बूंदी और सेव
मोती सी गोलमोल,पीली एक मीठी बूंदी ,रसासिक्त
और एक चरपरे,मनभावन ,कुरमुरे सेव है स्वादिष्ट
दोनों ही सबको प्यारे है ,दोनों ने मोहा सबका मन
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी बेसन ,वो भी बेसन
जब गीला बेसन बूँद बूँद,था तला गया देशी घी में
रसभरी चासनी उसने पी तो बदल गया वो बूंदी में
मिल मिर्च मसाले संग बेसन ,निकला छिद्रों से झारी की
और गर्म तेल में तला गया ,बन गया सेव वह प्यारी सी
जैसी जिसकी संगत होती ,वैसी ही रंगत जाती बन
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी बेसन ,वो भी बेसन
सज्जन का साथ अगर मिलता ,मानव सज्जन बन जाता है
मिलती जब दुर्जन की संगत ,तो वह दुर्जन कहलाता है
पानी के संग घिसे चंदन ,तो वह प्रभु के मस्तक चढ़ता
अग्नि का साथ अगर पाता ,तो किसी चिता में जा जलता
संगत से एक राख बनता ,संगत से एक बने पावन
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी चंदन,वो भी चंदन
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।