उस रावण को कब मारोगे
यह पर्व विजयदशमी का है ,मन में क्या तनिक विचारोगे
इस रावण को तो जला दिया उस रावण को कब मारोगे
ये तो कागज का पुतला था ,बस घास फूस से भरा हुआ
तुम इसे जला क्यों खुश होते ,यह पहले ही मरा हुआ
कह इसे प्रतीक बुराई का ,निज कमी छुपाते आये हो
अपने मन का भूसा न जला ,तुम इसे जलाते आये हो
तुम क्यों न जलाया करते हो ,सारी बुराइयां जीवन की
फैला समाज का दुराचार ,बिगड़ी प्रवर्तियाँ जन जन की
बारह महीने में जो फिर फिर ,दूनी हो बढ़ती जाती है
हो जाती पुनः पुनः जीवित ,हर बार जलाई जाती है
हर बस्ती में क्यों बार बार ,रावण बढ़ते ही जाते है
साधू का भेष दिखावे का ,और जनता को भरमाते है
इस बढ़ती हुई बुराई को , कब तक ,कैसे संहारोगे
इस रावण को तो जला दिया उस रावण को कब मारोगे
वो कई बुराई का पुतला ,थे उसके कंधे ,दस आनन
पर बुद्धिमान ,तपस्वी था ,पंडित और ज्ञानी वो रावण
वह अहंकार का मारा था ,जिससे थी बुद्धि भ्रष्ट हुई
सीता का हरण किया उसने ,सोने की लंका नष्ट हुई
अब गाँव गाँव और गली गली ,कितने रावण विचरा करते
उसने थी सीता एक हरी ,ये सदबुद्धि सबकी हरते
कुछ सत्तामद में चूर हुए ,कुछ व्यभिचार में डूबे है
कुछ लूटे देश ,कोई अस्मत ,गंदे सबके मंसूबे है
कुछ ईर्ष्या द्वेष भरे रावण ,तो कुछ पापी,भ्रष्टाचारी
कुछ रावण भेदभाव वाले,कुछ गुंडे,लंफट ,व्यभिचारी
असली त्योंहार तभी जब तुम ,इनसे छुटकारा पा लोगे
इस रावण को तो जला दिया ,उस रावण को कब मारोगे
तुम नज़र उठा कर तो देखो ,कितने रावण है आसपास
एक रावण भूख गरीबी का ,देता है पीड़ा और त्रास
एक रावण है मंहगाई का ,कुपोषण और कमजोरी का
एक रावण चोरबाज़ारी का ,बेईमानी ,रिश्वत खोरी का
एक रावण काट रहा वन को ,एक जहर हवा में घोल रहा
एक छुपा बगल में छुरी रखे ,पर मीठा मीठा बोल रहा
एक रावण काला धन लेकर ,पुष्पक में जाता है विदेश
एक जाति ,धर्म में बाँट रहा ,करवाता दंगे और कलेश
हिम्मत हनुमान सरीखी हो और तीखे तेवर लक्ष्मण से
तब ही छुटकारा मुमकिन है ,इन दुष्ट बढ़ रहे रावण से
तुम इनका हनन करो , भारत माता का क़र्ज़ उतारोगे
इस रावण को तो जला दिया ,उस रावण को कब मारोगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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