मुझे इन्द्रासन नहीं चाहिए
जो अपने किसी भी प्रतिद्वंदी को उभरता देख कर
उसके चरित्रहनन के लिए,सुन्दर स्त्रियां भेज कर
उसका ध्यान विचलित कर ,उसे पथ भ्रष्ट करे
अपनी कुर्सी बचाने को ,उसकी तपस्या नष्ट करे
अगर इंद्र बनने पर ,ये सब करना पड़ता है
तो मुझे वो इन्द्रासन नहीं चाहिए
अगर उसके भक्त ,किसी के प्रभाव में आकर
रोक दे उसकी पूजा तो इसे अपना अपमान समझ कर
रुष्ट होकर ,क्रोध में उनकी बस्ती में ला दे जल प्रलय
उन्हें फिर अपनी शरण में लाने को दिखलाये भय
अगर इंद्र बनने पर ,ये सब करना पड़ता है ,
तो मुझे वो इन्द्रासन नहीं चाहिए
जो सोमरस पीता रहे और अप्सराओं संग मौज मनाये
पर किसी पराई स्त्री की सुंदरता पर इतना आसक्त हो जाए
कि अपनी काम वासना मिटाये ,उसके पति का रूप धर
उसके सतीत्व का हरण करे ,उसके साथ व्यभिचार कर
अगर इंद्र ये सब करतूतें करता रहता है
तो मुझे वो इन्द्रासन नहीं चाहिए
मैं किसी बृजवासी को ,जल के प्रकोप से डराना नहीं चाहता
मैं किसी विश्वामित्र का ,तप भंग करवाना नहीं चाहता
मैं किसी अहिल्या को ,पत्थर की शिला बनवाना नहीं चाहता
इसलिए मैं जो भी हूँ ,जैसा भी हूँ ,खुश हूँ ,
मुझे इन्द्रासन नहीं चाहिए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सुन्दर रचना
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