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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

अग्निपरीक्षा 

मैं ,दीपक की बाती  सी जली ,
              फैलाने को तुम्हारे जीवन में प्रकाश 
मैं पूजा की अगरबत्ती सी जली,
            फैलाने को तुम्हारे जीवन में उच्छवास  
मैं चूल्हे की लकड़ी सी जली ,
         तुम्हारे घर की रोटी और दाल पकाने को 
मैं हवन की आहुति सी स्वाह हुई,
         तुम्हारे जीवन में पुण्य संचित करवाने को 
मैं तो बस  हर बार राख ही होती रही ,
      और इसके बाद भी ,बतलाओ मैंने क्या पाया 
तुमने तो उस राख से भी अपने जूठे ,
            बरतनो  को माँझ माँझ  कर चमकाया 
क्या मेरी नियति में जलना ही लिखा है ,
       मुझे कब तक जलाते रहेंगे ,दहेज़ के लोभी 
कब तलक  ,कितनी निर्दोष सीताओं को ,
          कितनी बार  ये अग्निपरीक्षाये  देनी होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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