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गुरुवार, 20 जुलाई 2017

सबकी नियति
 
 ट्रे में सजे धजे सब अंडे,कोई कब तक मुस्काएगा 
सबकी नियति एक ,एक दिन ,हर अंडा तोडा जाएगा 
कोई चोंटें खा खाकर के ,यूं ही  चम्मच की टूटेगा 
मिला दूध में ,पी कर कोई ,ताक़त पा कर ,सुख लूटेगा 
कोई गरम गरम पानी में ,डुबो डुबो कर जाय उबाला 
और तोड़ फिर काटा जाता ,फिर खाया जाता ,बेचारा 
कोई तोड़ कर फेंटा जाता ,गरम तवे पर  जाय बिछाया 
और प्यारा सा आमलेट बन ,ब्रेकफास्ट में जाए खाया 
कुछ किस्मतवाले अंडे है ,जो तोड़े और फेंटे जाते 
मैदे में मिल,ओवन में पक,रूप केक का है वो पाते 
उन्हें क्रीम से सजा धजा कर ,सुन्दर रूप दिया जाता है 
मगर किसी के जन्मदिवस पर ,उसको भी काटा जाता है 
टुकड़े टुकड़े खाया जाता ,मुंह पर कभी मल दिया जाता  
किसी सुन्दरी के गालों का ,पा स्पर्श ,बहुत इतराता 
सबकी अपनी अपनी किस्मत ,मगर टूटना सबको पड़ता 
कोई ओवन,कोई तवे पर ,और पानी में कोई उबलता 
चाहे अंडा हो या मानव ,तपते,पकते रहते हर क्षण 
सबकी नियति एक है मगर,क्षण भंगुर सबका है जीवन 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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