भटकाव
जिधर ले गयी हवा
बस उसी तरफ बहा
मैं तो बस बादल बन ,
यूं ही भटकता रहा
न तो अंबर में ही रहा
न ही धरती पर बहा
मैं तो बस बीच में ही ,
यूं ही लटकता रहा
जहाँ मिली शीतलता
बरसा रिमझिम करता
सौंधा सा , माटी में,
मिल कर महकता रहा
यहाँ वहां ,कहाँ कहाँ
सुख दुःख ,सभी सहा
कभी आस ,कभी त्रास
बन कर खटकता रहा
मैं तो बस जीवन में
यूं ही भटकता रहा
घोटू
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