ना जाने क्यूँ ?
ना जाने क्यूँ ,मेरे संग ही ,ऐसा सदा गुजरता है
तन का शेर दहाड़ मारता,मन का चूहा डरता है
जब भी लड़की कोई देखता ,मेरा ध्यान भटक जाता
उसके रूप ,चाल,यौवन में ,मेरा हृदय अटक जाता
पर बीबीजी की नज़रों में ,मेरा कृत्य खटक जाता
और उस रात ,मुझे सोफे पर ,भूखा सोना पड़ता है
तन का शेर दहाड़ मारता ,मन का चूहा डरता है
मेरी पत्नी ,सदा उँगलियों पर ही मुझे नचाती है
पा टीवी रिमोट भावना ,बदले की जग जाती है
ख़ुश होता मैं ,बटन दबा ,तस्वीर बदलती जाती है
कोई तो है ,जो कि इशारों पर मेरे भी ,चलता है
तन का शेर दहाड़ मारता ,मन का चूहा डरता है
मोबाईल पा ,बड़ी कुलबुलाहट ,हाथों को लगती है
टच स्क्रीन देख कर ऊँगली अपने आप फिसलती है
नये फेसबुक फ्रेंड बनाने ,तबियत मेरी मचलती है
पर बीबी के डर के मारे ,चुप ही रहना पड़ता है
तन का शेर दहाड़ मारता ,मन का चूहा डरता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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