सब के सब शेयर उछलने लग गए है,
                    ख़ुशी से बदला हुआ  ,माहौल सारा
भाईचारे की हवा  ऐसी चली है ,
                      पड़ोसी भी आ गले  मिलने लगे है
कालिमा है छटी ,सूर्योदय हुआ है,
                       फूल सारे कमल के खिलने लगे है
देख कर  आगाज़ ये लगने लगा है ,
                       होने वाला अच्छा  है अंजाम भी अब
अच्छे दिन आयेंगे ,निश्चित ही सभी के,   
                        देश मेरा  करेगा  उत्थान भी अब

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 25 मई 2014

आज लेना ये शपथ है

 आज  लेना ये शपथ है
        नरेंद्र मोदी से
  आज लेना ये  शपथ है

हर ह्रदय में हर्ष होगा
हमारा उत्कर्ष होगा
विश्व में सिरमौर फिर से,
मेरा भारतवर्ष   होगा
आ गया  शुभ  मुहुरत है
आज लेना ये  शपथ है
कहीं कंकर,कहीं पत्थर, राह में बिखरे पड़े है
इधर देखो,उधर देखो ,झाड़ काँटों के खड़े है
तप रहा है गरम मौसम,है नहीं पर छाँव कोई
पथिक कुछ विश्राम करले,नहीं ऐसा ठाँव कोई
सभी कचरा बुहारोगे
साफ़ करके,संवारोगे
बड़ा दुर्गम ,कठिन पथ है
आज लेना ये  शपथ है
लोकतंत्री नामलेकर ,चल रही थी,राजशाही
रोज थी मंहगाई बढ़ती,हर तरफ थी त्राहि,त्राहि
घोटाले में लिप्त नेता ,लूटने में सब लगे  थे
जब भरी हुंकार तुमने, सभी में सपने जगे थे
तुम अन्धेरा मिटाओगे
तुम तरक्की  दिलाओगे
बड़ी तेजी से बढ़ेगा,
देश का यह प्रगति रथ है
आज लेना ये शपथ है
अपेक्षाएं बहुत जनता को लगी है,तोड़ना मत
बेईमानो,लूटखोरों को खुला तुम,छोड़ना मत
 हो सुशासन देश में और दिन सभी के अच्छे आये
आज सारा देश तुमसे ,है   यही   आशा  लगाये
अलख ऐसा जगाना है
जो कहा,कर दिखाना है
क्योंकि अब तो साथ तुम्हारे ,
सभी का बहुमत  है
आज लेना  ये शपथ है  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सलाह

           सलाह
एक दिन हमारे मित्र  बड़े परेशान थे
क्या करें,क्या ना करें,शंशोपज में थे, हैरान थे
हमने उनसे कहा ,सलाह देनेवाले बहुत मिलेंगे,
मगर आप अपने को इस तरह साँचें में ढाल  दें
जो बात समझ में न आये ,उसे एक कान से सुनकर,
दूसरे कान से निकाल दें
आप सबकी सुनते रहें
मगर करें वही ,जो आपका दिल  कहे
लगता है उन्होंने मेरी बात पर अमल कर लिया है
मेरी सलाह को इस कान से सुन कर,
उस कान से निकाल दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दिल की बात

             दिल की बात

टुकड़े टुकड़े  हो गया है ,आपकी बे वफाई से ,
    मगर ये बावरा  दिल अब भी तुमसे प्यार करता है
फिर से जुड़ने की कोशिश में ,जब टकराते है सब टुकड़े ,
            तो जो आवाज होती है,समझते सब,धड़कता है 
घोटू

नेताजी का स्वप्नभग्न

              नेताजी का स्वप्नभग्न

सजा कर हमने रखी थी ,सिला कर पोषक नूतन
हमारे  भी दिन फिरेंगे ,बड़े  आशावान  थे  हम
क्या पता कब मिनिस्ट्री के लिए आ जाए बुलावा
मगर ये सब हो न पाया,सिर्फ मन का था छलावा
भीड़ चमचों की गयी छंट, इस तरह निष्क्रिय रह के
बिना कुर्सी के भला हम ,अब जिएंगे,किस तरह से

घोटू

अच्छे दिन आने लगे है

      अच्छे दिन आने लगे है

वो भी दिन थे ,जब दस जनपथ,
                      कहता सूर्य उगा करता था
जब बगुला भी राजहंस बन,
                     मोती सिर्फ चुगा करता था
'मौन'बना कुर्सी की शोभा ,
                      कठपुतली बन नाचा करता,
जब तक 'टोल टैक्स'ना भर दो,
                       सारा काम  रुका था करता  
चोरबाजारी ,बेईमानी ,
                          घोटालों की चल पहल थी 
 चमचे  और चाटुकारों की,
                           सभी तरफ होती हलचल थी
देखो मौसम बदल रहा है,
                        अब अच्छे दिन आने को है
प्रगतिशील,कर्मठ मोदी जी,
                          अब सरकार बनाने को है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

जनाजा -हसरतों का

      जनाजा -हसरतों का
 
शून्य पर आउट हुई मायावती जी,
            मुलायम का मुश्किलों से लगा चौका
सोनिया जी सौ से आधे से भी कम में,
              सिमटी ,ऐसा  नतीजों ने दिया  चौंका
सोचते थे करेंगे स्कोर अच्छा ,
                सत्ता में दिल्ली की शायद मिले मौका
और मिल कर बनाएंगे तीसरा एक ,
                 मोर्चा हम,सभी सेक्युलर  दलों का
रह गए पर टूट कर के सभी सपने ,
                 दे गयी जनता हमें इस बार धोका
लहर मोदी की चली कुछ इस तरह से ,
                  जनाजा निकला  सभी की हसरतों का

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

आज ये तुमको शपथ है

        नरेंद्र मोदी से
  आज ये तुमको शपथ है

हर ह्रदय में हर्ष होगा
हमारा उत्कर्ष होगा
विश्व में सिरमौर फिर से,
मेरा भारतवर्ष   होगा
आ गया  शुभ  मुहुरत है
आज ये तुमको शपथ है
कहीं कंकर,कहीं पत्थर, राह में बिखरे पड़े है
इधर देखो,उधर देखो ,झाड़ काँटों के खड़े है
तप रहा है गरम मौसम,है नहीं पर छाँव कोई
पथिक कुछ विश्राम करले,नहीं ऐसा ठाँव कोई
सभी कचरा बुहारोगे
साफ़ करके,संवारोगे
बड़ा दुर्गम ,कठिन पथ है
आज ये तुमको शपथ है 
लोकतंत्री नामलेकर ,चल रही थी,राजशाही
रोज थी मंहगाई बढ़ती,हर तरफ थी त्राहि,त्राहि
घोटाले में लिप्त नेता ,लूटने में सब लगे  थे
जब भरी हुंकार तुमने, सभी में सपने जगे थे
तुम अन्धेरा मिटाओगे
तुम तरक्की  दिलाओगे
बड़ी तेजी से बढ़ेगा,
देश का यह प्रगति रथ है
आज ये तुमको शपथ है
अपेक्षाएं बहुत जनता को लगी है,तोड़ना मत
बेईमानो,लूटखोरों को खुला तुम,छोड़ना मत
जो हो सुशासन देश में और दिन सभी के अच्छे आये
आज सारा देश तुमसे ,है   यही   आशा  लगाये
अलख ऐसा जगाना है
जो कहा,कर दिखाना है
क्योंकि अब तो साथ तुम्हारे ,
सभी का बहुमत  है
आज ये तुमको शपथ है   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चुनाव के बाद चिंतन -मुलायम जी का

चुनाव के बाद चिंतन -मुलायम जी का
          
लहर मोदी की चली ,उड़ गए सब के होश है
पांच सीटें मिली हमको,जनता का आक्रोश है
गांधी के परिवार ने पर पायी दो सीटें सिरफ ,
उनसे ढाई गुना है हम,हमको ये संतोष है

घोटू

शनिवार, 24 मई 2014

जिंदगी कैसे कटी

        जिंदगी  कैसे कटी

कटा बचपन चुम्मियाँ पा ,भरते थे किलकारियां,
                      गोदियों में खिलोने की तरह हम सटते रहे
हसीनो के साथ हंस कर,उम्र  सारी काट दी,
                        कभी कोई को  पटाया ,कभी खुद पटते  रहे
आई जिम्मेदारियां तो निभाने के वास्ते ,
                         कमाई के फेर में ,दिन रात हम  खटते  रहे 
कभी बीबी,कभी बच्चे ,कभी भाई या बहन ,
                       हम सभी में,उनकी जरुरत ,मुताबिक़  बंटते रहे 
शुक्ल पक्षी चाँद जैसे ,कभी हम बढ़ते रहे ,
                         कृष्णपक्षी  चाँद जैसे ,कभी हम घटते   रहे
मगर जब आया बुढ़ापा,काट ना इसकी मिली ,
                         और बुढ़ापा काटने को ,खुद ही हम कटते रहे     

घोटू

बुढ़ापा ना कटे

          बुढ़ापा ना कटे

जवानी थी,मारा करते फाख्ता थे तब मियाँ
मजे से दिन रात काटे ,खूब काटी मस्तियाँ
मगर अब आया बुढ़ापा,काटे से कटता  नहीं,
ना इधर के ,ना उधर के,हम फंसे है दरमियाँ

घोटू

संगत का असर

          संगत का असर

तपाओ आग में तो निखरता है रंग सोने का,
                          मगर तेज़ाब में डालो तो पूरा गल ही जाता है
है मीठा पानी नदियों का,वो जब मिलती समंदर से ,
                           तो फिर हो एकदम  खारा ,बदल वो जल ही जाता है  
असर संगत  दिखाती है,जो जिसके संग रहता है,
                            वो उसके रंग में रंग  धीरे धीरे  ,खिल ही जाता  है
अलग परिवारों से पति पत्नी होते ,साथ रहने पर,
                            एक सा सोचने का ढंग उनका  मिल ही जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 23 मई 2014

ब्याह तू करले मेरे लाल

            घोटू  के   पद
       ब्याह तू करले मेरे लाल

ब्याह तू करले मेरे लाल
नयी बहू के पग पड़ करते कितनी बार ,निहाल
होनी थी जो हुई ,मिटा दे ,मन का सभी मलाल
जनता के भरसक सपोर्ट का,रहा यही जो  हाल
मोदी की सरकार चलेगी ,अब दस पंद्रह साल
अपना बैठ ओपोजिशन मे ,बिगड़ जाएगा हाल
चमचे भी सब  ,मुंह फेरेंगे,देख   समय  की चाल
मैं बूढी,बीमार  आजकल, तबियत  है   बदहाल
चाहूँ देखना , हँसता गाता , मै , तेरा   परिवार
युवाशक्ति बन कर उभरेंगे ,तेरे  बाल  गोपाल
अपने अच्छे दिन आएंगे ,तब फिर से एकबार
ब्याह तू,करले मेरे लाल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 22 मई 2014

तीन मुक्तक


         तीन मुक्तक
                 १
घरों में दूसरों के झाँकने की जिनकी  आदत है ,
           फटे खुद के गरेंबां पर,नज़र उनको नहीं आते
  भले ही बाद में खानी पड़े उनको दुल्लती ही,
          मगर कुछ लोग अपनी शरारत से बाज ना आते
बदलती है बड़ी ही मुश्किलों से ,जिसकी जो आदत ,
         जो खाया करते चमचों से,हाथ से खा नहीं पाते
ये  सच है पूंछ कुत्ते की,सदा टेढ़ी ही रहती है ,
        करो कोशिश कितनी ही,हम सीधी कर नहीं पाते
                              २                                              
भले ही  चोर कोई,चोरी करना छोड़ देता है,
                    मगर वो हेराफेरी से ,कभी ना बाज आता है
लोग सब अपने अपने ही ,तरीके से जिया करते,
                    जिन्हे लुंगी की आदत है ,पजामा ना सुहाता है
भले ही कितना  सहलाओ ,डंक ही मारेगा बिच्छू ,
                     सांप को दूध देने से ,जहर उसका न जाता है
शराफत की कोई उम्मीद करना ,बद्तमीजो से ,
                     हमारा ये तजुर्बा है,हमेशा व्यर्थ  जाता है
                                ३ 
  समंदर के किनारे की ,रेत पर चाहे कुछ लिख़ दो,
                   लहर जब आएगी अगली ,सभी कुछ मिट ही जायेगा
अगर तुमने उगाये केक्टस के पौधे गमले मे,
                     तो निश्चित है कोई ना कोई काँटा ,चुभ ही जाएगा 
है काला  काग होता है ,और काली है कोकिल भी ,
                    मगर जब बोलेंगे ,अंतर ,तुम्हे तब दिख ही जाएगा
भले सोना हो या पीतल चमकते दोनों,पीले है ,
                      कसौटी पर घिसोगे तो,भरम सब मिट ही जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सुबह की धूप

          सुबह की धूप

सुबह सुबह की धूप ,धूप कब होती है ,
                       ये है पहला प्यार ,धरा से  सूरज का 
प्रकृति का उपहार बड़ा ये सुन्दर है,
                       खुशियों का संसार,खजाना सेहत का
   धूप नहीं ये नयी नवेली  दुल्हन है ,
                        नाजुक नाजुक सी कोमल, सहमी ,शरमाती
उतर क्षितिज की डोली से धीरे धीरे ,
                         अपने  बादल के घूंघट पट को सरकाती
प्राची के रक्तिम कपोल की लाली है ,
                            उषा का ये प्यारा प्यारा  चुम्बन है
अंगड़ाई लेती अलसाई किरणों का,
                             बाहुपाश में भर पहला आलिंगन है
निद्रामग्न निशा का आँचल उड़ जाता,
                              अनुपम उसका रूप झलकने लगता है
तन मन में भर जाती है नूतन उमंग ,
                              जन जन में ,नवजीवन जगने लगता है
करने अगवानी नयी नयी इस दुल्हन की,    
                               कलिकाये खिलती ,तितली  है करती  नर्तन
निकल नीड से पंछी कलरव करते है,
                                बहती शीतल पवन,भ्रमर करते  गुंजन
 जगती ,जगती ,क्रियाशील होती धरती ,
                                शिथिल पड़ा जीवन हो जाता ,जागृत सा
सुबह सुबह की धूप ,धूप कब होती है,
                                 ये है पहला प्यार ,धरा पर   सूरज का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

       

राज़-सुखी वैवाहिक जीवन का

           राज़-सुखी वैवाहिक जीवन का  

सुखी वैवाहिक जीवन का, हमारे राज़  है इतना  ,
                     जो भी कहती है बीबीजी ,काम हम वो ही करते है
नहीं गुलाम जोरू के ,मगर हम भक्त पत्नी के,
                      इशारा उनकी उंगली का ,और हम नाचा करते  है
भले ही हमसे दफ्तर में,डरे अफसर से चपरासी ,
                       मगर घर पर है बीबीजी ,हमारी बॉस ,डरते है
मिलाने उनके सुर में सुर ,की आदत पड़ गयी इतनी ,
                       खर्राटे जब वो भरती  है , खर्राटे हम भी भरते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 21 मई 2014

सिमट सैंतालिस पर हम रह गए

       सिमट सैंतालिस पर हम रह गए

                 किले थे  उम्मीद के , सब ढह गए
                दिल के अरमां ,आंसूओ में बह गए  
चाहती थी माँ, बनूँ पी एम   मैं
बैठ कर बंसी बजाऊं ,चैन   में
करी रैली,भटका भी दिनरैन  मैं
        बिन कहे  वोटर  सभी कुछ कह गए
         दिल के अरमां ,आंसूंओं में बह गए 
गरीबों के घर रुके,भोजन किये
फाड़ा अध्यादेश ,सब नाटक किये
कोसा मोदी को ,बहुत  भाषण  दिये
          सिमट सैतालिस पर  हम रह गए
           दिल के अरमां ,आंसूंओं में बह गए
हारे दिग्गज सब,मुसीबत हो गयी
जब्त कितनो की जमानत हो गयी
हर तरफ आफत ही आफत  हो गयी
               अब तो हम  मुश्किल के मारे रह गए
                दिल के अरमां ,आंसूंओं में बह गए
सोचा था ,पी एम जब बन जाएंगे
 विदेशी  प्यारी दुल्हनिया  लाएंगे
क्या पता था,कहर  मोदी ढाएंगे
            हम  कंवारे   थे,  कंवारे रह गए
            दिल के अरमां ,आंसूंओं में बह गए

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 19 मई 2014

माँ बाप के प्रति

             माँ बाप के प्रति

जिन हाथों ने ऊँगली पकड़ सिखाया था ,
                       उठना हमको और एक एक पग रख चलना
आज बुढ़ापे में है वो कमजोर हुए ,
                        कमर झुक गयी और हुआ  मुश्किल   चलना
तो क्या आज हमारा  ये कर्तव्य नहीं,
                          उनकी  उंगली  थामे ,उन्हें   सहारा  दें
वो प्यारे माँ बाप हमारे बूढ़े है ,
                           पूरी श्रद्धा से ,जी भर प्यार हमारा दें
हम जो भी है,उनकी आज बदौलत है ,
                             अब भी रखते है फ़िक्र,रहा करते बेकल
  हमने जो फल फूल, सफलता पायी है,
                               यह सब  उनके आशीर्वादों का ही  फल
बचपन में जो लिखना हमें  सिखाते है ,
                                  अ ,आ ,इ ,ईं ,अक्षर ज्ञान  कराते है
 देखो कैसी है यह  विडंबना जीवन की,
                               हम पढ़ लिख कर ,उन्हें गंवार बताते है
जीवन में जब भी हमने ठोकर खाई ,
                                 गिरे, उन्होंने  पकड़ा   हाथ, उठाया  है
झाड़ी धूल वस्त्र से , हमें प्रेरणा दी ,
                                 और  हमारे  घावों को सहलाया  है
आज उमर के साथ,हाथ उनके कांपे ,
                            वो बूढ़े है ,वो निर्बल है ,अक्षम   है
पर अनुभव की भरी पोटली उनके संग ,
                            उनका साया ,सर पर है, ये क्या कम है
उनकी पूजा करो,करो उनकी सेवा ,
                              मातृ पितृ ऋण ,तुमको  अगर  चुकाना हो
उनके आशीर्वादों से भरलो झोली ,
                                पता नहीं कल का,कल वो हो भी  या ना हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 18 मई 2014

मैया मोरी ,मोदी बहुत सतायो

           घोटू के पद

 मैया मोरी ,मोदी बहुत सतायो
मोसे कहत ,अभी  बालक हूँ, मैं इटली को जायो
शहजादा,शहजादा कह कर,खूब मजाक  उड़ायो
रैली की रेला पेली में, जगह जगह भटकायो
गाँव गाँव पैदल ही घूम्यो,और दलित घर खायो
मनमोहन को बिल भी फाड़यो ,नाटक खूब दिखायो
राजा बनू चाह थी तेरी ,पर मौको नहीं आयो
अबकी बार मोहे जनता ने ,सस्ते में  निपटायो
वरमाला के बदले मोहे ,हार को हार पहरायो
बाबा कह तेरे चमचों ने ,बाबा मोहे बनायो
अब  मोरी शादी करवा दे,बहुत ही नाच नचायो

घोटू   

यार तुम बिछड़ गए

          मेरे प्रिय सखा,चिंतक ,मार्गदर्शक ,सत्पुरुष
  परमादरणीय श्री हरनारायण गोगिया की पावन स्मृती में  

              यार तुम बिछड़ गए

ओ यारों के यार ,यार तुम बिछड़ गए
मेरा कर सूना संसार यार तुम किधर गए
हमने तुमने थी गुंथी प्रेम की जो माला ,
उस माला के तुम फूल ,अचानक  बिखर गए
कर कितनो का उपकार ,यार तुम बिछड़ गए
ओ  यारों  के  यार, यार  तुम  बिछड़  गए
हमने तुमने मिल कर आपस में संग संग ,
घूमा सारा संसार  ,यार  तुम बिछड़ गए
पर कर बैतरणी पार,यार तुम बिछड़ गए
ओ  यारों के  यार  ,यार तुम   बिछड  गए
सबसे हिलमिल प्यार लुटाया जिस दिल से,
दे गया दगा दिलदार  ,यार तुम किधर  गए
कर सबसे सद्व्यवहार ,यार तुम बिछड़ गए
ओ  यारों के  यार, यार तुम   बिछड़     गए    
हर  बार  चमन में फूल न ऐसा खिलता  है ,
करके सूना गुलजार , यार तुम बिछड़ गए
हो गयी उदास  बहार ,यार तुम बिछड़ गए
ओ  यारों  के यार, यार  तुम बिछड़   गए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 17 मई 2014

भोंपू भाइयों को नमन !!!


कामकाज छोड़ के
दिनोरात लगे रहे,
पंजा हो या झाड़ू
गला सबका कसे रहे..
हर गली - कूचे में
बम - बम किये रहे,
पप्पू और जीजा की
नाक में दम किये रहे...
हाथी को पिन मारा
साइकिल पंक्चर,
लालटेन बुझ गई
फूंके ऐसा मन्तर...
टीवी हो या पेपर
सबको पछाड़ दिया,
कोई खबर आयी नहीं
मोदी सा दहाड़ दिया...
जनता के घाव पर
मरहम लगाया किये,
उल्टा सीधा बोल के भी
जोश बढ़ाया किये...
मोदी खुद सोच में
कि कैसे चमत्कार हुआ,
इतना बड़ा सपना
कैसे साकार हुआ...
जय हो प्यारे भोंपुओं
तुमको नमन है,
तुमपे एक चालीसा
लिखने का मन है....

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, 16 मई 2014

बीते दिन


             बीते दिन

जिन गलियों में आते जाते रोज रहे ,
                     उन गलियों में गए कई दिन गुजर गये
जो सपने दिन रात आँख में बसते थे,
                       टूट टूट कर चूर हुए और बिखर गए
ऐसी आंधी चली , समय का रुख बदला,
                       बादल गरजे ,बिन मौसम बरसात हुई
ऐसी  ओलावृष्टि हुई अचानक ही ,
                       खड़ी फसल पकने को थी,बरबाद  हुई
फेर समय का था या किस्मत खोटी थी,
                       नीड बसे  ही ना थे,लेकिन उजड़ गए
जो सपने दिन रात आँख में बसते थे ,
                        टूट टूट कर चूर हुए और बिखर गए
ऐसा ना था भूल गए थे हम रस्ता ,
                       ऐसा ना था ,थी  मंज़िल की चाह नहीं
पर शायद  हिम्मत ही कम थी  पावों में ,
                       पहले जैसा था  मन में उत्साह नहीं
कभी चाँद पाने का मन में जज्बा था ,
                      पर वो जोश ,जवानी, जाने किधर गए
जो सपने दिन रात आँख में बसते  थे,     
                       टूट टूट कर चूर हुए और बिखर गए
हम उम्मीद लगा ये सोचा करते थे ,
                        कभी हमारे भी आएंगे  अच्छे दिन
और बुढ़ापे में  ये याद किया करते ,
                         हाय जवानी  में थे कितने अच्छे दिन
कल के चक्कर में घनचक्कर बने रहे ,
                         न  तो इधर के रहे और ना उधर गए
 जो सपने दिन रात आँख में बसते थे,
                           टूट टूट कर चूर हुए और बिखर गए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                       
                 

बुधवार, 14 मई 2014

मोदी की आंधी

                मोदी की आंधी

बड़े  गर्व  से खड़े      पेड़ सब  बड़े बड़े
ऐसी  आंधी चली कि सब के सब उखड़े
 मायावी जादूगरनी ने कील ठोक ,
                  कर रख्खा था , ओहदेदारों को बस में
जैसे भी वो नाच नचाया करती थी ,
                   कठपुतली बन ,नाच करते, बेबस से
नहीं किसी की हिम्मत थी कुछ भी बोले,
                    सब के सब मेडम से इतना  डरते थे
खुद होते बदनाम ,लाभ मेडम लेती,
                    उलटे सीधे काम सभी वो करते थे
जादूगरनी के मन में ये  इच्छा थी ,
                     उसका बेटा मालिक बने  विरासत का
लेकिन सब अरमान रहे दिल के दिल में,
                     बंटाधार होगया उनकी हसरत का
खूब सताया,जी भर लूटा जनता को,
                       लगा लगा  टैक्स बढ़ा  कर  मंहगाई
लेकिन मेडम का तिलिस्म सब टूट गया ,
                        जब जनता ने अपनी ताकत दिखलाई
      गिरी का बब्बर शेर दहाड़ा घर घर जा  
       मायाविनी के बाग़ खड़े थे,सब उजड़े
       बड़े गर्व से खड़े    पेड़ सब बड़े बड़े 
        ऐसी आंधी चली कि सबके सब उखड़े

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

एग्जिट पोल और दिल्ली का मौसम

        एग्जिट पोल और दिल्ली का मौसम
                             १
गरमी थी बड़ी तेज और मौसम खराब था
माहौल चुनावी पर  भी  पूरा  शबाब   था
बढ़ती हुई बदहाली से हर शख्स  तंग था ,
'आएंगे अच्छे दिन 'ये सभी का ख़्वाब था
                         २
जबसे नतीजा जाहिर एग्जिट पोल का हुआ
जो सत्ता में थे  उनका डब्बा  गोल  सा  हुआ
खुश लोग सारे हो गए  और  नाचने लगे ,
हर ओऱ ,बड़ा खुशनुमा , माहोल  हो  गया
                        ३
गर्मी की तपिश घट गयी ,बरसात आ गयी
राहत की सांस सबने ली,ठंडक सी छा गयी
मौसम ने बदल कर के ये सन्देश दे दिया ,
अब तो सुशासन आएगा , ये बात आ गयी
                      ४
मोदी ने अपने जादू के जलवे दिखा दिए
राहुल और सोनिया के सब सपने मिटा दिए
देखा ये नरेन्दर का करिश्मा जो इन्द्र  ने,
खुश होके उसने दिल्ली में ,बादल बिछा दिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 13 मई 2014

धुलाई


            धुलाई

हो मैल अगर हो  कपड़ों में ,पानी में उन्हें भिगोते है
और फिर घिसते साबुन से ,छपछपाते और धोते है
हो पानी  अगर अधिक  भारी,तो झाग आते है काफी कम
और उन्हें निचोड़ो जब धोकर ,कपड़ों में सल पड़ते हरदम  
मन में भी जो यदि मैल भरा ,तो धुलना बहुत जरूरी है
तो भीज प्रेम के रस में मिलना जुलना बहुत जरूरी  है
सत्कर्मो के साबुन से घिस ,मन के मलाल को तुम मसलो
जीवन  में  ठोकर मिलती ज्यों  ,खा मार धोवने की  उजलो
धुल जाता मन का मैल अगर जो मेल किसी से हो जाता
मन भीज प्रेम रस में जात्ता ,तन मन है निर्मल हो जाता
होती है वही प्रक्रियाएं ,इंसान निचुड़ सा जाता है
अनुभव के जब सल पड़ते है,वो समझदार हो जाता है
मिट जाए कलुषता ,मैल हटे ,और मन निर्मल हो जाएगा
उज्जवल  प्रकाश से आलोकित ,जीवन हर पल हो जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

चुम्बक

            चुम्बक

औरतें वजन कम करने, को करती डाइटिंग रहती ,
कमर उनकी रहे कम इसलिए वर्जिश वो करती है
अगर फिगर गया जो बढ़ ,तो घट जायेगा अट्रेक्शन ,
इसलिए मिठाई,घी ,तेल सब खाने से  डरती  है
बड़ा सीना,बड़े हो हिप्प्स ,सब छत्तीस इंची हो,
कमर चौबीस इंची कम,बड़ी कमसिन नज़र आये
छिपाया करती तन को इस तरह के पहन कर कपडे ,
बदन ज्यादा से ज्यादा खुल्ला हो ,सब को नज़र आये
अदा से चलती कुछ  ऐसे ,थिरकते अंग हो सारे ,
और फिर चाँद सा सुन्दर ,हसीं चेहरा हो मुस्काता
बदन सारा है चुम्बक सा ,है इसमें इतना 'अट्रेक्शन'
आदमी सख्त कितना भी हो,लोहे सा खिंचा  आता

घोटू  

गर्मी में शीतलता

       गर्मी में शीतलता

तेज ताप  से जब सूरज के ,दग्ध ह्रदय हो जाता
होंठ सूखते,प्यास सताती ,मन विव्हल हो जाता
तेरी जुल्फों के साये की   ठंडक में जी  लेते
तेरी अमराई में आकर ,अमरस कुछ पी लेते
ग्रीष्म ऋतू में पर्वत पर जा ,शीतल होता मौसम
हमको तो तेरा पहलू ही ,लगता हिल स्टेशन 
तेरी जुल्फ घटायें  बन कर,जब हम पर छा जाती
शीतल करती रूप छटा और मन प्रमुदित  कर जाती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हॉट पेंट

             हॉट पेंट

घोटू सर्दी ऋतू में ,जब ठंडक बढ़ जाए
सर्दी को हम भगाते ,गरम पेंट सिलवाय
गरम पेंट सिलवाय ,आय गर्मी का मौसम
ज्यों ज्यों गर्मी बढे ,वस्त्र होते जाते कम
पहने छोटे वस्त्र ,लड़कियां  हमें लुभाती
बित्ते  भर की चड्डी ,हॉट पेंट  कहलाती

घोटू

रोज त्योंहार कर लेते

             रोज त्योंहार कर लेते

तवज्जोह जो हमारी तुम ,अगर एक बार कर लेते
तुम्हारी जिंदगी में हम ,प्यार ही प्यार   भर देते
खुदा ने तुम पे बख्शी हुस्न की दौलत खुले हाथों,
तुम्हारा  क्या बिगड़ जाता ,अगर दीदार  कर लेते
पकड़ कर ऊँगली तुम्हारी ,हम पहुंची तक पहुँच जाते ,
इजाजत पास आने की,जो तुम एक बार गर देते
तुम्हारे होठों की लाली ,चुराने की सजा में जो ,
कैद बाहों में तुम करती ,खता हर  बार कर लेते
तुम्हारे रूप के पकवान की ,लज्जत के लालच  में,
बिना रमजान के ही रोजे हम ,सौ बार कर   लेते
बिछा कर पावड़े हम पलकों के ,तुम्हारी  राहों में ,
उम्र भर तुमको पाने का ,हम इन्तेजार  कर लेते
तुम्हारे रंग में रंग कर,खेलते रोज होली हम,
जला दिये  दीवाली के ,रोज त्यौहार कर लेते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ख्वाइशों का समंदर

        ख्वाइशों का समंदर

खायेगें वो भिगोकर के चाय में,
                   कुरकुरे बिस्किट उन्हें पर चाहिये
जिनके सर पर गिनती के ही बाल है,
                    उन्हें ही कंघे अधिकतर  चाहिये
भले निकले खट्टा और रेशे भरा ,
                     दिखने में पर आम सुन्दर  चाहिये
काटे बिन तरबूज को वो चाहते,
                     मीठा भी और लाल अंदर   चाहिये
लगा देंगे करने घर का काम सब ,
                      मगर  नाजुक ,हसीं  दिलवर चाहिये
सर्दियों में चाहिए गरमी हमें,
                      गरमी में सर्दी   का मंजर   चाहिये
नेताजी के पाँव लटके कब्र में,
                       तमन्ना ,बनना  मिनिस्टर  चाहिये
कुवे तक तो बाल्टी जाती नहीं,
                        ख्वाइशों का पर  समन्दर  चाहिये

घोटू 

मिलन

              मिलन 

तेरे अधरों की मदिरा के घूँट चखे है ,
                    युगल कलश से हमने अमृतपान किया है
रेशम जैसे तेरे तन को सहला कर के,
                     शिथिल पड़ा ,अपना तन मन उत्थान किया है
ऐसा तुमने बांधा बाहों के बंधन में ,
                        बंध  कर भी मन का पंछी उन्मुक्त  हो गया,
तन मन एकाकार हो गए मिलानपर्व में,
                          ऐसा हमतुमने मिल स्वर संधान किया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पसीना सबका छूटा है

     पसीना सबका छूटा है

कभी लन्दन की महारानी,कभी इटली की महारानी ,
                              विदेशी मेडमो ने देश मेरा ,खूब लूटा है
सताया खूब जनता को,मार  मंहगाई की चाबुक ,
                            बड़ी  मुश्किल से अब की बार उनसे पिंड छूटा है  
दुखी  जनता बड़ी बदहाल थी और परेशाँ भी थी,
                             घड़ा जो पाप का था भर गया ,अब जाके फूटा है
गिरी का शेर बब्बर जब दहाड़ा जोशमे आकर,
                             रंगे  सियार थे जितने ,पसीना  सब का छूटा है

घोटू

गुरुवार, 8 मई 2014

आराधन और मिलन

आराधन और मिलन

कीर्तन में भी तन होता है
आराधन में धन होता है
और भजन और पूजन में ,
पाओगे जन जन होता है
होती है 'रति'आरती में,
है भोग ,आचमन सब होता
आराधन और मिलन में भी,
है यह संयोग ,गजब होता

घोटू

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