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रविवार, 29 अगस्त 2021

मुहावरों का चिड़ियाघर 

यह मुहावरों का चिड़ियाघर ,जानवरों से जुड़ा हुआ है 
उनकी आदत और स्वभाव केअनुभव से ये भरा हुआ है 
जिसकी लाठी भैंस उसीकी,यह होता देखा है अक्सर 
ज्ञान बांटते फिरते जिनको, काला अक्षर भैंस बराबर 
अकल बड़ी या भैंस याकि जो भैंस के आगे बीन बजाए 
रहे हाथ मलता बेचारा ,चली भैंस पानी में जाए 
नौ सौ चूहे मार के कोई, बिल्ली जैसा हज को जाता
 कोई से गलती होती तो ,वह भीगी बिल्ली बन जाता 
मेरी बिल्ली मुझसे ही जब म्याऊं करती ,बात बिगड़ती  
बिल्ली गले कौन बांधेगा, घंटी सारी दुनिया डरती 
हो जो अपनी गली, शेर फिर कुत्ता भी बन जाया करता 
धोबी का कुत्ता बेचारा , न तो घाट ना घर का रहता 
जो कुत्ते भोंका करते हैं अक्सर नहीं काटते हैं वो
दुम मालिक आगे हिलती है उनके पैर चाटते हैं वो 
कर लो कोशिश लाख पूंछ ना,उनकी सीधी है हो पाती 
और गीदड़ की भभकी ,लोगों को अक्सर है बहुत डराती 
समय कभी जब पड़ता बांका,लोग गधे को काका कहते 
और गधे के सींग की तरह मौके पर है गायब रहते 
दिन भर खटता रहे आदमी ,काम गधे की तरह कर रहा गधा धूल में कभी लोटता, कभी रेंकता घास चर रहा आता ऊंट पहाड़ के नीचे ,तो अपनी औकात जानता 
ऊंट कौन करवट बैठेगा ,यह कोई भी नहीं जानता नेताओं को कुछ भी दे दो, होता ऊंट मुंह में जीरा 
ऊंची गर्दन ,पूंछ है छोटी, रेगिस्तानी जहाज रंगीला 
घोड़ा अगर घास से यारी ,कर लेगा तो क्या खाएगा 
घोड़े बेच कोई सोएगा, तो सोता ही रह जाएगा 
हाथी चलता ही रहता है कुत्ते सदा भोंकते रहते 
दांत हाथी के, खाने के कुछ ,और दिखाने के कुछ रहते 
घुड़की सदा दिखाएं बंदर ,स्वाद अदरक का जान न पाए 
भूले नहीं गुलाटी मारना, बूढ़ा कितना भी हो जाए 
खैर मनाएगी बकरे की अम्मा बोलो तुम ही कब तक 
काटी ना जाती है मुर्गी ,सोने का अंडा दे जब तक 
शेर न कभी घास खाता है, चाहे भूखा ही मर जाए 
हैं खट्टे अंगूर लोमड़ी,यदि उन तक वह पहुंच न पाए 
बगुला भगत मारता मछली, कौवा चाल हंस की चलता
 मोर नाचता है जंगल में, कोई न देखे ,मन को खलता 
कांव-कांव कौवे की ,कोई के आने की सूचक  होती कोयल अंबिया, काग निबौली, और हंस है चुगता मोती
रंगा हुआ सियार साथियों के, संग करता हुआ हुआ है 
यह मुहावरों का चिड़ियाघर  ,जानवरों  से जुड़ा हुआ है

मदन मोहन बाहेती घोटू

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