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बुधवार, 2 मई 2018

साकार सपन 

कभी कुछ करने का मन में ,सपन हमने संजोया था 
प्यार से एक पौधे को  , जतन  से  हमने बोया था 
संवारा हमने तुमने मिल ,बड़ी मेहनत से सींचा है 
खुदा की मेहरबानी से ,गया बन अब ,बगीचा है 
बहारें आई अब इसमें ,फूल कितने महकते है 
दरख्तों पर ,रसीले से ,हजारों फल लटकते है 
यही कोशिश है हरदम ,कि आये कोई भी मौसम 
फले,फूले और हरियाली ,सदा इसकी रहे कायम 

मदन मोहन बाहेती;घोटू;
मेरी राधायें 

मेरे जीवन की कितनी ही राधायें 
रह रह कर के याद मुझे वो अक्सर आये 
मेरी पहली राधा मेरी पड़ोसिन थी 
जो नाजुक सी प्यारी,सुन्दर,कमसिन थी 
उसकी सभी अदाये होती दिलकश थी 
हाँ,वो ही मेरा सबसे पहला 'क्रश 'थी 
जिसे देख कर मुझको कुछ कुछ होता था 
मैं उसकी उल्फत के सपन संजोता था 
वो भी तिरछी नज़र डाल ,मुस्काती थी
 मेरे दिल पर छुरियां कई चलाती थी 
कभी पहल  मैं करता,नज़र झुकाती वो 
कभी पहल वो करती ,पर शर्माती वो 
चहल पहल होती थी लेकिन दूरी से 
मिलन हमारा हो न सका ,मजबूरी से 
उसकी चाहत में थे मेरे सपन रंगीले 
पर कुछ दिन में हाथ हो गए उसके पीले 
उस दिन पहली बार दिल मेरा टूटा था 
चखा प्यार का स्वाद ,किसी ने लूटा था
ये मन  मुश्किल  से समझा था ,समझाये 
मेरे जीवन की कितनी ही राधाये 
जो रह रह कर याद मुझे अक्सर आये 
दूजी राधा , सिस्टर जी  की सहेली थी 
उसे समझना मुश्किल ,कठिन पहेली थी
 यूं तो मुझको देख प्यार से मुस्काती 
पास जाओ तो बड़ा भाव थी वो खाती 
चंचल बड़ी ,चपल थी और सुहानी थी 
मैंने था तय किया कि वो पट जानी थी 
वेलेंटाइन डे पर उसे गुलाब दिया 
मंहगी मंहगी गिफ्टों से था लाद दिया 
इम्पोर्टेड चॉकलेट उसे थी  खिलवाई 
पर  वो लड़की ,मेरे काबू  ना आयी 
इसके पहले कि मैं आगे बढ़ पाता 
उसकी ऊँगली पकड़ ,कलाई पकड़ पाता 
मेरी प्यारी , सुंदर सी वो वेलेंटाइन 
हुई किसी लाला के घर की थी  लालाइन
और बह गए आंसूं में थे मेरे अरमां 
सुनते चार पांच बच्चों की है अब वो माँ  
सोचूं उसके बारे में ,तो मन तड़फाये 
मेरे जीवन की कितनी ही राधायें 
रह रह कर वो याद मुझे अक्सर आये 
कितनी राधायें ,यूं आयी जीवन में 
मीठी खट्टी यादें घोल गयी मन में 
था कोई का करना मस्ती मौज इरादा 
करने टाइम पास बनी थी कोई राधा 
कई बार हम खुद को समझे सैंया थे 
उन राधाओं के कितने ही कन्हैया थे 
लेकिन जो भी मिली वो सभी  राधाये 
जिनने पार करी  जीवन की बाधाएं 
कोई बन चुकी अब कोई की रुक्मण है 
कोई रम गयी,पूरी आज गृहस्थन है 
कोई  दुखी है अब तक अपने कंवारेपन में  
कोई रह रही  'लिविंग इन के  रिलेशन' में 
हमने अब राधा का चक्कर छोड़ दिया है 
फेरे ले ,रुक्मण संग ,मन को जोड़ लिया है 
अब समझे ,राधायें तो है आती,जाती 
पर रुक्मण ही जीवन भर का साथ निभाती 
बहुत सुख मिला ,उसको अपने हृदय बसाये 
फिर भी जीवन में आयी कितनी राधाये 
रह रह कर जो ,याद मुझे है अक्सर आये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
हम ओ सी के वासी 

ये ही हमारा वृन्दावन है ,ये ही मथुरा ,काशी 
शांति,प्रेम का जीवन जीते ,हम ओसी के वासी 

वानप्रस्थ की उमर ,जवानी का जज्बा है सब में 
मन में सेवा भाव भरा है  और  आस्था रब  में 
राधाकृष्ण यहीं मंदिर में ,दुर्गा माँ और हनुमन 
भक्तिभाव में और कीर्तन में ,रमता है सबका मन 
शर्बत,छाछ छबीले लगते ,और होते  भंडारे 
जन्म दिवस की ख़ुशी मनाते है मिलजुल कर सारे 
खुल कर हँसते लाफिंगक्लब में,मन में नहीं उदासी 
शांति प्रेम का जीवन जीते ,हम ओसी के वासी
 
सुबह सुबह व्यायाम केंद्र में ,नित होती है कसरत 
काम सभी के सब आते है,जब भी पड़ती जरूरत 
क्रीड़ास्थल पर बच्चे  खेलें , और  गूंजे  किलकारी  
फव्वारों के पास मारती ,गप्पें ,महिला  सारी 
कोई सैर सवेरे करता ,कोई 'जिम' में जाता 
हमें यहाँ   दिखता हर चेहरा ,हँसता और मुस्काता 
खुशियां बरसे सदा,अमावस हो या पूरनमासी 
 शन्ति प्रेम का जीवन जीते ,हम ओसी के वासी 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू '

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

पढ़ाना हमको आता है 

चने के झाड़ पर सबको, चढ़ाना हमको आता है 
कोई भी काम में टंगड़ी अड़ाना  हमको आता है 
भले ही खुद परीक्षा में ,हो चुके फैल हो लेकिन,
ज्ञान का पाठ औरों को ,पढ़ाना हमको आता है 
कोई की भी पतंग को जब ,देखते ऊंची है उड़ती ,
तो उसको काटने पेंचें ,लड़ाना हमको आता है 
किसी की साईकिल अच्छी ,अगर चलती नज़र आती ,
उसे पंक्चर करें ,कांटे गड़ाना हमको आता है 
बिना मतलब के ऊँगली कर मज़ा लेने की आदत है ,
बतंगड़ बात का करके ,बढ़ाना  हमको आता है 
न तो कुछ काम हम करते ,न करने देते औरों को ,
कमी औरों के कामो में ,दिखाना हमको आता है 
हमारे सुर में अपना सुर ,मिला देते है कुछ चमचे ,
यूं ही हल्ला मचाकर के सताना हमको आता है 

घोटू 
बुढ़ापा छाछ होता है 

दूध और जिंदगी का एक सा अंदाज होता  है 
जवानी दूध होती है , बुढ़ापा   छाछ  होता है
 
दूध सा मन जवानी में ,उबलता है ,उफनता है ,
पड़े शादी का जब जावन ,दही जैसा ये जमता है 
दही जब ये मथा जाता ,गृहस्थी वाली मथनी में 
तो मख्खन सब निकल जाता ,बदल जाता है जो घी में 
बटर जिससे निकल जाता ,बटर का मिल्क कहलाता 
जो बचता लस्सी या मठ्ठा , गुणों की खान बन जाता 
कभी चख कर तो देख तुम ,बड़ा ही स्वाद होता है 
जवानी दूध  होती है , बुढ़ापा  छाछ  होता है 

दूध से छाछ बनने के ,सफर में झेलता मुश्किल 
गमाता अपना मख्खन धन ,मगर बन जाता है काबिल 
न तो डर  डाइबिटीज का ,न क्लोरोस्ट्राल है बढ़ता 
बहुत आसानी से पचता ,उदर  को मिलती शीतलता 
खटाई से मिठाई तक ,करने पड़ते है समझौते 
बुढ़ापे तक ,अनुभवी बन,काम के हम बहुत होते 
पथ्य बनता ,बिमारी का कई, ईलाज होता है 
जवानी दूध होती है ,बुढ़ापा  छाछ  होता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

वो अब भी परी है 

मेरी बीबी अब भी ,जवानी भरी है 
सत्रह बरस की ,लगे छोकरी  है 
उम्र का नहीं कोई उसमे असर है ,
निगाहों में मेरी वो अब भी परी है
 
भले जाल जुल्फों का ,छिछला हुआ है 
भले पेट भी थोड़ा ,निकला हुआ है 
हुई थोड़ी मोटी  ,वजन भी बढ़ा है 
भले आँख पर उनकी ,चश्मा चढ़ा है
मगर अब भी लगती है आँखें नशीली 
रसीली थी  पहले ,है अब भी रसीली 
वही नाज़ नखरे है वही है अदाए 
सताती थी पहले भी,अब भी सताये 
नहीं आया पतझड़,वो अब भी हरी है 
निगाहों में मेरी ,वो अब भी परी  है
 
भले अब रही ना वो दुल्हन नयी है 
दिनोदिन मगर वो निखरती गयी है 
भले तन पे चरबी ,जरा चढ़ गयी है 
मुझसे महोब्बत ,मगर बढ़ गयी है , 
बड़ी नाज़नीं ,खूबसूरत ,हसीं थी 
ख्यालों में मेरे जो रहती  बसी थी 
मगर रंग लाया है अब प्यार मेरा 
रखने लगी है वो अब ख्याल मेरा 
कसौटी पे मेरी ,वो उतरी  खरी है 
निगाहों में मेरी ,वो अब भी परी है

महकती हुई अब वो चंदन बनी है 
जवानी की उल्फत,समर्पण बनी है 
संग संग उमर के मोहब्बत है बढ़ती 
जो देखी है उसकी ,नज़र में उमड़ती 
 हम एक है अब ,नहीं दो जने है 
हम एक दूजे पर  ,आश्रित बने है   
जवानी का अब ना,रहा वो जूनून है 
देता मगर साथ उसका सुकून है 
मैंने सच्चे दिल से ,मोहब्बत करी है 
निगाहो में अब भी वो लगती परी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?

 न कोई शिकवा है ,न कोई शिकायत है 
हमेशा मुस्करा कर ,रहने की आदत  है  
न मुझमे कुछ कमी या खामियां ढूंढती हो 
पति को परमेश्वर ,समझ कर  पूजती हो 
न कोई जिद है ,न कोई फरमाइशें  है 
और न ऊंची ऊंची ,कोई भी ख्वाइशे है 
न कभी खीजती हो ,नहीं होती रुष्ट  हो 
हर एक  हाल में तुम,रहती सन्तुष्ट  हो 
न कभी गुस्सा होती हो ,न  झल्लाती हो 
रूप पर अपने तुम ,कभी ना इतराती हो  
काम में घर भर के,व्यस्त सदा रहती हो 
परेशानियों से तुम,त्रस्त  सदा रहती हो 
मांग पूरी करने में,सबकी तुम हो तत्पर 
दो दिन में अस्तव्यस्त ,होता है तुम बिन घर 
पीछे पड़ बात अपनी ,मुझसे नहीं मनवाती क्यों हो 
मेरी जान, तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
लोगबाग अक्सर अपनी बीबी से रहते है परेशान 
छोटी छोटी बातों पर , मचाती  है जो तूफ़ान  
कभी ननद से नहीं पटती ,कभी सास से शिकायत है 
सदा कुछ न कुछ रोना,रोने की आदत  है 
किसी को कपडे चाहिए,किसी को गहना चाहिए 
किसी को फाइव स्टार होटल में रहना चाहिए 
कोई बाहर खाने और घूमने फिरने की शौक़ीन होती है 
कोई आलसी है,काम नहीं करती.दिन भर सोती है 
कोई किटी पार्टी और   दोस्तों में रहती व्यस्त है 
कोई फेसबुक और व्हाट्स अप में मस्त है 
कोई बिमारी का  बहाना बना,पति से काम करवाती है 
कोई अपने घरवाले को ,अपनी  उँगलियों पर नचाती है 
तुम बिना कोई प्रश्न किये ,मेरी हर बात मानती हो 
मेरी आँखों के इशारों को ,अच्छी तरह पहचानती हो 
तुम भी अपनी बात मनवाने ,होती नहीं उन्मादी क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?    
तुम  सुशील ,समझदार और  जहीन हो 
तुम छरहरे बदन वाली हो, हसीन हो    
फिर भी तुममे न कोई नाज़ है ,न नखरा है 
तुम्हारा रूप कितना सादगी से भरा है 
न   तो ब्युटीपालर्र जाकर,सजना सजाना  
न ही चेहरे पर तरह तरह के लोशन लगाना 
तुम शर्मीली लाजवंती हो ,तुम्हारी नजरों में हया है 
भगवान में आस्था है और व्यवहार में  दया है     
 कभी ना कहना ,तुमने नहीं सीखा है 
पति के दिल लूटने का तुम्हारा अपना ही तरीका है 
पति के  दिल की राह, आदमी के पेट से होकर है जाती 
इसलिए तुम मुझे नित नए ,पकवान बनाकर हो खिलाती 
तुम अन्नपूर्णा हो और तुम ही गृह लक्ष्मी हो 
मैं खुशनसीब हूँ कि तुम मेरे लिए ही बनी हो 
अपनी इन्ही अदाओं से तुम मुझको लुभाती क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
हमारी जिंदगी में ,मियां बीबी वाली नोकझोंक क्यों नहीं होती 
मेरे लिए तुम्हारी कोई रोक टोक क्यों नहीं होती 
इस दुनिया में लोग तरसते है पत्नी के प्यार के लिए 
लेकिन मैं तरस जाता हूँ ,झगड़े और तकरार के लिए 
जी करता है की तुम रूठो और मैं तुम्हे मनाऊं
 तुम नखरे दिखा इठलाओ और मैं तुम्हे मख्खन  लगाऊं 
तुम जिद करो और मैं तुम्हे मन चाही वस्तु दिलवाऊं 
कभी जी करता है तुम ब्यूटी पालर्र में सजवाऊं 
पर तुम तो जैसी हो ,उस हाल में ही खुश हो 
जितना भी मिलता है ,उस प्यार में ही खुश हो 
पर सिर्फ मीठा खाने से भोजन में मज़ा नहीं आता 
वैसे ही सिर्फ प्यार से  जीवन का मज़ा नहीं आता 
जिंदगी में प्यार के साथ ,झगडे का तड़का आवश्य्क है 
कभी कभी प्यार बढाती ,रोज की झक झक है 
पर तुम शांति प्रेमी ,झगड़ने से घबराती क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधीसादी  क्यों हो ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

दान पुण्य  

भूखे को भोजन और प्यासे को जल  पिलाओ ,
               यह सच्ची सेवा और दान बड़ा  होता है 
भंडारे का खाना ,गुरूद्वारे का लंगर ,
              परशादी भोजन अति स्वाद भरा होता है 
गरमी में सुबह सुबह ,लोगों को छाछ पिला ,
                   शीतलता देने से ,पुण्य खरा होता है 
सरदी में कंबल और वस्त्रहीन को कपडे ,
             अंत समय ,पुण्य करम ,साथ खड़ा होता है 

ऑरेंज काउंटी निवासियों द्वारा 
'मुफ्त छाछ वितरण अभियान '
नित्य प्रातः ८-३० से 
गेट नम्बर ४ पर 
संपर्क सूत्र  
१ मदन मोहन बाहेती 701 टावर 1 - मोबाईल 9350805355 
२ शिव कुमार मित्तल 1502  टावर 1 - मोबाईल 9910344688 

रविवार, 22 अप्रैल 2018

सत्योत्तरवी वर्षगांठ पर 

जी रहा हूँ  जिंदगी  संघर्ष करता 
जो भी मिल जाता उसीमें हर्ष करता 
हरेक मौसम के थपेड़े सह चुका हूँ 
बाढ़ और तूफ़ान में भी बह चुका हूँ 
कंपकपाँती शीत  की ठिठुरन सही है 
जेठ की तपती जलन ,भूली नहीं है 
किया कितनी आपदा का सामना है 
तब कही ये जिस्म फौलादी बना  है 
पथ कठिन पर मंजिलों पर चढ़ रहा हूँ 
लक्ष्य पर अपने  निरन्तर ,बढ़ रहा हूँ 
और ना रफ़्तार कुछ मेरी थमी है 
सत्योत्तर  का हो गया ये आदमी है 
कभी दुःख में ,कभी सुख में,वक़्त काटा 
मिला जो भी,उसे जी भर,प्यार बांटा 
राह में बिखरे हुए,कांटे, बुहारे 
मिले पत्थर और रोड़े ,ना डिगा रे 
सीढ़ियां उन पत्थरों को चुन,बनाली 
और मैंने सफलता की राह पा ली 
चला एकाकी ,जुड़े साथी सभी थे 
बन गए अब दोस्त जो दुश्मन कभी थे 
प्रेम सेवाभाव में तल्लीन होकर 
प्रभु की आराधना में ,लीन  होकर 
जुड़ा है,भूली नहीं अपनी जमीं है 
सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 
किया अपने कर्म में विश्वास मैंने 
किया सेवा धर्म में  विश्वास मैंने 
बुजुर्गों के प्रति सेवा भाव रख कर 
दोस्ती जिससे भी की ,पहले परख कर 
प्रेम,ममता ,स्नेह ,छोटों  पर लुटाया 
लगा कर जी जान सबके काम आया
सभी के प्रति हृदय में सदभावना है  
सभी की आशीष है ,शुभकामना है 
चाहता हूँ जब तलक दम में मेरे दम 
मेरी जिंदादिली मुझमे रहे कायम 
काम में और राम में काया  रमी है 
सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 
मेरे पास वक़्त ही वक़्त है 

हे मेरी प्यारी पत्नी डीयर 
जवानी के दिनों का ,हर पति परमेश्वर
बुढ़ापे में पूजने लगता है ,
पत्नी को परमेश्वरी  बना कर ,
और बन जाता उसका परम भक्त है 
मैं भी तुम्हारी भक्ति में लीन होना चाहता हूँ ,
क्योंकि मैं रिटायर हो गया हूँ और मेरे पास ,
तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 
तब जब मैंने तुम्हारे साथ ,
बसाया था अपना घरसंसार 
तुम मुझसे और मैं तुमसे ,करता था बहुत प्यार 
पर उस उमर में मेरी महत्वकांक्षाएं ढेर सारी थी 
जिंदगी में  कुछ कर पाने की तैयारी थी 
मुझे बहुत कुछ करना था 
और बहुत आगे बढ़ना था 
और इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु ,
मैं पागलों सा जूझता रहा 
मैंने दिन देखे न रात ,
बस भागता रहा ,यहाँ और वहां 
तुम्हारे लिए समय ही कब बचता था मेरे पास 
तुम कभी नाराज होती थी ,कभी उदास 
मैं देर रात थका हुआ घर आता था 
तुम उनींदी सी ,सोइ हुई मिलती थी ,
और मैं खर्राटे भरता हुआ सो जाता था 
मैं चाहते हुए भी तुम्हारे लिए ,
समय नहीं निकाल पाता था 
क्योकि स्ट्रगल के वो दिन ,होते बड़े सख्त है 
पर अब मैं रिटायर हो गया हूँ,
मेरे पास तुम्हारे लिए,वक़्त ही वक़्त है 
पर अब ये प्रॉब्लम बढ़  गयी है 
कि तुम्हे भी तन्हा रहने की आदत पड़ गयी है  
मुझमे भी ज्यादा दमखम नहीं बचा है ,
क्योंकि उमर चढ़ गयी है 
न वो जोश ही बचा है ,न वो जज्बा ही रहा है 
और अब तुम भी तो ढल गयी हो ,
तुम में वो पुरानी वाली कशिश ही कहाँ है 
बच्चों ने बसा लिया अपना अपना संसार है 
बेटी ससुराल है 
और बेटा  सात समंदर पार है 
अब इस घोसले में ,मैं हूँ ,तुम हो ,
बस हम दोनों ही प्राणी  फ़क़्त है 
पर अब मैं रिटायर  हो गया हूँ,
मेरे पास तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 
अब मैं तुम्हारे मनमुताबिक ,
तुम्हारी उँगलियों पर नाच सकता हूँ 
अगर जरूरत पड़े तो तुम्हारे आदेश पर ,
घर के बर्तन भी मांज सकता हूँ 
बाज़ार से फल और सब्जी लाना ,
अब मेरी ड्यूटी में शामिल होगा 
अब मैं हर वो काम करूंगा ,
जो चाहता तुम्हारा दिल होगा 
अब हम दोनों ,फुर्सत  बैठेंगे ,
ढेर सारी बातें होगी 
तुम्हारी हर आज्ञा ,मेरे सर माथे होगी 
शुरू शुरू में कुछ गलतियां हो सकती है ,
जो तुम्हे झल्लाए 
और शायद मेरी कुछ बातें तुम्हे पसंद न आये 
पर मैं कोशिश कर ,खुद को ,
तुम्हारे सांचे में ढाल लूँगा 
बिगड़े हुए रिश्तों को फिर से संभाल लूँगा 
मन मसोस कर ,सब कुछ सह लूँगा,चुपचाप 
ये मेरी जवानी के दिनों में ,तुम्हारी ,
की हुई उपेक्षा का होगा पश्चाताप 
तुम कितने ही ताने मारो या नाराज हो,
तुम्हे बस प्यार ही प्यार मिलेगा ,
क्योंकि अब ये बंदा ,
पत्थर के बदले ,फल देने वाला दरख़्त है 
अब मै रिटायर हो गया हूँ ,मेरे पास ,
तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

आधुनिक सुदामा चरित्र 
( ब तर्ज नरोत्तमलाल )

१ 
मैली और कुचैली ,ढीलीढाली और फैली ,
 कोई बनियान जैसी वो तो पहने हुए ड्रेस है 
जगह जगह फटी हुई ,तार तार कटी हुई ,
सलमसल्ला जीन्स जिसमे हुई नहीं प्रेस है 
बड़ी हुई दाढ़ी में वो दिखता अनाडी जैसा ,
लड़की की चोटियों से ,बंधे हुए  केश है 
नाम है सुदामा ,कहे दोस्त है पुराना ,
चाहे मिलना आपसे वो ,करे गेट क्रेश है 
२ 
ऑफिस के बॉस कृष्णा,नाम जो सुदामा सुना ,
याद आया ये तो मेरा ,कॉलेज का फ्रेंड था 
सभी यार दोस्तों से ,लेता था उधार पैसे ,
मुफ्त में ही मजा लेना ,ये तो उसका ट्रेंड था 
लोगों का टिफ़िन खोल ,चोरी चोरी खाना खाता ,
प्रॉक्सी दे मेरी करता ,क्लास वो अटेंड था 
पढ़ने में होशियार ,पढ़ाता था सबको यार ,
नकल कराने में भी ,एक्सपीरियंस हेंड था 
३ 
कृष्ण बोले चपरासी से ,जाओ अंदर लाओ उसे ,
और सुनो केंटीन से ,भिजवा देना ,चाय  दो 
सुदामा से कृष्ण कहे ,इतने दिन कहाँ रहे ,
व्हाट्सएप,फेसबुक पर,कभी ना दिखाय  दो 
फ्रेण्डों के फ्रेंड कृष्ण ,सुदामा से करे प्रश्न ,
थके हुए लगते हो, थोड़ा  सा सुस्ताय लो 
होकर के इमोशनल ,कृष्ण बोले माय डीयर,
भूखे हो ,पिज़ा हम,मंगवा दें,खाय  लो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गाना और रोना 

गाना सबको ही आता  है ,कोई सुर में,कोई बेसुरा 
रोना सबको ही आता है ,कोई रोष में,कोई दुःख भरा 

मन में जब पीड़ा होती है ,आँखों में आ जाते आंसू 
अंतरतर की सभी वेदना , बह कर बतला जाते आंसू  
कभी कभी जब गुस्सा आता,तो भी आँखे छलका करती 
भावों का गुबार बह जाता ,आंसू बन मन हल्का  करती
कभी मिलन में या बिछोह में ,आँखे पानी भर भर लाती 
मोती जैसे प्यारे प्यारे ,आंसू गालों पर ढलकाती
बच्चों की आँखों में आंसू ,या उसका चीख चीख रोना 
सुन कर विचलित हो जाता है,माँ के मन का कोना कोना 
शायद भूख  लगी उसको , वह सारे काम छोड़ करआती 
उसको आँचल में भर कर के ,दुग्धामृत का पान कराती 
नीर भरे नैनों से विरहन ,प्रीतम का रस्ता तकती है 
अश्रु जनक आँखे भी आंसू ,अपने पास नहीं रखती है 
कुछ आंसू होते घड़ियाली ,कुछ बहते सहानुभूति पाने 
कुछ आंसू ,पत्नी आँखों से ,भाते ,निज जिद को मनवाने 
कोई बिलखता,कोई सिसकता ,कोई रुदन हिचकियों से भरा 
रोना सको ही आता है ,कोई रोष में,कोई दुःख भरा 

जब मन में होती प्रसन्नता ,देखा है लोगों को गाते 
सूनी राह ,रात में डर कर,कई बेसुरे,गा चिल्लाते 
कुछ गाते है बाथरूम में ,जब ठंडा लगता है पानी 
कुछ शोहदे ,गाना गा करते,लड़की के संग छेड़खानी 
गाना जब सुर में होता है ,तो वह छू लेता है मन को 
साज और संगीत हमेशा ,सुख देते है इस जीवन को 
मंगल गीत हमेशा गाये जाते है,हर आयोजन में  
शादी या त्यौहार,पर्व में ,या फिर ईश्वर के पूजन में 
भजन कीर्तन करना भी तो ,प्रभु की सेवा ,आराधन है 
राष्ट्रगान से यशोगान तक ,गाय करता है एक जन है 
कुछ दर्दीले ,कुछ भड़कीले ,कुछ पक्के कुछ फ़िल्मी गाने 
कुछ गाने होठों पर चढ़ते ,कुछ हो जाते है बेगाने 
या फिर डीजे वाले गाने ,जो पैरों को थिरकाते है 
कुछ कोरस गाने होते जो कई लोग मिल कर गाते है 
जान फूंक देता शब्दों में ,अगर कंठ हो ,कोई रसभरा 
गाना सबको ही आता है ,कोई सुर में ,कोई बेसुरा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बदलते फैशन 

पहले जब साड़ी चलती थी ,तो फैशन में था कटि दर्शन 
फिर उघड़ी पीठ प्रदर्शन का ,पॉपुलर बहुत हुआ फैशन 
फिर ब्लाउज हुए बहुत 'लौ कट 'कुछ बोट शेप के गले चले 
फिर 'ब्रा' पट्टी को दर्शाते ,फैशन पर लोग बहुत  फिसले 
अब बाहें ढकती बाजू को ,होता कंन्धों का  दर्शन  है 
दो गोरे उभरे कंधों को ,दिखलाने का अब फैशन  है 
ये तो ऊपर की बात हुई ,अब नीचे के फैशन देखो 
पहले ऊपर से नीचे तक ,साड़ी ढकती थी तन देखो 
फिर ऊंचा होकर साड़ी ने ,था 'मिनी साड़ी 'का रूप धरा 
पूरी पिंडली को दर्शाता ,स्कर्ट बहुत था चल निकला 
यह स्कर्ट भी फिर हुआ मिनी और 'हॉट पेन्ट 'का युग आया 
जांघें उघाड़ ,नारी ने कदली स्तम्भों को था दिखलाया 
पूरे साइड से कटे हुए ,कुछ लम्बे चोगे फिर आये 
जो चलने पर,इत  उत उड़ कर ,टांगों की झलकें दर्शाये  
वस्त्रों का बोझ घटाते है ,नित नित बदलाते  फैशन है 
तन का हर भाग दिखाने को ,देखो कैसा पागलपन है 

घोटू 
उँगलियाँ 

बहुत नाजुक,मुलायम और रसीली उँगलियाँ है 
हाथ मेंहंदी रची ,होती रंगीली उँगलियाँ है 
अगर सहलाये तुमको तो नशीली उँगलियाँ है
 बजाये  बांसुरी जब , तो  सुरीली उँगलियाँ है
मनुज के पूरे तन में , ग़ौर से जो देखे हम तो 
उँगलियाँ सोलह होती ,अन्य अंग बस एक या दो 
माँ की ऊँगली पकड़ कर ,सीखते चलना ही सब है 
लोग ऊँगली पकड़ कर,पहुँच जाते,पंहुचे तक है 
देख कर शान उनकी ,काटते सब उंगलिया है 
स्वाद खाना अगर हो  , चाटते  सब उँगलियाँ है  
अंगूठी सगाई की  पहनती  ये उंगलिया है 
जिंदगी भर का रिश्ता ,बांधती ये उंगलिया है 
पकड़ते हम कलम को ,अंगूठे और उँगलियों से 
बजाते ढोल,तबला ,हम थिरकती  उँगलियों से 
नृत्य की कई मुद्रा ,बनाती ये उंगलयां  है 
पति को उँगलियों पर ही नचाती बीबियां है  
जुल्फ को मेहबूबा की ,सहलाती है कोई ऊँगली 
घूमते प्रेमी जोड़े ,फंसा कर ऊँगली में ऊँगली 
उठाया कन्हैया ने ,ऊँगली पे पर्वत गोवर्धन 
चुरा कर ,उँगलियों से ,चाटते  थे कृष्ण माखन 
हथेली उँगलियों संग मिलती है तो हाथ बनती 
मांगती ये दुआयें ,सबका  आशीर्वाद बनती 
उँगलियों पर हर एक की ,है अलग निशान होते
कार्ड आधार बनता ,सबकी ये पहचान   होते 
उँगलियाँ  गुस्सा करती तो चपत ये मारती है 
मिलती जब हथेली के संग ,मुक्का तानती है 
सर में जब दर्द होता ,उँगलियाँ करती है चम्पी 
बड़ी नाज़ुक सी लगती ,उँगलियाँ जब होती लम्बी 
काम आती है कितनी ,उँगलियाँ ये ,गिनतियों में 
जोड़ती हाथों को है ,उँगलियाँ ये ,विनतियों में 
टेढ़ी ऊँगली किये बिन ,निकलता भी घी नहीं है 
किसी को छेड़ना हो ,उँगलियाँ फिर जाती की है 
दांत को छू के ,उंगली ,कट्टियाँ भी है कराती 
ऊँगली ऊँगली से मिलकर ,बट्टियाँ भी है कराती 
आजकल मोबाईल फोनो पे फिसले उंगलिया है 
व्हाट्सएप फेसबुक पर करती कितनी चुगलियां है 
किसी के आगे जब ऊँगली हमारी ,एक उठती 
हमारी और भी तब ,उंगलयां है तीन मुड़ती 
इशारा उँगलियों का ,है कभी दिल लूट लेता 
उठा कर एक ऊँगली ,अम्पायर है आउट देता 
उँगलियाँ नचाने से ,काम सब बनते  नहीं है 
 उंगलिया बताती है ,रास्ता कैसा ,सही है 
निवाला रोटियों का, उँगलियाँ  ही तोड़ती है 
मिला कर हाथ सबसे ,उंगलिया ही जोड़ती है 
 कोई भी उलझा मसला  सुलझाती ये उंगलिया है 
शुक्रिया खुदा तेरा ,हमको बक्शी उँगलियाँ है 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू'

सोमवार, 9 अप्रैल 2018

अजब सिलसिले 

जमाने के देखो अजब सिलसिले है 
मोहब्बत में जिनकी ,हुए पिलपिले है 
बहारों में लूटी थी खुशबू जिन्होंने ,
शिकायत वो ही आज करते मिले है 
हमें  जिंदगी के सफर की डगर में ,
कहीं फूल ,कांटे ,कहीं  पर मिले है 
न ऊधो का लेना न माधो का देना,
इसी राह पर हम हमेशा चले है 
किसी न किसी को तो चुभते ही होंगे ,
भले ही सभी को ,पटा कर चले है 
अकेले चले थे ,भले इस सफर में ,
मगर आज हम बन गए काफिले है 
किसी ने करी है ,बुराई बहुत सी,
किसी ने कहा आदमी हम भले है 
मगर जब भी पाया ,किसी ने भी मौका
सभी ने तो अपने पकोड़े तले है  
कभी हम चमकते प्रखर सूर्य से थे ,
हुई सांझ ,पीले पड़े और ढले है 
बहुत कीच था इस सरोवर में फैला,
मगर हम यहाँ भी ,कमल से खिले है 
जले हम भी पर हमने दी रौशनी है ,
हुए खाख है वो जो कि हमसे जले है 
पड़ी झेलनी हमको कितनी जलालत ,
जीवन में आये कई जलजले  है 
हमें है यकीं  'घोटू' पूरा करेंगे ,
दिलों में हमारे ,जो सपने पले है 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रतिबंध लग गया 

पन्ना तो जड़ गया अंगूठी ,पन्नी पर प्रतिबंध लग गया 
फटी जीन तो फैशन में है ,कुरते पर पैबन्द लग गया 
नेताजी ने कर तो डाले ,वादे कई ,निभा ना  पाये ,
हेरा फेरी में उलझे है  , राजनीती में  गंद  लग गया 
कल तक एक नादान  बालिका,जो घबराती थी गुंडों से ,
उसने आज रपट लिखवाई ,उसके पीछे संत लग गया 
कितने ही जल्लाद मोहम्मद  गौरी उसको घेर रहे है,
पृथ्वीराज ,परेशाँ ,उसके पीछे अब जयचंद लग गया 
जब तक बंधा  गले में पट्टा था बस कुछ गुर्रा लेता था ,
किन्तु भोंकता सबके पीछे ,कुत्ता अब स्वच्छंद ,लग गया 
 अच्छा खासा काम चल रहा था पर उनने टांग अड़ा दी ,
दाल भात में जैसे आकर ,कोई मूसरचंद  लग गया 
मुफ्त बंटेंगे कंबल का एलान हुआ तो भीड़ लग गयी ,
मुश्किल से लाइन में जाकर ,पीछे जरूरतमंद लग गया 
कल तक जो आजाद ,मस्त था,मौज मारता खुल्लमखुल्ला,
जबसे शादी हुई  दुखी है ,क्योंकि गले में फंद लग गया 
एक साथ मिल कर रहते थे ,बंधा हुआ एक परिवार था ,
पर अब, घर बंटवारे पीछे ,अपना भाईबंद लग गया 
लायक बेटे है विदेश में , नालायक घर ,करता सेवा ,
वृद्ध और लाचार पिता को ,'घोटू 'वही पसंद लग गया 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

न मैं चाहता हूँ ,न दिल चाहता है 

कभी जिंदगी में ,जुड़ा तुमसे होना ,
न मैं चाहता हूँ ,न दिल चाहता  है 

पलकों पे तुमको बिठाये रखा है 
मंदिर में दिल के सजाये रखा  है 
फूलों से नाजुक ,तुम्हारे बदन को ,
 कलेजे  से अपने ,लगाये  रखा है 
खुशबू से इसकी ,कभी दूर होना ,
न हम चाहतें है ,न दिल चाहता है 

भले दो जिसम पर,एक जान है हम 
एक दूसरे की तो ,पहचान है हम  
संग संग जियेंगे, संग संग  मरेंगे ,
सदा एक दूजे पर ,कुरबान है हम 
हमारी वफ़ा में ,कभी कुछ जफ़ा हो,
न हम चाहते है ,न दिल चाहता है 

तुम्हारी मोहब्बत मेरी जिंदगी है 
तुम्हारी इबादत , मेरी बंदगी  है 
तुम लेती हो साँसें ,धड़कता मेरा दिल ,
इतनी दीवानी ,मेरी आशिक़ी है 
कभी जिंदगी में ,खफा तुमसे होना ,
न हम चाहतें है न दिल चाहता है  

कभी जिंदगी में ,तुम्हे गम न आये 
तुम्हे दर्द हो ऐसा मौसम न आये 
हमेशा बसंती ,फ़िज़ा खुशनुमा हो 
फूलों सा चेहरा सदा मुस्कराये 
कभी भी तुम्हारी ,खुशियों को खोना,
न हम चाहते है ,न दिल चाहता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक बातचीत जो जोधपुर सेन्ट्रल जेल में सुनी गयी 

तुम दो दिन आये ,छूट गये ,हम पांच साल से सड़ते है 
तूमने  भी लड़ा मुकदमा था ,और हम भी मुकदमा लड़ते है 
तुम्हारे कई प्रसंशक है,और भक्त हमारे  भी अगणित ,,
तुम अभिनता करते अभिनय ,हम साधू ,प्रवचन पढ़ते है 
तुम भी तो लगाते हो ठुमके ,और हम बी लगाते ठुमके है ,
तुम जाते छूट ,हमारे पर,सारे  ही  काम  बिगड़ते है 
तुम एक्शन हीरो रोमांटिक,हीरोइन के संग  इश्क करो ,
हम भक्तिन संग रोमांस करें ,सबकी आँखें क्यों गड़ते है 
तुम हो 'बीइंग हयूमन 'वाले ,हम 'लविंग वूमन 'के मतवाले ,
 कान्हा बन गोपी प्रेम करें ,सब दोष हमी पर मढ़ते है 
तुम भाई हो, हम बापू है ,तुम जवां ,हो गये हम बूढ़े,
पर बूढ़े बंदर भी तो ,पेड़ों की शाखाओं पर  चढ़ते   है 
एड़ी चोटी का जोर लगा ,हम आशाराम  निराश हुए ,
सलमान खान ,दो हमें ज्ञान ,हम पैर तुम्हारे पड़ते है 

घोटू 

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

प्यार 

गाने में गले का योगदान होता है ,
संगीत और स्वरवाली कोई बात होती है 
कविता में कलम और मन के जज्बातों की ,
एक कोरे कागज़ पर ,मुलाक़ात होती है 
खाने में लज्जत और स्वाद अगर आता तो ,
पकानेवाले हाथों की ,करामात होती है 
अकेले अकेले से प्यार नहीं हो सकता ,
प्यार तभी होता जब ,प्रिय साथ होती है 

घोटू 
अपना पराया 

ये मत पूछो कौन पराया ,कौन सगा है 
जब भी जिसने मौका पाया ,मुझे ठगा है 
सबसे ज्यादा दर्द दिया मुझको अपनों ने
 और सांत्वना दे सहलाया ,अन्य जनो ने 
अपना जिनको समझा था ,उनने दिल तोडा 
और जब उनकी जरूरत आयी,दामन छोड़ा 
सबसे मिल जुल रहो भले अपने या पराये 
क्या मालूम ,कौन कब किसके काम आ जाये 

घोटू  
प्यार करो तो कुछ ऐसा तुम 

प्यार करो तो मधुमख्खी सा ,रास भी चूसे,शहद बनाये ,
किन्तु पुष्प की सुंदरता और खुशबू में कुछ फर्क न आये 
प्यार करो तो भ्रमरों जैसा ,फूल ,कली पर जो मंडराये ,
उनसे खुले आम उल्फत कर ,कलियाँ पाकीज़ा कहलाये 
प्यार करो तो बंसुरी जैसा ,पोली और छिद्रमय  काया ,
पर ओठों पर लग तुम्हारे ,साँसों को स्वर दे मनभावन 
प्यार करो तो माँ के जैसा ,दुग्ध पिला छाती से सींचे ,
जो बच्चों पर प्यार लुटाये ,स्वार्थहीन ,निश्छल और पावन 
प्यार करो तो माटी जैसा ,जिसमे एक बीज यदि रोंपो ,
उसे कोख में अपनी पाले ,तुम्हे शतगुणा वापस करदे 
प्यार करो तो तरुवर जैसा ,जिस पर यदि पत्थर भी फेंको ,
अपने प्यारे मधुर फलों से ,जो तुम्हारी झोली भर दे 
प्यार करो दीये बाती सा ,जब तक तैल ,तब तलक जलती,
तेल ख़तम तो बुझती बाती ,किस्सा संग संग जलने का है  
लैला और मजनू के किस्से ,शीरी और फरहाद की बातें ,
नहीं प्यार की कोई दास्ताँ ,किस्सा मिलन बिछड़ने का है
सच्चा प्यार नदी का होता ,जो कल कल कर दौड़ी जाती ,
मिलने निज प्रियतम सागर से ,जिसका नीर बहुत है खारा 
प्रेम दिवस पर एक गुलाब का ,पुष्प प्रिया को पकड़ा देना ,
यह तो कोई प्यार नहीं है ,यह तो है बस ढोंग  तुम्हारा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 


मनचला दिल  

मेरे दोस्तों मेरा दिल मनचला है 
कब किसपे फिसले पता ना चला है 
बाहर से दिखता, बड़ा ही भला है  
कई नाज़नीनों को इसने छला है 
लड़कियां पटाने की आती कला है 
बड़ा ही कलाकार ,है ये दीवाना 
दिल लूटता है ,ये डाकू  सयाना 
नहीं भूल कर इसके चंगुल में आना 
बहुत जानता ,रूठना और मनाना 
भरोसा न करना ,ये तो दोगला है 
लड़कियाँ  पटाने की आती कला  है 
दिखाया हमेशा ,चमत्कार इसने 
जी भर लुटाया ,सदा प्यार इसने 
मानी किसी से भी ना हार  इसने 
किया अपने सपनो को साकार इसने 
बड़े नाज़ नखरों से ,ये तो पला है 
लड़कियाँ  पटाने की आती  कला है 
दिखता तो सीधा सा नादान है ये 
बड़ा ही मगर एक शैतान है ये 
सताता है करता ,परेशान है ये 
आशिक तबियत का इंसान है ये 
किसी की न सुनता,ये  दिलजला है 
लड़कियाँ  पटाने की आती कला है 

घोटू 

 

दुखी बाप की अरदास 

हे सुत ,मुझे अगन मत देना 
बहुत सताया है जीते जी ,मरने पर भी ,ना छोड़ोगे 
गर्म चिता में ,बांस मार कर ,तुम मेरा कपाल फोड़ोगे 
मृत्यु बाद भी ,इस काया को ,फिर तुम वही जलन मत देना 
हे सुत ,मुझे अगन मत देना 
अश्रु नीर की गंगा जमुना ,बहुत बहाई ,पीड़ित मन ने 
जीते जी कर दिया विसर्जित ,तुमने दुःख देकर जीवन में 
मेऋ  अस्थि के अवशेषों को,गंगा में तर्पण मत देना 
हे सुत ,मुझे अगन मत देना 
बहुत मुझे अवसाद दिए है ,नहीं पेट भर कभी खिलाया 
कभी नहीं ,मुझको मनचाहा ,भोजन दिया ,बहुत तरसाया 
श्राद्धकर्म कर ,तृप्त कराने ,ब्राह्मण को भोजन मत देना 
हे सुत ,मुझे अगन मत देना 

घोटू 
मेरी अर्धांगिनी 

जिसने बसाई मेरे दिल की बस्ती 
जो ले के आई है जीवन में मस्ती 
महकाया जीवन का गुलजार जिसने 
बरसाया जी भर के है प्यार जिसने 
दी गर्मी में जिसने ,पहाड़ों की ठंडक 
सर्दी में बन कर रजाई लिया  ढक 
जिसने बनाया, हर मौसम बसंती 
जो है मेरे दिल और गृहस्थी की हस्ती 
जो चंचल चपल है कभी तितलियों सी
कड़कती गरजती कभी बिजलियों सी 
चलाती है घर की जो गाड़ी ,वो इंजन 
खिलाती है हमको ,बनाकर के व्यंजन 
मेरा ख्याल रखती ,मुझे प्यार करती 
अगर रूठ जाता  तो मनुहार करती 
महोब्बत का जिसमे समंदर भरा है 
सज कर, संवर कर ,लगे अप्सरा है 
वो कोमल हृदय है ,वो ममता की मूरत 
भली जिसकी सीरत ,भली जिसकी सूरत 
वो ही अन्नपूर्णा है ,वो गृहलक्ष्मी है 
 मनोरम बनी है और दिल में रमी है 
वो देवी करू रोज जिसका मैं पूजन 
बिना जिसके लगता ,बड़ा सूना जीवन 
जिसने संवारी ,मेरी जिंदगी  है 
वो पूजा है मेरी ,मेरी बंदगी है 
मेरी पथप्रदर्शक ,सलाहकार है जो 
इस जीवन की नैया की पतवार है जो 
मेरा प्यार है वो ,मेरी वो मोहब्बत 
मेरे दिल की दौलत है जिसकी बदौलत 
है सबसे निराली ,बहुत खूब है वो 
मेरी दिलरुबा ,मेरी महबूब है वो 
जो जीवन में मेरे ,लाई रौशनी है 
वो पत्नी ,प्रिया, मेरी अर्धांगिनी  है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तेरा  सुमिरन 

जब भी मुझ पर आयी मुसीबत ,परेशनियों ने आ घेरा 
जब विपदा के बादल छाये ,मैंने नाम लिया बस तेरा 
सच्चे मन से किया सुमिरन,व्याकुल होकर,तुझे पुकारा 
तूने कृपा दृष्टि बरसाई ,हर संकट से मुझे उबारा 
मेरी तुझमे प्रबल आस्था ,हरदम बनी सहारा मेरा 
तेरी रहमत बनी रौशनी ,राह दिखाई ,मिटा अँधेरा 
सदा ख्याल रखता बच्चों का ,परमपिता,परवरदिगार तू 
भगवान अपने सब बंदों पर ,बरसाता ही रहा प्यार तू 
बसा हुआ तू रोम रोम में,सांस सांस में ,मेरे दिल में 
तुझे पता है ,पास तेरे ही ,आएंगे हम ,हर मुश्किल में 
तो फिर कोई मुसीबत को ,पास फटकने ही देता तू 
राह दिखाना तुझको फिर क्यों ,हमें भटकने ही देता तू 
शायद इसीलिए ना सुख में ,तेरा सुमिरण ,याद न आता
इसीलिए तू ,दुःख दे देकर ,शायद अपनी याद दिलाता 
हम नादान ,दिये तेरे सुख ,पाकर तुझे ,भूल जाते है 
इतने जाते डूब ख़ुशी में ,नाम तेरा ही, बिसराते है  
क्या दुःख आना आवश्यक है भगवन तेरी याद दिलाने 
हे प्रभु सुख में ,तेरा सुमरण ,नहीं दुखों को,देगा आने 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आशिकी और हक़ीक़त 

आशिक़ी के कई किस्से ,हमने लोगों के सुने है 
इसलिए ही इस कदर से ,हम जले है और भुने है 
जिससे पूछो,कहता उसने ,मौज मारी जवानी में 
किस तरह से मोड़ कितने ,आये उनकी कहानी में 
लड़कियां कितनी पटाई ,कितनो के संग आशिक़ी की 
कितनो ने दिल तोडा उनका,कितनो ने नाराजगी की 
कितनो के संग मस्तियाँ ली,कितनो के संग फायर,घूमे 
गले कितनो से लिपट कर ,कितनो के  है  गाल चूमे 
सुनता हूँ जब भी कभी मैं ,दोस्तों की  दास्ताने 
मेरा दिल धिक्कारता है और देता मुझे ताने 
अरे बौड़म ,क्यों न तूने ,जवानी का  मज़ा लूटा 
प्यार का गुब्बार कोई ,क्यों न तेरे दिल में फूटा 
पढाई में व्यस्त रह कर ,नहीं देखे कोई भी रंग  
काट दी तूने जवानी ,किताबों और कापियों संग 
करता हूँ अफ़सोस मैं भी ,अपने दिल को क्या दूँ उत्तर 
मन में पश्चाताप रहता ,भूल मैंने  की भयंकर 
यहाँ तक कि शादी भी की ,तो भी लड़की नहीं देखी 
न तो उसके साथ घूमा ,और ना ही आशिक़ी  की 
बाँध दी जो भी पिता ने गले ,लेकर सात फेरे 
मेरी मन मरजी मुताबिक़ ,चल रही है साथ मेरे 
सीधी सादी ,भोली भाली ,ना कोई शिकवा शिकायत 
उसको मेरी,मुझको उसकी ,पड़ गयी है अब तो आदत 
वो गृहस्थी निभाती है ,साथ मै उसका निभाता 
एक दूजे के बिना अब ,नहीं हमसे रहा जाता 
वो मेरे मन भा रही है ,उसके मन मै भा रहा हूँ 
बुढ़ापे में ,साथ उसके ,मैं बड़ा सुख पा रहा हूँ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

कोने कोने में  

कहा जाता है ,
पृथ्वी के कोने कोने में ,
ईश्वर का वास है 
पर पृथ्वी तो गोल है ,
और गोल वस्तु का कोई कोना नहीं होता ,
तो इन दो बातों में ,
कितना विरोधाभास है 
कुछ भी हो ,कोने होते बड़े ख़ास है 
दूरियां पैदा करने वाली ,
दीवारों का जब मिलन होता है 
वहां कोने का जनम होता है 
ये दो विपरीत दिशाओं में जाने वालों की ,
मिलनस्थली के रूप में जाने जाते है 
और भूचाल की स्थिति में ,
सबसे ज्यादा सुरक्षित माने जाते है 
ये अपनेआप को ,
हल्के से अँधेरे में समेटे हुए होते है 
और जाने कितनी ही यादों को ,
अपने में समेटे हुए होते है 
मुझे याद आता है घर का वो कोना ,
जहाँ बचपन में ,
अपनी जिद मनवाने के लिए ,
मैं कितनी ही बार रूठा था 
और वो कोना मैं कैसे भुला सकता हूँ ,
जहाँ पर पहली बार ,
प्रथम मिलन और प्यार के चुंबन का ,
सुख लूटा था 
कितनी ही बार जिस कोने में छुप ,
मैं दोस्तों की पकड़ में न आया ,
जब बचपन में हम खेलते थे ,
छुपमछुपाई 
और स्कूल का वो कोना ,
कैसे भूल सकता हूँ ,जहाँ कितनी ही बार ,
 मास्टरजी ने ,उल्टा मुंह कर कर ,
खड़े रहने की सजा थी सुनाई 
सबसे छुपा कर 
मैंने सिगरेट का पहला कश ,
भी एक सुनसान कोने में ही लिया था 
और चोरी चोरी ,
बियर का पहला घूँट भी ,
एक कोने में ही पिया था 
मेरे दिल के एक कोने में ,
अभी भी दबी पड़ी है ,
मेरे प्रथम प्रेम की ,वो मीठी यादें 
वो जीने मरने की कसमें ,
वो जीवन भर साथ निभाने के वादे 
जिन्हे एक कोने में रख कर 
अच्छे दहेज़ के लालच में ,
मैंने बसा लिया था किसी और के संग घर 
और अपने सारे आदर्शों और सिद्धांतों को ,
एक कोने में दबा कर,
दुनियादारी की भागमभाग में दौड़ रहा हूँ 
और साम,दाम,दंड,भेद से ,
अपने कई काबिल साथियों को,
एक कोने में छोड़ रहा हूँ 
दोस्तों ,कभी आप भी अपने दिल के अंदर ,
झांक कर देखो तो एक कोने आयेगी  नज़र
आपकी कितनी ही बेवफाई ,
और कितनी ही गलतियां 
जिनको छुपा कर  आपने ,
अब तलक है जीवन जिया 
वो सारे करम 
जिनको छुपाने का आपके मन में है भरम 
पर वो आपके दिल के किसी कोने में ,
दबे है पड़े 
और तन्हाई में कभी ,
अपना अस्तित्व दिखाने को,
हो जाते है खड़े 
कभी तड़फाते  है 
कभी सताते है 
और हम उन्हें फिर से ,
किसी कोने में दबाकर ,
भूल जाते है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 

रविवार, 1 अप्रैल 2018

Hello Dear

PLEASE REPLY ME THROUGH MY PRIVATE EMAIL ADDRESS (miss.dianakipkalya@mail.com)
 
I am writing this mail to you with tears and sorrow from my heart. With due respect trust and humanity, I appeal to you to exercise a little patience and read through my letter, I wish to contact you personally for a long term business relationship and investment assistance in your Country so I feel quite safe dealing with you in this important business having gone through your remarkable profile, honestly I am writing this email to you with pains, tears and sorrow from my heart, I will really like to have a good relationship with you and I have a special reason why I decided to contact you, I decided to contact you due to the urgency of my situation, My name is Miss Diana Kipkalya Kones, 23yrs old female and I held from Kenya in East Africa. My father was the former Kenyan road Minister. He and Assistant Minister of Home Affairs Lorna Laboso had been on board the Cessna 210, which was headed to Kericho and crashed in a remote area called Kajong, in western Kenya. The plane crashed on the Tuesday 10th, June, 2008.You can read more about the crash through the below site:http://edition.cnn.com/2008/WORLD/africa/06/10/kenya.crash/index.html

 After the burial of my father, my stepmother and uncle conspired and sold my father's property to an Italian Expert rate which the shared the money among themselves and live nothing for me. I am constrained to contact you because of the abuse I am receiving from my wicked stepmother and uncle. They planned to take away all my late father's treasury and properties from me since the unexpected death of my beloved Father. Meanwhile I wanted to escape to the USA but they hide away my international passport and other valuable traveling documents. Luckily they did not discover where I kept my fathers File which contains important documents. So I decided to run to the refugee camp where I am presently seeking asylum under the United Nations High Commission for the Refugee here in Ouagadougou, Republic of Burkina Faso.

 One faithful morning, I opened my father's briefcase and found out the documents which he has deposited huge amount of money in one bank in Burkina Faso with my name as the next of kin. I traveled to Burkina Faso to withdraw the money for a better life so that I can take care of myself and start a new life, on my arrival, the Bank Director whom I met in person told me that my father's instruction/will to the bank is that the money would only be release to me when I am married or present a trustee who will help me and invest the money overseas. I am in search of an honest and reliable person who will help me and stand as my trustee so that I will present him to the Bank for transfer of the money to his bank account overseas. I have chosen to contact you after my prayers and I believe that you will not betray my trust. But rather take me as your own sister or daughter.

Although, you may wonder why I am so soon revealing myself to you without knowing you, well I will say that my mind convinced me that you may be the true person to help me. More so my father of blessed memory deposited the sum of (US$11.500, 000) Dollars in Bank with my name as the next of kin. However, I shall forward you with the necessary documents on confirmation of your acceptance to assist me for the transfer and statement of the fund in your country. As you will help me in an investment, and I will like to complete my studies, as I was in my 1year in the university when my beloved father died. It is my intention to compensate you with 30% of the total money for your services and the balance shall be my capital in your establishment. As soon as I receive your positive response showing your interest I will put things into action immediately. In the light of the above, I shall appreciate an urgent message indicating your ability and willingness to
handle this transaction sincerely.
 
AWAITING YOUR URGENT AND POSITIVE RESPONSE, Please do keep this only to your self for now until the bank will transfer the fund. I plead to you not to disclose it till I come over because I am afraid of my wicked stepmother who has threatened to kill me and have the money alone, I thank God Today that am out from my country (KENYA) but now In (Burkina Faso) where my father deposited these money with my name as the next of Kin. I have the documents for the claims.

Yours Sincerely
Miss Diana Kipkalya Kones
 

PLEASE REPLY ME THROUGH MY PRIVATE EMAIL ADDRESS (miss.dianakipkalya@mail.com)

 

 


गुरुवार, 22 मार्च 2018

गलतफहमी 

ये समझ कर तुम्हारा हसीं जिस्म है ,
मैं  अँधेरे में सहलाता जिसको रहा 
तुमने ना तो हटाया मेरा हाथ ही,
ना रिएक्शन दिया और न ना ही कहा 
मैं  बड़ा खुश था मन में यही सोच कर,
ऐसा लगता था ,दाल आज गल जायेगी  
हसरतें कितनी ही ,जो थी मन में दबी ,
सोचता था की अब वो निकल जायेगी 
गुदगुदा और नरम था वो कोमल बदन ,
मैं समझ तेरा ,मन अपना बहला रहा 
दिल के अरमाँ सभी,आंसुओ में बहे ,
निकला तकिया ,जिसे था मैं सहला रहा 

घोटू 
आशिक़ी की शिद्दत 

नाम उनने अपने हाथों ,जब लिखा दीवार पर ,
लोग सब उस जगह का चूना कुतर कर खा गए 
नाम उनने ,अपना कुतरा ,जब तने पर वृक्ष के ,
कुछ ही दिन में ,बिना मौसम ,उसमे भी फल आगये 
आशिकों की आशिकी की ,हद तो उस दिन हो गयी,
उनने 'आई लव यू 'कहा ,तो आया ऐसा  जलजला 
नाम अपना बदलने की होड़ सब में लग गयी ,
नाम अपना बदल ,'यू ' रखने लगा हर मनचला 

घोटू 

मैं गृहस्थन हो गयी हूँ 

अदाएं कम हो गयी है 
शोखियाँ भी खो गयी है 
सदा सजने संवरने की ,
अब रही फुरसत नहीं है 
        रोजमर्रा काम इतने ,
       व्यस्त हरदम हो गयी हूँ 
        मैं गृहस्थन  हो गयी  हूँ 
गए वो कॉलेज के दिन ,
गयी चंचलता चपलता 
मौज मस्ती का वो मौसम ,
आज भी है मन मचलता 
ठेले के वो गोलगप्पे ,
केंटीन के वो समोसे 
बंक करके क्लास,पिक्चर 
देख ,खाना इडली,दोसे 
था बड़ा मनमौजी जीवन, 
उमर थी कितनी सुहानी 
लेना पंगे हर किसी से ,
और करना छेड़खानी 
नित नए फैशन बदलना 
फटी जीने ,टॉप झीने 
आशिकों की लाइन लगती,
तब बड़ी बिंदास थी मैं  
      वो बसंती दिन गए लद ,
       सर्द  मौसम  हो गयी हूँ 
        मैं गृहस्थन हो गयी हूँ 
मस्तियाँ सब खो गयी है ,
हुआ बिगड़ा हाल तब से 
बन के दुल्हन ,आयी हूँ मैं ,
शादी कर ससुराल जब से 
पति मुझमे ढूंढते है ,
अप्सरा का रूप प्यारा 
सास मुझसे चाहती है ,
करू घर का काम सारा  
ससुर की है ये  अपेक्षा ,
बहू उनकी करे सेवा 
ननद ,देवर सभी की ,
फरमाइशें है ,जानलेवा 
सभी को संतुष्ट रखना ,
और सबके संग निभाना 
भूल कर संस्कार बचपन 
के नए रंग,रंग जाना 
       ना रही  मैं एक  बच्ची ,
      अब बढ़प्पन हो गयी हूँ 
      मैं  गृहस्थन हो गयी हूँ 
एक तरफ प्यारे पियाजी ,
प्यार है  अपना  लुटाते 
एक तरफ कानो में चुभती ,
सास की है कई बातें 
नवविवाहित कोई दुल्हन ,
उमंगें जिसके हृदय में 
सहम कर सब काम करती,
गलती ना हो जाय,भय में 
कुशलता से घर चलाना ,
बढ़ी जिम्मेदारियां है 
अचानक बिंदासपन पर,
लग गयी पाबंदियां है 
संतुलन सब में बिठाती ,
राजनीति  सीखली है 
सभी खुश रहते है मुझसे ,
चाल कुछ ऐसी चली है 
       बात पोलाइटली  करती,
        पॉलिटिशियन हो गयी हूँ 
       मैं गृहस्थन हो गयी  हूँ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 21 मार्च 2018

वक़्त के साथ-बदलते हालात 

वो भी कितने  प्यारे दिन थे ,
मधुर मिलन को आकुल व्याकुल ,
जब दो दिल थे 
प्रेमपत्र के शुरू शुरू में तुम लिखती थी 
'प्यारे प्रियतम '
और अंत में दूजे कोने पर लिखती थी 
'सिर्फ तूम्हारी '
बाकी पूरा पन्ना सारा 
होता था बस कोरा कोरा 
उस कोरे पन्ने  में तब हम ,
जो पढ़ना था,पढ़ लेते थे  
दो लफ्जों के प्रेमपत्र में ,
दिल का हाल समझ लेते थे 
उसमे हमे नज़र आती थी छवि तुम्हारी 
सुन्दर सुन्दर ,प्यारी प्यारी 
और अब ये हालात हो गए 
सब लगता है सूना सूना 
डबल बेड के एक कोने में ,
वो ही पुराने प्रेमपत्र के 
'मेरे प्रियतम 'सा मैं  सिमटा 
और दूसरे कोने में तुम 
'सिर्फ तुम्हारी ' सी लेटी हो 
बाकी कोरे कागज जैसी ,सूनी  चादर 
सलवट का इन्तजार कर रही   
दोनों प्यासे ,जगे पड़े है ,
दोनों दिल में  अगन मिलन की ,
लगी हुई है ,
किन्तु अहम ने बना रखी बीच दूरियां,
दोनों के दोनों मिलने को बेकरार है 
कौन करेगा पहल इसी का इन्तजार है 
और प्रतीक्षा करते करते ,
आँख लग गयी ,सुबह हो गयी 
देखो कितना है हममें बदलाव आ गया 
तब दो लफ्जों के कोरे से प्रेमपत्र को ,
पढ़ते पढ़ते सारी  रात गुजर जाती थी 
आज अहम के टकराने से ,
 रात यूं ही बस ढल जाती है
जैसे जैसे वक्त बदलता ,
पल पल करते यूं ही जिंदगी ,
कैसे यूं ही बदल जाती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

रविवार, 18 मार्च 2018

       नव संवत्सर 

नए वर्ष का करें स्वागत ,हम ,तुम ,जी भर 
नव संवत्सर,नव संवत्सर ,नव संवत्सर  
हुआ आज दुनिया का उदभव ,ख़ुशी मनाएं 
खेतों में पक गया अन्न नव,ख़ुशी मनाये 
किया विश्व निर्माण विधि  ने ,आज दिवस है 
शीत ग्रीष्म की वय  संधि है ,आज दिवस है 
शुरू   चैत्र  नवरात्र  हुए,कर  देवी    पूजन 
मातृशक्ति और नारी शक्ति का कर आराधन 
हम  समृद्ध       हों,ऊंची उड़े   पतंग हमारी 
खुशियाँ फैले, कायम   रहे     उमंग हमारी 
गुड और इमली ,कालीमिर्च ,नीम की कोंपल 
खाकर रखें,स्वस्थ जीवन को ,पूर्ण वर्ष भर  
आने वाला वर्ष ख़ुशी दे और हो   सुखकर 
नव संवत्सर,नव संवत्सर ,नव संवत्सर 
(नूतन वर्ष की शुभ कामनाएं )

मदन मोहन 'बाहेती घोटू'

बुधवार, 14 मार्च 2018

ओ सी इलेक्शन -सीनियर कनेक्शन 

'बंसल' मुख से सल  गये ,दीवाने  'दीवान '
शर्माजी का 'कपिल' सुत ,होनहार बिरवान 
होनहार  बिरवान ,जीत कर छाई मस्ती 
अस्सी पार अवस्था ,विजयी भये 'अवस्थी '
जीते 'ब्रिगेडियर 'जी ,सत्ता में है कर्नल 
'घोटू 'ओ सी डोर ,थाम अब रहे सीनियर 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 12 मार्च 2018

मुझे याद आती है दादी 

जब याद आता मुझको बचपन 
बात बात पर जिद पर आना 
पल पल रोना और चिल्लाना 
मुझको  कौन मनाया करता 
दे मिठाई ,बहलाया करता 
अपनी गोदी में थपकी दे   
मुझको कौन सुलाया करता 
हाँ ये सच है ,शुरू शुरू में,
ये सब कुछ करती थी अम्मा 
पर जब छोटी बहन आ गई,
व्यस्त हो गई उसमे अम्मा 
उस पर घर के कामधाम से,
उसके पास समय था इतना कब बच पाता 
सब बच्चों का ख्याल रख सके ,
थक जाती वह इतनी ज्यादा 
और उन दिनों हम दो और 
हमारे दो का ,नहीं नियम था
हर एक घर में पांच सात बच्चों 
के होने का फैशन था  
तो बच्चो का ख्याल अधिकतर ,
तब घर में ,दादी रखती थी 
सब बच्चों पर प्यार लुटाती ,
दादी कभी नहीं थकती थी 
हम उसके ही साथ लिपट कर,
लोरी सुनते,सो जाते थे 
वो ही हमको दूध पिलाती ,
उसके हाथों से ही हम खाना खाते थे
नहाना धोना वस्त्र पहनना ,
हमको दादी ने सिखलाया  
ऊँगली पकड़ी,हमे चलाया 
पहला अक्षरज्ञान  करवाया  
भाई बहन के कई आपसी ,
झगड़ों को उसने सुलझाया 
सब बच्चों की जिद पूरी की,
प्यार किया,हमको दुलराया 
बड़े प्यार से पाला ,पोसा 
मांग हमारी ,पूर्ण करेगी ,
दादी ही,था हमे भरोसा 
खुश होती तो मन बहलाने 
टॉफी या गुब्बारा लाने 
चोरी चुपके दे देती थी ,
हमको आने या दो आने 
उसकी आँखों में ममता का ,
था भंडार,उमड़ता लगता 
कहती उसे मूलधन से भी ,
ब्याज अधिक है प्यारा लगता 
होता अगर हमारा झगड़ा ,
गली मोहल्ले के बच्चों से 
तो वह आगे बढ़ लेती थी 
डाट पिलाती उन बच्चों को ,
और उनकी अम्मा दादी से ,
भी जाकर वो लड़ लेती थी 
हाँ वो प्यारी बूढी दादी 
बाल रुई से गोरा रंग था 
धुंधलाई सी उसकी आँखें ,
जिनमे केवल प्यार बरसता 
अपने हाथों,बना हमें गुड़िया बहलाती 
फटे पुराने कपड़ों से थी गेंद बनाती 
आसपास कोई फंक्शन में ,
अगर बुलावा आता था तो ,
जाती थी,गाने थी गाती  
लड्डू बंटते ,ले आती थी 
बड़े प्रेम से हमें खिलाती 
जब हम करते  थे शैतानी 
हमें मार पड़ती थी खानी 
डांट  मार से हमें पिताजी ,
की थी वो ही हमें बचाती 
हम उसकी गोदी में छिपते ,
उन्हें रोक कर  वो समझाती
और बदले में हमसे केवल ,
अपने हाथ पैर दबवाती 
जब खुश होकर वह मुस्काती 
अपना टूटा  दांत दिखाती 
भोलीभाली,सीधी सादी 
मुझे याद आती है अक्सर ,
वो प्यारी प्यारी सी दादी 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू'
वंदना-अरविन्द परिणय रजत जयंती पर 

प्रभु वंदन कर वंदना ,पाई पति अरविन्द 
जीवन में मुखरित हुआ,प्रेम,ख़ुशी,आनंद 
प्रेम,ख़ुशी,आनंद,मुदित मन वो  हरषाये 
गठ बंधन में बंधे ,बरस पच्चीस  बिताये 
अविनाश सा पुष्प खिला उनके उपवन में 
यही कामना सुख बरसे उनके  जीवन  में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

रविवार, 4 मार्च 2018

Re: response to OLAW

 

 

I am Mrs. Fatima Almansoori

I have a business deal for you.

Reply to:  mrsfatima-kindh@email.ch

 

 

 

 

 


From: Axel Schonthal [schontha]
Sent: Tuesday, February 27, 2018 6:31 PM
To: Wang, Weijun
Subject: Re: response to OLAW

====================================

   Axel H. Schönthal, PhD
   Keck School of Medicine
   University of Southern California (USC)

   2011 Zonal Ave., HMR-405


====================================


From: Wang, Weijun < >
Sent: Tuesday, February 27, 2018 5:16:24 PM
To: Axel Schonthal
Subject: RE: response to OLAW

 

Hi.Axel,

 

Please see the "Revised 8. Vertebrate Animals" and the old version.

 

Thank you

Weijun

 

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

आलस 

कार्य हमेशा वह टलता ,जो जाता किया तुरंत नहीं 
                               आलस का कोई अंत नहीं 
आलस ही तो ,सदा काम में ,तुमसे टालमटोल कराता 
करते लोग ,बहानेबाजी ,जब उन पर आलस चढ़ जाता 
काम आज का कल पर टालो ,कल का परसों,परसों का फिर 
और इस तरह,काम कोई भी,पूर्ण नहीं हो पाता  आखिर 
एक बार जो टला ,टल गया ,रहा रुका वह आलस के वश 
क्योंकि जब आलस छा जाता ,हो जाता है मानव बेबस 
सब आराम तलब हो सोते ,उससे बढ़  आनंद नहीं
                                आलस का कोई अंत नहीं 
सर्दी में रजाई और बिस्तर ,नहीं छूटते आलस कारण 
जम कर भोजन अगर कर लिया ,आलस को दे दिया निमंत्रण 
साम्राज्य आलस का छाता ,जिस दिन भी छुट्टी रहती है 
खाना पीना सब बिस्तर पर ,आलस की गंगा बहती है 
देख हमें आलस में डूबा ,डट कर डाटे  श्रीमती जी 
कान हमारे ,जूँ न रेंगती  ,वो रहती है ,खीजी खीजी 
ख़लल कोई मस्ती में डाले ,हमको कभी पसंद नहीं
                                 आलस का कोई अंत नहीं 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अब तो उमर बची चौथाई 

जीवन भर संघर्ष रत रहे 
किन्तु अग्रसर ,प्रगतिपथ रहे 
खाई ठोकरें,गिरे,सम्भल कर ,
हमने अपनी मंजिल पाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
ख़ुशी मिली तो कभी मिले गम 
उंच नीच में गुजरा जीवन 
कभी चबाये चने प्रेम से,
तो फिर कभी जलेबी खाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
कोई ने अड़ ,काम बिगाड़ा 
कोई ने बढ़ ,दिया सहारा 
दोस्त मिले ज्यादा ,दुश्मन कम ,
हाथ मिले,ना हाथापाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
मोहमाया में ऐसे उलझे 
याद ना रहा ,राम को भजे 
प्रभु ना सुमरे ,उमर काट दी,
गिनने में बस आना ,पाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
जर्जर होती ,काया पल पल 
बहुत जुझारू,मगर आत्मबल 
बहुत जरा ने जाल बिछाया ,
लेकिन मुझे हरा ना पाई 
अब तो उमर बची चौथाई 
अब थकान है,बहुत चले हम 
जग ज्वाला में ,बहुत जले हम 
अब जल, अस्थि ,फूल बनेगी ,
गंगा में जायेगी  बहाई 
अब तो उमर बची चौथाई 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

जरूरत है 

जरुरत है,जरूरत है 
हमे चाहिये एक ऐसी कामवाली बाई 
जो कर सके घर का झाड़ू पोंछा और सफाई 
और साथ में ,बिना चूं चपड़ और कुछ कहे 
मेरी पत्नी की डाट भी सुनती रहे 
बिलकुल जबाब न दे और बुरा न माने 
डाट सुनना भी ,अपनी ड्यूटी का ही अंश जाने 
क्योंकि सुबह सुबह उसे बात या बेबात पर  डाट 
निकल जायेगी पत्नी के मन की  डाटने की भड़ास 
उनका डाटने का 'कोटा' खलास हो जाएगा 
तो फिर मेरे हिस्से ,डाट नहीं,प्यार आएगा 
और फिर हर रोज 
मुझे नहीं मिलेगा, सुबह सुबह डाट का 'डोज '
क्योंकि बच्चो को वो डाट नहीं सकती 
और सास से है वो डरती 
बचा एक मैं ही वो प्राणी हूँ जो सब कुछ सहता 
और उनकी डाट सुन कर भी कुछ नहीं कहता 
अब जब कामवाली बाई ये डाट खायेगी 
तो सुबह सुबह मेरी शामत  नहीं आएगी
मुझे डाट के प्रातःकालीन प्रसाद से ,
छुटकारा मिल जाएगा 
और कामवाली बाई को ,
इस विशेष काम के लिए ,
'डाट अलाउंस'अलग से चुपके से दिया जाएगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

अग्निपरीक्षा 

मैं ,दीपक की बाती  सी जली ,
              फैलाने को तुम्हारे जीवन में प्रकाश 
मैं पूजा की अगरबत्ती सी जली,
            फैलाने को तुम्हारे जीवन में उच्छवास  
मैं चूल्हे की लकड़ी सी जली ,
         तुम्हारे घर की रोटी और दाल पकाने को 
मैं हवन की आहुति सी स्वाह हुई,
         तुम्हारे जीवन में पुण्य संचित करवाने को 
मैं तो बस  हर बार राख ही होती रही ,
      और इसके बाद भी ,बतलाओ मैंने क्या पाया 
तुमने तो उस राख से भी अपने जूठे ,
            बरतनो  को माँझ माँझ  कर चमकाया 
क्या मेरी नियति में जलना ही लिखा है ,
       मुझे कब तक जलाते रहेंगे ,दहेज़ के लोभी 
कब तलक  ,कितनी निर्दोष सीताओं को ,
          कितनी बार  ये अग्निपरीक्षाये  देनी होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
स्थानम प्रधानम 

नारी  सर की शोभा ,उसके काले कुंतल 
बिखर  गए तो  लगता जैसे छाये  बादल 
और बंधे  तो चेहरा  जैसे  चाँद चमकता 
लहराते तो सहलाने को  मन है  करता 
बहुत सर चढ़े है ,सर पर चढ़ है इतराते 
छोड़ा सर का साथ ,नज़र  कचरे में आते 
ये ही बाल ,सर छोड़ ,गिरे यदि अनजाने में 
और मिल जाए,दाल में, सब्जी या  खाने में 
केश धारिणी को कितनी  सुननी  पड़ती है 
मचती घर में कलह ,बात इतनी बढ़ती  है 
ऑफिस से जब पति देवता ,घर पर आते 
उनके कपड़ों  पर पत्नी को  बाल  दिखाते
देते खोल ,पोल पति की ,ये चुगलखोर बन 
मियां और बीबी  में  ,करवा देते  अनबन  
इनकी शोभा तब तक,जब तक है ये सर पर 
है स्थान प्रधान, जहां ये रहे संवर  कर 
सर से अगर गिर गए तो बन जाते  कूड़ा 
जब  ये  बदले  रंग ,आदमी होता  बूढा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

PLEASE REPLY ME THROUGH MY PRIVATE EMAIL ADDRESS (missaminageorgesaitoti@mail.com)

 

My dear hear the cry of an orphan as i have noticed that I am orphan, first of all let me introduce myself to you before I will go ahead for my reason of contacting you,

My name is Miss Amina Saitoti 21yrs old female the only daughter of George Saitoti the former Kenyan Internal Security Minister,  My beloved father George Saitoti and his assistant Joshua Orwa Ojodeh were killed in a helicopter crash in Ngong Forest in Kenyan East Africa. The accident happened on June 10th 2012. On Sunday few minutes after they had taken off from Wilson Airport Kenyan with a new police helicopter, heading for a fundraiser in Ndiwa constituency. You can read more about the incidence trough the below website,

 

http://edition.cnn.com/2012/06/10/world/africa/kenya-minister-killed/index.html 

 

throughout when my father was alive, his wife which i take as my mother and his son as my blood brother without knowing they are not my biologically  mother and blood brother, because i noticed that my mother don't visit me in school as my father do also she don't she me any motherly care, and my brother don't come close to me even if i called him on phone he don't like to pick my calls, infarct they all behalves string characters to me is only my father that take care of me and show me love, and i never know that my father adopted me and i never know that the person i called my biologically mother is not my mother and my brother is not my blood brother as i think before the death of my father, After the burial of my father, my mother start changing all my father's property to her son personal name been my brother. i said nothing because i know my mother don't love me, few months later our family lawyer visited us and said that she want to see me alone and my mother pick offence about that and said that the lawyer should explain why in public, and the lawyer refuse to do that, finally the lawyer called me out and see me alone, also hand over to me my father will certificate about me and a deposit certificate of a huge amount of money $5.5Million United State Dollars, in one bank with my name as the legal next of kin to inherit the fund in another country called Burkina Faso.

 

but due to i have noticed that the person i called my mother don't love me i have to hide the documents away before coming back to house on my return my mother called me with my brother ask me what happened and i explain to them, and she become angry with me with my brother, because of this the person i called my mother explain everything about me and tell me that the money did not belong to me, because i was adopted by my father, also said that she is not in support of the adoption, and said for that reason I must give her the fund documents, and look for someone that will go and leave her husband house, I cried with agony and the person i called my brother beat me merciless and necked me with all kind of maltreatment and luck me in toilet, for 2days, finally i escape from our house to the nearby city with the documents,   Now I am constrained to contact you because of the abuse and maltreatment I am receiving from the woman her son because i will not call her my mother again hence I have noticed that she is not my mother. So I decided to I traveled to Burkina Faso to withdraw the money for a better life so that I can take care of myself and start a new life, on my arrival, the Bank Director whom I met in person told me that my father's instruction/will to the bank is that the money would only be release to me when I am married or present a foreign trustee who will help me and invest the money overseas.

 

Presently seeking asylum under the United Nations High Commission for the Refugee here in Ouagadougou, Republic of Burkina Faso. Because I don't have money to lodge in a Hotel, I am in search of an honest and reliable person who will help me and stand as my trustee so that I will present him to the Bank for transfer of the money to his bank account in overseas. I have chosen to contact you after my prayers and I believe that you will not betray my trust. But rather take me as your own sister or daughter. So my father of blessed memory deposited the sum of (US$5.500, 000) Dollars in Bank with my name as the next of kin. However, I shall forward you with the necessary documents on confirmation of your acceptance to assist me for the transfer country. As you will help for the investment, and I will like to complete my studies, as I was in my year (1)  in the university when my beloved father died. It is my intention to compensate you with 40% of the total money for your services and the balance shall be my capital in your establishment. As soon as I receive your positive response showing your interest I will put things into action immediately. In the light of the above. I shall appreciate an urgent message indicating your ability and willingness to

Handle this transaction sincerely.

 

Please don't disclose it to any one until I come over because I am afraid of This woman who has threatened to kill me and have the money alone, I thank God Today that am out from my country (KENYA) but now In (Burkina Faso) where my father deposited these money with my name as the next of Kin. I have the documents for the claims.

Yours Sincerely

Miss Amina Saitoti

 

PLEASE REPLY ME THROUGH MY PRIVATE EMAIL ADDRESS (missaminageorgesaitoti@mail.com)

 

शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

कायापलट इसे कहते है 

कल तक जी हज़ूरी था करता ,बड़े साहब का था जो नौकर 
एक बड़ा अफसर बन बैठा ,जब उसका बेटा पढ़ लिख कर 
सरकारी बंगले में उसकी ,सेवा में  नौकर रहते है 
                                काया पलट इसे कहते है 
कल तक जिस जमीन के ऊपर ,बना हुआ था एक कूड़ाघर 
देखो उस  धरती के टुकड़े पर है  आज बन गया मंदिर    
कल तक कूड़ा जहाँ फेकते ,लोग टेकते सर रहते है 
                                  काया  पलट  इसे कहते है 
 लोगों के घर झाड़ू पोंछा किया और बच्चों को पाला 
बना  देश का  ऊंचा  नेता ,बेटा  चाय बेचने वाला 
   माँ के हाथ ,आज भी उसको,आशीषें देते रहते है 
                                  काया पलट इसे कहते है  
माया की माया देखो तुम ,कैसे समय बदल जाता है 
कल का'परश्या','परसू' बन अब 'परसराम'जी कहलाता है  
शीश झुकाने वाले को अब ,लोग प्रणाम किया करते है 
                                      काया पलट इसे कहते है 
रोबीले वो शेर सरीखे ,जब दहाड़ते है दफ्तर में 
भीगी बिल्ली से मिमियाते ,पत्नी के आगे वो घर में 
दफ्तर में जिनसे सब डरते ,बीबी से डर कर रहते है
                                     काया पलट इसे कहते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'              
बुढ़ापा बोल रहा है 

अब तन कर चलने में भी तन डोल रहा है 
                             बुढ़ापा बोल रहा है 
क्षुधा क्षरित है,पचनशक्ति भी क्षीण हो गयी 
मुख मंडल की आभा ,कान्ति विहीन हो गयी 
सर के  केश सफ़ेद,हुई   खल्वाट  खोपड़ी  
राजमहल सा बदन रह गया  मात्र  झोपडी  
शिथिल  हो गए अंग ,ठीक से काम न करते 
धुंधलाए से नयन ,नहीं,  चहु ओर  विचरते 
कसी ,गठीली काया ,झुर्रीवान  हो गयी 
रखती थी जो शान,वही पहचान खो गयी 
सुमुखियों मुख ,बाबा सुन खूं  खौल रहा है 
                             बुढ़ापा बोल रहा है 
बिदा हुए मुख से एकएक कर दांत कटीले 
त्याग  रही संग, याददाश्त भी  ,धीरे धीरे 
छोड़ साथ ,बच्चे खुश ,अपने परिवारों में 
अब हम ,चीज ,पैर  छूने की,त्योंहारों में 
साथ उमर के मिले नए कुछ संगी,साथी 
कई व्याधियां मिली,उम्र भर,साथ निभाती 
रोमांटिक यह हृदय ,धड़कता बन कर रोगी 
मिष्ठानो का प्रेमी ,अब बन गया  वियोगी 
है निषिद्ध पकवान ,देख मन डोल  रहा है 
                             बुढ़ापा बोल रहा है 
काम नहीं कुछ,दिन भर छायी रहे उदासी 
ब्लड का प्रेशर बढ़ा और आती है खांसी 
बदल करवटें रात कटे और नींद न आये 
बीते दिन की यादें रह रह कर तड़फाये 
दिन भर टीवी देख न्यूज़ पेपर को चाटें 
बहुत अधिक चुभते जीवन के अब सन्नाटे 
वृद्ध कहो हमको वरिष्ठ या बोलो  बूढा 
गयी बहारें मगर  ,हुआ ये जीवन कूड़ा 
बीत गया वो मौसम ,जो अनमोल रहा है 
                           बुढ़ापा बोल रहा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

मन का ये भ्रमजाल हट गया 

तन ऊर्जा सहमी सहमी थी 
पर मन में गहमा गहमी थी 
मैं बूढ़ा ना ,अभी जवाँ  हूँ ,
मन में यही गलत फहमी थी  
देख जाल झुर्री का तन पर ,
मन का यह भ्रमजाल हट गया 
तन की अगन पड़  गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया
देख कली को, मंडराता था 
झट से मचल मचल जाता था 
जब भी दिखती हुस्न ,जवानी ,
दीवानापन सा छाता था 
जाल पड़ा,आँखें धुंधलाई 
अब उनका दीदार घट गया
 तन की अगन पड़ गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया 
गयी जवानी ,गया जमाना 
शुरू हुआ अब पतझड़ आना 
लेकिन मन का बूढा बंदर,
भूला नहीं गुलाट  लगाना 
श्वान पुच्छ सी रही आशिक़ी ,
इसका टेढ़ापन न  हट गया 
तन की अगन पड़ गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गरदन ने अदब सीख लिया 

ऐसा ईश्वर ने गढ़ा रूप उनका सुन्दर सा ,
 हर एक कटाव और उठान में तूफ़ान भरा ,
मिल गयी देखने को झलक उनकी हलकी सी ,
           हमको तक़दीर ने कुछ ऐसी इनायत दे दी 
एक बच्चे सा गया मचल मचल मन पागल 
खिलौना देख कर सुन्दर सा ,बड़ा ललचाया ,
आ गया जिद पे कि पा जाऊं ,बनालू अपना 
      उसको हासिल करूँ ,कैसे भी ये हसरत दे दी 
बिना झलकाये पलक ,देर  तलक तकता रहा ,
नहीं हट पाई  निगाह  दूर उनके चेहरे  से ,
हे  खुदा तूने ये कैसा बनाया इन्सां  को ,
      आशिक़ी करने की इस दिल को क्यों आदत दे दी 
हुस्न का उनके हम दीदार करें ,करते रहे ,
लाख रह रह के रही आँख यूं ही रिरियाती ,
शुक्र है वो तो ये गरदन ने अदब सीख लिया ,
      जरा सी  झुक  गयी ,उसको ये शराफत दे दी        

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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