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शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

कायापलट इसे कहते है 

कल तक जी हज़ूरी था करता ,बड़े साहब का था जो नौकर 
एक बड़ा अफसर बन बैठा ,जब उसका बेटा पढ़ लिख कर 
सरकारी बंगले में उसकी ,सेवा में  नौकर रहते है 
                                काया पलट इसे कहते है 
कल तक जिस जमीन के ऊपर ,बना हुआ था एक कूड़ाघर 
देखो उस  धरती के टुकड़े पर है  आज बन गया मंदिर    
कल तक कूड़ा जहाँ फेकते ,लोग टेकते सर रहते है 
                                  काया  पलट  इसे कहते है 
 लोगों के घर झाड़ू पोंछा किया और बच्चों को पाला 
बना  देश का  ऊंचा  नेता ,बेटा  चाय बेचने वाला 
   माँ के हाथ ,आज भी उसको,आशीषें देते रहते है 
                                  काया पलट इसे कहते है  
माया की माया देखो तुम ,कैसे समय बदल जाता है 
कल का'परश्या','परसू' बन अब 'परसराम'जी कहलाता है  
शीश झुकाने वाले को अब ,लोग प्रणाम किया करते है 
                                      काया पलट इसे कहते है 
रोबीले वो शेर सरीखे ,जब दहाड़ते है दफ्तर में 
भीगी बिल्ली से मिमियाते ,पत्नी के आगे वो घर में 
दफ्तर में जिनसे सब डरते ,बीबी से डर कर रहते है
                                     काया पलट इसे कहते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'              

2 टिप्‍पणियां:

  1. निमंत्रण :

    विशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे ही एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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